30-7-2022 ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली: “जीते जी सच्चे परवाने बनो।”

“मीठे बच्चे – इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर में कोई मज़ा नहीं है, इसलिए इससे जीते जी मरकर बाप का बन जाओ, सच्चे परवाने बनो”

प्रश्नः– संगमयुग का फैशन कौन सा है?

उत्तर:- इस संगमयुग पर ही तुम बच्चे यहाँ बैठे-बैठे अपने ससुर घर वैकुण्ठ का सैर करके आते हो। यह संगमयुग का ही फैशन है। सूक्ष्मवतन का राज़ भी अभी ही खुलता है।

प्रश्नः– किस विधि से गरीबी वा दु:खों को सहज ही भूल सकते हो?

उत्तर:- अशरीरी बनने का अभ्यास करो तो गरीबी वा दु:ख सब भूल जायेंगे। गरीब बच्चों के पास ही बाप आते हैं साहूकार बनाने। गरीब बच्चे ही बाप की गोद लेते हैं।

गीत:- महफिल में जल उठी शमा…….. , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.

“ओम् शान्ति”

आत्माओं की प्रीत बनती है अपने पारलौकिक बाप परमपिता परमात्मा से। जानते हैं बाबा हमको यहाँ से ले जायेंगे। किसकी आत्मा शरीर छोड़ जाने लगती है तो मेहनत करते हैं। जैसे सावित्री सत्यवान की कहानी बताते हैं। उनकी आत्मा के पिछाड़ी कितना लटक पड़ी कि फिर शरीर में आ जाए। परन्तु उनमें ज्ञान तो था नहीं। तुम्हारे में ज्ञान है, हम हर एक की प्रीत भी है उस परमपिता परमात्मा से। प्रीत क्यों बनी हैं? मर जाने के लिए। यह प्रीत तो बहुत अच्छी है बाप की। आत्मायें आधाकल्प भक्ति मार्ग में ठोकरें खाती हैं कि हम अपने शान्तिधाम घर में जायें। है भी बरोबर।

बाप भी कहते हैं अशरीरी बनो, मर जाओ। आत्मा शरीर से अलग हो जाती है तो उसको मर जाना कहा जाता है। बाप समझाते हैं बच्चे इस दुनिया अथवा इस बन्धन से मर जाओ अर्थात् मेरा बन जाओ। इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर में कोई मज़ा नहीं है। यह तो बहुत छी-छी दुनिया है। बरोबर रौरव नर्क है। तुम बच्चों को कहते हैं अब मेरे बन जाओ। मैं आया हूँ सुखधाम में ले जाने, जहाँ दु:ख का नाम नहीं रहता इसलिए इस शमा पर खुशी से परवाने बन जाओ। परवाने खुशी से आते हैं ना – दौड़-दौड़ कर। कोई ऐसे पतंगे होते हैं ज्योति जलती है तो जन्मते हैं, बत्ती बुझती है तो मर जाते हैं।

अचल अडोल शिव ज्योति , unwavering energy
अचल अडोल शिव ज्योति , unwavering energy

दीप माला पर ढेर छोटे-छोटे पतंगे हरे रंग के होते हैं। बत्ती पर फिदा होते हैं। बत्ती गई और यह मरे। अब यह तो बड़ी शमा है। बाप कहते हैं तुम भी पतंगे मिसल फिदा हो जाओ। तुम तो चैतन्य मनुष्य हो जो भी देह के बन्धन हैं, यह जीते जी छोड़ दो। अपने को आत्मा समझ मेरे साथ योग लगाओ। खुशी में रहो तो इस शरीर का भान छूट जायेगा। हम आत्मा इस दुनिया को छोड़कर अपने घर जाती हैं। यह दुनिया अब कोई काम की नहीं है, इससे दिल नहीं लगाओ। इस दुनिया में बहुत गरीब हैं। गरीब ही दु:खी होते हैं।

बाप कहते हैं बच्चे अब अशरीरी बनो। हम आत्मा वहाँ शान्तिधाम में रहने वाली हैं। अभी तो उस शान्तिधाम में कोई जा नहीं सकते हैं, जब तक पवित्र नहीं बने हैं। इस समय सभी के पंख टूटे हुए हैं। सबसे जास्ती पंख उनके टूटे हुए हैं जो अपने को भगवान मान बैठे हैं। तो वह ले कहाँ जायेंगे। खुद ही नहीं जा सकते हैं तो तुम्हारी सद्गति कैसे करेंगे इसलिए भगवान ने कहा है कि इन साधुओं का भी मुझे उद्धार करना है।

