17-4-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली.रिवाइज:25/03/90.

“सर्व अनुभूतियों की प्राप्ति का आधार पवित्रता”

“ओम् शान्ति”

आज स्नेह के सागर बापदादा अपने चारों ओर के रूहानी बच्चों के रूहानी फीचर्स देख रहे हैं। हर एक ब्राह्मण बच्चे के फीचर्स में रूहानियत है लेकिन नम्बरवार है क्योंकि रूहानियत का आधार पवित्रता है। संकल्प, बोल और कर्म में पवित्रता की जितनी-जितनी धारणा है उसी प्रमाण रूहानियत की झलक सूरत में दिखाई देती है। ब्राह्मण-जीवन की चमक पवित्रता है। निरन्तर अतीन्द्रिय सुख और स्वीट साइलेन्स का विशेष आधार है – पवित्रता।

पवित्रता नम्बरवार है तो इन अनुभूतियों की प्राप्ति भी नम्बरवार है। अगर पवित्रता नम्बरवन है तो बाप द्वारा अनुभूतियों की प्राप्ति भी नम्बरवन है। पवित्रता की चमक स्वत: ही निरन्तर चेहरे पर दिखाई देती है। पवित्रता की रूहानियत के नयन सदा ही निर्मल दिखाई देंगे। सदा नयनों में रूहानी आत्मा और रूहानी बाप की झलक अनुभव होगी। आज बापदादा सभी बच्चों की विशेष यह चमक और झलक देख रहे हैं।

आप भी अपने रूहानी पवित्रता के फीचर्स को नॉलेज के दर्पण में देख सकते हो क्योंकि विशेष आधार पवित्रता है। पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य को नहीं कहा जाता। लेकिन सदा ब्रह्मचारी और सदा ब्रह्माचारी अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर हर कदम में चलने वाले। उसका संकल्प, बोल और कर्म रूपी कदम नैचुरल ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम होगा, जिसको आप फुट स्टेप कहते हो। उनके हर कदम में ब्रह्मा बाप का आचरण दिखाई देगा। तो ब्रह्मचारी बनना मुश्किल नहीं है लेकिन यह मन-वाणी-कर्म के कदम ब्रह्माचारी हों – इस पर चेक करने की आवश्यकता है। और जो ब्रह्माचारी हैं उनका चेहरा और चलन सदा ही अर्न्तमुखी और अतीन्द्रिय सुख वाला अनुभव होगा।

एक हैं साइंस के साधन और ब्राह्मण-जीवन में हैं ज्ञान के साधन। तो ब्रह्माचारी आत्मा साइंस के साधन वा ज्ञान के साधन के आधार पर सदा सुखी नहीं होते। लेकिन साधनों को भी अपनी साधना के स्वरूप में कार्य में लाते। साधनों को आधार नहीं बनाते लेकिन अपनी साधना के आधार से साधनों को कार्य में लाते – जैसे कोई ब्राह्मण-आत्माएं कभी-कभी कहते हैं हमें यह चांस नहीं मिला, इस बात की मदद नहीं मिली।

यह साथ नहीं मिला, इसलिए खुशी कम हो गई अथवा सेवा का, स्वयं का उमंग-उत्साह कम हो गया। पहले-पहले तो बहुत अतीन्द्रिय सुख था, उमंग-उत्साह भी रहा – “मैं और बाबा” और कुछ दिखाई नहीं दिया। लेकिन मैजारिटी 5 वर्ष से 10 वर्ष के अन्दर अपने में कभी कैसे, कभी कैसे अनुभव करने लगते हैं। इसका कारण क्या है? पहले वर्ष से 10 वर्ष में उमंग-उत्साह 10 गुणा बढ़ना चाहिए ना। लेकिन कम क्यों हो गया? उसका कारण यही है कि साधना की स्थिति में रह साधनों को कार्य में नहीं लगाते। कोई-न-कोई आधार को अपनी उन्नति का आधार बना देते हैं और वह आधार हिलता है तो उमंग-उत्साह भी हिल जाता है।

