25-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “तुम कर्मयोगी हो कर्म करते हुए बाप की याद में रहो”

शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – तुम कर्मयोगी हो कर्म करते हुए बाप की याद में रहो, याद में रहने से कोई भी विकर्म नहीं होगा”

प्रश्नः– बाप से बुद्धियोग न लगने का मुख्य एक कारण है – वह कौन सा?

उत्तर:- लोभ। कोई भी विनाशी चीज़ों में लोभ होगा, खाने का वा पहनने का शौक होगा तो उनकी बुद्धि बाप से नहीं लग सकती इसलिए बाबा विधि बताते हैं बच्चे लोभ रखो – बेहद के बाप से वर्सा लेने का। बाकी किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखो। नहीं तो जिस चीज़ से अधिक प्यार होगा वही चीज़ अन्त में भी याद आयेगी और पद भ्रष्ट हो जायेगा।

गीत:- जाग सजनियाँ जाग… WAKE UP LOVERS WAKE UP…….”,

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-: ज्ञान के सागर और पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-

अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”(अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं”)

I AM A SOUL, मै आत्मा हूँ।
I AM A SOUL, मै आत्मा हूँ।

“ओम् शान्ति”

शिव भगवानुवाच : अभी यह तो बच्चे जानते हैं यूँ तो सारी दुनिया में सब कहते हैं कि हम सभी आपस में भाई-भाई हैं। वी आर आल ब्रदर्स। परन्तु क्यों नहीं उन आत्माओं को यह समझ में आता है कि हम बाप के बच्चे हैं। वह रचयिता है, हम रचना हैं। जानवर तो नहीं कहेंगे हम ब्रदर्स हैं। मनुष्य ही समझते हैं और कहते भी हैं कि हम सब ब्रदर्स हैं। रचता बाप एक है। उसको कहा जाता है परमपिता परमात्मा। ऐसे हो नहीं सकता कि बहन को भाई कहें। जब सब अपने को आत्मा समझते हैं तब कहते हैं हम आपस में भाई-भाई हैं।

सिवाए आत्मा के और कुछ हो नहीं सकता। एक बाप के जिस्मानी बच्चे तो इतने नहीं हो सकते। अभी तुमको अच्छी तरह याद है कि हम आपस में भाई-भाई हैं। बाप बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। भगवानुवाच – हे बच्चों, तो बहुतों को पढ़ाते हैं ना। सिर्फ ऐसे नहीं कहेंगे हे अर्जुन, एक का नाम नहीं लेंगे। सबको पढ़ाते हैं। स्कूल में मास्टर कहेंगे ना – हे बच्चों, अच्छी तरह पढ़ो। हैं तो स्टूडेन्ट। परन्तु टीचर बड़ा, बुजुर्ग है इसलिए स्टूडेन्ट को बच्चे-बच्चे कहते हैं।

वहाँ कोई अपने को आत्मा तो समझते नहीं हैं। वहाँ तो जिस्मानी सम्बन्ध ही रहता है। जैसे गांधी को बापू का मर्तबा दे दिया है। मेयर को भी फादर कहते हैं। ऐसे मर्तबे तो बहुतों को देते हैं। यहाँ तो तुम समझते हो हम आत्मायें भाई-भाई हैं। तो भाईयों का बाप जरूर चाहिए। सब आत्मायें जानती हैं वह हमारा बाप है जिसको गॉड फादर कहते हैं। यह आत्मा ने कहा हमारा गॉड फादर। लौकिक फादर को गॉड नहीं कहेंगे।

तुम जानते हो हम आत्मा हैं। बाबा हमको पढ़ाने आये हैं अर्थात् पतितों को पावन बनाने आये हैं। हमको पतित से पावन बनाकर और फिर पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं। यह बातें कोई भी जानते नहीं। यहाँ तुम बच्चे जानते हुए भी फिर कर्म करने में भूल जाते हो। याद में रहो तो विकर्म नहीं होगा।कर्मयोगी तो तुम हो ही।

