13-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “शिवजयन्ती का त्योहार बड़े ते बड़ा त्योहार है इसे तुम बच्चों को बहुत धूमधाम से मनाना है”

शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – शिवजयन्ती का त्योहार बड़े ते बड़ा त्योहार है इसे तुम बच्चों को बहुत धूमधाम से मनाना है, जिससे सारी दुनिया को बाप के अवतरण का पता पड़े” 

प्रश्नः– तुम बच्चों को किस बात में सुस्ती नहीं आनी चाहिए? अगर सुस्ती आती है तो उसका कारण क्या है?

उत्तर:- पढ़ाई वा योग में तुम्हें जरा भी सुस्ती नहीं आनी चाहिए। लेकिन कई बच्चे समझते हैं सभी तो विजय माला में नहीं आयेंगे, सब तो राजा नहीं बनेंगे – इसलिए सुस्त बन जाते हैं। पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते। लेकिन जिसका बाप से पूरा लॅव है वह एक्यूरेट पढ़ाई पढ़ेंगे, सुस्ती आ नहीं सकती।

प्रश्नःचलते-चलते कई बच्चों की अवस्था डगमग क्यों हो जाती है?

उत्तर:- क्योंकि बाप को भूल देह-अहंकार में आ जाते हैं। देह-अहंकार के कारण एक दो को बहुत तंग करते हैं। चलन से ऐसा दिखाई पड़ता है जैसे देवता बनने वाला ही नहीं है। काम-क्रोध के वशीभूत हो जाते हैं।

गीत:- “मीठी मीठी मेरे बाबा की मुरली……..!”

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God Supreem Shiva & BrahMa , परमपिता परमात्मा शिव और आदि पिता ब्रह्मा
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-: ज्ञान के सागर और पतितपावन निराकार शिव भगवानुवाच :-

अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)

ओम् शान्ति

शिव भगवानुवाच : सभी ब्राह्मणों को यह पता है कि शिव जयन्ती है मुख्य। आजकल बर्थ डे तो सबका मनाते हैं। परन्तु शिव जयन्ती के संवत का कोई को पता नहीं है। मनुष्यों का संवत तो गाते आये हैं। क्राइस्ट का संवत पूछेंगे तो झट बतायेंगे। उनका भी बर्थ डे मनाते हैं। तुमने शिवजयन्ती पहले इतना धूमधाम से नहीं मनाई है। अब बच्चों को विचार चलाना है कि दुनिया को कैसे पता पड़े क्योंकि अब शिवजयन्ती आने वाली है। तो ऐसा धूमधाम से जयन्ती मनाओ जो सारी दुनिया को पता पड़ जाए। मेहनत करनी है।

सब बच्चों को मालूम कैसे पड़े कि सारी दुनिया का जो क्रियेटर है उनकी जयन्ती है, वह इस समय यहाँ है। बच्चों को मालूम कैसे पड़े। अखबारें तो बहुत छपती हैं। उनको कहा जाता है एडवरटाइजमेंट, जिससे नाम मशहूर हो। अखबार का खर्चा भी बहुत होता है। अब शिवजयन्ती का तो सबको मालूम पड़ना चाहिए। तुमको सारी दुनिया का ओना रखना है। बाप का परिचय सबको देना है।

BK विश्व नवनिर्माण प्रदर्शनी, BK New world Exhibition
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गाया भी हुआ है कि बच्चों ने घर-घर में बाप का सन्देश पहुँचाया है कि बाप आया है, जिसको वर्सा लेना हो तो आकर लो। परन्तु लेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले लिया होगा। आत्मा तो जानती है, अब सबको मालूम पड़ेगा तो आ जायेंगे क्योंकि और और धर्मों में बहुत कनवर्ट हो गये हैं। तुम भी अपने को देवी-देवता थोड़ेही समझते थे। शूद्र धर्म में थे। अब तुमको बाप ने समझाया है।

तुम अब समझ सकते हो कि हमको कौन पढ़ाते हैं। फिर भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं, जिस कारण उन्हों की अवस्था भी ऐसी ही रहती है। देवता बनने के जैसे लायक ही नहीं बनते हैं। काम का भूत वा देह-अभिमान का भूत होने से बाप को याद नहीं कर सकते। देही-अभिमानी जब बनें तब बाप को याद करें। बाप के साथ लॅव भी रहे और पढ़ाई में भी एक्यूरेट रहें। यह बहुत वैल्युबुल ज्ञान रत्न हैं, जिसका बहुत नशा रहना चाहिए।