वैसे आधार लेना कोई बुरी चीज़ नहीं। लेकिन आधार को ही फाउण्डेशन बना देते हैं। बाप बीच से निकल जाता है और आधार को फाउण्डेशन बना देते हैं, इसलिए हलचल क्या होती? यह होता तो ऐसा नहीं होता, यह होगा तो ऐसे होगा। यह तो बहुत आवश्यक है – ऐसे अनुभव होने लगता है। साधना और साधन का बैलेन्स नहीं रहता। साधनों की तरफ बुद्धि ज्यादा जाती है। साधना की तरफ बुद्धि कम हो जाती, इसलिए कोई भी कार्य में, सेवा में बाप की ब्लैसिंग अनुभव नहीं करते। और ब्लैसिंग का अनुभव न होने के कारण साधन द्वारा सफलता मिल जाती तो उमंग-उत्साह बहुत अच्छा रहता और सफलता कम होती तो उमंग-उत्साह भी कम हो जाता है।

साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। निरन्तर बाप के साथ दिल का सम्बन्ध। साधना इसको नहीं कहते कि सिर्फ योग में बैठ गये लेकिन जैसे शरीर से बैठते हो वैसे दिल, मन, बुद्धि एक बाप की तरफ बाप के साथ-साथ बैठ जाए। शरीर भल यहाँ बैठा है लेकिन मन एक तरफ, बुद्धि दूसरे तरफ जा रही है, दिल में और कुछ आ रहा है तो इसको साधना नहीं कहते। मन, बुद्धि, दिल और शरीर चारों ही साथ-साथ, बाप के साथ समान स्थिति में रहें – यह है यथार्थ साधना। समझा?

अगर यथार्थ साधना नहीं होती तो फिर आराधना चलती है। पहले भी सुनाया है, कभी तो याद करते हैं लेकिन कभी फिर फरियाद करते हैं। याद में फरियाद की आवश्यकता नहीं। साधना वाले का आधार सदा बाप ही होता है। और जहाँ बाप है वहाँ सदा बच्चों की उड़ती कला है। कम नहीं होगा लेकिन अनेक गुणा बढ़ता जायेगा। कभी ऊपर, कभी नीचे इसमें थकावट होती है। आप कोई भी हलचल के स्थान पर बैठो तो क्या होगा? ट्रेन में बहुत हिलने से थकावट होती है ना।

कभी बहुत उमंग-उत्साह में उड़ते हो, कभी बीच में रहते हो, कभी नीचे आ जाते हो तो हलचल हो गई ना, इसलिए या थक जाते हो या बोर हो जाते हो। फिर सोचते हैं क्या ऐसे ही चलना है! लेकिन जो साधना द्वारा बाप के साथ हैं, उसके लिए संगमयुग पर सब नया ही नया अनुभव होता है। हर घड़ी में, हर संकल्प में नवीनता क्योंकि हर कदम में उड़ती कला अर्थात् प्राप्ति में प्राप्ति होती रहती। हर समय प्राप्ति है।

संगमयुग में हर समय बाप, वर्से और वरदान के रूप में प्राप्ति कराते हैं। तो प्राप्ति में खुशी होती है और खुशी में उमंग-उत्साह बढ़ता रहेगा। कम हो ही नहीं सकता। चाहे माया भी आये तो भी विजयी बनने की खुशी होगी क्योंकि माया पर विजय प्राप्त करने के नॉलेजफुल बन गये हो। तो 10 साल वालों को 10 गुणा, 20 साल वालों का 20 गुणा हो रहा है? तो कहने में ऐसे आता लेकिन है तो अनेक गुणा।

अब इस वर्ष में क्या करेंगे? उमंग-उत्साह तो बाप द्वारा मिली हुई आपकी अपनी जायदाद है। बाप की प्रापर्टी को अपना बनाया है, तो प्रापर्टी को बढ़ाया जाता है या कम किया जाता है? इस वर्ष विशेष 4 प्रकार की सेवा पर अटेन्शन अण्डरलाइन करना।

पहला नम्बर है – स्व की सेवा। दूसरा – विश्व की सेवा। तीसरा – मन्सा सेवा। एक है वाणी द्वारा सेवा दूसरी मन्सा सेवा भी विशेष है। चौथा – यज्ञ-सेवा।