Threeloks-THREE Worlds ,त्रिलोक
Threeloks-THREE Worlds ,त्रिलोक

संन्यासियों का है कर्म संन्यास। सिर्फ ब्रह्म तत्व से योग लगाते हैं। परन्तु सारा दिन तो योग लगा नहीं सकते। ब्रह्म में जाने के लिए योग रखते हैं। समझते हैं ब्रह्म को याद करने से हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। परन्तु सारा दिन तो ब्रह्म को याद कर नहीं सकते और उस याद से विकर्म भी विनाश नहीं होते हैं।

गाया हुआ है पतित-पावन। वह तो बाप ही है। ऐसे तो नहीं कहते पतित-पावन ब्रह्म अथवा पतित-पावन तत्व। सब बाप को ही पतित-पावन कहते हैं। ब्रह्म को कोई फादर नहीं कहते। न ब्रह्म की कोई तपस्या करते। शिव की तपस्या करते हैं। शिव का मन्दिर भी है। तत्व का मन्दिर बन सकेगा क्या? ब्रह्म में तो अण्डे सदृश्य आत्मायें रहती हैं इसलिए शास्त्रों में ब्रह्माण्ड कहा है। यह नाम कोई है नहीं। वो घर है, जैसे आकाश तत्व में कितने साकारी मनुष्य रहते हैं वैसे वहाँ फिर आत्मायें रहती हैं।

तुम बच्चे जानते हो बाबा से हम ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज ले सारे राज़ को जानकर, सारे झाड़ की नॉलेज समझकर मास्टर बीजरूप बन जाते हैं। परमपिता परमात्मा में सारी नॉलेज है, हम उनके बच्चे हैं। वह बैठ समझाते हैं। इस कल्प वृक्ष की उत्पत्ति, पालना और संहार कैसे होता है, उत्पत्ति कहने से जैसे नई दुनिया उत्पन्न करते हैं। स्थापना अक्षर ठीक है। ब्रह्मा द्वारा पतितों को पावन करते हैं। पतित-पावन अक्षर जरूर चाहिए। सतयुग में सब सद्गति में हैं, कलियुग में सब दुर्गति में हैं। क्यों, कैसे दुर्गति हुई? यह कोई को पता नहीं।

गाते भी हैं सर्व का सद्गति दाता एक है। आत्मा समझती है – यह एक खेल है। बाप की महिमा गाते हैं “सदा शिव।” सुख देने वाला शिव, गाते भी हैं दु:ख हर्ता सुख कर्ता। भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अब तो नहीं है। लक्ष्मी-नारायण को भगवती भगवान कहते हैं, उन्हों की राजधानी किसने स्थापन की? भगवान निराकार है, उनसे आत्मायें वर्सा पाती हैं। आत्मा ही 84 जन्म लेते-लेते गिरती आती है। गिरते-गिरते दुर्गति को पाती है।

Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव
Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव

यह बात समझानी है, परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है। वह बाप सद्गति दाता है, हम सब भाई-भाई हैं, न कि बाप। ऐसे थोड़ेही कहा जाता है – फादर ने ब्रदर्स का रूप धरा है। नहीं, इसलिए पहले यह बताओ कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? लौकिक सम्बन्ध को तो सब जानते हैं। आत्माओं का है निराकार बाप। उनको हेविनली गॉड फादर कहते हैं। फादर ने जरूर नई रचना का मालिक बनाया होगा। अभी हम मालिक नहीं हैं।

हम सुखी थे। दु:खी किसने बनाया? यह नहीं जानते। आधाकल्प से रावण का राज्य चला है तो भारत की यह हालत हुई है। भारत परमपिता परमात्मा की बर्थ प्लेस है। भारत में भगवान आया है। जरूर स्वर्ग स्थापन किया होगा। शिव जयन्ती भी मनाई जाती है। तुम लिख भी सकते हो – हम फलाना बर्थ डे मना रहे हैं। तो मनुष्य वन्डर खायेंगे, यह क्या कहते हैं? बधाई भी दो।

