30-12-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

“मीठे बच्चे – सच्चे बाप के साथ सच्चे बनो, अगर सच नहीं बतलाते हो तो पाप वृद्धि को पाते जाते हैं”

प्रश्नः– जब तुम बच्चे कर्मातीत अवस्था के समीप पहुँचेंगे तो कौनसी अनुभूति करेंगे?

उत्तर:– ऐसा अनुभव होगा जैसे माया के तूफान सब समाप्त हो गये हैं। किसी भी विघ्न में घबरायेंगे नहीं। अवस्था बड़ी निडर रहेगी। जब तक वह अवस्था दूर है तब तक माया के तूफान बहुत हैरान करते हैं। बाबा कहते – मीठे बच्चे जितना तुम रूसतम बनते हो, उतना माया भी रूसतम होकर आती है लेकिन तुम्हें विजय प्राप्त करनी है, डरना नहीं है। सच्चे बाप के साथ सच्चाई-सफाई से चलते रहो। कभी कोई बात छिपाना नहीं।

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मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > Hindi Murli” 

Paradice -Satyug , स्वर्ग - सतयुग
Paradice -Satyug , स्वर्ग – सतयुग

“ओम् शान्ति”

यहाँ वाले बच्चे तो यह गीत रोज़ सुनते हैं। सेन्टर्स पर भी जो बी.के. रहते हैं वह सुनते हैं। बाहर वाले तो सुनते नहीं हैं। वास्तव में यह गीत तो अनन्य बच्चों के घर में सबको रखना चाहिए। सबको जगाना चाहिए क्योंकि इस गीत का राज़ बहुत अच्छा है। नया युग आ रहा है। नया युग अर्थात् सतयुग। यह है कलियुग। कलियुग का विनाश होना है। सतयुग में राजधानी होती ही है भारतवासियों की। उनको गोल्डन एजेड वर्ल्ड कहा जाता है। गोल्डन एजेड वर्ल्ड में गोल्डन एजेड भारत। आइरन एजेड दुनिया में आइरन एजेड भारत। यह भी तुम ही जानते हो। तो गोल्डन एज में और कोई खण्ड अथवा धर्म होता नहीं। अभी है आइरन एज, इसमें सब धर्म हैं। भारत का भी धर्म है जरूर। परन्तु वह देवी-देवता नहीं हैं। तो फिर होना जरूर चाहिए। तो बाप कहते हैं मैं आकर स्थापना करता हूँ।

पहले-पहले बाप का परिचय देना है। शास्त्रों की जब कोई बात करे तो उनको कहना चाहिए, यह तो भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं। ज्ञान मार्ग का शास्त्र होता नहीं। ज्ञान का सागर तो परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। जब वह आकर ज्ञान देवे तब सद्गति हो। यह गीता आदि भी भक्ति मार्ग के लिए हैं। मैं तो आकर तुम बच्चों को ज्ञान और योग सिखलाता हूँ। फिर बाद में वह शास्त्र बनाते हैं, जो फिर भक्ति मार्ग में काम आते हैं। अभी तुम्हारी है चढ़ती कला। तुम्हें बाप आकर ज्ञान सुनाते हैं। बाप खुद कहते हैं मैं जो तुमको सद्गति के लिए ज्ञान देता हूँ, वह प्राय:लोप हो जाता है। अभी बाप कहते हैं तुम कोई भी शास्त्र आदि नहीं सुनो। वह रूहानी बाप तो सबका एक ही है। सद्गति का वर्सा भी उनसे मिलता है। यह तो है ही दुर्गति धाम, सद्गति धाम सतयुग को कहा जाता है।