जहाँ भी हो, जिस भी सेवास्थान पर हो वह सब सेवास्थान यज्ञकुण्ड है। ऐसे नहीं कि सिर्फ मधुबन यज्ञ है और आपके स्थान यज्ञ नहीं है। तो यज्ञ-सेवा अर्थात् कर्मणा द्वारा कुछ-न-कुछ सेवा जरूर करनी चाहिए। बापदादा के पास सेवा के तीन प्रकार के खाते सबके जमा होते हैं। मन्सा-वाचा और कर्मणा, तन-मन और धन। कई ब्राह्मण सोचते हैं हम तो धन से सहयोगी नहीं बन सकते, सेवा नहीं कर सकते क्योंकि हम तो समर्पण हैं। धन कमाते ही नहीं तो धन से सेवा कैसे करेंगे?

लेकिन समर्पित आत्मा अगर यज्ञ के कार्य में एकॉनामी करती है अपने अटेन्शन से, तो जैसे धन की एकॉनामी की, वह एकॉनामी वाला धन अपने नाम से जमा होता है, यह सूक्ष्म खाता है। अगर कोई नुकसान करता है तो खाते में बोझ जमा होता है और एकॉनामी करते तो उसका धन के खाते में जमा होता है। यज्ञ का एक-एक कणा मुहर के समान है। अगर यज्ञ की दिल से (दिखावे से नहीं) एकॉनामी करते हैं तो उसकी मुहरें इकट्ठी होती रहती हैं।

दूसरी बात- अगर समर्पित आत्मा सेवा द्वारा दूसरों के धन को सफल कराती है तो उसमें से उसका भी शेयर जमा होता है, इसलिए सभी का 3 प्रकार का खाता है। तीनों खाते की परसेन्टेज़ अच्छी होनी चाहिए। कोई समझते हैं हम तो वाचा सेवा में बहुत बिजी रहते हैं। हमारी ड्यूटी ही वाचा की है, मन्सा और कर्मणा में परसेन्टेज कम होती है लेकिन यह भी बहाना चलेगा नहीं।

वाणी के समय अगर मन्सा और वाचा की इकट्ठी सेवा करो तो क्या रिजल्ट होगी? मन्सा और वाचा इकट्ठी सेवा हो सकती है? लेकिन वाचा सहज है, मन्सा में अटेन्शन देने की बात है, इसलिए वाचा का तो जमा हो जाता लेकिन मन्सा का खाता खाली रह जाता है। और वाचा में तो बाप से भी सभी होशियार हो। देखो आजकल बड़ी दादियों से अच्छे भाषण छोटे-छोटे करते हैं क्योंकि न्यू ब्लड है ना। भले आगे जाओ, बापदादा खुश होते हैं। लेकिन मन्सा का खाता खाली रह जायेगा क्योंकि हर खाते की 100 मार्क्स हैं।

सिर्फ स्थूल सेवा को कर्मणा सेवा नहीं कहते। कर्मणा अर्थात् संगठन में सम्पर्क-सम्बन्ध में आना। यह कर्म के खाते में जमा हो जाता है। तो कईयों के तीनों खाते में बहुत फ़र्क है और वे खुश होते रहते हैं कि हम बहुत सेवा कर रहे हैं, बहुत अच्छे हैं। खुश भले रहो लेकिन खाता खाली भी नहीं रहना चाहिए क्योंकि बापदादा तो बच्चों के स्नेही हैं ना। फिर ऐसा उल्हना नहीं देना कि हमको इशारा भी नहीं दिया गया कि यह भी होता है। उस समय बापदादा यह प्वाइंट याद करायेगा। टी.वी. में चित्र सामने आ जायेगा,

इसलिए इस वर्ष सेवा भले बहुत करो लेकिन यह तीनों प्रकार के खाते और चारों प्रकार की सेवा साथ-साथ करो। वाचा का तरफ भारी हो जाए और मन्सा तथा कर्मणा हल्का हो जाए तो क्या होगा? बैलेन्स नहीं रहेगा ना। बैलेन्स न रहने के कारण उमंग-उत्साह भी नीचे-ऊपर होता है। एक तो अटेन्शन रखना लेकिन बापदादा बार-बार कहते हैं अटेन्शन को टेन्शन में नहीं बदलना। कई बार अटेन्शन को टेन्शन बना देते हैं – यह नहीं करना। सहज और नैचुरल अटेन्शन रहे। डबल लाइट स्थिति में नैचुरल अटेन्शन होता ही है। अच्छा!

