“बदनसीबी और खुशनसीबी अब इन दोनों शब्दों का मदार किस पर चलता है?”

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य :-

Ma Jagdamba , माँ जगदम्बा स्वरस्वती
Ma Jagdamba , माँ जगदम्बा स्वरस्वती

यह तो हम जानते हैं कि खुशनसीब बनाने वाला परमात्मा है, तो बदनसीब बनाने वाला खुद ही मनुष्य है। जब मनुष्य सर्वदा सुखी है तो उन्हों की अच्छी किस्मत कहते हैं और जब मनुष्य अपने को दु:खी समझते हैं तो वो अपने को बदनसीब समझते हैं। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि बदनसीबी वा खुशनसीबी कोई परमात्मा द्वारा मिलती है, नहीं। तकदीर को बिगाड़ना वा बनाना, यह सब कर्मों के ऊपर ही मदार है। यह सब मनुष्यों के संस्कारों के ऊपर ही है। फिर जैसे पाप और पुण्य का संस्कार भरता है वैसे तकदीर बनती है परन्तु मनुष्य इस राज़ न जानने के कारण परमात्मा के ऊपर दोष रखते हैं।

अब देखो, मनुष्य अपने को सुखी रखने के लिये कितने माया के तरीके निकालते हैं फिर उस ही माया से कोई अपने को सुखी समझते हैं और कोई फिर उस ही माया का संन्यास कर माया को छोड़ने से अपने को सुखी समझते हैं। मतलब तो कई प्रकार के प्रयत्न करते हैं परन्तु इतने तरीके करते भी रिजल्ट दु:ख के तरफ जा रही है। जब सृष्टि पर भारी दु:ख होता है तब उसी समय स्वयं परमात्मा आए गुप्त रूप में अपने ईश्वरीय योग पॉवर से दैवी सृष्टि की स्थापना कराए सभी मनुष्य आत्माओं को खुशकिस्मत बनाते हैं।

Extreme Joy, स्नेही योगी
Extreme Joy, स्नेही योगी

मनुष्य गाते हैं – तुम मात पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे… अब यह महिमा किसके लिये गाई हुई है? अवश्य परमात्मा के लिये गायन है क्योंकि परमात्मा खुद माता पिता रूप में आए इस सृष्टि को अपार सुख देता है। परमात्मा ने जरूर कभी तो सुख की सृष्टि बनाई है तभी तो उनको माता पिता कहकर बुलाते हैं।

परन्तु मनुष्यों को यह पता ही नहीं कि सुख क्या चीज़ है? जब इस सृष्टि पर अपार सुख थे तब शान्ति भी थी, परन्तु अब वो सुख नहीं हैं। अब मनुष्य के अन्दर यह चाहना उठती है कि वो सुख हमें चाहिए, फिर कोई धन पदार्थ मांगते हैं, कोई बच्चे मांगते हैं, कोई तो फिर ऐसे भी मांगते हैं कि हम पतिव्रता नारी बनें, जब तक मेरा पति जिंदा है, हम दुहागिन (विधवा) न बनें। तो चाहना तो सुख की ही रहती है ना।

तो परमात्मा भी कोई समय उन्हों की आश अवश्य पूर्ण करेंगे। सतयुग के समय जब सृष्टि पर स्वर्ग है तो वहाँ सदा सुख है, जहाँ स्त्री कभी दुहागिन नहीं बनती। तो वो आश सतयुग में पूर्ण होती है जहाँ अपार सुख है। बाकी तो इस समय है ही कलियुग। इस समय तो मनुष्य दु:ख ही दु:ख भोगते हैं।

दु:खी मनुष्य फिर कह देते हैं कि प्रभु का भाना मीठा करके भोगना है। परन्तु वह कभी किसको दु:ख नहीं दे सकते। वह हमारे सारे कर्मों का खाता चुक्तू कराते हैं तब ही हम कहते हैं तुम मात पिता हम बालक तेरे…। 

अच्छा – ओम् शान्ति।

SOURSE: 19-5-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.

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