08-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “बुद्धि को शुद्ध करने के लिए प्रवृत्ति में बहुत युक्ति से चलना है”

शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – तुम्हारी पढ़ाई बुद्धि की है, बुद्धि को शुद्ध करने के लिए प्रवृत्ति में बहुत युक्ति से चलना है, खान-पान की परहेज रखनी है”

प्रश्नः– ईश्वर की कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है कैसे?

उत्तर:- हर एक के कर्मों का हिसाब -किताब चुक्तू करवाने की कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है। कोई कितना भी अपने पाप कर्म छिपाने की कोशिश करे लेकिन छिप नहीं सकता। सजा जरूर भोगनी पड़ेगी। हर एक का खाता ऊपर में रहता है, इसलिए बाप कहते हैं – बाप का बनने के बाद कोई पाप होता है तो सच बताने से आधा माफ हो जायेगा। सजायें कम हो जायेंगी। छिपाओ मत। कहा जाता है कख का चोर सो लख का चोर…… छिपाने से धारणा हो नहीं सकती।

गीत:- “हम खुशनसीब कितने ,प्रभु का मिला सहारा….”,

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SHIV Incorporeal Father, शिव परमपिता परमात्मा
SHIV Incorporeal Father, शिव परमपिता परमात्मा

-: ज्ञान के सागर और पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-

अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली” (“मुरली” दुनिया भर में अपने बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं”)

“ओम् शान्ति”

शिव भगवानुवाच : किसकी याद में बैठे हो? बच्चे समझते हैं मात-पिता बापदादा अभी आयेंगे, आकर हम बच्चों को अपना वर्सा देंगे। बाबा से हम फिर से 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। यह तो हर एक के दिल में होगा ना। अभी इस नर्क रूपी भंभोर को आग लगने वाली है। तुम्हारा इस दुनिया वालों से कोई भी तैलुक नहीं है। तुम्हारे लिए ज्ञान भी गुप्त है तो वर्सा भी गुप्त है।

लौकिक बाप का वर्सा तो प्रत्यक्ष होता है। बाप की यह जायदाद है। आंखों से देखते हैं। बाप को भी देखते हैं और वर्से को भी देखते हैं। अब हमारी आत्मा भी गुप्त है। इन आंखों से न आत्मा को न परमात्मा को देख सकते हैं। लौकिक सम्बन्ध में अपने को शरीर समझ इनको (शरीर को) भी इन आंखों से देखते हैं और शरीर देने वाले बाप को भी देखते हैं। टीचर गुरू को भी देखते हैं यहाँ तो यह बाप टीचर गुरू सब है गुप्त।

शिव बाबा व ब्रह्मा बाबा, Shiv BABA & Brhama BABA
शिव बाबा व ब्रह्मा बाबा, Shiv BABA & Brhama BABA

बच्चे जानते हैं हम आत्माओं को अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। आगे तीसरा नेत्र नहीं था। आत्मा सोई पड़ी थी। अब आत्मा को जगाते हैं, तो आत्मा भी गुप्त है। जैसे आत्मा आकर शरीर में प्रवेश करती है वैसे शिवबाबा भी इस शरीर में आकरके हमको फिर स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं। बुद्धि भी कहती है हमने अनेक बार बाप से वर्सा लिया है – आधाकल्प के लिए। फिर आधाकल्प गँवा देते हैं। अब फिर से हम श्रीमत पर अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं।

श्रीमत देने वाला भी गुप्त है। तुम्हारी आत्मा जानती है कि हम परमपिता परमात्मा से गुप्त रूप से सुन रहे हैं। आत्म-अभिमानी जरूर बनना है। पहले आत्मा है, पीछे शरीर है। आत्मा अविनाशी, बाप भी अविनाशी। बाप जो शरीर लेता है वह विनाशी है। इस शरीर में आकर बच्चे-बच्चे कहते हैं और स्मृति दिलाते हैं कि मैं आया हूँ तुमको दैवी सतयुगी स्वराज्य के लिए पुरूषार्थ कराने। पुरूषार्थ भी पूरा करना है। सतयुग में सिर्फ तुम्हारा ही राज्य होगा। तुम राज्य करते थे। फिर पुनर्जन्म तो लेना होता है।

जो श्रीकृष्ण की वंशावली अथवा दैवी कुल के थे वही फिर रहेंगे। दूसरा फिर कोई नहीं होगा। चन्द्रवंशी कुल भी नहीं होगा। यह तो बहुत सहज बातें हैं समझने की। बरोबर सतयुग में कोई धर्म नहीं था। अभी तो ढेर धर्म हैं, आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। अनेक तालियाँ बजती रहती हैं। सतयुग में धर्म ही एक है तो ताली बजती नहीं।