“सदा अपने चेहरे और चलन में पवित्रता के रूहानियत की चमक वाले, सदा हर कदम में ब्रह्माचारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा अपने सेवा के सर्व खातों को भरपूर रखने वाले, सदा दिल से अपनी उन्नति का दृढ़ संकल्प करने वाले, सदा स्व-उन्नति प्रति स्वयं को नम्बरवन आत्मा निमित्त बनाने वाले – ऐसे बाप के प्यारे और विशेष ब्रह्मा मां के प्यारे, आज मां का दिन मनाया है ना, तो ब्रह्मा मां के राजदुलारे बच्चों को ब्रह्मा मां की और विशेष बाप की भी दिल से याद-प्यार और नमस्ते।“

मधुबन निवासियों से :

मधुबन निवासियों को अच्छे और गोल्डन चांस मिलते हैं इसलिए ड्रामा अनुसार जिन्हें बार-बार गोल्डन चांस मिलते हैं उन्हें बापदादा बड़े-ते-बड़े चांसलर कहते हैं। सेवा का फल और बल दोनों ही प्राप्त होता है। बल भी मिल रहा है, वह बल सेवा कर रहा है, और फल सदा शक्तिशाली बनाए आगे बढ़ा रहा है। सबसे ज्यादा मुरलियां कौन सुनता है? मधुबन वाले। वो तो गिनती से मुरलियां सुनते हैं और आप सदा ही मुरलियां सुनते रहते हो। सुनने में भी नम्बरवन हो और करने में? करने में भी वन नम्बर हो या कभी टू हो जाता है? जो समीप होते हैं उन पर विशेष हुज्जत होती है तो बापदादा की भी विशेष हुज्जत है, करना ही है और नम्बरवन करना है। किसी में भी नम्बर पीछे नहीं।

सब जमा के खाते नम्बरवन फुल होने चाहिए। एक भी खाता जरा खाली नहीं होना चाहिए। जैसे मधुबन में सर्व प्राप्तियां, चाहे आत्मिक, चाहे शारीरिक सब नम्बरवन मिलती है – ऐसे अब करने में सदा नम्बरवन। वन की निशानी है हर बात में विन करना। अगर विन (विजयी) हैं तो वन जरूर हैं। विन कभी-कभी हैं तो नम्बरवन नहीं। अच्छा! सेवा की मुबारकें

सेवा के सर्टिफिकेट तो बहुत मिले हैं और कौन से सर्टिफिकेट लेने हैं? एक – अपने पुरुषार्थ में दिलपसंद हो, दूसरा – प्रभु पसंद हो और तीसरा – परिवार पसंद हो। यह तीनों सर्टिफिकेट हरेक को लेने हैं। ऐसे नहीं एक सर्टिफिकेट हो दिल-पसन्द का दूसरे न हों। तीनों ही चाहिए। तो बाप के पसंद कौन हैं? जो बाप ने कहा और किया। यह है प्रभु-पसंद का सर्टीफिकेट। और अपने पसंद अर्थात् जो आपकी दिल है वही बाप की दिल हो।

अपने हद के दिल-पसंद नहीं लेकिन बाप की दिल सो मेरी दिल। जो बाप की दिल-पसंद वही मेरी दिल-पसंद, इसको कहते हैं दिल-पसंद का सर्टिफिकेट और परिवार की संतुष्टता का सर्टिफिकेट। तो यह तीनों सर्टिफिकेट लिए हैं? सर्टिफिकेट जो मिलता है उसमें वैरीफाय भी होता है। बड़ों से वैरीफाय भी करना पड़े। बाप तो जल्दी राज़ी हो जाते लेकिन यहाँ सबको राज़ी करना है। तो जो साथ रहते हैं उनसे सर्टिफिकेट को वैरीफाय करना पड़े। बाप तो ज्यादा रहमदिल है ना, तो हां जी कह देंगे। अच्छा, सभी की डिपार्टमेन्ट निर्विघ्न हैं, स्वयं भी निर्विघ्न हैं? सेवा की खुशबू तो विश्व में भी है तो सूक्ष्मवतन तक भी है। अभी सिर्फ इन तीन सर्टिफिकेट को वैरीफाय करना। अच्छा!

