20-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “हम अभी यह दुनिया यह सब कुछ छोड़ अपने घर शान्तिधाम जायेंगे फिर सुखधाम में आयेंगे

शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – तुम्हें खुशी होनी चाहिए कि हम अभी यह दुनिया यह सब कुछ छोड़ अपने घर शान्तिधाम जायेंगे फिर सुखधाम में आयेंगे” 

प्रश्नः इस नाज़ुक रास्ते में निरन्तर आगे बढ़ने के लिए कौन सी खबरदारी जरूर रखनी है?

उत्तर:- कभी भी कोई व्यर्थ वा शैतानी बातें सुनाये तो उसका मित्र नहीं बनो। हाँ जी करके ग्लानी की बातें सुनना माना बाप का नाफरमानबरदार बनना, इसलिए रहमदिल बन उसकी आदत को मिटाना है। बाप का फरमानबरदार बनना है। ज्ञान का सुरमा पहन लेना है। यही बहुत नाज़ुक रास्ता है जिसमें खबरदार होकर चलने से ही आगे बढ़ते रहेंगे।

गीत:- “इस पाप की दुनिया से………..!”

गीत:- “इस पाप की दुनिया से………..!” , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.

Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव
Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव

-: ज्ञान के सागर और पतितपावन निराकार शिव भगवानुवाच :-

अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान शिव द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)

“ओम् शान्ति”

शिव भगवानुवाच : मीठे बच्चे अब तुम समझदार बने हो और फील करते हो कि पहले हम कितने बेसमझ थे। यह भी समझ में नहीं आता था कि यह पतित दुनिया है और इसी भारत में जब देवी देवताओं का राज्य था तो पावन सुखी थे। उसमें कोई दु: की बात नहीं थी। परन्तु यह भी निश्चय नहीं होता था कि स्वर्ग में सदैव सुख होगा।

स्वर्ग का किसको पता नहीं था। मनुष्य तो समझते हैं वहाँ भी दु: था। यह है बेसमझी। अब तुम बच्चे समझदार बने हो। बाप ने आकर समझाया है। उनकी श्रीमत पर तुम चल रहे हो। मनुष्य कहते भी हैं कि यह पतित दुनिया है। स्वर्ग पावन दुनिया थी। पावन दुनिया में भी दु: हो फिर तो दु: की ही दुनिया हुई। फिर गीत भी रांग हो जाता है।

कहते हैं हे बाबा ऐसी जगह ले चलो जहाँ आराम, सुख चैन हो। बच्चे यह भी जानते हैं स्वर्ग सोने की चिड़िया थी। देवीदेवता थे, कहते भी हैं हम एक दो को दु: नहीं देते थे। परन्तु फिर कह देते कि यह दु: सुख सब परम्परा से चला आता है। कृष्ण पर भी झूठे कलंक लगा दिये हैं। कहा जाता है जैसी पतितों की दृष्टि वैसी सृष्टि, समझते हैं सारी सृष्टि पतित ही है। इस समय उन्हों की दृष्टि ही पतित है तो सारी सृष्टि को ही पतित समझते हैं। कह देते हैं परम्परा से यह पतितपना चला आता है।

Sri.KRISHNA-Satyug Prince, श्रीकृष्ण - सतयुग राजकुमार
Sri.KRISHNA-Satyug Prince, श्रीकृष्ण – सतयुग राजकुमार

अभी तुम बच्चों में समझ आती जाती हैसो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बच्चों को परमपिता परमात्मा के डायरेक्शन मिलते हैं। आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं, सब आत्मायें पतित हैं इसलिए पतित आत्मा को पाप-आत्मा कहा जाता है।

 बाप आत्माओं से बात करते हैंतुम हमारे अविनाशी बच्चे हो। फिर मम्मा बाबा भी कहते हो। इस दुनिया में किसको भी पिताश्री नहीं कह सकते। श्री माना श्रेष्ठ परन्तु यहाँ एक भी मनुष्य श्रेष्ठ है नहीं। यह तो एक की ही महिमा हो सकती है। भल तुम इनको इस समय कहते हो क्योंकि संन्यास किया हुआ है श्रेष्ठ बनने के लिए। तुम जानते हो हम अभी फरिश्ते बनने वाले हैं। लेकिन चलतेचलते, श्रेष्ठ बनतेबनते झट माया रावण थप्पड़ लगाकर भ्रष्ट बना देती है।

