18-9-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली. रिवाइज: 15-4-1992: “ब्राह्मणों की दो निशानियाँ – निश्चय और विजय”

“ब्राह्मणों की दो निशानियाँ – निश्चय और विजय

“ओम् शान्ति”

आज बापदादा चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों की विशेष दो निशानियाँ देख रहे हैं। ब्राह्मण अर्थात् निश्चयबुद्धि और निश्चयबुद्धि अर्थात् विजयी। तो हर एक ब्राह्मण निश्चयबुद्धि कहाँ तक बने हैं और विजयी कहाँ तक बने हैं! क्योंकि ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन है निश्चय और निश्चय का प्रमाण है विजय। तो निश्चय और विजय दोनों की परसेन्टेज एक है या अन्तर है? रिजल्ट क्या देखी होगी? निश्चय की परसेन्टेज सभी ज्यादा अनुभव करते हैं और विजय की परसेन्टेज निश्चय से कम अनुभव करते हैं।

शिव बाबा व ब्रह्मा बाबा, Shiv BABA & Brhama BABA
शिव बाबा व ब्रह्मा बाबा, Shiv BABA & Brhama BABA

जब किसी से भी पूछते हैं कि निश्चय कितना है तो सभी कहते हैं 100 परसेन्ट, और निश्चय की निशानी विजय कितनी है? उसमें 100 परसेन्ट कहेंगे? आपका स्लोगन निश्चयबुद्धि विजयन्ती। फिर निश्चय और विजय में अन्तर क्यों? निश्चय और विजय दोनों निशानियाँ समान होनी चाहिए ना? लेकिन अन्तर क्यों है? इसका कारण क्या? कोई भी फाउण्डेशन जब पक्का किया जाता है तो उस स्थान को चारों ओर अटेन्शन देकर पक्का किया जाता है। अगर चारों ओर में से एक कोना भी कमजोर रह जाए तो पक्का रहेगा या हिलता रहेगा? ऐसे ही निश्चय का फाउण्डेशन चारों ओर अर्थात् विशेष चार बातों का सम्पूर्ण निश्चय चाहिए।

वह चार बातें पहले भी सुनाई हैं :–

एक बातबाप में सम्पूर्ण निश्चय। जो है, जैसा है, जो श्रीमत जैसे बाप की दी हुई है, उसी विधिपूर्वक यथार्थ जानना, मानना और चलना।

दूसरी बातअपने श्रेष्ठ स्वमान सम्पन्न श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा स्वरूप को जानना, मानना और चलना।

तीसरी बातअपने श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार को यथार्थ विधि से जो जैसा है वैसे जानना, मानना और चलना।

चौथी बातसारे कल्प के अन्दर इस श्रेष्ठ पुरुषोत्तम युग वा समय को उसी महत्व से जानना, मानना और चलना।

इन चार बातों में जो अटल निश्चयबुद्धि हैं और चारों में सम्पन्न परसेन्टेज है तो उसको कहेंगे सम्पूर्ण यथार्थ निश्चयबुद्धि।

यह चारों ही निश्चय के फाउण्डेशन के स्तम्भ हैं। सिर्फ एक बाप में निश्चय है और तीनों बातों में से कोई भी स्तम्भ कमजोर है, सदा मजबूत नहीं है, कभी हिलता कभी अचल होता है तो वह हलचल हार खिलाती है, विजयी नहीं बनाती। कोई भी हलचल कमजोर बना देती है और कमजोर सदा विजयी बन नहीं सकता इसलिए निश्चय और विजय में अन्तर पड़ जाता है।

बाप-दादा के सामने बहुत बच्चे भोले बन करके रूहरूहान करते हैं कि हमें निश्चय तो पूरा है, बाबा मैं आपका और आप मेरे हो, यह पक्का है, 100 परसेन्ट तो क्या 500 परसेन्ट निश्चय है…। लेकिन हलचल भी है। फिर मनाने के लिए कहते हैं – आप तो हमारे हो ना, पक्का कराते हैं। बहुत भोली बातें करते हैं – मैं जो हूँ, जैसी हूँ, आपकी या आपका हूँ। तो बाप भी कहते हैं आप जो हो, जैसे हो, मेरे हो। लेकिन बाप जो है जैसा है आपका है?