भारतवासियों से :– 

ऐसा अनुभव होता है कि सुखदाता बाप के साथ सुखी बच्चे बन गये हैं? बाप सुखदाता है तो बच्चे सुख स्वरूप होंगे ना? कभी दु:ख की लहर आती है? सुखदाता के बच्चों के पास दु:ख आ नहीं सकता क्योंकि सुखदाता बाप का खजाना अपना खजाना हो गया है। सुख अपनी प्रापर्टी हो गई। सुख, शान्ति, शक्ति, खुशी – आपका खजाना है। बाप का खजाना सो आपका खजाना हो गया। बालक सो मालिक हो ना! अच्छा!

भारत भी कम नहीं है। हर ग्रुप में पहुँच जाते हैं। बाप भी खुश होते हैं। पांच हजार वर्ष खोये हुए फिर से मिल जाएं तो कितनी खुशी होगी! अगर कोई 10-12 वर्ष का खोया हुआ भी फिर से मिलता है तो कितनी खुशी होती है। और यह 5 हजार वर्ष बाप और बच्चे अलग हो गये और अब फिर से मिल गये, इसलिए बहुत खुशी है ना। सबसे ज्यादा खुशी किसके पास है? सभी के पास है क्योंकि यह खुशी का खजाना इतना बड़ा है जो कितने भी लेवें, जितने भी लेंवे, अखुट है। इसीलिए हर एक अधिकारी आत्मा है। ऐसे हैं ना?

संगम-युग को कौन-सा युग कहते हैं? संगमयुग खुशी का युग है। खजाने ही खजाने हैं, जितने खजाने चाहो उतना भर सकते हो। धनवान भव का, सर्व खजाने भव का वरदान मिला हुआ है। सर्व खजानों का वरदान प्राप्त है। ब्राह्मण-जीवन में तो खुशियां-ही-खुशियां हैं। यह खुशी कभी गायब तो नहीं हो जाती है? माया चोरी तो नहीं करती है खजानों की? जो सावधान, होशियार होता है उसका खजाना कभी कोई लूट नहीं सकता। जो थोड़ा-सा अलबेला होता है उसका खजाना लूट लेते हैं। आप तो सावधान हो ना! या कभी-कभी सो जाते हो? कोई सो जाते हैं तो चोरी हो जाती है ना। अलबेले हो गये।

सदा होशियार, सदा जागती ज्योति रहे तो माया की हिम्मत नहीं जो खजाना लूट कर ले जाए। अच्छा! जहाँ से भी आये हो सब पद्मापद्म भाग्यवान् हो! यही गीत गाते रहो – सब कुछ मिल गया। 21 जन्मों के लिए गारंटी है कि ये खजाने साथ रहेंगे। इतनी बड़ी गारंटी कोई दे नहीं सकता। तो यह गारंटी कार्ड ले लिया है ना! यह गारंटी कार्ड कोई रिवाजी आत्मा देने वाली नहीं है। दाता है, इसलिए कोई डर नहीं है, कोई शक नहीं है। 

वरदान:- फालो फादर करते हुए सपूत बन हर कर्म में सबूत देने वाले सफलता स्वरूप भव

जो फालो फादर करने वाले बच्चे हैं वही समान हैं, क्योंकि जो बाप के कदम वो आपके कदम। बापदादा सपूत उन्हें कहता – जो हर कर्म में सबूत दे। सपूत अर्थात् सदा बाप के श्रीमत का हाथ और साथ अनुभव करने वाले। जहाँ बाप की श्रीमत व वरदान का हाथ है वहाँ सफलता है ही, इसलिए कोई भी कार्य करते ये स्मृति में लाओ कि बाप के वरदान का हाथ हमारे ऊपर है।

स्लोगन:-    हीरे तुल्य ऊंची स्थिति में स्थित होकर किये गये कर्म ही मूल्यवान कर्म हैं।ॐ शान्ति।

*** “ॐ शान्ति”। ***

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-; निवदेन :-

किर्प्या अपना अनुभव जरूर साँझा करे । [नीचे जाये ]

धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।

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