World Mother , जगत अम्बा
World Mother – reveal the Father through your divine, sweet behaviour, जगत अम्बा -तुम्हें अपनी दैवी मीठी चलन से बाप का शो करना है

तो तुम बच्चे गुप्त ही अपना राज्य स्थापन कर रहे हो। हर एक कहेंगे हम अपने राज्य में ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। तो इतनी बहादुरी भी चाहिए। तुम्हारा नाम ही है शिव शक्तियाँ, शेर पर सवारी कोई होती नहीं है, यह महिमा दिखाई है इसलिए शक्ति को शेर पर बिठाते हैं। तुम कोई शेर पर तो नहीं बैठते हो। तुम तो माया पर जीत पाने वाले हो। यह पहलवानी दिखाते हो इसलिए तुम्हारा नाम शिव शक्ति सेना रखा है। यूँ तो गोप भी हैं परन्तु मैजारिटी माताओं की है। अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग से पवित्र प्रवृत्तिमार्ग में तुम ले जाते हो।

तुम जानते हो सतयुग विष्णुपुरी में हम बहुत सुखी थे। पवित्रता, सुख, शान्ति सब कुछ था। यहाँ तो कितना दु:ख है। घर में बच्चे कपूत होते हैं तो कितना तंग करते हैं। वहाँ तो सदैव हर्षित रहते हैं। तुम जानते हो बेहद का बाप फिर से बेहद का सुख देने आया है। बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में रहो सिर्फ बुद्धि में यह धारणा करो – यह पढ़ाई बुद्धि की है। घर में रहते श्रीमत पर चलो। खान-पान से भी असर लग जाता है इसलिए युक्ति से चलना है। हर एक का कर्मबन्धन अपना है।

कोई बांधेली है, कोई बन्धनमुक्त है। कोई तो चतुराई से भूँ-भूँ कर छुट्टी ले लेती हैं। युक्तियां तो बहुत समझाई हैं। बोलो बाप का फरमान है पवित्र बनो, मैं तुम्हें भक्ति का फल देने आया हूँ। तो जरूर भगवान की मत पर चलना पड़े तब ही बिगर सजा खाये हम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पायेंगे। जन्म-जन्मान्तर का बोझा सिर पर है। जैसे बाप एक सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं, वैसे सजायें भी एक सेकेण्ड में मिल जाती हैं, परन्तु भोगना बहुत होती है।

जैसे काशी कलवट खाते हैं तो वह थोड़े समय में बहुत सजायें खाते हैं परन्तु हिसाब-किताब चुक्तू हो जाता है। तुमको तो बिगर सजा खाये हिसाब-किताब चुक्तू करना है इसलिए ऐसा पुरूषार्थ करना चाहिए जो सजा न खानी पड़े। बाबा को याद करना अच्छा है। विनाश भी सामने खड़ा है। विनाश काले पाण्डवों की प्रीत बुद्धि। बाप ने सम्मुख आकर प्रीत रखवाई है। बाकी औरों से प्रीत रख क्या करेंगे! वह सब खलास हो जाने हैं। एक बाप को याद करने का हड्डी पुरूषार्थ करना है।

BK विश्व नवनिर्माण प्रदर्शनी, BK New world Exhibition
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बाहर से करके मित्र सम्बन्धियों से खुश खैराफत पूछी जाती है, परन्तु दिल एक बाप से। जिस्मानी आशिक माशूक घर में रहते एक दो को याद करते हैं। तुम आशिक बने हो शिवबाबा के। वह तुम्हारे सम्मुख है। वह तुमको याद करते, तुम उनको याद करो। शिवबाबा इस शरीर में आकर आत्माओं की सगाई स्वयं से कराते हैं। इसको कहा जाता है आत्माओं का परमपिता परमात्मा के साथ कल्याणकारी मेला। तुम ज्ञान गंगायें हो, ज्ञान सागर बाप एक है। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे।

बाप और कोई तकलीफ नहीं देते, सिर्फ पवित्र रहना है। काम महाशत्रु है, इन पर जीत पाने से तुम श्रीकृष्णपुरी के मालिक बनेंगे। बाप का फरमान है पवित्र बनो तो 21 जन्म की राजाई पायेंगे। पतित बनने से तो बर्तन मांजकर रहना अच्छा है। परन्तु देह-अभिमान न टूटने के कारण वर्से को भी गँवा देते हैं। देखो बाप कितना बड़ा है, पतित दुनिया, पतित शरीर में आया है। शिवबाबा को सोमनाथ के मन्दिर में पूज रहे हैं। वही बाबा इस समय देखो कितना साधारण बैठे हैं। अब परमात्मा खुद शिक्षा दे रहे हैं, इस पर भी नहीं चलेंगे तो पद को लकीर लगा देंगे।