जब कोई भी शास्त्रों की, वेदों की अथवा गीता की बात करे, बोलो हम जानते सबको हैं। परन्तु यह हैं भक्ति के। हम उनका नाम लेवें ही क्यों! जबकि अभी ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा हमको पढ़ा रहे हैं। बाप कहते हैं – अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो, तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। भक्ति मार्ग में तो और ही विकर्म होते आये हैं। हमको बाप ने कहा है मनमनाभव। वही ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। पतित-पावन कृष्ण को नहीं कहा जाता है। अभी हम एक बाप की ही सुनते हैं। उनको कहते हैं शिव परमात्माए नम:, बाकी सबको कहेंगे देवताए नम: … इस समय तो सब तमोप्रधान हैं। सतोप्रधान बनने का रास्ता एक बाप ही आकर बतलाते हैं। अब उस एक बाप को ही याद करना है। ब्रह्म को याद नहीं करना है, वो तो घर है। घर को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। परन्तु घर में रहने वाले परमपिता परमात्मा को याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं। और आत्मा सतोप्रधान बन अपने घर चली जायेगी फिर आयेगी पार्ट बजाने।

विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel
विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel

चक्र का राज़ समझाना चाहिए। पहले तो यह समझें कि इन्हों को ज्ञान सुनाने वाला निराकार परमपिता परमात्मा है। कोई कहे तुम तो ब्रह्मा से सुनते हो, बोलो नहीं, हम मनुष्य से नहीं सुनते। इन द्वारा हमको परमपिता परमात्मा समझाते हैं। हम इनको (ब्रह्मा को) परमात्मा नहीं मानते हैं। सबका बाप शिव ही है, वर्सा भी उनसे मिलता है। यह है थ्रू। ब्रह्मा से कुछ मिलता नहीं है। उनकी महिमा क्या है? महिमा सारी एक शिव की है। वो अगर इसमें नहीं आता तो तुम कैसे आते। शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा तुमको एडाप्ट किया है, तब तुम बी.के. कहलाते हो। ब्राह्मण कुल चाहिए ना। कोई मनुष्य अथवा शास्त्र आदि मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बता न सकें। निराकार परमपिता परमात्मा सद्गति दाता ही रास्ता बताते हैं।

बहुत बात नहीं करनी चाहिए। फट से कहना चाहिए हमने जन्म-जन्मान्तर भक्ति की है। अब हमको बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहो और मुझे याद करो, तो तुम्हारे इस अन्तिम जन्म के अथवा पास्ट जन्मों के जो पाप हैं, वह भस्म हो जायेंगे और तुम अपने घर चले जायेंगे। पवित्र होने बिना तो कोई जा नहीं सकते।

पहली-पहली बात ही एक समझाओ तो निराकार शिवबाबा कहते हैं हे आत्मायें, मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश होकर नॉलेज देता हूँ। ब्रह्मा द्वारा स्थापना करता हूँ। ब्राह्मणों को शिक्षा देता हूँ। ज्ञान यज्ञ को सम्भालने वाले भी ब्राह्मण चाहिए ना। तुम अब ब्राह्मण बने हो। तुम जानते हो यह मृत्युलोक अब खत्म होना है। कलियुग को मृत्युलोक और सतयुग को अमरलोक कहा जाता है। भक्ति की रात अब पूरी होती है। ब्रह्मा का दिन शुरू होता है। ब्रह्मा सो विष्णु यह भी कोई समझते नहीं। समझें तब जब पूरे 7 रोज़ आकर सुनें। प्रदर्शनी में किसकी बुद्धि में बैठता नहीं। सिर्फ इतना कहते हैं रास्ता अच्छा है। समझने लायक है।

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

मुख्य बात समझानी है कि गीता का भगवान निराकार शिव है। वह कहते हैं मुझे याद करो। बाकी यह सब जन्म-जन्मान्तर पढ़ते उतरते ही आये हो। फिर सीढ़ी से झाड़ पर ले जाना चाहिए। तुम हो निवृत्ति मार्ग वाले। हम हैं प्रवृत्ति मार्ग वाले। हमारा है बेहद का संन्यास। जब भक्ति पूरी हो जाती है तो सारी दुनिया से वैराग्य हो जाता है और भक्ति से भी वैराग्य हो जाता है। भक्ति होती है रावण राज्य में। अब शिवबाबा शिवालय स्थापन कर रहे हैं। शिव जयन्ती भी भारत में ही मनाई जाती है, तो यह पक्का हो जाए कि शिवबाबा ने आकर भारत को स्वर्ग बनाया है और नर्क का विनाश किया है।