बताओ हम पतित-पावन, सद्गति दाता परमपिता परमात्मा शिव की जयन्ती मना रहे हैं। उस दिन बहुत शादमाना करना चाहिए। सर्व के सद्गति दाता की जयन्ती कम बात है क्या? एरोप्लेन द्वारा पर्चे बड़े-बड़े शहरों में गिराने चाहिए। तो अखबारों में भी पड़ेगा। बहुत सुन्दर-सुन्दर कार्ड बनाने चाहिए।

मोस्ट बील्वेड बाप की बहुत महिमा लिखनी चाहिए। भारत को फिर से स्वर्ग बनाने आया है। वही बाप राजयोग सिखला रहे हैं। वर्सा भी वही देते हैं। शिव जयन्ती के कार्ड बहुत अच्छे सुन्दर छपाने चाहिए। प्लास्टिक पर भी छप सकते हैं। परन्तु अजुन छोटी बुद्धि हैं, राजा रानी तो कोटों में कोई बनेगा। बाकी जरूर अलबेले जो होंगे वह प्रजा बनेंगे। माला 108 की है, बाकी प्रजा तो बहुत होगी। ऐसे भी नहीं हम तो अलबेले हैं, खूब पुरुषार्थ करना चाहिए।

बाबा समझाते बहुत हैं परन्तु अमल में मुश्किल लाते हैं। यहाँ अपने को अल्लाह के बच्चे समझते हैं, बाहर निकलने से माया उल्लू बना देती है, इतनी कड़ी माया है। राजाई लेने वाले थोड़े निकलते हैं। चन्द्रवंशी को भी हम नापास कहेंगे। तुम सबकी पढ़ाई और पद को जानते हो। दुनिया में रामचन्द्र के पद को कोई जानता होगा?

शिव परमात्मा रचता - शंकर उनकी रचना , Shiva is the creator - Shankar his Creation
शिव परमात्मा रचता – शिव परमात्मा रचता – शंकर उनकी रचना , Shiva the Creator – Shankar his Creation

बाबा अच्छी तरह समझाते हैं कैसे हम शिव जयन्ती के लिए फर्स्टक्लास निमंत्रण बनावें जो मनुष्य चक्रित हो जाएं। विचार सागर मंथन गाया हुआ है। शिवबाबा को थोड़ेही विचार सागर मंथन करना है। यह बच्चों का काम है। बाबा राय देते हैं – किसकी बुद्धि में आये और काम न करे तो बाबा उनको अनाड़ी कहेंगे। बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा हमको ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी का मालिक बना रहे हैं। शंकर द्वारा विनाश होना है। त्रिमूर्ति ऊपर खड़ा है।

तुम सब पण्डे हो जो रूहानी यात्रा सिखलाते हो। तुम भी लिख सकते हो – सत्य मेव जयते… बरोबर सत्य बाबा हमको विजय पाना सिखलाते हैं अथवा विजय प्राप्त कराते हैं। कोई एतराज उठावे तो उनको समझाना है। बाबा का ख्याल चला कि शिव जयन्ती कैसे मनानी चाहिए। गीता का भगवान शिव है, न कि श्रीकृष्ण, इसका बहुत प्रचार करना है। वह रचयिता, वह रचना।

वर्सा किससे मिलेगा? श्रीकृष्ण है पहली रचना। दिखाया है सागर में पीपल के पत्ते पर श्रीकृष्ण आया। यह है गर्भ महल की बात। स्वर्ग में गर्भ महल में मौज रहती है। यहाँ नर्क में गर्भ जेल में फथकते हैं। सतयुग में गर्भ महल, कलियुग में गर्भ जेल होता है। श्रीकृष्ण का चित्र कितना अच्छा है। नर्क को लात मार रहे हैं। श्रीकृष्ण के 84 जन्म भी लिखे हुए हैं। भगवानुवाच, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको बतलाता हूँ। तो जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं उनको ही समझाता हूँ। कितना सहज है। साथ में मैनर्स भी चाहिए।

लोभ रखना चाहिए – बेहद के बाप से वर्सा लेने का और कोई चीज़ का लोभ नहीं इसलिए ऐसी कोई चीज़ अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो बुद्धि जाये। नहीं तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। देह सहित जो कुछ है सबसे बुद्धि निकालनी है। एक बाप को याद करना है। कोई मनुष्य बहुत फर्नीचर रखने वाला होगा तो मरने समय वह याद आता रहेगा। जिस वस्तु से जास्ती प्यार होगा वह पिछाड़ी में याद जरूर आयेगी।