सिर्फ वह समझते हैं कृष्ण भगवानुवाच परन्तु है शिव भगवानुवाच। शिव है ही अशरीरी। तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा के मुख से ही समझायेंगे। मनुष्यों की रचना प्रजापिता ब्रह्मा से होती है। यह तो सब मानते हैं। कोई से भी पूछो उनको महसूस हो कि बरोबर बाप बच्चों को किसलिए रचते हैं। बाप रचते हैं वर्सा देने के लिए। ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों को रचा है। तुम जानते हो बाप हमें पढ़ाते हैं, राजयोग सिखलाते हैं स्वर्ग का मालिक बनाने के लिए, बाप आते हैं दुनिया को बदलने। नर्क को स्वर्ग बनाने। मनुष्य सृष्टि को दैवी सृष्टि बनाने। वही सुख देने आयेंगे ना।

भल यहाँ मनुष्य पदमपति हैं, महल माड़ियां हैं, परन्तु तुम जो पढ़ाई पढ़ते हो उससे तुम बड़ा ऊंच पद पाते हो। जिस्मानी पढ़ाई वाले समझेंगे हम बैरिस्टर बनते हैं। हम आई.ए.एस. बनते हैं। तुम्हारी बुद्धि में है हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं विश्व का मालिक बनाने लिए। कितना ऊंच ते ऊंच पद है, सो भी 21 जन्म कभी रोगी नहीं बनते हैं। अकाले मृत्यु नहीं होती है। परन्तु किसकी? जो परवाने बाप को अपना बनाते हैं। बाप की गोद लेते हैं। साहूकार तो गरीब की गोद नहीं लेंगे। गरीब के बच्चे साहूकार की गोद लेंगे। अभी तो सब बिल्कुल गरीब हैं। तुम जानते हो यह महल माड़ियाँ आदि सब खत्म हो जायेंगी, मिट्टी में मिल जायेंगी। हम ही विश्व के मालिक बनने वाले हैं। मालिक थे, अब नहीं हैं फिर मालिक बनेंगे। सारी सृष्टि का मालिक और कोई बनते नहीं हैं।

विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel
विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel

तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो 21 जन्म के लिए। सुख तो सबके लिए है। यहाँ तो छोटी आयु वाले ही मर जाते हैं। बहुत ऐसे भी होते हैं जो राजा के पास जन्म लेते ही मर पड़ते हैं। राजाई जैसे जन्म लेने तक ही मिली। अभी तुम बच्चे जानते हो यहाँ हम बैठे हैं बेहद बाप के आगे। आत्मा शरीर धारण कर पार्ट बजाती रहती है। अभी जानते हैं हमारी आत्मा का बाप आया हुआ है। पुराने बन्धन से छुड़ाय नये सम्बन्ध में जुटाने के लिए। बरोबर तुम सूक्ष्मवतन, वैकुण्ठ आदि में जाते हो, मिलते जुलते हो। तुम्हारा कनेक्शन हो गया है बेहद का। यह कैसा अच्छा फैशन हो गया है। अपने ससुरघर जा सकते हो।

मीरा का भी वैकुण्ठ ससुरघर था ना। चाहती थी ससुरघर (वैकुण्ठ) जायें। यह ससुर घर नहीं है। यहाँ तो बिल्कुल गरीब हैं। कुछ भी तुम्हारे पास नहीं है। भारत हमारा बहुत ऊंचा देश है। सोने का भारत था, अब नहीं है। जब था उसकी महिमा करते हैं। अभी तो सोने की क्या हालत हो गई है। जेवर आदि सब ले लेते हैं। बिचारे छिपाकर रखते हैं, कहाँ डाकू न लूट जाये। वहाँ तो बेशुमार सोना होगा। निशानियाँ भी लगी हुई हैं। सोमनाथ के मन्दिर में निशानियाँ हैं। मणियाँ आदि कब्रों में मुसलमानों ने जाकर लगा दी। अंग्रेज लोग भी ले गये। निशानियां लगी हुई हैं। तो भारत कितना साहूकार था। अब देखो भारत का क्या हाल है।

