14-7-2022- ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली.

“मीठे बच्चे – “सब संग तोड़ मुझ एक बाप से योग लगाओ तो तुम मेरी पुरी में आ जायेंगे, अन्त मते सो गति हो जायेगी”

प्रश्नः– जो साइलेन्स की अवस्था में जाने का पुरुषार्थ करते हैं, उन्हें क्या अच्छा नहीं लगता?

उत्तर:- उन्हें घड़ी का आवाज भी अच्छा नहीं लगता क्योंकि स्वदेश (इनकारपोरियरल वर्ल्ड) में कोई भी आवाज नहीं है इसलिए तुम वाणी से परे जाने का पुरुषार्थ करते हो। तुम्हें अशरीरी हो अपने स्वधर्म में टिकना है। बाबा के देश को बाबा सहित याद करना है।

गीत:- भक्तों की फरियाद सुनो…….., अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.

“ओम् शान्ति”

“भगवानुवाच” : यह है योग आश्रम, तुम यहाँ बैठे हो योग कमाने – यह परमात्मा तुम आत्माओं से इन आरगन्स द्वारा बात कर रहे हैं। तुम आत्मायें अभी किसकी याद में बैठे हो? आत्मा कहती हैं अहम् आत्मा ततत्वम्, हम सब आत्मायें उस परमपिता परमात्मा की याद में बैठे हैं, यह योग किसने सिखाया?भगवानुवाच : मैं सभी आत्माओं का पिता हूँ अथवा फादर हूँ, मैं इस शरीर द्वारा तुमको योग सिखलाने के लिये टीचर बना हूँ। यह तो सहज समझाते हैं कहते हैं जब जब अति धर्म ग्लानि होती है तब मैं आता हूँ, यह वही कल्प पहले वाले महावाक्य अति साधारण शरीर द्वारा रिपीट हो रहे हैं। कहते हैं कल्प पहले भी यही महावाक्य उच्चारे थे जिसकी गीता बनी हुई है। तो जब धर्म ग्लानि होती है अथवा अनेक धर्म आए उपस्थित होते हैं और देवता धर्म का एकदम नाम निशान गुम हो जाता है, देवता धर्म वाले अपने को हिन्दू कहलाने लग पड़ते हैं।

Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव
Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव

भल पूजते देवताओं को हैं लेकिन कहलाते अपने को हिन्दू हैं, जैसे देवता धर्म के बदले हिन्दू धर्म रिप्लेस हो जाता है, इसको कहते हैं धर्म ग्लानि। जब वह एक दैवी धर्म का नाम निशान गुम हो जाता है उसके बदले अनेक धर्म, मठ, पंत निकल पड़ते हैं। यह वही कल्प पहले वाली गीता रिपीट हो रही है… यह भगवानुवाच दूसरा तो कोई कह नहीं सकता। वही आकर फिर वही गीता के महावाक्य रिपीट कर रहे हैं। यह महावाक्य और कोई शास्त्रों में नहीं हैं।

गीता में है भगवानुवाच, भगवान खुद समझाते हैं कहते हैं जब अनेक धर्म हो जाते हैं, कलियुग की अन्त आकर पहुँचती है तब कल्प के संगम पर मैं आता हूँ क्योंकि कलियुग को कहा जाता है तमोप्रधान, सतयुग है सतोप्रधान। जहाँ परमपिता परमात्मा का गॉड गॉडेज राज्य अथवा देवी देवताओं का राज्य चलता है। वह भी इस ही स्टेज पर चलता है, वैकुण्ठ कोई दूसरी जगह नहीं है। इस ही भारत में देवी देवताओं का राज्य था जो अब प्राय: लोप हो गया है।

परमात्मा को कहते हैं गॉड इज़ नॉलेजफुल, वह एक ही ज्ञान का सागर, आनंद का सागर, सुख का सागर है उसके सिवाए और कोई में गॉडली ज्ञान है ही नहीं। तो दूसरा कोई को ज्ञानी कैसे कह सकते हैं? वह कहते हैं कि यह नॉलेज देने के लिये मुझे ही आना पड़ता है। जब तक वह स्वयं आकर नॉलेज न देवे तब तक कोई नॉलेजफुल बन नहीं सकता। इस गॉडली नॉलेज को ही फिलासॉफी कहा जाता है, जिससे आत्मा पावन बनती है।