नई दुनिया में आने वाले ही यह राजयोग सीख रहे हैं। स्वर्ग में प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी सब कुछ है। यहाँ जो संन्यासी आदि हैं, वह आधा प्योरिटी में है, वह जन्म गृहस्थी, विकारी घर में ले फिर संन्यास करते हैं। यह समझाना होता है। शिवबाबा पतित-पावन हमको ब्रह्मा द्वारा समझाते हैं। ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखलाकर यह बना रहे हैं। राजयोग द्वारा ही राजाई स्थापन हो रही है। यह गीता एपीसोड अब रिपीट हो रहा है। तुमको भी राजयोग सीखना हो तो आकर सीखो। यह ज्ञान प्रवृत्ति मार्ग का है।

Be Like Lotus, कमल फूल समान
Be Like Lotus, कमल फूल समान

भगवानुवाच – गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बन मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों, और कोई उपाय ही नहीं है – पावन बनने का। थोड़ी बात करनी चाहिए। मूँझना नहीं चाहिए। बाबा ने समझाया है रात को बैठ विचार करो आज के सारे दिन में जो पास्ट हुआ, जो सर्विस होनी थी, ड्रामा प्लैन अनुसार हुआ। पुरूषार्थ तो चलना है ना। प्रदर्शनी में बच्चे कितनी मेहनत करते हैं।

यह भी जानते हो – माया के तूफान बहुत कड़े हैं, कई बच्चे कहते हैं बाबा इनको बन्द करो। हमको कोई विकल्प न आयें। बाबा कहते हैं – इसमें डरते क्यों हो? हम तो माया को कहेंगे और जोर से तूफान लाओ। बाक्सिंग में एक दो को कहते हैं क्या कि हमको जोर से उल्टा-सुल्टा नहीं लगाना जो हम गिर पड़ें। तुम भी युद्ध के मैदान में हो ना। बाप को भूलेंगे तो माया थप्पड़ लगायेगी। माया के तूफान तो अन्त तक आते रहेंगे। जब कर्मातीत अवस्था होगी तब यह खलास होंगे। तूफान बहुत आयेंगे, डरने की कोई बात नहीं। बाबा से सच्चा होकर चलना है। सच्चा चार्ट भेजना चाहिए।

अमृतवेला , Amritvela
अमृतवेला , Amritvela

कई बच्चे सवेरे उठकर याद में बैठते नहीं हैं, सोये रहते हैं। यह नहीं समझते अगर हम श्रीमत पर नहीं चलते तो हम अपनी कल्प-कल्पान्तर के लिए सत्यानाश करते हैं। बड़ी भारी चोट खा रहे हैं। ऐसे भी बच्चे हैं जो कभी सच नहीं बोलते हैं फिर उनकी क्या गति होगी। गिर पड़ेंगे। माया थप्पड़ बड़ा जोर से लगाती है। पता नहीं पड़ता है। सारा दिन झरमुई झगमुई करते रहते हैं। सच न बतलाने से फिर वृद्धि होती जाती है। नहीं तो सच बताना चाहिए। आज यह भूल की, झूठ बोला। अगर सच नहीं बतायेंगे तो वृद्धि होती जायेगी फिर कब सच्चे बनेंगे नहीं। बतलाना चाहिए हमने यह-यह डिससर्विस की। हमको क्षमा करना। सच न बतलाने से फिर दिल पर चढ़ते नहीं। सच्चाई खींचती है। बच्चे खुद भी जानते हैं – कौन-कौन अच्छी सर्विस करते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे बहुत थोड़े हैं।