अभी तुम बच्चे जानते हो बाप के बने हैं, स्वर्ग का मालिक बनने। बाबा आया हुआ है। आगे भी आया था। शिवरात्रि मनाते हैं। अब रात्रि कृष्ण की भी कहते हैं। शिव की रात्रि भी कहते हैं। है जरा सा फ़र्क। इन बातों को अब तुम बच्चे जानते हो, कृष्ण का जन्म तो दिन में हो वा रात में हो – इसमें रखा ही क्या है? रात्रि कृष्ण की मनाना वास्तव में रांग है, रात्रि है शिव की। परन्तु यह है बेहद की बात और है भी शिव भगवानुवाच। उन्होंने शिव को भूल कृष्ण की रात्रि लिख दी है। जब रात पूरी हो तब दिन शुरू हो। बाप आते ही हैं बेहद का दिन बनाने।

ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। ब्रह्मा कहाँ से आया? गर्भ से तो नहीं निकला। ब्रह्मा के माँ बाप कौन? कितनी विचित्र बात है। बाप एडाप्ट करते हैं। इनको माँ भी बनाते हैं, बच्चा भी बनाते हैं। माँ ही एडाप्ट करती है इसलिए गाया जाता है तुम मात-पिता… हम सब आत्मायें आपके बच्चे हैं। आत्मा ही पढ़ती है, इन आरगन्स से सुनती है। बच्चों को यह याद भूल जाती है। देह-अभिमान में आ जाते हैं।

Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग
Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग

बाप समझाते हैं – तुम आत्मा अविनाशी हो। शरीर विनाशी है। बाबा ने समझाया है – मुझे याद करो। यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, जो हीरे तुल्य है। जो बाप के बनते हैं उनका हीरे तुल्य जन्म है। तुम्हारी आत्मा शरीर के साथ परमपिता परमात्मा की बनी है। अब आत्मा हीरे जैसा बनती है अर्थात् प्योर सोना बनती है 24 कैरेट। अभी तो कोई कैरेट नहीं रहा है। अभी तुम बच्चों को सम्मुख बैठ सुनने से मधुबन की भासना आती है। यहाँ ही मुरली बजती है। भल बाबा कहाँ जाता भी है परन्तु इतना मज़ा नहीं आयेगा, क्योंकि मुरली सुनकर फिर मित्र-सम्बन्धी आदि माया के राज्य में चले जाते हो।

यहाँ तो भट्ठी में रहते हो। यहाँ तो राजाई की प्राप्ति के लिए पढ़ रहे हो। यह तुम्हारे रहने के लिए हॉस्टल है। घर के भी और बाहर के भी कितने आकर रहते हैं। यहाँ तुम स्कूल में बैठे हो। गोरखधन्धा आदि कुछ भी नहीं है। आपस में ही चिटचैट करते रहते हैं। एक तरफ है सारी दुनिया, दूसरी तरफ हो तुम।

बाप बैठ समझाते हैं तुम आत्माओं का प्रीतम एक है। आत्मा ही उनको याद करती है। भक्ति में कितना भटकते हैं, निराकार बाप से मिलने के लिए क्योंकि दु:खी हैं। सतयुग में भटकते नहीं हैं। अभी तो कितने ढेर चित्र बनाये हैं, जिसको जो आया वह चित्र बनाया। गुरूओं का कितना मान है। समझते हैं जैसे वह गुरू लोग हैं वैसे यहाँ भी यह गुरू हैं। जैसे साधू वासवानी पहले टीचर था, पीछे साधू बना। गरीबों की सेवा की। अभी उनके पास कितने लाखों रूपये आते हैं। मनुष्य समझते हैं जैसे और आश्रम हैं वैसे यह भी आश्रम है। परन्तु तुम समझते हो यहाँ बाप आते ही ब्रह्मा के तन में हैं। जरूर ब्रह्माकुमार कुमारियां चाहिए। ब्रह्मा के मुख वंशावली चाहिए ना, जो रूद्र यज्ञ रचें। यह है रूद्र शिवबाबा का यज्ञ। अब एक को ही याद करना है। यहाँ तो मनुष्य से देवता बनने की बात है।

Paradice -Satyug , स्वर्ग - सतयुग
Paradice -Satyug , स्वर्ग – सतयुग

ऐसा कोई सतसंग नहीं है जहाँ यह बात हो कि मनुष्य से देवता बनना है। तुमको ही स्वर्ग की बादशाही मिलती है। तुम्हारी बात से मनुष्य हँस पड़ते हैं कि यह कैसे हो सकता। फिर जब पूरा समझते हैं फिर कहते हैं कि बात राइट है। बरोबर भगवान बाप है ना। बाप से वर्सा मिलता है। हम विश्व के मालिक थे। अब देखो क्या हाल है। किसको भी बोलो वह तो बाप है, स्वर्ग रचता है फिर तुम स्वर्ग के मालिक क्यों नहीं बनते हो। नर्क में क्यों बैठे हो। अभी तो रावण राज्य है, सतयुग में रावण होता ही नहीं। अहिंसा परमो धर्म है। उनको विष्णुपुरी कहते हैं। परन्तु समझते नहीं कि विष्णुपुरी माना स्वर्गपुरी।