बाप बच्चों को समझाते हैं कोई भी चीज़ लोभ के वश छिपाकर मत रखो। यज्ञ से हर चीज़ मिल सकती है। छिपाके कुछ रखा तो बुद्धि जरूर लटकेगी। बाबा का फरमान है – शिवबाबा का भण्डारा है – बच्चों को सब कुछ मिलना है। ऐसा भी ख्याल नहीं आना चाहिए कि फलाने को साड़ी अच्छी पड़ी है, हम भी पहनें। अरे तुम बाप से राजाई का वर्सा लेने आई हो कि साड़ी का वर्सा लेने आई हो? जो अच्छी सर्विस करते हैं उन पर सब कुर्बान जाते हैं। बोलो, हम सिवाए शिव के भण्डारे से मिले हुए और कुछ पहन नहीं सकती। हम यज्ञ से ही लेंगी तो बाबा की याद रहेगी।

Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग
Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग

शिवबाबा के भण्डारे से यह मिला। नहीं तो चोरी आदि की आदत पड़ जाती है। अरे यहाँ सेक्रीफाइज (त्याग) करेंगे तो वहाँ बहुत फर्स्टक्लास चीज़ें मिलेंगी। शिवबाबा कहाँ-कहाँ बच्चों की परीक्षा भी लेते हैं। देखें कितना देह-अभिमान है। तुम्हारा वायदा है – जो खिलायेंगे, जो पहनायेंगे… आदि। दिल में समझना चाहिए – यह शिवबाबा देते हैं। इतनी फर्स्टक्लास अवस्था होनी चाहिए। बाबा से पूरा वर्सा लेना है तो श्रीमत पर पूरा-पूरा पुरूषार्थ करो। बाबा की राय पर चलो। बाबा मम्मा कहते हो तो पूरा-पूरा फालो करो।

सबको रास्ता बताओ। बाबा से वर्सा मिला था, अब फिर मिल रहा है। याद की यात्रा करते रहो। बाबा समझाते हैं – तुम जितना रूसतम बनेंगे उतना माया ज़ोर से आयेगी। तुम मूँझते क्यों हो? कोई-कोई बच्चे को बाबा लिखते हैं तुम तो बहुत अच्छी सर्विस करने वाले हो।

माया के तूफान आयेंगे – क्या सारी आयु ब्रह्मचर्य में रहेंगे? बुढ़ापे में भी आकर चकरी लगेगी। शादी करें, यह करें। माया बूढ़े को भी जवान बना देगी। ऐसा फथकायेगी। तुम डरते क्यों हो? भल कितना भी तूफान आये, बाबा को याद करने से बच जायेंगे। अच्छा!

“मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) लोभ के वश कोई भी चीज़ छिपाकर अपने पास नहीं रखनी है। बाप के फरमान पर चलते रहना है।

2) बाबा जो खिलाये, जो पहनाये, एक शिवबाबा के भण्डारे से ही लेना है। देह-अभिमान में नहीं आना है। मम्मा बाबा को पूरा फालो करना है।

वरदान:-     “सर्व खजानों को बांटते और बढ़ाते सदा भरपूर रहने वाले बालक सो मालिक भव”

बाप ने सभी बच्चों को एक जैसा खजाना देकर बालक सो मालिक बना दिया है। खजाना सबको एक जैसा मिला है लेकिन यदि कोई भरपूर नहीं है तो उसका कारण है कि खजाने को सम्भालना वा बढ़ाना नहीं आता है। बढ़ाने का तरीका है बांटना और सम्भालने का तरीका है खजाने को बार-बार चेक करना। अटेन्शन और चेकिंग – यह दोनों पहरे वाले ठीक हों तो खजाना सदा सेफ रहता है।

स्लोगन:-    “हर कर्म अधिकारीपन के निश्चय और नशे से करो तो मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे

अच्छा – ओम् शान्ति।

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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल” को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।

खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस सेंटर मेरे आस पास”.

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