बाप कहते हैं बच्चे पवित्र बनो। अभी सब भ्रष्टाचारी हैं, श्रेष्ठाचारी उनको कहा जाता है जो पवित्र रहते हैं। गवर्मेन्ट ने संन्यासियों का झुण्ड बनाया है कि तुम सबको श्रेष्ठाचारी बनाओ। परन्तु श्रेष्ठाचारी तो होते ही सतयुग में हैं। यहाँ कोई हो न सके। पवित्र ही श्रेष्ठ कहे जाते हैं। संन्यासी पवित्र हैं परन्तु फिर भी अपवित्र से जन्म लेते हैं क्योंकि है ही माया का राज्य। कोई योगबल से जन्म तो लेते नहीं हैं।

बाप बच्चों को समझाते हैं दिल हमेशा साफ रहनी चाहिए। जरा भी अंहकार न रहे। बिल्कुल गरीब बन जाना अच्छा है। बाप है गरीब निवाज़, वाह गरीबी वाह! गरीबों को साहूकार बनाना है। बाप कहते हैं भारत को गरीब से साहूकार बनाता हूँ। भारतवासी ही बनेंगे और बनेंगे वह जो श्रीमत पर चलेंगे। वही स्वर्ग के मालिक बन सकेंगे। बाप सहज राजयोग सिखलाते ही हैं श्रीकृष्णपुरी अथवा स्वर्ग का मालिक बनने के लिए।

FIVE VICES, पांच विकार
FIVE VICES, पांच विकार

बाप का फरमान है पवित्र बनो और कोई मनुष्य को हम गुरू नहीं मानते। जास्ती खिटपिट होती है पवित्रता पर। किसको मार मिलेगी, घर से निकाल देंगे तो वह क्या करेगी? बाप उनको शरण देते हैं, परन्तु ऐसे भी नहीं कि बाबा पास आकर फिर सम्बन्धी याद पड़े और नुकसान करते रहें। फिर दोनों जहानों से निकल जाते हैं। ज्ञान की धारणा नहीं करते तो सुधरते नहीं। पुरानी ही चाल चलते रहते हैं। यहाँ तो कोई भी पाप नहीं करना चाहिए।

तुमको तो पुण्य आत्मा बनना है। श्रीमत के आधार पर अपने आपसे पूछो – यह पाप है वा पुण्य है? बाबा समझाते हैं जो भी पाप किये हैं वह बाप को सुनाने से आधा पाप मिट जायेगा। बहुत बच्चे बताते हैं हमने यह किया है। यह गुनाह है, फलाने से पतित बने हैं। बाप तो जानते हैं ना कितने विकर्म किये हैं। समझाते हैं अभी कोई पाप नहीं करो, नहीं तो सज़ा एकदम सौगुणी हो जायेगी फिर धर्मराजपुरी में साक्षात्कार करायेंगे। तुम ऐसे-ऐसे पाप करके छिपाते थे। छिप तो नहीं सकता। भल नहीं देखते हैं, वह बाप तो अच्छी रीति जानते हैं ना। धर्मराज के पास सारा खाता रहता है। ईश्वरीय कारोबार बड़ी वन्डरफुल और गुप्त है।

कहते हैं ना – जरूर पाप किया है तब दूसरे जन्म में छी-छी घर में जन्म मिला है। तो जरूर जमा होता है ना। ऊपर में खाता तो है ना। अभी वह खाता यहाँ है इसलिए बाप समझाते रहते हैं कि अब कोई पाप नहीं करना। कख का चोर सो लख का चोर कहा जाता है। समझना चाहिए कि हम बहुत बड़ा पाप करते हैं फिर पद भ्रष्ट हो जायेंगे। धारणा नहीं होती तो ईश्वरीय सर्विस कर नहीं सकते औरों का भी कल्याण करना है। ऐसे समय बरबाद करेंगे, पाप करते रहेंगे तो पद कम हो पड़ेगा। फिर कल्प-कल्पान्तर के लिए वह पद हो जायेगा इसलिए जितना हो सके पुरूषार्थ करना है।

पूछते हैं बाबा के पास क्यों आते हो? कहते हैं सूर्यवंशी राजधानी का वर्सा लेने, तो श्रीमत पर जरूर चलना पड़े। देखना है कि मेरे से कोई बुरा काम वा पाप तो नहीं होता है? नहीं तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा, फिर दास दासी जाकर बनेंगे। यहाँ इसलिए थोड़ेही आये हो। मम्मा बाबा कहते हो तो नर से नारायण बनना चाहिए ना? बिगर धारणा के पद कैसे पायेंगे?

