05-09-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

30-08-2021प्रात: मुरली ओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन

“नई दुनिया की तस्वीर का आधार वर्तमान श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन”

आज विश्व रचता, विश्व की श्रेष्ठ तकदीर बनाने वाले बापदादा अपने श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर – स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। आप सभी ब्राह्मण आत्मायें विश्व की श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर हो। ब्राह्मण जीवन की तस्वीर से भविष्य की श्रेष्ठ तकदीर स्पष्ट दिखाई देती है। ब्राह्मण जीवन का हर श्रेष्ठ कर्म भविष्य श्रेष्ठ फल का अनुभव कराता है। ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ संकल्प भविष्य का श्रेष्ठ संस्कार स्पष्ट करता है। तो वर्तमान ब्राह्मण जीवन तस्वीर है – भविष्य तकदीरवान संसार की। बाप-दादा ऐसे भविष्य के तस्वीर बच्चों को देख हर्षित होते हैं। तस्वीर भी आप हो, भविष्य की तकदीर के आधारमूर्त भी आप हो। आप श्रेष्ठ बनते, तब ही दुनिया भी श्रेष्ठ बनती है। आपकी उड़ती कला की स्थिति तो विश्व की भी उड़ती कला है। आप ब्राह्मण आत्मायें समय प्रति समय जैसी स्टेज से पास करते तो विश्व की स्टेजेस भी परिवर्तन होती रहती हैं। आपकी सतोप्रधान स्थिति है तो विश्व भी सतोप्रधान है, गोल्डन एजड है। आप बदलते तो दुनिया भी बदल जाती है। इतने आधारमूर्त हो!

वर्तमान समय बाप के साथ कितना श्रेष्ठ पार्ट बजा रहे हो! सारे कल्प के अन्दर सबसे बड़े ते बड़ा विशेष पार्ट इस समय बजा रहे हो! बाप के साथ-साथ सहयोगी बन विश्व की हर आत्मा की अनेक जन्मों की आशायें पूर्ण कर रहे हो। बाप द्वारा हर आत्मा को मुक्ति वा जीवनमुक्ति का अधिकार प्राप्त कराने के निमित्त बने हुए हो। सर्व की इच्छाओं को पूर्ण करने वाले बाप समान ‘कामधेनु’ हो, कामनायें पूर्ण करने वाले हो। ऐसे हर आत्मा को इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति का अनुभव कराते हो जो आधाकल्प अनेक जन्म, न भक्ति वाली आत्माओं को, न जीवनमुक्त अवस्था वाली आत्माओं को कोई भी इच्छा रहती है। एक जन्म की इच्छायें पूर्ण कराने वाले नहीं लेकिन अनेक जन्मों के लिए इच्छा मात्रम् अविद्या की अनुभूति कराने वाले हो। जैसे बाप के सर्व भण्डारे, सर्व खजाने सदा भरपूर हैं, अप्राप्ति का नाम निशान नहीं है; ऐसे बाप समान सदा और सर्व खजानों से भरपूर हो।

ब्राह्मण आत्मा अर्थात् प्राप्तिस्वरूप आत्मा, सम्पन्न आत्मा। जैसे बाप सदा लाइट-हाउस, माइट हाउस है; ऐसे ब्राह्मण आत्मायें भी बाप समान हो, लाइट-हाउस हो इसलिए हर आत्मा को अपनी मंजिल पर पहुँचाने के निमित्त हो। जैसे बाप हर संकल्प, हर बोल, हर कर्म से हर समय दाता है, वरदाता है, ऐसे आप ब्राह्मण आत्मायें भी दाता हो, मास्टर वरदाता हो। ऐसे ब्राह्मण जीवन की तस्वीर हो? कोई भी तस्वीर बनाते हो तो उसमें सभी विशेषतायें दिखाते हो ना। ऐसे वर्तमान समय की ब्राह्मण जीवन के तस्वीर की विशेषतायें अपने में भर ली हैं? बड़े ते बड़े चित्रकार आप हो जो अपना चित्र भी बना रहे हो। आपके चित्र बनते ही विश्व का चित्र बनता जा रहा है। ऐसे अनुभव करते हो ना।