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भोला बनना अच्छा है, दिल से भोले बनो, लेकिन बातों में और कर्म में भोले नहीं बनो। दिल के भोले भोलानाथ के प्यारे हैं। बातों में भोले स्वयं को भी धोखा देते तो दूसरों को भी धोखा दे देते और कर्म के भोले अपना भी नुकसान करते हैं तो सेवा का भी नुकसान करते हैं इसलिए दिल से भोले बनो, बिल्कुल सेन्ट, ऐसे भोले। सेन्ट अर्थात् महान आत्मा। लेकिन बातों में त्रिकालदर्शी बन करके बात सुनो और बोलो। कर्म में, हर कर्म के परिणाम को नॉलेजफुल होकर जानो और फिर करो।

ऐसे नहीं कि होना तो नहीं चाहिए था लेकिन हो गया, बोलना नहीं चाहिए था लेकिन बोल लिया। इससे सिद्ध है कि कर्म के परिणाम को न जान भोलेपन में कर्म कर लेते हो। ऐसे नहीं समझो कि हम भोले हैं इसीलिए ऐसे हो जाता है – ऐसे अपने को छुड़ाना नहीं है। दिल का भोला सबका प्यारा होगा। तो समझा भोला किसमें बनना है? तो निश्चय और विजय को समान बनाने की विधि क्या हुई? चारों तरफ, चारों बातों का समान परसेन्टेज वाला निश्चय हो।

कई बच्चे और क्या कहते हैं कि बाबा आप में तो निश्चय है लेकिन अपने आप में इतना निश्चय नहीं है। कभी होता है, कभी अपने में निश्चय कम हो जाता है। फिर उन्हों की भाषा क्या होती है? एक ही गीत गाते हैं – पता नहीं, पता नहीं, पता नहीं…। पता नहीं ऐसे क्यों होता है, पता नहीं मेरा भाग्य है, पता नहीं बाप की मदद मिलेगी वा नहीं, पता नहीं सफलता होगी वा नहीं। जब मास्टर सर्वशक्तिवान हो तो इस निश्चय में कमी है तब पता नहीं, पता नहीं का गीत गाते हो।

और तीसरे फिर क्या कहते हैं? कि बाबा हमने तो आपको देख करके सौदा किया। आप हमारे हो हम आपके हैं। इस ब्राह्मण परिवार से हमने सौदा नहीं किया। ब्राह्मण परिवार खिटखिट है, आप ठीक हो। ब्राह्मणों के संगठन में चलना मुश्किल हैं, एक आपसे चलना सहज है। तो बापदादा क्या कहेंगे? बापदादा मुस्कराते हैं, ऐसे बच्चों से बापदादा का एक प्रश्न है क्योंकि ऐसी आत्माएं प्रसन्न चित्त नहीं रहती, प्रश्न बहुत करती है, ये ऐसा क्यों, ऐसा होता है क्या, तो वह प्रसन्न चित्त आत्मा नहीं है, प्रश्न चित्त आत्मा है।

Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव
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बापदादा भी उन्हों से प्रश्न करते हैं कि आप आत्मा मुक्तिधाम में रहने वाली हो या जीवनमुक्ति में आने वाली हो? मुक्ति में रहना है फिर जीवनमुक्ति में आना है ना। तो जीवनमुक्ति में सिर्फ बाबा ब्रह्मा होगा या राजधानी होगी? सिर्फ ब्रह्मा और सरस्वती राजा रानी होंगे? जीवनमुक्ति का वर्सा पाना है ना।

आप लोग चैलेन्ज करते हो कि आदि सनातन धर्म और अन्य धर्म में सबसे बड़ा अन्तर है। वो सिर्फ धर्म स्थापन करते हैं और आप धर्म और राज्य दोनों की स्थापना कर रहे हो। यह पक्का है ना। धर्म की स्थापना और राज्य की भी स्थापना कर रहे हो ना, तो राज्य में क्या होगा? सिर्फ एक राजा, एक रानी होंगे? एक राजा रानी और आप एक बच्चा या बच्ची, बस। ऐसा राज्य होता है? तो हमें राजधानी में आना है यह याद रखो। राजधानी में आना अर्थात् ब्राह्मण परिवार में सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना, श्रेष्ठ सम्बन्ध में आना।