Brahman to deity, ब्राह्मण सो देवता
Brahman to deity, ब्राह्मण सो देवता

मम्मा बाबा कहते भी माँ बाप के तख्त पर न बैठे तो समझेंगे पूरा पढ़ते नहीं हैं। मम्मा बाबा तो नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते हैं ना। तुमको भी बाप वही पढ़ाते हैं ना। तो बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। बहुत हैं जो छिप-छिप करके पाप करते रहते हैं, बतलाते नहीं हैं। कितना भी समझाओ फिर भी छोड़ते नहीं। चोर को आदत पड़ जाती है तो चोरी बिगर, झूठ बोलने बिगर रह नहीं सकते। सच्चे बाप के साथ सच ही बोलना चाहिए। बाप को बतलाना चाहिए कि हमसे यह पाप हुआ है, क्षमा करो। माया ने पाप करा लिया। अच्छा फिर भी सच बोला है तो पाप आधा माफ हो सकता है। नहीं तो पाप बढ़ता ही जायेगा।

कोई कहते हैं धन्धे में पाप होता है। व्यापारी लोग पाप करते हैं तो धर्माऊ निकालते हैं कि पाप कम हो जाये। पाप करके फिर पुण्य में पैसा लगा दिया वह भी अच्छा ही है। डूबी नांव से लोहा निकले वह भी अच्छा। यह बाप तो स्वर्ग की स्थापना करते हैं तो सब पुण्य में ही चला जायेगा। दान पुण्य करने वाले को मिलता तो है ना। बाप हर एक को समझाते हैं, बाप हर एक बात में मत देते हैं तो बच्चों को कभी ऐसा काम नहीं करना चाहिए। परन्तु माया छोड़ती नहीं है।

अच्छी-अच्छी चीज़ देखेंगे तो झट खा लेंगे वा उठा लेंगे। ऐसे-ऐसे पाप कर्म करने से अपना ही पद भ्रष्ट कर लेते हैं। कई बच्चे बाबा-बाबा कह कर फिर हाथ छोड़ देते हैं। हाथ छोड़ा फिर क्या हाल होगा? माया एकदम ही कच्चा खा लेगी फिर वह कौड़ी का भी नहीं रहता। नम्बरवार तो होते हैं ना। सुखधाम में कोई तो राजाई करते हैं, कोई फिर साधारण भी होंगे। दास दासियां भी होंगी ना। अभी तुम बच्चों को बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा मिल रहा है, इसलिए बाप की श्रीमत पर चलकर पूरा वर्सा लो।

मौत तो सामने खड़ा है। अकाले मृत्यु तो होती है ना। एरोप्लेन गिरा तो सब मर गये। किसको पता था कि यह होगा। मौत सिर पर खड़ा है इसलिए कोशिश करके बाप से पूरा वर्सा लेना चाहिए। श्रीमत पर शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भल करो। साथ-साथ यह पढ़ाई भी पढ़ो। बाप युक्तियाँ तो सब बतलाते हैं। पुरूषार्थ कर पवित्र भी रहना है। झाड़ू लगाना, बर्तन मांजना अच्छा है – अपवित्र बनने से। परन्तु देही-अभिमानी बनना पड़े। पवित्रता का मान तो है ना। पवित्र नहीं बनेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे। यह सब बच्चों को समझानी दी जाती है। बच्चे तो वृद्धि को पाते रहेंगे। प्रजा भी बहुत बननी है। एक राजा को प्रजा तो हजारों की अन्दाज में चाहिए ना। राजा बनने में मेहनत है। अच्छा!

“मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) इस विनाशकाल में दिल की सच्ची प्रीत एक बाप से रखनी है। एक की ही याद में रहना है।

2) सच्चे बाप से सदा सच्चे रहना है। कुछ भी छिपाना नहीं है। देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। अपवित्र कभी नहीं बनना है।

वरदान:-     “दु:ख की लहरों से न्यारे रह प्रभू प्यार का अनुभव करने वाले खुशी के खजाने से सम्पन्न भव”

संगम के समय दु:ख के लहरों की कई बातें सामने आयेंगी लेकिन अपने अन्दर वो दु:ख की लहर दु:खी नहीं करे। जैसे गर्मी की मौसम में गर्मी होगी लेकिन स्वयं को बचाना अपने ऊपर है। तो दु:ख की बातें सुनते हुए भी दिल पर उसका प्रभाव न पड़े। जब ऐसे दु:ख की लहरों से न्यारे बनो तब प्रभू का प्यारा बनेंगे। जो ऐसे न्यारे और परमात्म प्यारे हैं वही खुशियों के खजाने से सम्पन्न रहते हैं।

स्लोगन:-    “त्रिकालदशी वा त्रिनेत्री वह है जो माया के बहुरूपों को सहज ही पहचान ले। – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे

अच्छा – ओम् शान्ति।

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