19-04-2024 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “मीठे बच्चे – बाप आये हैं सारी दुनिया का हाहाकार मिटाकर जयजयकार करने – पुरानी दुनिया में है हाहाकार, नई दुनिया में है जयजयकार”
प्रश्नः कौन-सा ईश्वरीय नियम है जो गरीब ही बाप का पूरा वर्सा लेते, साहूकार नहीं ले पाते?
उत्तर:- ईश्वरीय नियम है – पूरा बेगर बनो, जो कुछ भी है उसे भूल जाओ। तो गरीब बच्चे सहज ही भूल जाते हैं परन्तु साहूकार जो अपने को स्वर्ग में समझते हैं उनकी बुद्धि में कुछ भूलता नहीं इसलिए जिनको धन, दौलत, मित्र, सम्बन्धी याद रहते वह सच्चे योगी बन ही नहीं सकते हैं। उन्हें स्वर्ग में ऊंच पद नहीं मिल सकता।
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-: ज्ञान के सागर और पतित–पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच: मीठे-मीठे निश्चयबुद्धि बच्चे तो अच्छी रीति जानते हैं, उन्हों को पक्का निश्चय है कि बाप आया है सारी दुनिया का झगड़ा मिटाने। जो सयाने समझदार बच्चे हैं, वह जानते हैं इस तन में बाप आये हुए हैं, जिसका नाम भी है शिवबाबा। क्यों आये हैं? हाहाकार को मिटाकर जयजयकार कराने। मृत्युलोक में कितने झगड़े आदि हैं। सबको हिसाब-किताब चुक्तू कर जाना है। अमरलोक में झगड़े की बात नहीं। यहाँ कितना हंगामा (हाहाकार) लगा हुआ है। कितनी कोर्ट, जज आदि हैं। मारामारी लगी हुई है। विलायत आदि में भी देखो हाहाकार है। सारी दुनिया में खिटपिट बहुत है। इसको कहा जाता है पुरानी तमोप्रधान दुनिया। किचड़ा ही किचड़ा है। जंगल ही जंगल है।
बेहद का बाप यह सब-कुछ मिटाने के लिए आये हैं। अभी बच्चों को बहुत सयाना समझदार बनना है। अगर बच्चों में भी लड़ाई-झगड़ा होता रहेगा तो बाप के मददगार कैसे बनेंगे। बाबा को तो बहुत मददगार बच्चे चाहिये – सयाने, समझू, जिनमें कोई खिट-खिट न हो। यह भी बच्चे समझते हैं यह पुरानी दुनिया है। अनेक धर्म हैं। तमोप्रधान विशश वर्ल्ड है। सारी दुनिया पतित है। पतित पुरानी दुनिया में झगड़े ही झगड़े हैं। इन सबको मिटाने, जयजयकार कराने बाप आते हैं।
हर एक जानते हैं इस दुनिया में कितना दु:ख और अशान्ति है, इसलिए चाहते हैं विश्व में शान्ति हो। अब सारे विश्व में शान्ति कोई मनुष्य कैसे कर सकेंगे। बेहद के बाप को ठिक्कर-भित्तर में लगा दिया है। यह भी खेल है। तो बाप बच्चों को समझाते हैं, अब खड़े हो जाओ। बाप के मददगार बनो। बाप से अपना राज्य-भाग्य लेना है। कम नहीं, अथाह सुख है।
बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, ड्रामा अनुसार तुमको बेहद का बाप पद्मापद्म भाग्यशाली बनाने आया है। भारत में यह लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। भारत स्वर्ग था। स्वर्ग को ही कहा जाता है वन्डर ऑफ वर्ल्ड। त्रेता को भी नहीं कहेंगे। ऐसे स्वर्ग में आने का बच्चों को पुरूषार्थ करना चाहिए। पहले-पहले आना है। बच्चे चाहते भी हैं हम स्वर्ग में आयें, लक्ष्मी वा नारायण बनें।
अभी इस पुरानी दुनिया में बहुत हाहाकार होनी है। रक्त की नदियां बहनी हैं, रक्त की नदियों के बाद होती हैं घी की नदियां। उनको कहते हैं क्षीरसागर। यहाँ भी बड़े तलाव बनाते हैं, फिर कोई दिन मुकरर होता है जो आकर उसमें दूध डालते हैं। उसमें फिर स्नान करते हैं। शिवलिंग पर भी दूध चढ़ाते हैं। सतयुग की भी एक महिमा है कि वहाँ घी, दूध की नदियाँ हैं। ऐसी कोई बात नहीं है।