अभी बापदादा पूछेंगे सभी से कि आप माला में आने चाहते हो? या कहेंगे माला से बाहर रह गये तो भी ठीक है, हर्जा नहीं है। माला में आना है? चाहे 108 में आओ, चाहे 16,000 में आओ। लेकिन आना है वा नहीं? (हाँ जी) फिर अभी ब्राह्मण परिवार से क्यों घबराते हो? जब कोई बात होती है तो क्यों कहते हो हमारा तो बाबा है। बहनें क्या करेंगी, भाई क्या करेंगे? हमने भाई-बहनों से वायदा नहीं किया है, लेकिन यह ब्राह्मण जीवन शुद्ध सम्बन्ध का जीवन है, माला की जीवन है। माला का अर्थ ही है संगठन। ब्राह्मण परिवार के निश्चय में अगर कोई संशय आ जाता है, व्यर्थ संकल्प आ जाता है तो वह निश्चय को डगमग कर देता है। हलचल में लाता है।

बाबा अच्छा, ज्ञान अच्छा, लेकिन ये दादियाँ अच्छी नहीं, टीचर्स अच्छी नहीं, परिवार अच्छा नहीं…। यह निश्चयबुद्धि के बोल हैं? उस समय निश्चयबुद्धि कहें कि संकल्प बुद्धि कहें? व्यर्थ संकल्प प्रसन्नचित्त बुद्धि रहने नहीं देते, तो समझा निश्चय की विशेषता क्या है?

चौथी रूहरिहान क्या करते हैं? वह फिर कहते कि समय श्रेष्ठ है, पुरुषोत्तम युग है, आत्मा परमात्मा के मेले का युग है यह सब मानते हैं फिर क्या कहते? अभी थोड़ा समय तो है ही, इतने में विनाश तो होना नहीं है, यह तो स्थापना के समय से कहते आये हैं कि विनाश होना है। दूसरी दीवाली नहीं आनी है। तो विनाश की बातें तो स्थापना के समय से चल रही हैं। विनाश कहते-कहते कितने वर्ष हो गये। अभी भी पता नहीं विनाश कब हो! थोड़ा सा अलबेले के, आलस्य के, ढीले पुरुषार्थ के डनलप के तकियें में आराम कर लें। समय पर ठीक हो जायेंगे। बाप को भी यह पक्का कराते हैं कि आप देखना हम समय पर बहुत नम्बर आगे ले लेंगे।

FIVE VICES, पांच विकार
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लेकिन बापदादा ऐसे बच्चों को सदा सावधान करते हैं कि समय पर जागे और समय प्रमाण परिवर्तन किया तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन समय के पहले परिवर्तन किया तो आपके पुरुषार्थ में यह पुरुषार्थ की मार्क्स जमा होगी और अगर समय पर किया तो समय को मार्क्स मिलेगी आपको नहीं मिलेगी। तो टोटल रिज़ल्ट में अलबेले या आलस्य के नींद के कारण धोखा खा लेंगे। यह भी कुम्भकरण के नींद का अंश है। बड़ा कुम्भकरण नहीं है, छोटा है। फिर उसको क्या हुआ? अपने को बचा सका? नहीं बच सका ना! तो अन्त समय में अपने को फुल पास के योग्य नहीं बना सकेंगे। समझा! कभी कैसी रूहरूहान करते हो, कभी बहुत हिम्मत की भी करते हो, कभी नाज़-नखरे की करते हो और कभी खिटपिट की करते हो।

आज इस वर्ष के सीज़न का सम्पन्न है। समाप्ति नहीं कहेंगे, सम्पन्न हो रहा है इसलिए रिज़ल्ट सुना रहे हैं। तो अभी क्या करना है? चेक करो कि निश्चय के फाउण्डेशन के चारों ओर मज़बूत है या चारों में से कोई भी बात में मज़बूत होने के बजाए बातों के कारण मजबूर है। यह चेक करो। अभी फिर तपस्या करनी है ना।