अब प्रश्न उठता है कि तुम यहाँ किसलिए आये हो? तुम कल्प पहले मुआफिक फिर से आये हो गॉड से गॉडली नॉलेज प्राप्त कर पावन बनने के लिये। यह नॉलेज प्राप्त करने के लिये इस गॉडली स्कूल में ज्वाइन्ट होना पड़ेगा, दूसरा कोई तो गॉडली नॉलेज दे नहीं सकता। वो कहते हैं हम सबमें गॉडली नॉलेज है, कौनसी नॉलेज है? कह देते ईश्वर सर्वव्यापी है।

Brahma Kumaris World Spiritual University
Brahma Kumaris World Spiritual University

लेकिन परमात्मा कहते हैं कि यह मिथ्या ज्ञान है, मैं तो सर्वव्यापी नहीं हूँ। मैं तो जो हूँ, जैसा हूँ तुम बच्चों के आगे प्रत्यक्ष होता हूँ, जब तक मैं अपना ज्ञान स्वयं आकर न सुनाऊं तब तक मुझे कोई जान नहीं सकता और न कोई मेरे पास पहुँच सकता इसलिए मुझे आना पड़ता है और मैं आता हूँ कल्प के संगम पर, बस। और जब मैं आता हूँ तब यह ज्ञान देने वाले डॉक्टर ऑफ फिलासाफी साधू महात्मा बहुत हैं, वह भी यही ज्ञान देते हैं कि हम सब परमात्मा हैं। अब एक तरफ कहते हैं परमात्मा एक है, दूसरे तरफ उन्हों की अनेक मतें अब किसको मानना चाहिए? उन्हों को गॉड ने तो मत नहीं दी ना!

एक तरफ है गॉड की एक मत, दूसरे तरफ इतनी अनेक मतें, तब परमात्मा कहता है इतने सब अनेक मत को खलास कर एक मत स्थापन करने मुझे आना पड़ता है। कल्प कल्प का यह प्रोग्राम मेरा अनादि नूँधा हुआ है। दूसरे किंग आदि का तो 8-10 दिन का प्रोग्राम रखते हैं लेकिन परमात्मा का तो कल्प कल्प का प्रोग्राम अनादि गीता में नूँधा हुआ है। ब्रह्मा के गुप्त वेष में, ब्रह्मा तन में आकर कहते हैं कि मैं वही कृष्णपुरी स्थापन करता हूँ, जहाँ होली गॉड गॉडेज राजा रानी तथा प्रजा होते हैं, तो वह स्थापन कर फिर कृष्ण के रूप में वहाँ जन्म लेते हैं। यह तो बिल्कुल साफ बता रहे हैं बच्चे, अब वही गीता का एपीसोड रिपीट हो रहा है। मौत है सामने इसलिये सभी संग तोड़ मुझ एक परमात्मा से योग लगाओ तो अन्त मते सो गते होगी, तुम मेरी पुरी में आ जाओगे।

परमात्मा इस तन में बैठ अपने बच्चों आत्माओं को कहता है मीठे बच्चे, मैं अपने अनादि प्रोग्राम प्रमाण आया हूँ। अब विनाश सामने है इसलिए मुझ बाप से योग लगाओ और सभी सम्बन्धियों को भूल जाओ अथवा सब दीवे बुझाकर एक दीवा जगाओ तो मैं तुमको पापों से मुक्त कर अपने पास बिठा दूँगा। इस तन द्वारा स्वयं परमात्मा बोल रहे हैं, कैसा सहज समझाते हैं, कहते हैं भल घर में जाकर योग लगाओ, वापस तो सबको जाना है, ऐसे तो नहीं कि सिर्फ बूढ़े जायेंगे, बच्चे बच जायेंगे। देखो, जापान में बॉम्ब छोड़ा तो छोटे बड़े जानवर पंछी सब मर गये, या सिर्फ बूढ़े मर गये? वह तो छोटी रिहर्सल थी, अभी तो बहुत इप्रुवमेन्ट हो रही है, देख रहे हो ना! बॉम्बस तैयार हैं, हिस्ट्री रिपीट अवश्य होगी।