चाहता हूँ गांवडों में भी अच्छी-अच्छी बच्चियों को भेज दूँ तो सब खुश होंगे, बाबा ने हमारे पास बम्बई की हेड, कलकत्ते की हेड भेजी है। कोई भी मिले तो उनको सीधी बात सुनानी है कि पतित-पावन परमपिता परमात्मा संगम पर आकर यह महामन्त्र देते हैं कि मामेकम् याद करो। राजयोग तो बाबा तुमको ही सिखलाते हैं। तुम्हारा काम है औरों को भी रास्ता दिखलाना। बच्चे कहते हैं – कलकत्ते चलो। अब बाबा बच्चों के बिना कोई से बात कर न सके। फिर कहेंगे यह तो कोई से मिलते नहीं हैं। हम कैसे समझें तो यह कौन हैं? क्योंकि उन्हों की तो है भक्ति की बातें।

आत्माओं का बाप कौन है, यह तो कोई बता ही नहीं सकते। शिवबाबा तो आते ही भारत में हैं। ऐसी-ऐसी बातें समझाने में घण्टा लग जाये। बाबा तो कोई से मिलता नहीं। बच्चों को ही माथा मारना है। यहाँ भी देखो बच्चों के साथ कितनी मेहनत करनी पड़ती है – सुधारने के लिए। बाबा को सच्चा समाचार कोई देते नहीं हैं। बाबा हमने संन्यासी से बात की, फलाने प्रश्न का हम जवाब दे न सके। हमने यह भूल की। सारा दिन क्या-क्या करते हैं, लिखना चाहिए। बाबा ने बच्चों को समझाया है – मेरे से पूछे बिना किसी को चिट्ठी नहीं लिखो। बाबा से पूछेंगे तो बाबा ऐसी मत देंगे जिससे किसका कल्याण हो जाए। बाबा के पास लिखकर भेज दो तो बाबा करेक्ट कर दे। बाबा तो युक्ति बतायेंगे। देही-अभिमानी होकर लिखेंगे तो वह पढ़कर गद-गद हो जायेंगे। शिक्षा तो बहुत अच्छी दी जाती है।

Satyug Prince, सतयुगी राजकुमार
Satyug Prince, सतयुगी राजकुमार

तुम्हारी एम आबजेक्ट है लक्ष्मी-नारायण बनने की। यह तुम्हारा बाप-टीचर-गुरू, भाई आदि सब कुछ है। हर बात में राय देते रहेंगे फिर जवाबदारी तुमसे उतर जायेगी क्योंकि श्रीमत पर चले ना। धन्धे आदि के लिए भी समझायेंगे कि कहाँ लाचारी में किसके हाथ का खाना होता है। नहीं तो धन्धा आदि छूट जायेगा। चाय नहीं पी तो मिनिस्टर रूठ जायेगा। युक्ति से कहना चाहिए हम चाय इस समय नहीं पीते हैं। हमको तकलीफ हो जायेगी। कहाँ शादी मुरादी है, नहीं जायेंगे तो नाराज़ हो जायेंगे। तो बाबा कहेंगे ऐसे-ऐसे करो। सब युक्तियां बतायेंगे।

अच्छा!, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप से सदा सच्चा रहना है। दिलतख्तनशीन बनने के लिए श्रीमत पर पूरा-पूरा चलना है

2) युद्ध के मैदान में माया के विकल्पों से, विघ्नों से डरना नहीं है। अपना सच्चा चार्ट रखना है। झरमुई झगमुई नहीं करनी है।

वरदान:-     स्व-स्थिति द्वारा सर्व परिस्थितियों का सामना करने वाले अव्यक्त स्थिति के अभ्यासी भव!

जब अव्यक्त स्थिति के अभ्यास की आदत बन जायेगी तब स्व स्थिति द्वारा हर परिस्थिति का सामना कर सकेंगे। और यह आदत अदालत में जाने से बचा देगी इसलिए इस अभ्यास को जब नेचरल और नेचर बनाओ तब नेचरल कैलेमिटीज हो क्योंकि जब सामना करने वाले स्व स्थिति से हर परिस्थिति को पार करने की शक्ति धारण कर लेंगे तब पर्दा खुलेगा। इसके लिए पुरानी आदतों से, पुराने संस्कारों से, पुरानी बातों से…पूरा वैराग्य चाहिए।

स्लोगन:-    स्वयं को निमित्त करनहार समझो तो किसी भी कर्म में थकावट नहीं हो सकती।

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किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे

धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।

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