पहले भी सुनाया कि प्यार का सबूत देना है और प्यार का सबूत है समान बनना। और दूसरी बात क्या करनी है। यह वर्ष का होमवर्क दे रहे हैं। एक वर्क तो सुना। दूसरी बात – अपने चारों ओर के फाउण्डेशन को पक्का करो। एक भी बात में कमजोरी नहीं हो तभी माला के मणके बन पूज्य आत्मा वा राज्य अधिकारी आत्मा बनेंगे क्योंकि ब्राह्मण सो देवता बनना है। सिवाए ब्राह्मण के देवता नहीं बन सकते हैं। ब्राह्मणों से निभाना अर्थात् दैवी राज्य के अधिकारी बनना। तो परिवार से निभाना पड़ेगा।

हलचल को समाप्त करना पड़ेगा तब निश्चय और विजय दोनों की समानता हो जायेगी। यह अन्तर मिटाने का महामंत्र है। चारों ओर मज़बूत होना। चार ही निश्चय की परसेन्टेज समान बनाना है। समझा! होमवर्क स्पष्ट हुआ ना। अच्छे स्टूडेन्ट हो ना या कहेंगे कि अपने सेन्टर के होम में गये, प्रवृत्ति के होम में गये तो होम में ही होमवर्क रखकर आये। ऐसे तो नहीं कहेंगे ना। होशियार स्टूडेन्ट की निशानी क्या होती है? होमवर्क में भी नम्बरवन, तो प्रैक्टिकल पढ़ाई में भी नम्बरवन क्योंकि मार्क्स जमा होती है।

पिताश्री ब्रहमा परमात्मा ज्ञान देरहे ,Father Brahma teaching Godly Verses
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अच्छा और क्या रिजल्ट देखी? वर्तमान समय बच्चों की दो होशियारी देखी, अपनी होशियारी तो जानते होंगे ना? पहली होशियारी क्या देखी? स्व को देखना और पर को देखना। स्वदर्शन चक्रधारी बनना या पर दर्शन चक्रधारी बनना। दो बातें हैं ना। मैजारिटी किसमें होशियार हैं? बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि कई बच्चों की नजदीक की नज़र बहुत तेज हो रही हैं और कई बच्चों की फिर दूर की नज़र बहुत तेज हो रही है। लेकिन मैजारिटी की दूर की नज़र तेज है, नजदीक की नज़र कुछ ढीली है। देखना चाहते हैं लेकिन स्पष्ट देख नहीं पाते हैं और फिर होशियारी क्या करते हैं? कोई भी बात होगी तो अपने को सेफ रखने के लिए दूसरों की बात बड़ी करके स्पष्ट सुनायेंगे। अपनी बड़ी बात को छोटा करेंगे और दूसरे की छोटी बात को बड़ा करेंगे यह होशियारी मैजारिटी की देखी।

दूसरी होशियारी क्या देखी? आजकल एक विशेष भाषा बहुत यूज़ करते हैं कि हमसे असत्य देखा नहीं जाता, असत्य सुना नहीं जाता, इसलिए असत्य को देख झूठ को सून करके अन्दर में जोश आ जाता है। तो यह भाषा राईट है? अगर वह असत्य है और आपको असत्य को देख जोश आता है तो जोश सत्य है या असत्य है? जोश भी तो असत्य है ना! हम यह करके दिखायेंगे, यह चैलेन्ज करना राइट है? यह सदैव याद रखो कि सत्यता की निशानी क्या है! जो स्वयं सत्यता पर है और असत्य को खत्म करना चाहता है, लक्ष्य तो बहुत अच्छा है लेकिन असत्यता को खत्म करने के लिए अपने में भी सत्यता की शक्ति चाहिए। आवेशता या जोश यह सत्यता की निशानी है? सत्यता में जोश आयेगा? तो अगर झूठ को देख करके मुझे गुस्सा आता है, तो राईट है?

कोई आग लगायेगा तो सेक नहीं आयेगा कि सेक प्रुफ हो सकते हैं? अगर हमें नॉलेज है कि यह असत्यता की आग है और आग का सेक होता है तो पहले अपने को सेफ करेंगे ना कि सेक में थोड़ा सा जल भी जाए तो चलेगा, हर्जा नहीं। तो सदैव यह याद रखो कि सत्यता की निशानी है सभ्यता। अगर आप सच्चे हो, सत्यता की शक्ति आप में है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ेंगे, सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्ण। अगर सभ्यता को छोड़कर असभ्यता में आकरके सत्य को सिद्ध करना चाहते हो तो वह सत्य सिद्ध नहीं होगा। आप सत्य को सिद्ध करना चाहते हो लेकिन सभ्यता को छोड़ करके अगर सत्यता को सिद्ध करेंगे तो जिद्द हो जायेगा। सिद्ध नहीं।

