“यह ईश्वरीय ज्ञान सतयुग में नहीं मिलता“

GOLDEN-AGE, स्वर्णिम युग
GOLDEN-AGE Garden of Spiritual roses, स्वर्णिम युग – रूहानी गुलाब का बगीचा

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य :-

Ma Jagdamba , माँ जगदम्बा स्वरस्वती
Ma Jagdamba , माँ जगदम्बा स्वरस्वती

अगर कोई यह प्रश्न पूछे कि यह जो अपने को इस संगम समय पर ईश्वरीय नॉलेज मिल रही है वो फिर से अपने को सतयुग में मिलेगी? अब इस पर समझाया जाता है कि सतयुग में तो हम स्वयं ज्ञान स्वरूप हैं। देवताई प्रालब्ध भोग रहे हैं, वहाँ ज्ञान की लेन देन नहीं चलती, अब ज्ञान की जरूरत है अज्ञानियों को। परन्तु वहाँ तो सब ज्ञान स्वरूप हैं, वहाँ कोई अज्ञानी रहता ही नहीं है, जो ज्ञान देने की जरूरत रहे।

अब तो इसी समय अपन सारे विराट ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानते हैं। आदि में हम कौन थे, कहाँ से आये, और मध्य में कर्मबन्धन में फंसे फिर कैसे गिरे, अन्त में हमको कर्मबन्धन से अतीत हो कर्मातीत देवता बनना है। जो पुरुषार्थ अब चल रहा है जिससे हम भविष्य प्रालब्ध सतयुगी देवतायें बनते हैं। अगर वहाँ हमको यह मालूम होता कि हम देवतायें गिरेंगे तो यह ख्याल आने से खुशी गायब हो जाती, तो वहाँ गिरने की नॉलेज नहीं है। यह ख्यालात वहाँ नहीं रहती।

हमको इस नॉलेज द्वारा अब मालूम पड़ा है कि हमको चढ़ना है और सुख की जीवन बनानी है। फिर आधाकल्प के बाद अपनी प्रालब्ध भोग फिर अपने आपको विस्मृत कर माया के वश होकर गिर जाते हैं। यह चढ़ना और गिरना अनादि बना बनाया खेल है। यह सारी नॉलेज अभी बुद्धि में है, यह नॉलेज सतयुग में नहीं रहती।

अच्छा – ओम् शान्ति।

Paradice -Satyug , स्वर्ग - सतयुग
Paradice -Satyug , स्वर्ग – सतयुग

SOURSE: 1-10-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.

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