कई पूछते हैं ना कि नई दुनिया में क्या होगा? तो नई दुनिया की तस्वीर ही आप हो। आपकी जीवन से भविष्य स्पष्ट होता है। इस समय भी अपनी तस्वीर में देखो कि सदा ऐसी तस्वीर बनी है जो कोई भी देखे तो सदा के लिए प्रसन्नचित्त हो जाए। कोई भी जरा भी अशान्ति की लहर वाला हो तो आपकी तस्वीर देख अशान्ति को ही भूल जाए, शान्ति की लहरों में लहराने लगे। अप्राप्ति स्वरूप, प्रप्ति की अनुभूति स्वत: ही अनुभव करे। भिखारी बनकर आये, भरपूर बनकर जाये। आपकी मुस्कराती हुई मूर्त देख मन का वा आंखों का रोना भूल जाएं, मुस्कराना सीख जाएं। आप लोग भी बाप को कहते हो ना कि मुस्कराना सिखा दिया.. तो आपका काम ही है रोना छुड़ाना और मुस्कराना सिखाना। तो ऐसी तस्वीर ब्राह्मण जीवन है। सदा यह स्मृति में रखो कि हम ऐसे आधारमूर्त हैं, फाउण्डेशन हैं। वृक्ष के चित्र में देखा – ब्राह्मण कहाँ बैठे हैं? फाउन्डेशन में बैठे हो ना। ब्राह्मण फाउन्डेशन मजबूत है, तब आधाकल्प अचल-अडोल रहते हो। साधारण आत्मायें नहीं हो, आधारमूर्त हो, फाउन्डेशन हो।

इस समय की आपकी सम्पूर्ण स्थिति सतयुग की 16 कला सम्पूर्ण स्थिति का आधार है। अब की एक-मत वहाँ के एक राज्य के आधारमूर्त है। यहाँ के सर्व खजानों की सम्पन्नता – ज्ञान, गुण, शक्तियाँ, सर्व खजाने वहाँ की सम्पन्नता का आधार हैं। यहाँ की देह के आकर्षण से न्यारापन, वहाँ के तन की तन्दरूस्ती के प्राप्ति का आधार है। अशरीरी-पन की स्थिति निरोगी-पन और लम्बी आयु के आधार स्वरूप है। यहाँ की बेफिकर, बादशाहपन की जीवन वहाँ के हर घड़ी के मन की मौज की जीवन इसी स्थिति के प्राप्ति का आधार बनती है। एक बाप दूसरा न कोई – यहाँ की यह अखण्ड-अटल साधना वहाँ अखण्ड, अटल, अखुट, निर्विघ्न साधनों की प्राप्ति का आधार बनती है। यहाँ का छोटा-सा संसार बापदादा वा मात-पिता और बहन-भाई, वहाँ के छोटे संसार का आधार बनता है। यहाँ एक मात-पिता के सम्बन्ध के संस्कार वहाँ भी एक ही विश्व के विश्व-महाराजन वा विश्व-महारानी को मात-पिता के रूप में अनुभव करते हैं। यहाँ के स्नेह-भरे परिवार का सम्बन्ध, वहाँ भी चाहे राजा और प्रजा बनते लेकिन प्रजा भी अपने को परिवार समझती है, स्नेह की समीपता परिवार की रहती है। चाहे मर्तबे रहते हैं लेकिन स्नेह के मर्तबे हैं, संकोच और भय के नहीं। तो भविष्य की तस्वीर आप हो ना। यह सब बातें अपनी तस्वीर में चेक करो – कहाँ तक श्रेष्ठ तस्वीर बन करके तैयार हुई है कि अभी तक रेखायें खींच रहे हो? होशियार आर्टिस्ट हो ना।

बापदादा यही देखते रहते हैं कि हर एक ने कहाँ तक तस्वीर तैयार की है? दूसरे को उल्हना तो दे नहीं सकते कि इसने यह ठीक नहीं किया, इसलिए ऐसे हुआ। अपनी तस्वीर आपेही बनानी है। और चीजें तो सब बापदादा से मिल रही हैं, उसमें तो कमी नहीं है ना। यहाँ भी खेल सिखाते हो ना जिसमें चीज़ें खरीदकर फिर बनाते हो। बनाने वाले के ऊपर होता है, जितना चाहे उतना लो। लेने वाले सिर्फ ले सकें। बाकी खुला बाजार है, बापदादा यह हिसाब नहीं रखता कि दो लेना है या चार लेना है। सबसे बढ़िया तस्वीर बनाई है ना।