हर 5 हज़ार वर्ष के बाद तुम विश्व के मालिक बनते हो। इस समय तुम गुलाम हो, फिर तुम बादशाह बनते हो। सारी प्रकृति तुम्हारी गुलाम बन जाती है। वहाँ कभी बेकायदे बरसात नहीं पड़ती, नदियां उछल नहीं खाती। कोई उपद्रव नहीं होता। यहाँ देखो कितने उपद्रव हैं। वहाँ पक्के वैष्णव रहते हैं। विकारी वैष्णव नहीं। यहाँ कोई वेजीटेरियन बना तो उनको वैष्णव कहते हैं। परन्तु नहीं, विकार से एक-दो को बहुत दु:ख देते हैं। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। यह भी गायन है गांवड़े का छोरा… श्रीकृष्ण तो गांवड़े का हो नहीं सकता है। वह तो बैकुण्ठ का मालिक है। फिर 84 जन्म लेते हैं।
यह भी तुम अभी जानते हो कि हमने भक्ति में कितने धक्के खाये, पैसे बरबाद किये। बाबा पूछते हैं – तुमको इतने पैसे दिये, राज्य भाग्य दिया, सब कहाँ गया? तुमको विश्व का मालिक बनाया फिर तुमने क्या किया? बाप तो ड्रामा को जानते हैं। नई दुनिया सो पुरानी दुनिया, पुरानी दुनिया सो नई दुनिया बनती है। यह चक्र है, जो कुछ पास्ट हुआ वह फिर रिपीट होगा।
बाप कहते हैं अभी थोड़ा समय है, पुरूषार्थ कर भविष्य के लिए जमा करो, पुरानी दुनिया का सब-कुछ मिट्टी में मिल जाना है। साहूकार इस ज्ञान को लेंगे नहीं। बाप है गरीब निवाज़। गरीब वहाँ साहूकार बनते हैं। साहूकार वहाँ गरीब बनते हैं। अभी तो पद्मपति बहुत हैं। वह आयेंगे परन्तु गरीब बनेंगे। वह अपने को स्वर्ग में समझते हैं, वह बुद्धि से निकल नहीं सकता।
यहाँ तो बाप कहते हैं सब कुछ भूल जाओ। खाली बेगर बन जाओ। आजकल तो किलोग्राम, किलोमीटर आदि क्या-क्या निकाला है। जो राजा गद्दी पर बैठता है वह अपनी भाषा चलाते हैं। विलायत की नकल करते हैं। अपना अक्ल तो है नहीं। तमोप्रधान हैं। अमेरिका आदि में विनाश की सामग्री में देखो कितना धन लगाते हैं। एरोप्लेन से बाम्ब्स आदि गिराते हैं, आग लगनी है। बच्चे जानते हैं, बाप आते ही हैं विनाश और स्थापना कराने।
तुम्हारे में भी समझाने वाले सब नम्बरवार हैं। सब एक जैसे निश्चयबुद्धि नहीं हैं। जैसे बाबा ने किया, बाबा को फालो करना चाहिए। पुरानी दुनिया में यह पाई पैसे क्या करेंगे। आजकल काग़ज के नोट निकाले हैं। वहाँ तो सिक्के (मुहरें) होंगे। सोने के महल बनते हैं तो सिक्कों का वहाँ क्या मूल्य है। जैसेकि सब कुछ मुफ्त में है, सतोप्रधान धरनी है ना। अभी तो पुरानी हो गई है। वह है सतोप्रधान नई दुनिया। बिल्कुल नई जमीन है। तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो तो शूबीरस आदि पीते हो।
परन्तु वहाँ झाड़ आदि तो हैं नहीं। न मूलवतन में हैं। जब तुम बैकुण्ठ में जाते हो तब वहाँ तुमको सब कुछ मिलता है। बुद्धि से काम लो, सूक्ष्मवतन में झाड़ होंगे नहीं। झाड़ तो धरनी पर होते हैं, न कि आकाश में। भल नाम है ब्रह्म महतत्व परन्तु है पोलार। जैसे यह स्टॉर ठहरे हुए हैं आकाश में, वैसे तुम बहुत छोटी-छोटी आत्मायें ठहरी हुई हो। स्टॉर्स देखने में बड़े आते हैं। ऐसे नहीं कि ब्रह्म तत्व में कोई बड़ी-बड़ी आत्मायें होंगी। यह बुद्धि से काम लेना है। विचार सागर मंथन करना है। तो आत्मायें भी ऊपर में ठहरती हैं। छोटी बिन्दी हैं। यह सब बातें तुमको धारण करनी है, तब किसको धारण करा सकेंगे। टीचर जरूर खुद जानते हैं तब तो औरों को पढ़ाते हैं। नहीं तो टीचर ही काहे का। परन्तु यहाँ टीचर्स भी नम्बरवार हैं।