असभ्यता की निशानी है जिद और सभ्यता की निशानी है निर्मान। सत्यता को सिद्ध करने वाला सदैव स्वयं निर्मान होकर सभ्यता पूर्वक व्यवहार करेगा। समझा, दूसरी होशियारी! ऐसे होशियार नहीं बनना। तो यह भी होमवर्क है कि ऐसी होशियारी को छोड़कर निर्मान बनो। बिल्कुल निर्मान। मैं राईट हूँ, यह रांग है यह निर्मानता नहीं है। दुनिया वाले भी कहते हैं कि सत्य को अगर कोई सिद्ध करता है तो कुछ न कुछ समाया हुआ है।

कई बच्चों की भाषा हो गई है, मैं बिल्कुल सच बोलता हूँ, 100 प्रतिशत सत्य बोलता हूँ। लेकिन सत्य को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। सत्य ऐसा सूर्य है जो छिप नहीं सकता। चाहे कितनी भी दीवारें कोई आगे लाये लेकिन सत्यता का प्रकाश कभी छिप नहीं सकता। सच्चा आदमी कभी अपने को यह नहीं कहेगा कि मैं सच्चा हूँ। दूसरा कहे कि आप सच्चे हो। अच्छा।

होली हँस - फरिश्ता स्वरुप , Holi swan - Angel Form
होली हँस – फरिश्ता स्वरुप , Holi swan – Angel Form

अभी क्या करेंगे? स्व परिवर्तन करना। दूसरे के परिवर्तन की चिन्ता नहीं करना, इसको शुभ चिन्तक नहीं कहा जाता है। फिर कहते हैं हम चिन्ता नहीं करते हैं, शुभ चिन्तक है ना! लेकिन स्व को भूल दूसरे के शुभ चिन्तक बनना इसको शुभ चिन्तक नहीं कहा जाता है। सर्व के साथ पहले स्व होना चाहिए। स्व नहीं और सर्व के शुभ चिन्तक बनने चलो तो तीर नहीं लगेगा, सफलता नहीं मिलेगी। पहले स्व और स्व के साथ सर्व यही बापदादा का बच्चों से दिल का प्यार है।

प्यार की निशानी है कि प्यार करने वाले की कोई कमी देख नहीं सकते। कोई कमी सुन नहीं सकेंगे उसको भी सम्पन्न बनायेंगे। यह है दिल का सच्चा प्यार। बापदादा दिलवाला है इसलिए दिल का प्यार है, हर एक बच्चे को समान और श्रेष्ठ देखने चाहते हैं। हर एक बच्चे को सफलता मूर्त देखना चाहते हैं। मेहनत मूर्त नहीं, सफलतामूर्त। अच्छा।

“चारों ओर के सदा निश्चयबुद्धि श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा निश्चय और विजय को समानता में लाने वाले तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा स्वमान में रह स्व परिवर्तन और सर्व के परिवर्तन के यथार्थ कल्याण की भावना रखने वाली आत्माओं को, सदा बाप के समान बन प्यार का सबूत देने वाली आत्माओं को, सदा यथार्थ रूहरिहान कर व्यर्थ बातों को समाप्त करने वाली आत्माओं को दिलवाला बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।“

वरदान:-     “निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने वाले स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव!”

कोई भी संकल्प वा संस्कार सेकण्ड में निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन हो जाए – इसके लिए सारे दिन में ट्रैफिक ब्रेक का अभ्यास चाहिए, क्योंकि व्यर्थ वा निगेटिव संकल्पों की गति बहुत फास्ट होती है। फास्ट गति के समय पावरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास करो। तब स्वयं के व्यर्थ को परिवर्तन कर स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन सकेंगे तथा अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा अनेक आत्माओं को सुख-शान्ति का वरदान दे सकेंगे।

स्लोगन:-    “ड्रामा के ज्ञान को स्मृति में रखने वाले ही नथिंगन्यु की विधि से विजयी बन सकते हैं।“ – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे.

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किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे

अच्छा – ओम् शान्ति।

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