“इस कलियुगी संसार को असार संसार क्यों कहते हैं?”

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य –

Ma Jagdamba , माँ जगदम्बा स्वरस्वती
Ma Jagdamba , माँ जगदम्बा स्वरस्वती

क्योंकि इस दुनिया में कोई सार नहीं है माना कोई भी वस्तु में वह ताकत अथवा सुख, शान्ति, पवित्रता नहीं है। इस सृष्टि पर कोई समय सुख शान्ति पवित्रता थी, अभी वह नहीं है क्योंकि अभी हर एक में 5 भूतों की प्रवेशता है इसलिए ही इस सृष्टि को भय का सागर अथवा कर्मबन्धन का सागर कहते हैं, इसमें हर एक दु:खी हो परमात्मा को पुकार रहे हैं, परमात्मा हमको भव सागर से पार करो,

इससे सिद्ध है कि जरुर कोई अभय अर्थात् निर्भयता का भी संसार है जिसमें चलना चाहते हैं इसलिए इस संसार को पाप का सागर कहते हैं, जिससे पार कर पुण्य आत्मा वाली दुनिया में चलना चाहते हैं। तो दुनियायें दो हैं, एक सतयुगी सार वाली दुनिया, दूसरी है कलियुगी असार की दुनिया। दोनों दुनियायें इस सृष्टि पर होती हैं।

मनुष्य कहते हैं हे प्रभु हमें इस भव सागर से उस पार ले चलो, उस पार का मतलब क्या है? लोग समझते हैं उस पार का मतलब है जन्म मरण के चक्र में न आना अर्थात् मुक्त हो जाना। अब यह तो हुआ मनुष्यों का कहना परन्तु परमात्मा कहते हैं बच्चों, सचमुच जहाँ सुख शान्ति है, दु:ख अशान्ति से दूर है, उस दुनिया में मैं तुमको ले चलता हूँ। जब तुम सुख चाहते हो तो जरूर वो इस जीवन में होना चाहिए। अब वो तो सतयुगी वैकुण्ठ के देवताओं की दुनिया थी, जहाँ सर्वदा सुखी जीवन थी,

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

उन देवताओं को अमर कहते थे। अब अमर का भी कोई अर्थ नहीं है, ऐसे तो नहीं देवताओं की आयु इतनी बड़ी थी जो कभी मरते नहीं थे, अब यह कहना उन्हों का रांग है क्योंकि ऐसे है नहीं। उनकी आयु कोई सतयुग त्रेता तक नहीं चलती है, परन्तु देवी देवताओं के जन्म सतयुग त्रेता में बहुत हुए हैं, 21 जन्म तो उन्होंने अच्छा राज्य चलाया है और फिर 63 जन्म द्वापर से कलियुग के अन्त तक टोटल उन्हों के जन्म चढ़ती कला वाले 21 हुए और उतरती कला वाले 63 हुए, टोटल मनुष्य 84 जन्म लेते हैं।

बाकी यह जो मनुष्य समझते हैं कि मनुष्य 84 लाख योनियां भोगते हैं, यह कहना भूल है। अगर मनुष्य अपनी योनी में सुख दु:ख दोनों पार्ट भोग सकते हैं तो फिर जानवर योनी में भोगने की जरुरत ही क्या है। बाकी टोटल सृष्टि पर जानवर पशु, पंछी आदि 84 लाख योनियां हो सकती हैं क्योंकि अनेक किस्म की पैदाइस है।

लेकिन मनुष्य, मनुष्य योनी में ही अपना पाप पुण्य भोग रहे हैं और जानवर अपनी योनियों में भोग रहे हैं। न मनुष्य जानवर की योनी लेता और न जानवर मनुष्य योनी में आता है। मनुष्य को अपनी योनी में ही भोगना भोगनी पड़ती है, इसलिए उसे मनुष्य जीवन में ही सुख, दु:ख की महसूसता होती है। ऐसे ही जानवर को भी अपनी योनी में सुख दु:ख भोगना है।

मगर उन्हों में यह बुद्धि नहीं कि यह भोगना किस कर्म से हुई है? उन्हों की भोगना को भी मनुष्य फील करता है क्योंकि मनुष्य है बुद्धिवान, बाकी ऐसे नहीं मनुष्य कोई 84 लाख योनियां भोगते हैं। यह तो मनुष्यों को डराने के लिये कह देते हैं, कि अगर गलत कर्म करोगे तो पशु योनि में जन्म मिलेगा।

हम भी अभी इस संगम समय पर अपनी जीवन को पलटाए पापात्मा से पुण्यात्मा बन रहे हैं।

अच्छा – ओम् शान्ति।

SOURSE: 04-5-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.

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