तो तुम मुझ परमात्मा को याद करो, दूसरा न कोई। जैसे मीरा को एक गिरधर ही याद था और सब लोकलाज कुल की मर्यादा छोड़ दी, वैसे ही तुम मुझ परमात्मा को याद करो दूसरे जो मामा, चाचा याद पड़ते हैं, उसका संन्यास करो। यह सब कलियुग के बन्धन है। तुम मेरे से योग लगाने से ही मेरे से मिल सकते हो। जब अपने को बच्चा समझें, बाबा से योग लगायें तब वो खुशी आवे लेकिन उल्टा योग लगाते तो वह खुशी नहीं आती।

परमात्मा से योग , In Remembrence Of God Shiva
परमात्मा से योग , In Remembrence Of God Shiva

यहाँ बहुत आते हैं कहते हैं हमारा मन वश नहीं होता, वह आनंद नहीं आता। अब आनंद का सागर तो परमात्मा है उनसे योग लगाते नहीं तो आनंद कैसे आयेगा! पास्ट कर्मों अनुसार सबको अपनी-अपनी बुद्धि मिली हुई है, इसमें परमात्मा क्या करे? परमात्मा तो सबको इकट्ठा पढ़ाते हैं, कोई तो यहाँ ही पढ़कर फिर पढ़ाने लग पड़ते हैं, कोई तो पहली पोथी में ही मूँझे हुए हैं तो यह भी बुद्धि का चमत्कार है, क्लास में भी कोई पहला नम्बर आते, कोई फेल होते हैं, क्यों? क्योंकि बुद्धि पर सारा मदार रहता है। इसमें परमात्मा क्या करे? सबकी तीक्ष्ण बुद्धि करे तो सभी पहला नम्बर आ जायें।

जब कोई पर ग्रहचारी होती है तो कितनी भी दवाई करो उसका असर नहीं होता, और जब उतरने का टाइम आता है तो मिट्टी-चपटी से भी बीमारी ठीक हो जाती है। तो जब समय आयेगा तो यह प्वाइंटस भी किसकी बुद्धि को टच हो जायेंगी, अभी कई नहीं सुनते हैं, आगे चल सुनने लग पड़ेंगे इसमें हमको राज़ी रहना पड़ता है। परमात्मा के आने जाने, ज्ञान सुनाने की गति ही न्यारी है।

दूसरी मुरली – ओम शान्ति।

घड़ी का भी आवाज़ नहीं चाहिए, क्योंकि अभी हमारी वानप्रस्थ अर्थात् वाणी से परे अवस्था है। हम वाणी से परे जाते हैं इनकारपोरियल वर्ल्ड जहाँ आत्मायें रहती हैं, वहाँ वाणी नहीं है, सुप्रीम साइलेंस है तो इस साइलेंस अवस्था में पहुंचने का पुरुषार्थ करते हैं इसलिए आवाज़ अच्छा नहीं लगता। उस स्वदेश में आवाज़ नहीं होता है इसलिये वानप्रस्थ अर्थात् वाणी से परे जाने के लिये हम पुरुषार्थ करते हैं। वानप्रस्थ का अर्थ ही है निर्वाण देश में जाना। जहाँ हम तुम और सारी दुनिया की सोल्स निवास करती हैं। यह कार्पोरियल वर्ल्ड तो है पार्ट बजाने के लिये स्टेज। बाकी बिगर पार्ट वहाँ स्वीट साइलेंस होम में जाकर निवास करते हैं। यह साकार खेल चलता है आकाश तत्व में और आत्माओं का देश है महतत्व, वह बहुत दूर देश है।