भ्रष्ट को श्री कह नहीं सकते। श्री लक्ष्मी, श्री नारायण। श्री राधे, श्रीकृष्ण कहते हैं। मन्दिरों में भी जाकर उन्हों की महिमा गाते हैं। अपने को श्रेष्ठ कह नहीं सकते। अब तुम बच्चों ने समझा है भारत श्रेष्ठ था। वहाँ मूत पलीती नहीं थे। शुद्ध श्रेष्ठ थे। बाप की महिमा है नामूत पलीती कपड़ों को धोकर कंचन कर देते हैं। इस समय तो सभी पतित हैं।

 बरोबर है भी रावण राज्य। मनुष्य रावण को वर्षवर्ष जलाते हैं। परन्तु जलता ही नहीं फिर फिर खड़ा हो जाता है। यह भी मनुष्यों को समझ में नहीं आता जबकि जला देते हैं फिर हर वर्ष नया क्यों बनाते हैं? इससे सिद्ध होता है रावण राज्य गया नहीं है। स्वर्ग में जब रामराज्य होता है तब वहाँ रावण की एफीजी निकालेंगे नहीं। कहते हैं रावण को जलाया फिर लंका को लूटा। रावण की लंका सोनी बताते हैं। परन्तु ऐसा है नहीं।

Earth is RAWANS LANKA, पृत्वी रावण कि लंका है।
Earth is RAWANS LANKA, पृत्वी रावण कि लंका है।

 यह तो सारी दुनिया लंका है। यह आइलैण्ड है ना। सारे वर्ल्ड पर रावण का राज्य है। यह भी तुम बच्चे समझते हो। कालेज में कोई बेसमझ जाकर बैठे तो क्या समझ सकेंगे। कुछ भी नहीं। वेस्ट आफ टाइम करेंगे। यह ईश्वरीय कालेज है, इनमें नया आदमी कोई समझ नहीं सकेंगे इसलिए 7 रोज क्वारंटाइन में बिठाना पड़े। जब तक लायक बनें।

 फिर भी अच्छा आदमी, रिलीजस माइन्डेड है तो उनसे पूछना है परमपिता परमात्मा तुम्हारा क्या लगता है? वह है आत्माओं का पिता और प्रजापिता भी तो बाप है। यह प्वाइंट बड़ी अच्छी है। परन्तु बच्चे इस पर इतना हर्षित नहीं होते हैं। बाप कहते हैं तुमको नईनई प्वाइंट सुनाता हूँ जिससे तुमको नशा चढ़े। किसको समझाने की युक्ति आये। तुम फार्म भराकर पूछ सकते हो कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? कहेगा परमपिता तो पिता हुआ ना, फिर उस समय सर्वव्यापी का ज्ञान ही उड़ जायेगा।

तुम जब प्रश्न पूछेंगे तो कहेंगे वह तो बाप है। हम सब बच्चे हैं। इतना मान ले तो लिखा लेना चाहिए। प्रजापिता के भी बच्चे ठहरे। वह शिव हो गया दादा और वह बाबा। शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना करने वाला है तो जरूर उनसे ही वर्सा मिलेगा। बहुत सहज ते सहज बातें निकालनी पड़ती हैं। मित्रसम्बन्धियों आदि के पास जाओ, उनको भी यह समझाओ। यह तो नशा है ना हम बापदादा से वर्सा पाते हैं। माता से वर्सा नहीं मिलेगा।

 बाप को ही स्वर्ग की स्थापना करनी है ना। वही मालिक है। जैसे इनको दादे के वर्से का हक है, वैसे पोत्रेपोत्रियों को भी हक है। बाप कहते हैं मुझे याद करो। ऐसे नहीं कहते कि इस देहधारी को भी याद करो। बाप सम्मुख बात कर रहे हैं। कल्प पहले भी ऐसे समझाया था।

(Below)BK Brahma Baba (Father) and (Above)Shiv Baba (Grand father), (निचे) ब.क. ब्रह्मा बाबा (बाप) और (ऊपर) शिव बाबा (दादा)
(Below)BK Brahma Baba (Father) and (Above)Shiv Baba (Grand father), (निचे) ब.क. ब्रह्मा बाबा (बाप) और (ऊपर) शिव बाबा (दादा)

परन्तु बच्चों को देहअभिमान बहुत जाता है। देहधारियों से लव हो जाता है। बाप कहते हैं हे आत्मायें तुम तो अशरीरी आई थी फिर पार्ट बजाते अब 84 जन्म पूरे किये हैं। अभी मैं कहता हूँ तुमको वापिस चलना है। मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। देहधारी को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे।