तुम बच्चे जानते हो विष्णुपुरी में ले जाने के लिए बाप आकर पढ़ाते हैं। कहते हैं मामेकम् याद करो। परमपिता परमात्मा आकर ब्रह्मा विष्णु शंकर द्वारा अपना कर्तव्य कराते हैं। क्लीयर लिखा हुआ है। विष्णुपुरी कहो वा कृष्णपुरी कहो, एक ही बात है। लक्ष्मी-नारायण बचपन में राधे कृष्ण हैं। यह प्रजापिता ब्रह्मा तो साकारी है ना। सूक्ष्मवतन में तो प्रजापिता नहीं कहेंगे ना। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्शन होती है। बाप अपना बनाते हैं। कितनी सहज बात है।

त्रिमूर्ति चित्र , Three Deity Picture
त्रिमूर्ति चित्र , Three Deity Picture

सिर्फ त्रिमूर्ति का चित्र अपने घर में रखो। उनमें लिखत भी हो। गाते भी हैं – ब्रह्मा द्वारा स्थापना, परन्तु त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह बाप शिव को गुम कर दिया है। अभी तुम समझते हो – वह है निराकार परमपिता परमात्मा, यह है प्रजापिता ब्रह्मा। ब्रह्मा को देवता भी कहेंगे। देवता तब कहेंगे जब सम्पूर्ण फरिश्ता बनते हैं। तुमको अभी देवता नहीं कहेंगे। देवतायें हैं सतयुग में। तुम्हारा है दैवी धर्म। ब्रह्मा विष्णु शंकर देवता नम: कहते हैं, न कि ब्रह्मा परमात्माए नम: कहते हैं। जब इन्हों को ही देवता कहते हैं फिर अपने को परमात्मा क्यों कहते हैं। सब परमात्मा के रूप हैं, यह कैसे हो सकता है। यह भी ड्रामा में नूंध है। उनका भी कोई दोष नहीं है। अब उन्हों को रास्ता कैसे बतायें। भगत सब भूले हुए हैं। किसम-किसम के अथाह रास्ते बताते हैं।

अब बाप समझाते हैं मौत सामने खड़ा है। वर्सा लेना है तो सिवाए ब्रह्मा के शिवबाबा से वर्सा मिल न सके। सब उस एक प्रीतम को बुलाते हैं। मैं कल्प-कल्प इस संगम पर आता हूँ। मैं हूँ भी बिन्दी। भेंट देखो कैसे करते हैं। कितनी छोटी सी आत्मा में अविनाशी पार्ट है। यह कुदरत है। 

“अच्छा! मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) अपने को आत्मा समझ दिल की प्रीत एक बाप से लगानी है। यह दुनिया कोई काम की नहीं इसलिए इसे बुद्धि से भूल जाना है।

2) अपने जीवन को हीरे तुल्य बनाने के लिए एक बाप पर पूरा-पूरा फिदा होना है। मेरा तो एक बाबा, दूसरा न कोई – यह पाठ पक्का करना है।

वरदान:-     “समस्याओं के पहाड़ को उड़ती कला से पार करने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव”!

जैसे समय की रफ्तार तीव्रगति से सदा आगे बढ़ती रहती है। समय कभी रूकता नहीं, यदि उसे कोई रोकना भी चाहे तो भी रूकता नहीं। समय तो रचना है, आप रचयिता हो इसलिए कैसी भी परिस्थिति अथवा समस्याओं के पहाड़ भी आ जायें तो भी उड़ने वाले कभी रुकेंगे नहीं। अगर उड़ने वाली चीज़ बिना मंजिल के रुक जाए तो एक्सीडेंट हो जायेगा। तो आप बच्चे भी तीव्र पुरूषार्थी बन उड़ती कला में उड़ते रहो, कभी भी थकना और रुकना नहीं।

स्लोगन:-    “याद की वृत्ति से वायुमण्डल को पावरफुल बनाना – यही मन्सा सेवा है। – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए video को सेलेक्ट करे .

अच्छा – ओम् शान्ति।

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