24-4-2022-”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली. रिवाइज:31/03/90.

“रहमदिल और बेहद की वैराग वृत्ति”

“ओम् शान्ति”

आज लवफुल और मर्सीफुल बापदादा अपने समान बच्चों को देख रहे हैं। आज बापदादा विश्व के सर्व अन्जान बच्चों को देख रहे थे। भले अन्जान हैं लेकिन फिर भी बच्चे हैं। बाप-दादा के सम्बन्ध से सर्व बच्चों को देखते हुए क्या अनुभव किया कि मैजारिटी आत्माओं को समय प्रति समय किसी-न-किसी कारण से जाने-अन्जाने भी वर्तमान समय मर्सी अर्थात् रहम की, दया की आवश्यकता है और आवश्यकता के कारण ही मर्सीफुल बाप को याद करते रहते हैं।

God Supreem, परमपिता शिव
God Supreem, परमपिता शिव

तो चारों ओर की आवश्यकता प्रमाण इस समय रहम-दृष्टि की पुकार है क्योंकि एक तो भिन्न-भिन्न समस्याओं के कारण अपने मन और बुद्धि का सन्तुलन न होने के कारण मर्सीफुल बाप को वा अपनी-अपनी मान्यता वालों को मर्सी के लिए बहुत दु:ख से, परेशानी से पुकारते रहते हैं। चाहे अन्जान आत्माएं बाप को न जानने के कारण अपने धर्म पिताओं वा गुरूओं को वा ईष्ट देवों को मर्सीफुल समझकर पुकारते हैं लेकिन आप सब तो जानते ही हो कि इस समय सिवाए एक बाप परम-आत्मा के और किसी भी आत्मा द्वारा मर्सी मिल नहीं सकती।

भले बाप उन्हों की इच्छा पूर्ण करने के कारण, भावना का फल देने के कारण किसी भी इष्ट को वा महान आत्मा को निमित्त बना दे लेकिन दाता एक है – इसलिए वर्तमान समय के प्रमाण मर्सीफुल बाप बच्चों को भी कहते हैं कि बाप के सहयोगी साथी भुजाएं आप ब्राह्मण बच्चे हो। तो जिस चीज़ की आवश्यकता है, वह देने से प्रसन्न हो जाते हैं। तो मास्टर मर्सीफुल बने हो? आपके ही भाई-बहने हैं – चाहे सगे हैं वा लगे हैं लेकिन हैं तो परिवार के। अपने परिवार की अन्जान, परेशान आत्माओं के ऊपर रहम-दिल बनो। दिल से रहम आये।

विश्व की अन्जान आत्माओं के लिए भी रहम चाहिए। और साथ-साथ ब्राह्मण-परिवार के पुरुषार्थ की तीव्रगति के लिए वा स्व-उन्नति के लिए रहमदिल की आवश्यकता है। स्व-उन्नति के लिए स्व पर जब रहमदिल बनते हैं तो रहमदिल आत्मा को सदा बेहद की वैराग्यवृत्ति स्वत: ही आती है। स्व के प्रति भी रहम हो कि मैं कितनी ऊंच-ते-ऊंच बाप की वही आत्मा हूँ और वही बाप समान बनने के लक्ष्यधारी हूँ। उस प्रमाण ओरिज्नल श्रेष्ठ स्वभाव वा संस्कार में अगर कोई कमी है तो अपने ऊपर दिल का रहम कमियों से वैराग्य दिला देगा।

बापदादा आज यही रूहरिहान कर रहे थे कि सभी बच्चे नॉलेज में तो बहुत होशियार हैं। प्वाइंट स्वरूप तो बन गये हैं लेकिर हर कमजोरी को जानने की प्वाइंटस हैं, जानते भी हैं कि यह होना चाहिए, करना नहीं चाहिए, यह जानते हुए भी प्वाइंट-स्वरूप बनना और जो कुछ व्यर्थ देखा-सुना और अपने से हुआ उसको फुलस्टाप की प्वाइंट लगाना नहीं आता है। प्वाइंट्स तो हैं लेकिन प्वाइंट स्वरूप बनने के लिए विशेष क्या आवश्यकता है? अपने ऊपर रहम और औरों के ऊपर रहम।

SHIVA TEMPLE KAIDARNATH, शिव मन्दिर केदारनाथ
SHIVA TEMPLE KAIDARNATH, शिव मन्दिर केदारनाथ

भक्ति-मार्ग में भी सच्चे भक्त होंगे वा आप भी सच्चे भक्त बने हो, आत्मा में रिकॉर्ड भरा हुआ है ना। तो सच्चे भक्त सदा रहमदिल होते हैं इसलिए वे पाप-कर्म से डरते हैं। बाप से नहीं डरते लेकिन पाप से डरते हैं। इसलिए कई पाप-कर्म से बचे हुए रहते हैं।

तो ज्ञान-मार्ग में भी जो यथार्थ रहमदिल हैं – उसमें 3 बातों से किनारा करने की शक्ति होती है। जिसमें रहम नहीं होता वे समझते हुए, जानते हुए तीन बातों के परवश बन जाते हैं। वह तीनों बातें हैं – अलबेलापन, ईर्ष्या और घृणा। कोई भी कमजोरी वा कमी का कारण 90 प्रतिशत यह तीनों बातें होती हैं। और जो रहमदिल होगा वह बाप के साथी, धर्मराज की सज़ा से किनारा करने की शुभ-इच्छा रखते हैं। जैसे भक्त डर के मारे अलबेले नहीं होते, ऐसे ब्राह्मण-आत्मायें बाप के प्यार के कारण, धर्मराजपुरी से क्रास न करना पड़े – इस मीठे डर से अलबेले नहीं होते हैं।

बाप का प्यार उससे किनारा करा देता है। अपने दिल का रहम अलबेलापन समाप्त कर देता है। और जब अपने प्रति रहम भावना आती है तो जैसी वृत्ति, जैसी स्मृति, वैसी सर्व ब्राह्मण सृष्टि के प्रति स्वत: ही रहमदिल बनते हैं। यह है यथार्थ ज्ञानयुक्त रहम। बिना ज्ञान के रहम कभी नुकसान भी करता है। लेकिन ज्ञानयुक्त रहम कभी भी किसी आत्मा के प्रति ईर्ष्या वा घृणा का भाव दिल में उत्पन्न करने नहीं देगा। ज्ञानयुक्त रहम के साथ-साथ स्वयं की रूहानियत का रूहाब भी अवश्य होता है। अकेला रहम नहीं होता। लेकिन रहम और रूहाब दोनों का बैलेंस रहता है।

अगर ज्ञानयुक्त रहम नहीं है, साधारण रहम है तो किसी भी आत्मा के प्रति चाहे लगाव के रूप से, चाहे किसी भी कमजोरी से उसके ऊपर प्रभावित हो सकते हैं। प्रभावित भी नहीं होना है। न घृणा चाहिए, न प्रभावित चाहिए क्योंकि आप तन-मन-बुद्धि सहित बाप के ऊपर प्रभावित हो चुके हो। जब मन और बुद्धि एक के तरफ और ऊंचे-ते-ऊंचे तरफ प्रभावित हो चुकी तो फिर दूसरे के ऊपर प्रभावित कैसे हो सकते?

अगर दूसरे के ऊपर प्रभावित होते हैं तो उसको क्या कहेंगे? दी हुई वस्तु को फिर से स्वयं यूज़ करना, उसको कहा जाता है – अमानत में ख्यानत। जब मन-बुद्धि दे दिया तो फिर आपकी रही कहाँ जो प्रभावित होते हो? बाप के हवाले कर दिया है या आधी रखी है, आधी दी है? जिन्होंने फुल दी है वे हाथ उठाओ। देखो, ब्राह्मण-जीवन का फाउण्डेशन, महामंत्र क्या है? मनमनाभव।

तो मनमना-भव नहीं हुए हो? तो ज्ञान सहित रहमदिल आत्मा कभी किसी के ऊपर चाहे गुणों के ऊपर, चाहे सेवा के ऊपर, चाहे किसी भी प्रकार के सहयोग प्राप्त होने के कारण आत्मा पर प्रभावित नहीं हो सकती क्योंकि बेहद की वैरागी होने के कारण बाप के स्नेह, सहयोग, साथ – इनके सिवाए और कुछ उसको दिखाई नहीं देगा। बुद्धि में आयेगा ही नहीं।

GOD PRAISE , परमात्मा याद प्यार
GOD PRAISE , परमात्मा याद प्यार

तुम्हीं से उठूं, तुम्हीं से सोऊं, तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से सेवा करूं, तुम्हीं साथ कर्मयोगी बनूं – यही स्मृति सदा उस आत्मा को रहती है। भले कोई श्रेष्ठ आत्मा द्वारा सहयोग मिलता भी है लेकिन उसका भी दाता कौन? तो एक बाप की तरफ ही बुद्धि जायेगी ना। सहयोग लो, लेकिन दाता कौन है, यह भूलना नहीं चाहिए। श्रीमत एक बाप की है।

कोई निमित्त आत्मा आपको बाप की श्रीमत की स्मृति दिलाती है तो उनकी श्रीमत नहीं कहेंगे, लेकिन बाप की श्रीमत को फॉलो कर औरों को भी फॉलो कराने के लिए स्मृति दिलाती है। निमित्त आत्मायें, श्रेष्ठ आत्मायें कभी यह नहीं कहेंगी कि मेरी मत पर चलो। मेरी मत ही श्रीमत है – यह नहीं कहेंगी। श्रीमत की फिर से स्मृति दिलाते, इसको कहते हैं यथार्थ सहयोग लेना और सहयोग देना। दीदी की, दादी की श्रीमत नहीं कहेंगे। निमित्त बनते हैं श्रीमत की शक्ति स्मृति दिलाते हैं इसलिए कोई भी आत्मा के ऊपर प्रभावित नहीं होना।

अगर किसी भी बात में किसी पर प्रभावित होते हैं, चाहे उसके नाम की महिमा पर, रूप पर वा किसी विशेषता पर तो लगाव के कारण, प्रभावित होने के कारण बुद्धि वहाँ अटक जायेगी। अगर बुद्धि अटक गई तो उड़ती कला हो नहीं सकती। अपने ऊपर भी प्रभावित होते हैं – मेरी बहुत अच्छी प्लैनिंग बुद्धि है, मेरा ज्ञान बहुत स्पष्ट है, मेरे जैसी सेवा और कोई कर नहीं सकते। मेरी इन्वेंटर बुद्धि है, गुणवान हूँ – यह अपने ऊपर भी प्रभावित नहीं होना है। विशेषता है, प्लैनिंग बुद्धि है लेकिन सेवा के निमित्त किसने बनाया? मालूम था क्या कि सेवा क्या होती है?

इसलिए स्व-उन्नति के लिए यथार्थ ज्ञानयुक्त रहमदिल बनना बहुत आवश्यक है। फिर यह ईर्ष्या, घृणा समाप्त हो जाती है। तीव्रगति की कमी का मूल कारण यही है – ईर्ष्या वा घृणा या प्रभावित होना। चाहे अपने ऊपर चाहे दूसरे के ऊपर और चौथी बात सुनाई – अलबेलापन। यह तो होता ही है, टाइम पर तैयार हो जायेंगे, यह है अलबेलापन। बाप-दादा ने एक हंसी की बात पहले भी सुनाई है। ब्राह्मण-आत्माओं के दूर की नज़र बड़ी तेज है और नजदीक की नज़र थोड़ी कमजोर है इसलिए दूसरों की कमी जल्दी दिखाई देती है और अपनी कमी देरी से दिखाई देती है।

तो रहम की भावना लवफुल भी हो और मर्सीफुल भी हो, इससे दिल से वैराग्य आयेगा। जिस समय सुनते हैं वा भट्ठी होती है, रुहरिहान होती है, उस समय तो सब समझते हैं कि ऐसे ही करना है। वह अल्पकाल का वैराग्य आता है, दिल का नहीं होता। जो बाप को अच्छा नहीं लगता उससे दिल से वैराग्य आना चाहिए। अपने-आपको भी अच्छा नहीं लगता है लेकिन बेहद की वैराग वृत्ति का हल चलाओ, रहमदिल बनो।

कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं। कहते हैं – जब कोई झूठ बोलता है, तब बहुत गुस्सा आता, झूठ पर गुस्सा आता है या कोई गलती करता है तो गुस्सा आता है। वैसे नहीं आता, उसने झूठ बोला यह तो ठीक है, उसको रांग समझते हो और जो आप गुस्सा करते हो वह फिर राइट है क्या? रांग, रांग को कैसे समझा सकते? उसका असर कैसे हो सकता है। उस समय अपनी गलती को नहीं देखते लेकिन दूसरे की झूठ की छोटी बात को भी बड़ा कर देते हैं। ऐसे समय पर रहम दिल बनो।

अपनी प्राप्त हुई बाप की शक्तियों द्वारा रहमदिल बनो, सहयोग दो। लक्ष्य अच्छा रखते हैं कि उनको झूठ से बचा रहे हैं, लक्ष्य अच्छा है उसके लिए मुबारक हो। लेकिन रिजल्ट क्या निकली? वह भी फेल, आप भी फेल। तो फेल वाला फेल वाले को क्या पास करायेगा? कई फिर समझते हैं – हमारी जिम्मेवारी है – उसको अच्छा बनाना, आगे बढ़ाना। लेकिन जिम्मेवारी निभाने वाला पहले अपनी जिम्मेवारी उस समय निभा रहे हो या दूसरे की निभाते हो।

BK-Sister-Shivani-receiving-Nari-Shakti-Award-from-President-Kovind, शिवानी बहिन जी - नारी शक्ति सम्मान राष्ट्रपति कोविंद जी द्वारा।
BK-Sister-Shivani-receiving-Nari-Shakti-Award-from-President-Kovind, शिवानी बहिन जी – नारी शक्ति सम्मान राष्ट्रपति कोविंद जी द्वारा।

कई निमित्त टीचर बनते हैं तो समझते हैं छोटों के लिए हम जिम्मेवार हैं, इनको शिक्षा देनी है, सिखाना है। लेकिन सदैव यह सोचो कि यथार्थ नॉलेज सोर्स ऑफ इनकम होगी। अगर आपने शिक्षक की जिम्मेवारी से शिक्षा दी तो पहले यह देखो कि उस शिक्षा से दूसरे की कमाई जमा हुई? सोर्स ऑफ इनकम हुआ या सोर्स ऑफ गिरावट हुई? इसलिए बापदादा सदा कहते हैं कि कोई भी कर्म करते हो तो त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर करो। सिर्फ वर्तमान नहीं देखो कि इसने किया, इसलिए कहा। लेकिन उसका भविष्य परिणाम क्या होगा, वह भी देखो। जो पास्ट आदि अनादि स्थिति ब्राह्मण आत्माओं की थी, अब भी है और आगे भी रहेगी, उसी प्रमाण हैं? तीनों काल चेक करो, तो समझा बापदादा क्या चाहते हैं?

स्व-उन्नति तो करेंगे लेकिन परिवर्तन क्या लायेंगे? चाहे महारथी हो चाहे नये हो – बापदादा की एक ही शुभ आशा है, जितना चाहते हैं उतना अभी हुआ नहीं है। रिजल्ट तो सुनायेंगे ना। बापदादा अल्पकाल का वैराग्य नहीं चाहते हैं। निजी वैराग्य आये – जो बाप को अच्छा नहीं लगता वह नहीं करना है, नहीं सोचना है, नहीं बोलना है। इसको बापदादा कहते हैं दिल का प्यार। अभी मिक्स है, कभी दिल का प्यार है, कभी दिमाग का प्यार है।

माला का हर एक मणका हरेक मणके के साथ समीप हो, स्नेही हो, प्रगति के लिए सहयोगी हो, इसलिए माला रूकी हुई है क्योंकि माला तैयार होना अर्थात् युगल दाने के समान एक-दो के भी समीप स्नेही बनना। पहले 108 की माला बने तब दूसरी बने। बापदादा बहुत बार माला तैयार करने के लिए बैठते हैं लेकिन अभी पूरी ही नहीं हुई है। मणका, मणके के समीप तब आता है अर्थात् बाप उसको पिरोता तभी है जब उस मणके को तीन सर्टिफिकेट हों:-