तो जो उस साइलेंस देश से योग लगाए बैठते हैं, उनको घड़ी का आवाज़ भी अच्छा नहीं लगता, इसको कहा जाता है अपने असली स्वधर्म में टिकना अथवा अशरीरी हो रहना अर्थात् अपने बाबा के देश को बाबा सहित याद करना क्योंकि अपना बाबा है उस दूर देश का रहने वाला, वहाँ से आता है इस पराये देश में, पराये देश में क्यों आता है? अपनी बादशाही स्थापन करने और गुप्त वेश में आता है। उनका पार्ट है इनकागनीटो, जैसे तुम्हारा यह पुराना शरीर है, ऐसे मुझे भी पुराने शरीर में प्रवेश कर इस पुरानी सृष्टि का विनाश और नई दैवी सृष्टि की स्थापना करने आना पड़ता है। तो पुराने घर में जो आयेगा तो जरूर शरीर भी पुराना लेना पड़ेगा ना। यहाँ नया दिव्य शरीर आये कहाँ से, तो वो भी है इनका पुराना तन, जिस तन से श्रीकृष्ण की राजधानी स्थापन करते हैं।

Paradice -Satyug , स्वर्ग - सतयुग
Paradice -Satyug , स्वर्ग – सतयुग

तो इनके पास जो आते हैं उनको पहले साक्षात्कार भी उस वैकुण्ठ का होता है। वैकुण्ठ की बाल-लीला रास-लीला देखते हैं अथवा विष्णु का साक्षात्कार करते हैं क्योंकि अगर सुप्रीम सोल का साक्षात्कार कराए तो वह समझ नहीं सकेंगे कि यह क्या चीज़ है क्योंकि उस बाप का तो कोई को पता नहीं है कि यह कोई परमात्मा है। भल पूजा करते हैं लेकिन जानते कोई नहीं। वो तो कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है, तो सब परमात्मा हो गये। बाकी शिवलिंग के आक्यूपेशन का तो कोई को पता नहीं कि यह हमारा परमपिता है जो आकर स्थापना विनाश पालना करने अर्थ तीन रूप धारण करते हैं।

वह तो इसी समय आकर अपना आक्यूपेशन बताते हैं और कहते हैं जिसको वैकुण्ठ की बादशाही का वारिस बनना हो वो यहाँ आकर मेरा बच्चा बनें। मैं उनको सम्पूर्ण निर्विकारी बनाए अपनी राजधानी में ले जाऊंगा। यह आता ही है सभी मैली सोल्स को प्यूरीफाई बनाने, इससे प्रकृति भी पवित्र बन जाती है। वहाँ तो सोल्स भी प्युअर तो पाँच तत्व भी प्युअर होते हैं। है ही डीटी वर्ल्ड तो फिर क्या, इस समय वह डिटीज्म की फिलोसॉफी गुम हो गयी है। कोई को पता नहीं कि डीटी वर्ल्ड भी यहाँ थी। वो समझते हैं कि ऊपर आकाश में कहाँ देवतायें रहते हैं लेकिन उनके चित्र यहाँ हैं, हिस्ट्री यहाँ है तो जरूर यहाँ हो गये हैं। यह दुनिया तो सदा चलती रहती है। प्रलय तो कब होती नहीं है, जब विनाश हो जाता तो सभी सोल्स चली जाती हैं, बाकी दैवी धर्म यहाँ स्थापन हो जाता है।

जैसे अनाज होता है तो सब नहीं खाया जाता है, बहुत खाया जाता है थोड़ा बहुत बचाया जाता है, बोने के लिये। नहीं तो बीज कहाँ से आवे? अगर प्रलय हो जाये तो अनाज भी खलास हो जावे। फिर बोने के लिये अनाज कहाँ से आवे जो दूसरा निकलें। तो अनाज भी जैसे अनादि है ही तो मनुष्य भी हैं ही। तो परमात्मा जैसे कुछ बीज बचाए बाकी सबको ले जाते हैं जिससे फिर सृष्टि की वृद्धि होती है। बाप कहते भी हैं कि मैं अनेक धर्म विनाश कर एक धर्म स्थापन करता हूँ, ऐसे तो कहते नहीं कि मैं प्रलय कर देता हूँ।