जिस्मानी पढ़ाई में भी रजिस्टर रहता है। उसमें मैनर्स भी दिखाते हैं। गुड, बेटर और बेस्ट… यहाँ भी ऐसे है। कोई तो बिल्कुल कुछ भी जानते नहीं हैं। भल बच्चे बने हैं। बाप के पास रहे पड़े हैं। तो भी कईयों से घर में रहने वालों की चलन अच्छी होती है। फिर भी सर्विस करते हैं। मुख्य बात है सर्विस की। विजय माला में भी वही पिरोयेंगे, बाकी तो प्रजा बनेंगे। प्रजा तो बहुत बनती है।

कोई बड़े घर में जन्मता है तो सब उनको बधाईयाँ भेजते हैं। बाकी दुनिया में तो बहुत जन्मते रहते हैं। तुम तो बाप के वारिस बने हो। तो उस बेहद के बाप का जन्म-दिन तो मनाना चाहिए। धूमधाम से त्रिमूति शिव जयन्ती मनानी है। क्या करें जो बहुतों को मालूम पड़े? यह फुरना रहता है ना। किस प्रकार की सर्विस करें जो हमारे कल्प पहले वाले ब्राह्मण कुल भूषण फिर से आ जाएं? युक्तियाँ रची जाती हैं।

त्रिमूर्ति चित्र , Trimurti -Three Deity Picture
त्रिमूर्ति चित्र , Trimurti -Three Deity Picture

बाप कहते हैं सिवाए अखबार के तो मुश्किल है। अखबार सब तरफ जाती है। अखबार के 2-4 पेज लेना पड़े। जब सिलवर जुबली मनाते हैं तो अखबार में 2-4 पेज ले लेते हैं। अब वह तो कामन पाई पैसे की सिलवर जुबली मनाते हैं। तुम्हारी यह गोल्डन जुबली सबसे न्यारी है। हमेशा गोल्डन, सिल्वर जुबली मनाते हैं, कॉपर आइरन जुबली नहीं मनाते। 50 वर्ष होते हैं तो उनको गोल्डन जुबली कहा जाता है। अब तुमको बाप की जयन्ती मनानी है, जो सबको मालूम पड़े। अखबार में दो पेज डालें तो कोई हर्जा नहीं है। बहुतों को पता पड़ना चाहिए।

समय नाज़ुक आता जाता है। नहीं तो फिर देरी पड़ जायेगी। अब शिव जयन्ती के लिए पहले से ही तैयारी करनी चाहिए। अखबार के दो पेज लेवे जिसमें त्रिमूति झाड़ और आजकल की प्वाइंटस लिखी जायें। गंगा स्नान से सद्गति नहीं होती है। जैसे 4 पेज वाला लिटरेचर है, वैसे आगे पीछे भी डाला जाए। उतरती कला और चढ़ती कला वाला चित्र और जो मुख्य चित्र हैं। विचार करना चाहिए कौन-कौन से मुख्य चित्र हैं? जिससे मनुष्य समझ जायें कि बरोबर दुर्गति हुई है। बाबा बच्चों का ध्यान खिंचवाते हैं, विचार सागर मंथन करना चाहिए।

इस बात पर बहुत थोड़े बच्चे हैं जिनका ख्याल चलता है। 4-5 हजार खर्च होगा, हर्जा नहीं। ढेर बच्चे हैं, बूँद-बूँद तलाव हो जायेगा। तुमको मालूम है आगाखाँ को भी हीरों में वजन किया। वह तो कुछ भी नहीं। यह तो कल्याणकारी बाप है, वह तो सब पैसे जाते हैं विकारों में। तुम बच्चों को इन विकारों से छुड़ाया जाता है। मनुष्य से देवता बनाया जाता है। तुम्हारे में न काम की हिंसा, न क्रोध की हिंसा है।

तो अखबारों में 4-5 पेज जरूर लेने चाहिए जो भी सर्विसएबुल बच्चे हैं, समझते हैं हम सर्विस कर रहे हैं। प्रदर्शनी, प्रोजेक्टर के लिए चित्र बना रहे हैं, जिनकी बुद्धि चलती है उन्हों के लिए बाबा समझा रहे हैं। बाप कहते हैं हिम्मते बच्चे मददे बाप बैठा है। जो बुद्धिवान पढ़े लिखे बच्चे हैं वह झट अखबार के लिए मेटर लिखकर तैयार करेंगे। अखबार में कोई चीज़ डाली जाती है तो उन्हों को दृष्टि भी देनी है। अभी शिवजयन्ती में दो अढ़ाई मास हैं।