 तुम वायदा करते हो बाबा हम आपको ही याद करेंगे। तुमको इस पुरानी दुनिया में अब रहना ही नहीं है, इसमें कोई चैन नहीं इसलिए कहते हो ऐसी जगह ले चलो जहाँ सुख चैन हो। तुम बच्चे जानते हो हम पहले जायेंगे शान्तिधाम में। वहाँ सुख का नाम नहीं लेंगे। शान्ति ही शान्ति होगी। फिर जायेंगे सुखधाम में। वहाँ फिर शान्ति का नाम नहीं लेंगे। जब दु: है तो अशान्ति है। सुख में तो शान्ति है ही। परन्तु वह शान्तिधाम नहीं। शान्तिधाम है आत्माओं का स्वीट होम। बाप सारे आदि मध्य अन्त को जानने वाला है। अब तुम बच्चों का धन्धा ही है पढ़ना-पढ़ाना और फिर अपने शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है।

तुम जानते हो हम इस मृत्युलोक से अमरलोक चले जायेंगे वाया शान्तिधाम। यह बुद्धि में याद रखना है जब तक तुम ट्रांसफर हो जाओ। अपनी पढ़ाई की रिजल्ट तक पढ़ना पड़े। जब तक मृत्यु नहीं हुआ है, पढ़ना ही है। यह तो याद कर सकते हो ना कि अब हमको जाना है घर। यह दुनिया, यह सब कुछ छोड़ना है। खुशी होनी चाहिए।

 बेहद नाटक का राज़ भी समझ गये हो। हद का नाटक पूरा होता है तो कपड़े बदली कर घर चले जाते हैं। वैसे हमको भी जाना है। 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है। याद भी करते हैं हे पतितपावन आओ। शिवबाबा को ही याद करेंगे। एक तरफ कहते पतितपावन आओ दूसरे तरफ फिर सर्वव्यापी कह देते। कोई अर्थ ही नहीं निकलता।

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

बच्चों को कितना सहज रीति समझाते हैंशान्तिधाम को याद करो। यह दु:खधाम है, इसका विनाश भी सामने खड़ा है। यह वही महाभारत लड़ाई है। यूरोपवासी यादव भी हैं और कौरव पाण्डव भाईभाई हैं। हम एक ही घर के हैं ना। भाईभाई में युद्ध हो नहीं सकती। यहाँ तो युद्ध की बात ही नहीं। परन्तु मनुष्यों का भी धन्धा है एक दो को लड़ाना। यह तो एक रसम है। सब एक दो के दुश्मन हैं। बच्चा भी बाप का दुश्मन बन पड़ता है।

 मृत्युलोक की रसमरिवाज़ भी सबकी अपनीअपनी है। बाप का प्लैन देखो कितना बड़ा है। सबके प्लैन्स खत्म कर देते और सुखधाम की स्थापना करते हैं। बाकी सबको शान्तिधाम में भेज देते हैं। तुम बच्चे देखते हो हम किसके सामने बैठे हैं। निश्चय है परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है। इन आरगन्स द्वारा हमको नॉलेज दे रहे हैं और कोई सतसंग ऐसा होगा क्या? यहाँ बाप सामने बैठ समझाते हैं। जानते हो बाप हम आत्माओं से बात करते हैं।

हम कानों से सुनते हैं। बाबा इस दादा के मुख द्वारा बोलते हैं। जो रत्न बाबा के मुख से निकलते वही तुम बच्चों के मुख से निकलने चाहिए। सदैव मुख से रत्न ही निकले। फालतू शैतानी बातें सुननी भी नहीं चाहिए। कई तो बड़ी खुशी से बैठ सुनते हैं। बाप कहते हैं ऐसी बातें सुनो वा किसको करते हुए देखो तो बाबा को बताओ तो बाबा समझानी देंगे। नहीं तो वह पक्के हो जाते हैं।

 परन्तु ऐसा होता रहता है। बाबा को सुनाते नहीं हैं कि बाबा यह फालतू बातें सुनाते हैं, इनको मना की जाये तो आदत मिट जाए। बाप सभा में समझायेंगे परन्तु ऐसे के फिर मित्र बन जाते हैं। माया अच्छेअच्छे बच्चों की बुद्धि भी पत्थर बना देती है। बाप के फरमानबरदार बच्चे बनते ही नहीं हैं, बड़ा नाज़ुक रास्ता है। इसमें बड़ी खबरदारी रखनी चाहिए। रहमदिल बन किसमें आदत है तो मिटानी चाहिए। हाँ जी करके सुनना नहीं चाहिए।

 बाबा जो सुखधाम का मालिक बनाते हैं, ऐसे बाबा की ग्लानी तो हम कभी नहीं सुनेंगे। हमको तो शिवबाबा से वर्सा लेना है और बातों से क्या तैलुक। कोई सुने सुने हम तो ज्ञान का सुरमा पहन लें। कोई ज्ञान अंजन पाते हैं कोई तो फिर धूल अंजन पाते हैं। उससे ज्ञान का तीसरा नेत्र खुलता ही नहीं है।