Paradise-7 -Satyug , स्वर्ग - सतयुग
Paradise-7 -Satyug , स्वर्ग – सतयुग

यह सबका अन्तिम जन्म है फिर मृत्युलोक में कोई का जन्म नहीं होगा। सब चले जायेंगे। उसमें थोड़े बीज बच जाते हैं जिससे धीरे-धीरे बढ़कर त्रेता के अन्त तक 33 करोड़ देवी-देवतायें होते हैं। फिर दूसरे धर्म नम्बरवार आते जाते हैं, उनमें भी ऐसे ही धीरे-धीरे वृद्धि होती जाती है, यह ड्रामा का राज़ भी तुमको आलमाइटी बाबा ही आकर बताते हैं इसलिये इसको कहा जाता है गॉडली नॉलेज। दूसरा कहीं भी यह नॉलेज तुमको नहीं मिलेगी। भल कितना भी घूमो, किसको इस नॉलेज का पता ही नहीं है। वो बस, इसी समय ही तुमको यहाँ मिल सकती है। परमात्मा यहाँ दैवी सिजरा बना रहे हैं, परमात्मा कहते हैं अगर तुम्हें उस रॉयल घराने में आना है तो अपना सब मेरे हवाले कर दो। तो मैं उसे प्युरीफाई बनाए वैकुण्ठ में रिटर्न कर दूंगा।

यह तो जानते हो बाबा अभी आये हैं फिर कल्प बाद आयेंगे। घड़ी-घड़ी तो नहीं आयेंगे। कहते हैं बच्चे, हम आये हैं तुमको स्वच्छ होली बनाने। वाइसलेस को ही होली कहा जाता है। बाकी यह जो बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि पीते रहते हैं, उनको होली नहीं कह सकते। तुमको तो बाबा शिक्षक बनकर पढ़ाते भी हैं, तो बाप बनकर सम्भाल भी करते हैं। तुमको इनसे डबल आशीर्वाद मिलती है – गुरू की भी तो बाप की भी, दोनों का वर्सा तुम ले रहे हो। वो आलमाइटी बाबा इस तन द्वारा तुम्हारी स्थूल सूक्ष्म परवरिश करते रहते हैं इसलिए कहते हैं कि इसके हवाले कर दो। तो ज्ञान अमृत से पवित्र बनाए अपने साथ ले चलूंगा। इसे ही कहा जाता है जीते जी मरना लेकिन यह तो बहुत मीठा मौत है, जो अपने असली बाप की गोद में आ जाते हैं। कितना अच्छा समझाए कितना समझायें। फिर भी कह देते हैं मनमनाभव मध्याजीभव। 

“अच्छा! मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) अपने असली स्वधर्म में टिक अशरीरी बन बाबा के देश को बाबा सहित याद करता है। साइलेन्स में रहना है।

2) रॉयल घराने में आने के लिए अपना सब कुछ बाप हवाले कर प्युरीफाई बनाना है।

वरदान:-     बाप द्वारा प्राप्त हुए सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाने वाले ज्ञानी-योगी तू आत्मा भव

बापदादा ने बच्चों को सर्व खजानों से सम्पन्न बनाया है लेकिन जो समय पर हर खजाने को काम में लगाते हैं उनका खजाना सदा बढ़ता जाता है। वे कभी ऐसे नहीं कह सकते कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। खजानों से सम्पन्न ज्ञानी-योगी तू आत्मायें पहले सोचती हैं फिर करती हैं। उन्हें समय प्रमाण टच होता है वे फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाती हैं। एक सेकण्ड भी करने के बाद सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे।

स्लोगन:-    “स्वभाव और विचारों में अन्तर होते हुए भी स्नेह में अन्तर नहीं होना चाहिए। – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > Hindi Murli

अच्छा – ओम् शान्ति।

किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे [ निचे ]

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