“सम्पन्नता वा सम्पूर्णता के समीपता की निशानियां”
दादी प्रकाशमणि जी के 15 वें स्मृति दिवस पर उनके अनमोल महावाक्य:- “सम्पन्नता वा सम्पूर्णता के समीपता की निशानियां”
1- आत्मा जितना सम्पन्न बनती जायेगी, उतना मन्सा-वाचा-कर्मणा में कोई भी सूक्ष्म विकार नहीं रहेगा, उन्हें सम्पूर्णता की मंजिल समीप दिखाई देगी।
2- मन-वचन-कर्म से सदा अहिंसक रहेंगे, कभी किसी को न दु:ख देंगे, न दु:ख लेगें। जब दु:ख देना और दु:ख लेना समाप्त हो जाता है तब सम्पूर्णता समीप आती है।
3- जो सम्पूर्णता के समीप होगा वह बेहद का वैरागी होगा, उसका कहीं पर भी लगाव नहीं होगा, सबसे ममत्व टूट जायेगा। वह सबके बीच में रहते भी न्यारा और प्यारा रहेगा।
4- उन्हें कोई भी पुरानी वस्तु, तत्वों सहित अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगी। वह सदा एक बाप की ही आकर्षण में रहेगा। बुद्धि में एक बाप की याद अर्थात् एकाग्र वृत्ति होगी।
5- वह खुद से भी सन्तुष्ट होगा औरों को भी सन्तुष्ट करेगा। उसका पढ़ाई की चारों सबजेक्ट पर पूरा ध्यान होगा।
6- उनकी साक्षीपन की स्टेज रहेगी, सदा साथी का साथ अनुभव होगा। देह-अभिमान की बुद्धि से अथवा पुरानी चाल चलन से किसी को भी दु:ख नहीं देगा। दृष्टि, वृत्ति में रूहानियत और अलौकिकता होगी।
7- प्युरिटी में फुल होगा, सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन ब्रह्माचारी होगा। किसी में भी उसकी आंख नहीं डुबेगी क्योंकि उसे नशा रहता हम किसकी सन्तान हैं।
8- वह किसी का अवगुण चित पर नहीं रखेगा। वह किसी के अवगुण नोट नहीं करेगा। पुरानी चाल, पुराने संस्कार की तरफ बुद्धि नहीं जायेगी। वह सदैव स्व-चिंतन में रहेगा।
9- जैसे साकार बाबा ने सदैव अपने को वर्ल्ड सर्वेन्ट कहा, जितना महान उतना निर्माण होकर रहा। निराकार, निरंहकारी… वैसे सदैव अपने को सेवाधारी समझना, यह भी सम्पूर्णता की निशानी है।
10- वह अपने को सदैव निमित्त समझेगा, महिमा को कभी स्वीकार नहीं करेगा। महिमा होगी जरूर क्योंकि सेवा की है। लेकिन निमित्त समझने के कारण मुख से बाबा बाबा ही निकलेगा। वह महिमा में खुश नहीं होगा और निंदा से घबरायेगा नहीं। दोनों में स्थिति समान होगी।
11- वह सबका सम्बन्ध एक बाबा से ही जुड़ायेगा। उसके मुख से बाबा के प्रति स्नेह के बोल निकलेंगे। प्यारे बाबा ने हमें अपनी प्यारे ते प्यारी चीज़ दिव्य बुद्धि की सौगात दी है, उस सौगात को सम्भाल कर रखेगा।
12- ज्ञान का तीसरा नेत्र सदा खुला रहेगा, ज्ञान नेत्र खुला होने कारण सदैव समर्थ संकल्प चलेंगे, यह भी सम्पूर्णता की निशानी है।
13- उसका हर कर्म श्रीमत प्रमाण होगा। श्रीमत में कभी मनमत मिक्स नहीं करेगा। दिव्य बुद्धि के आधार पर हर कर्म होता रहे, यह भी सम्पूर्णता की निशानी है।
14- वह आज्ञाकारी, वफादार होगा। एक बल एक भरोसा, सर्व सम्बन्ध एक से, किसी तरफ भी झुकाव नहीं, ऐसा लगाव झुकाव से मुक्त होगा।
15- उन्हें कोई भी परिस्थिति नथिंगन्यु लगेगी। 5 हजार वर्ष की बात ऐसे अनुभव होगी जैसे यह तो कल की बात है।
अच्छा – ओम् शान्ति।
SOURSE: 25-8-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.