पिताश्री ब्रहमा परमात्मा ज्ञान देरहे ,Father Brahma teaching Godly Verses
पिताश्री ब्रहमा परमात्मा ज्ञान देरहे ,Father Brahma teaching Godly Verses

बाबा इतना तो सहज कर समझाते हैं जो कैसा भी रोगी, अंधा, लंगड़ा हो वह भी समझ जाये। अल्फ और बे दो अक्षर हैं। बाप समझाते हैं बच्चे, मित्रसम्बन्धियों आदि से भी दोस्ती रखो। बहुत मीठा बनो। तुम्हारा काम ही है बाप का परिचय देना। भल दुश्मन हो तो भी मित्रता रखनी है। बहुत मीठा बनना है। बाप कहते हैं तुमने आसुरी मत पर मुझे कितनी गाली दी है, मेरा अपकार किया है फिर भी मैं तुम पर कितना उपकार करता हूँ। ईश्वर का अपकार होना भी ड्रामा में नूंध है। तब तो कहते हैं यदा यदाहि.. आया भी भारत में है। समझा भी रहे हैं। बच्चों को हर एक बात अच्छी रीति समझनी है। किसकी तकदीर में नहीं है तो फिर वही आसुरी धन्धा करते रहेंगे। यहाँ से बाहर गये और इन बातों को भूल जायेंगे। निंदा करतेकरते यह हाल हो गया है। अब यह निंदा करना तो छोड़ दो।

तुम्हारा नाम तो लिखा हुआ है प्रजापिता ब्रह्माकुमारकुमारियां। समझ जायेंगे शिव के पोत्रे पोत्रियां ठहरे। जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलता होगा। भारत को वर्सा था अब नहीं है फिर अब मिलता है। सतयुग में सिर्फ सूर्यवंशी ही थे। अब तुम बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और वहाँ पहुंच जायेंगे। कितना अच्छी रीति समझाते हैं।

तुम बच्चों को भी सर्विस करनी है परन्तु पहले अपनी वृत्ति भी अच्छी चाहिए। सिर्फ पण्डित नहीं बनना है। पक्के योगी, राजऋषि होंगे तो दूसरे को तीर लगेगा। खुद में ही कोई कमी होगी तो दूसरे को बोल नहीं सकेंगे। लज्जा आती रहेगी, अपना पाप अन्दर खाता रहेगा। हर बात के लिए बाबा समझाते बहुत अच्छा हैं। कल्प पहले भी ऐसे ही समझाया था।

 देवीदेवता धर्म तो जरूर स्थापन होगा कोई पढ़े पढ़े। फिर भी बाप कहते हैं कुछ समझदार बनो। इस कमाई और उस कमाई को बुद्धि में रखो। सच्ची कमाई बाप ही कराते हैं। बाप और स्वर्ग को याद करना, यह भूलो मत। सिमरण करतेकरते अन्त मती सो गति हो जायेगी। सवेरे उठ बाप की याद में बैठो। अगर सुस्ती आती है तो समझा जाता तकदीर में नहीं है। ऐसी प्रैक्टिस करनी है जो अन्त में देह भी याद पड़े। हम आत्मा हैं। अच्छा!

मीठेमीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मातपिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। ओम् शान्ति।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) अपनी वृत्ति को शुद्ध रख दुश्मन को भी मित्र बनाना है। अपकारी पर भी उपकार कर बाप का सच्चा परिचय देना है।

2) जो रत्न बाबा के मुख से निकलते हैं वही रत्न निकालने हैं। कोई भी व्यर्थ बातें सुननी है सुनानी है।

वरदान:-        संगमयुग के समय का महत्व जान परमात्म दुआओं से झोली भरने वाले मायाजीत भव

संगमयुग का एक सेकण्ड और युगों के एक वर्ष से भी ज्यादा है, इस समय एक सेकण्ड भी गंवाया तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गंवाया। इतना महत्व सदा याद रहे तो हर सेकण्ड परमात्म दुआयें प्राप्त करते रहेंगे और जिसकी झोली परमात्म दुआओं से सदा भरपूर है उसके पास कभी माया नहीं सकती। दूर से ही भाग जायेगी। तो समय को बचानायही तीव्र पुरूषार्थ है। तीव्र पुरूषार्थी अर्थात् सदा मायाजीत।

स्लोगन:-       “जो आज्ञाकारी हैं वही बाप की वा परिवार की दुआओं के पात्र हैं। ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।  

अच्छा – ओम् शान्ति।

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नोट: यदि आपमुरली = भगवान के बोल को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।

खोज करो:ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.

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