सदा अपने को ऐसे समझो कि हम ही भविष्य के तकदीर की तस्वीर हैं। ऐसे समझकर हर कदम उठाओ। स्नेही होने के कारण सहयोगी भी हो और सहयोगी होने के कारण बाप का सहयोग हर आत्मा को है। ऐसे नहीं कि कुछ आत्माओं को ज्यादा सहयोग है और किन्हों को कम है, नहीं। बाप का सहयोग हर आत्मा के प्रति एक के रिटर्न में पदमगुणा है ही। जो भी सहयोगी आत्मायें हो, उन सबको बाप का सहयोग सदा ही प्राप्त है और जब तक है, तब तक है ही है। जब बाप का सहयोग है तो हर कार्य हुआ ही पड़ा है। ऐसे अनुभव करते भी हो और करते चलो। कोई मुश्किल नहीं क्योंकि भाग्यविधाता द्वारा भाग्य की प्राप्ति का आधार है। जहाँ भाग्य होता, वरदान होता वहाँ मुश्किल होता ही नहीं।

जिसकी बहुत अच्छी तस्वीर होती है, तो जरूर फर्स्ट नम्बर आयेगा। तो सभी फर्स्ट डिवीजन में तो आने वाले हो ना। नम्बर फर्स्ट एक आयेगा लेकिन फर्स्ट डिवीजन तो है ना। तो किसमें आना है? फर्स्ट डिवीजन सबके लिए है। कुछ कर लेना अच्छा है। बापदादा तो सबको चांस दे रहे हैं – चाहे भारतवासी हों वा डबल विदेशी हों क्योंकि अभी रिजल्ट आउट तो हुई नहीं है। कभी अच्छे-अच्छे रिजल्ट आउट के पहले ही आउट हो जाते हैं, तो यह जगह मिल जायेगी ना इसलिए जो भी लेने चाहो, अभी चांस है। फिर बोर्ड लगा देते हैं ना कि अभी जगह नहीं है। यह सीट फुल हो जायेंगी, इसलिए खूब उड़ो। दौड़ो नहीं लेकिन उड़ो। दौड़ने वाले तो नीचे रह जायेंगे, उड़ने वाले उड़ जायेंगे, उड़ते चलो और उड़ाते चलो। अच्छा!

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ तकदीर की श्रेष्ठ तस्वीर स्वरूप महान् आत्माओं को, सदा स्वयं को विश्व के आधारमूर्त अनुभव करने वाली आत्माओं को, सदा अपने को प्राप्ति स्वरूप अनुभूतियों द्वारा औरों को भी प्राप्ति स्वरूप अनुभव कराने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के स्नेह और सहयोग के पद्मगुणा अधिकार प्राप्त करने वाली पूज्य ब्राह्मण सो देव आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पर्सनल मुलाकात : –

बाप का हाथ सदा मस्तक पर है ही – ऐसा अनुभव करते हो? श्रेष्ठ मत ही श्रेष्ठ हाथ है। तो जहाँ हर कदम में बाप का हाथ अर्थात् श्रेष्ठ मत है, वहाँ श्रेष्ठ मत से श्रेष्ठ कार्य स्वत: ही होता है। सदा हाथ की स्मृति से समर्थ बन आगे बढ़ाते चलो। बाप का हाथ सदा ही आगे बढ़ाने का अनुभव सहज कराता है इसलिए इस श्रेष्ठ भाग्य को हर कार्य में स्मृति में रख आगे बढ़ते रहो। सदा हाथ है, सदा जीत है।

प्रश्न:- सहजयोगी सदा रहें, उसकी सहज विधि कौन सी है?

उत्तर:- बाप ही संसार है – इस स्मृति में रहो तो सहजयोगी बन जायेंगे क्योंकि सारा दिन संसार में ही बुद्धि जाती है। जब बाप ही संसार है तो बुद्धि कहाँ जायेगी? संसार में ही जाएगी ना, जंगल में तो नहीं जाएगी। तो जब बाप ही संसार हो गया तो सहजयोगी बन जायेंगे। नहीं तो मेहनत करनी पडेगी – यहाँ से बुद्धि हटाओ, वहाँ से जुड़ाओ। सदा बाप के स्नेह में समाए रहो तो वह भूल नहीं सकता। अच्छा!