बाप पसंद, ब्राह्मण-परिवार पसंद और अपने यथार्थ पुरुषार्थ पसंद। तीनों बातें चेक करते हैं तो मणका हाथ में ही रह जाता है, माला में नहीं आता। तो इस वर्ष कौन-सा स्लोगन याद रखेंगे? त्रिमूर्ति बाप और विशेष तीनों सम्बन्ध द्वारा तीन सर्टिफिकेट लेना है। और औरों को भी दिलाने में सहयोगी बनना है। माला का समीप मणका बनना ही है। तो सुना – स्व-उन्नति क्या करनी है? जैसे ब्रह्मा बाप का फाउण्डेशन नम्बरवन परिवर्तन में क्या रहा? बेहद का वैराग्य। जो बाप ने कहा वह ब्रह्मा ने किया, इसलिए विन करके वन बन गये। अच्छा।

बापदादा यह रिजल्ट देखेंगे। हर एक अपने को देखे, दूसरे को नहीं देखना है। कई समझते हैं सीजन का आज लास्ट डे है लेकिन बापदादा कहते हैं – लास्ट नहीं है, माला बनने का फास्ट सीजन का दिन है। सभी को चांस है। अभी माला के मणके पिरोये नहीं हैं, फिक्स नहीं हुए हैं। तीन सर्टिफिकेट लो और पिरो जाओ। जितना प्रत्यक्ष सबूत देने वाले प्रत्यक्ष चेहरे और चलन में देखेंगे उतना फिर से नई रंगत देखेंगे। अगर आप भी वहीं के वहीं रहे तो रंगत भी वही की वही रही, इसलिए अपने में नवीनता लाओ, परिवार में भी तीव्र पुरुषार्थ की नई लहर लाओ। फिर आगे चलकर कितने वण्डरफुल नज़ारे देखेंगे। जो अब तक हुआ वह बीता, अभी हर कर्म में नया उमंग, नया उत्साह… इन पंखों से उड़ते चलो।

बाकी जिन्होंने भी जो सेवा में सहयोग दिया अर्थात् अपना भाग्य जमा किया, वह अच्छा किया। चाहे देश चाहे विदेश के चारों ओर के सेवाधारियों ने सेवा की, इसलिए सेवाधारियों को बापदादा सदा यही कहते हैं कि सेवाधारी अर्थात् गोल्डन चांस का भाग्य लेने वाले। अभी इसी भाग्य को जहाँ भी जाओ वहाँ बढ़ाते रहना, कम नहीं होने देना। थोड़े समय का चांस सदा के लिए तीव्र पुरुषार्थ का गोल्डन चांस दिलाता रहेगा। सेवाधारी भी जो चले गये हैं अथवा जो जा रहे हैं, सभी को मुबारक। अच्छा।

“सर्व रहमदिल श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्वयं को स्व-उन्नति की उड़ती कला में ले जाने वाले, तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा हर समय एक बाप को साथ अनुभव करने वाले अनुभवी आत्माओं को, सदा बाप के दिल की आशाओं को पूर्ण करने वाले कुल दीपक आत्माओं को, सदा अपने को माला के समीप मणके बनाने वाले विजयी आत्माओं को, बेहद की वैराग्य वृत्ति से हर समय बाप को फालो कर बाप समान बनने वाले अति स्नेही राइट हैण्ड बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।“

वरदान:- प्राप्तियों को इमर्ज कर सदा खुशी की अनुभूति करने वाले सहजयोगी भव

सहजयोग का आधार है – स्नेह और स्नेह का आधार है संबंध। संबंध से याद करना सहज होता है। संबंध से ही सर्व प्राप्तियां होती हैं। जहाँ से प्राप्ति होती है मन-बुद्धि वहाँ सहज ही चली जाती है, इसलिए बाप ने जो शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का, सुख-शान्ति, आनंद, प्रेम का खजाना दिया है, जो भी भिन्न-भिन्न प्राप्तियां हुई हैं, उन प्राप्तियों को बुद्धि में इमर्ज करो तो खुशी की अनुभूति होगी और सहज योगी बन जायेंगे।

स्लोगन:-    जो सर्व प्रश्नों से पार रहता है – वही प्रसन्नचित है।ॐ शान्ति।

*** “ॐ शान्ति”। ***

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गीत:- अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > “Hindi Murli” 

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-; निवदेन :-

किर्प्या अपना अनुभव जरूर साँझा करे । [नीचे जाये ]

धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।

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