तुम बच्चे बैकुण्ठ को भी समझ सकते हो। ऐसे नहीं कि तुमने बैकुण्ठ नहीं देखा है। बहुत बच्चों ने साक्षात्कार किया है। वहाँ स्वयंवर कैसे होता है, क्या भाषा है, सब कुछ देखा है। पिछाड़ी में भी तुम साक्षात्कार करेंगे परन्तु करेंगे वही जो योगयुक्त होंगे। बाकी जिनको अपने मित्र-सम्बन्धी, धन-दौलत याद आते रहेंगे वह क्या देखेंगे। सच्चे योगी ही अन्त तक रहेंगे, जिन्हों को बाप देख खुश होंगे। फूलों का ही बगीचा बनता है। बहुत तो 10-15 वर्ष रहकर भी चले जाते हैं। उनको कहेंगे अक के फूल। बड़ी अच्छी-अच्छी बच्चियां जो मम्मा-बाबा के लिए भी डायरेक्शन ले आती थी, ड्रिल कराती थी, वे आज हैं नहीं।
यह बच्चियां भी जानती हैं और बापदादा भी जानते हैं कि माया बड़ी जबरदस्त है। यह है माया से गुप्त लड़ाई। गुप्त त़ूफान। बाबा कहते हैं माया तुमको बहुत हैरान करेगी। यह हार-जीत का बना हुआ ड्रामा है। तुम्हारी कोई हथियारों से लड़ाई नहीं है।
यह तो भारत का प्राचीन योग नामीग्रामी है, जिस योगबल से तुम यह बनते हो। बाहुबल से कोई विश्व की बादशाही ले न सके। खेल भी वन्डरफुल है। कहानी है दो बिल्ले लड़े मक्खन….. कहा भी जाता है सेकण्ड में विश्व की बादशाही। बच्चियां साक्षात्कार करती हैं। कहती हैं श्रीकृष्ण के मुख में माखन है। वास्तव में श्रीकृष्ण के मुख में नई दुनिया देखते हैं। योगबल से तुम विश्व की बादशाही रूपी माखन लेते हो।
राजाई के लिए कितनी लड़ाई होती है और कितने लड़ाई से खत्म होते हैं। इस पुरानी दुनिया का हिसाब-किताब चुक्तू होना है। इस दुनिया की कोई भी चीज रहनी नहीं है। बाप की श्रीमत है – बच्चे हियर नो ईविल, सी नो ईविल.… उन्होंने बन्दरों का एक चित्र बनाया है। आजकल तो मनुष्यों का भी बनाते हैं। आगे चीन की तरफ से हाथी दांत की चीजें आती थी। चूड़ियां भी कांच की पहनते थे।
यहाँ तो जेवर आदि पहनने के लिए नाक कान आदि छेदते हैं, सतयुग में नाक-कान छेद करने की जरूरत नहीं। यहाँ तो माया ऐसी है जो सबके नाक-कान काट लेती है। तुम बच्चे अब स्वच्छ बनते हो। वहाँ नैचुरल ब्युटी रहती है। कोई चीज़ लगाने की जरूरत नहीं। यहाँ तो शरीर ही तमोप्रधान तत्वों से बनते हैं, इसलिए बीमारियां आदि होती हैं। वहाँ यह बातें होती नहीं।
अभी तुम्हारी आत्मा को बहुत खुशी है कि हमको बेहद का बाप पढ़ाकर नर से नारायण अथवा अमरपुरी का मालिक बनाते हैं इसलिए गायन है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो। भक्त लोग इन बातों को नहीं जानते हैं। तुम्हारे में भी खुश रहे और इन बातों का सिमरण करते रहें – ऐसे बच्चे बहुत थोड़े हैं।
अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं। जो गायन है द्रोपदी का, वह सब प्रैक्टिकल में हो रहा है। द्रोपदी ने क्यों पुकारा? यह मनुष्य नहीं जानते। बाप ने समझाया है – तुम सब द्रोपदियां हो। ऐसे नहीं, फीमेल सदैव फीमेल ही बनती है। दो बारी फीमेल बन सकती है, जास्ती नहीं। मातायें पुकारती हैं – बाबा रक्षा करो, हमको दुशासन विकार के लिए हैरान करते हैं, इसको कहा जाता है वेश्यालय। स्वर्ग को कहा जाता है शिवालय। वेश्यालय है रावण की स्थापना, शिवालय है शिवबाबा की स्थापना। और तुमको नॉलेज भी देते हैं। बाप को नॉलेजफुल भी कहा जाता है। ऐसे नहीं नॉलेजफुल माना सबके दिलों को जानने वाला। इनसे फायदा क्या!