अव्यक्त बापदादा से डबल विदेशी भाई बहिनों की मुलाकात :-

डबल विदेशियों में सेवा का उमंग अच्छा है, इसलिए वृद्धि भी अच्छी कर रहे हो। विदेश-सेवा में 14 वर्ष में वृद्धि अच्छी की है। लौकिक और अलौकिक – डबल कार्य करते आगे बढ़ रहे हैं। डबल कार्य में समय भी लगाते हो और बुद्धि की, शरीर की शक्ति भी लगाते हो। यह भी बुद्धि की कमाल है।

लौकिक कार्य करते सेवा में आगे बढ़ना – यह भी हिम्मत का काम है। ऐसे हिम्मत वाले बच्चों का बापदादा सदा हर कार्य में मददगार है। जितना हिम्मत उतना पदमगुणा बाप मददगार है ही। लेकिन दोनों पार्ट बजाते उन्नति को प्राप्त कर रहे हो – यह देख बापदादा सदा बच्चों पर हर्षित होते हैं। माया से तो मुक्त हो ना? जब योगयुक्त हैं तो स्वत: ही माया से मुक्त हैं। योगयुक्त नहीं तो माया से मुक्त भी नहीं। माया को भी ब्राह्मण आत्मायें प्यारी लगती हैं। जो पहलवान होता है, उनको पहलवान से ही मजा आता है। माया भी शक्तिशाली है। आप भी सर्वशक्तिवान हो, तो माया को सर्वशक्तिवान के साथ खेल करना अच्छा लगता है। अब तो जान गये हो ना माया को अच्छी तरह से कि कभी-कभी नये रूप से आ जाती है। नॉलेजफुल का अर्थ ही है बाप को भी जानना, रचना को भी जानना और माया को भी जानना। अगर रचयिता और रचना को जान लिया और माया को नहीं जाना तो नॉलेजफुल नहीं ठहरे।

कभी भी किसी भी बात में चाहे तन कमजोर भी हो या कार्य का ज्यादा बोझ भी हो लेकिन मन से कभी भी थकना नहीं। तन की थकावट मन के खुशी से समाप्त हो जाती है। लेकिन मन की थकावट शरीर की थकावट को भी बढ़ा देती है। मन कभी थकना नहीं चाहिए। जब थक जाओ तो सेकण्ड में बाप के वतन में आ जाओ। अगर मन को थकाने के आदि होंगे तो ब्राह्मण जीवन के उमंग-उत्साह का जो अनुभव होना चाहिए, वह नहीं होगा। चल तो रहे हैं लेकिन चलाने वाला चला रहा है – ऐसे अनुभव नहीं होगा। मेहनत से चल रहे हैं तो जब मेहनत अनुभव होगी तो थकावट भी होगी। इसलिए हमेशा समझो – ‘करावनहार करा रहा है, चलाने वाला चला रहा है।

समय, शक्ति – दोनों के प्रमाण सेवा करते चलो। सेवा कभी रह नहीं सकती, आज नहीं तो कल होनी ही है। अगर सच्चे दिल से, दिल के स्नेह से जितनी सेवा कर सकते हो उतनी करते हो तो बापदादा कभी उल्हना नहीं देंगे कि इतना काम किया, इतना नहीं किया। शाबास मिलेगी। समय प्रमाण, शक्ति प्रमाण सच्ची दिल से सेवा करते हो तो सच्चे दिल पर साहेब राजी हैं। जो आपका कार्य रह भी जायेगा तो बाप कहाँ न कहाँ से पूरा करायेगा। जो सेवा जिस समय में होनी है वह होकर ही रहेगी, रह नहीं सकती। किसी न किसी आत्मा को टच कर बापदादा अपने बच्चों के सहयोगी बनायेंगे।

योगी बच्चों को सब प्रकार का सहयोग समय पर मिलता ही है। लेकिन किसको मिलेगा? सच्चे दिल वाले सच्चे सेवाधारी को। तो सभी सच्चे सेवाधारी बच्चे हो? साहेब राज़ी है हमारे ऊपर – ऐसा अनुभव करते हो ना। अच्छा!

वरदान:-     एक बाप के लव में लवलीन रह सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव I

सेवा में वा स्वयं की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है – एक बाप से अटूट प्यार। बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे। संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ। ऐसी लवलीन आत्मा एक शब्द भी बोलती है तो उसके स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बांध देते हैं। ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू का काम करता है। वह रूहानी जादूगर बन जाती है।

स्लोगन:-    योगी तू आत्मा वह है जो अन्तर्मुखी बन लाइट माइट रूप में स्थित रहता है।

o——————————————————————————————————————————————o

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *