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22-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “ममत्व मिटा देना है, पूरा-पूरा बलि चढ़ना है”

कोई भी काम करते अपना आक्यूपेशन कभी नहीं भूलो। जैसे पाण्डवों ने गुप्त वेष में नौकरी की लेकिन नशा विजय का था। ऐसे आप भल गवर्मेन्ट सर्वेन्ट हो, नौकरी करते हो लेकिन नशा रहे मैं विश्व कल्याणकारी हूँ तो इस स्मृति से स्वत: समर्थ रहेंगे और सदा सेवा भाव...

19-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “तुम अभी इस शोक वाटिका से अशोक वाटिका में चलते हो”

प्रतिज्ञा में लूज़ होने का मूल कारण है - अलबेलापन। पुरूषार्थ वा प्लैन को कमजोर करने का स्क्रू एक ही है - अलबेलापन। वह नये-नये रूप में आता है। इसी लूज़ स्क्रू को टाइट करो। मुझे बाप समान बनना ही है - इसी दृढ़ संकल्प से तीव्र पुरूषार्थी बन...

18-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “कछुये मिसल सब कुछ समेटकर चुप बैठ स्वदर्शन चक्र फिराओ”

प्रवृत्ति में रहते हुए कभी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्मबन्धन है...लेकिन यह भी सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता है। कर्मबन्धन होगा तो दुख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन...

17-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “दूसरों का कल्याण करने के निमित्त बनो”

बाप की याद ही छत्रछाया है, जितना याद में रहते उतना साथ का अनुभव होता है। छत्रछाया में रहना अर्थात् सदा सेफ रहना। छत्रछाया के नीचे, मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने से कोई की हिम्मत नहीं अन्दर आने की।इसलिए साथ के अनुभव से मायाजीत बनो।- ओम् शान्ति।...