बाप कहते हैं यह सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज मेरे बिगर कोई दे न सके। मैं ही तुमको बैठ पढ़ाता हूँ। ज्ञान सागर एक ही बाप है। वहाँ है भक्ति की प्रालब्ध। सतयुग-त्रेता में भक्ति होती नहीं। पढ़ाई से ही राजधानी स्थापन हो रही है। प्रेजीडेंट आदि के देखो कितने वजीर हैं। एडवाइज़ देने के लिए वजीर रखते हैं। सतयुग में वजीर रखने की जरूरत नहीं। अब बाप तुमको अक्लमंद बनाते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण देखो कितने अक्लमंद थे।
बेहद की बादशाही बाप से मिलती है। शिव-जयन्ती बाप की मनाते हैं। जरूर शिवबाबा भारत में आकर विश्व का मालिक बनाकर गये हैं। लाखों वर्ष की बात नहीं है। कल की तो बात है। अच्छा, ज्यादा क्या समझाऊं। बाप कहते हैं मन्मनाभव। वास्तव में यह पढ़ाई इशारे की है। अच्छा – रूहानी बच्चों को रूहानी बापदादा का याद-प्यार गुडनाइट।
“मीठे–मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात–पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप का पूरा मददगार बनने के लिए सयाना, समझदार बनना है। अन्दर कोई खिटपिट न हो।
2) स्थापना और विनाश के कर्तव्य को देखते हुए पूरा निश्चयबुद्धि बन बाप को फालो करना है। पुरानी दुनिया के पाई-पैसे से, बुद्धि निकाल पूरा बेगर बनना है। मित्र-सम्बन्धी, धन-दौलत आदि सब कुछ भूल जाना है।
वरदान:- “संगठन में रहते, सबके स्नेही बनते बुद्धि का सहारा एक बाप को बनाने वाले कर्मयोगी भव”
कोई कोई बच्चे संगठन में स्नेही बनने के बजाए न्यारे बन जाते हैं। डरते हैं कि कहीं फंस न जाएं, इससे तो दूर रहना ठीक है। लेकिन नहीं, 21 जन्म परिवार में रहना है, अगर डरकर किनारा करेंगे तो यह भी कर्म-संन्यासी के संस्कार हुए। कर्मयोगी बनना है, कर्म संन्यासी नहीं। संगठन में रहो, सबके स्नेही बनो लेकिन बुद्धि का सहारा एक बाप हो, दूसरा न कोई। बुद्धि को कोई आत्मा का साथ, गुण वा कोई विशेषता आकर्षित न करे तब कहेंगे कर्मयोगी पवित्र अत्मा।
स्लोगन:- “बापदादा के राइट हैण्ड बनो, लेफ्ट हैण्ड नहीं।“
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
“इस मास की सभी मुरलियाँ (ईश्वरीय महावाक्य) निराकार परमात्मा शिव ने ब्रह्मा मुखकमल से अपने ब्रह्मावत्सों अर्थात् ब्रह्माकुमार एवं ब्रह्माकुमारियों के सम्मुख 18-1-1969 से पहले उच्चारण की थी। यह केवल ब्रह्माकुमारीज़ की अधिकृत टीचर बहनों द्वारा नियमित बीके विद्यार्थियों को सुनाने के लिए हैं।“
अच्छा – ओम् शान्ति।
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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल“ को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।
खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.
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