तुम बहुत काम कर सकते हो। दो-चार अखबारों में डालना चाहिए – हिन्दी और अंग्रेजी मुख्य हैं। इन दोनों में छप जाए। शिवजयन्ती इस रीति मनाना ठीक होगा। सारी दुनिया के बाप का बर्थ डे है, यह सबको मालूम पड़ जाए। अखबारें तो दूर तक जाती हैं। सेन्सीबुल एडीटर जो होते हैं, धर्मी ख्यालात वाले होते हैं वह पैसे नहीं लेते हैं। यह तो सबके कल्याण के लिए है। करके थोड़ा खर्चा होगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप। ऐसे-ऐसे ख्यालात चलने चाहिए।

Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन - स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण
Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन – स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण

मनुष्य यह नहीं जानते कल्याण, अकल्याण किसको कहा जाता है। कल्याण की मत कौन दे सकता है? कुछ भी समझते नहीं हैं। तुम बच्चे जानते हो। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो विजय माला में आयेंगे। बाकी प्रजा बनेंगे। यह है राजयोग, राजाई प्राप्त करने का। पढ़ाई वा योग में सुस्ती करने से राजाई नहीं प्राप्त कर सकेंगे। लिमिट है – इतने राजायें बनने हैं। जास्ती बन न सकें।

जो अच्छी ख्यालात वाले होंगे उनका झट पता लग जायेगा कि यह राजाई कुल में आ सकता है वा नहीं। तो अब सेन्टर्स पर राय निकालते हैं। बड़े-बड़े दुकान बाबा के बहुत हैं। सब सेन्टर्स (दुकान) एक जैसे तो चल न सकें। कोई मैनेजर अच्छा होता है तो दुकान को अच्छा चलाते हैं। कोई पर ग्रहचारी बैठ जाती है तो अच्छे-अच्छे भी फेल हो पड़ते हैं।

बाप कहते हैं अब दिन नजदीक आते जाते हैं। लड़ाई की तैयारियाँ भी होती जाती हैं। आपदायें भी आनी हैं। बहुत थोड़ा समय है, योग लगाने में बड़ी मेहनत है। योग से ही विकर्म विनाश करने हैं। अगर योग में रह गोल्डन एज तक नहीं पहुँचे तो रॉयल घराने में आ न सके। प्रजा में चले जायेंगे। अच्छे पुरुषार्थी जो होंगे वह कभी नहीं कहेंगे कि जो तकदीर में होगा। ड्रामा अनुसार ऐसे-ऐसे ख्यालात वाले प्रजा में जाए नौकर बनेंगे।

पद ऊंचा पाना है तो एडवरटाइज़ करनी पड़े। नहीं तो उल्हना देंगे, इसलिए अखबार में डालते हैं। अपना चित्र और मुख्य-मुख्य बातें लिखनी हैं। त्रिमूति गोला भी डालना है। उतरती कला, चढ़ती कला वाला चित्र भी डालना है। भारत दी हेविन, भारत दी हेल। हेविन में कितना समय रहते, हेल में कितना समय रहते। अब बाबा डायरेक्शन दे रहे हैं। अगर कोई मुरली मिस कर दें तो डायरेक्शन का पता नहीं पड़ेगा। मददगार बन नहीं सकेंगे।

विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel
विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel

बाबा पूछते रहते हैं यह मैटर तैयार किया? सेन्सीबुल बच्चों की जहाँ तहाँ महिमा होती है। कोई-कोई बहुत तंग करते हैं। देह-अभिमानी बन जाते हैं। सेन्टर के हेड बने, देह-अभिमान आया तो यह मरा। बाप को कभी अहंकार आ न सके। बाबा कहते हैं हम ओबिडियन्ट सर्वेन्ट हैं। देखो यहाँ बहुत बड़े-बड़े आदमी आते हैं। देखते हैं बर्तन हाथ से मांजते हैं तो खुद भी मांजने लग पड़ते हैं। परन्तु कोई-कोई को देह-अहंकार आ जाता है। थाली कटोरा नहीं साफ कर सकते। ऐसे देह-अभिमान वाले गिर पड़ते हैं। अपना अकल्याण कर बैठते हैं।

बाबा थोड़ेही कभी सर्विस लेते हैं। शिवबाबा को तो शरीर ही नहीं है जो सर्विस लेवे। वह तो सर्विस करते हैं। बाबा देही-अभिमानी बनना सिखलाते हैं। माँ-बाप को बच्चे कभी एलाउ नहीं करेंगे कि बर्तन मांजें। परन्तु माँ-बाप से रीस नहीं करनी चाहिए। पहले माँ-बाप जैसा बनना चाहिए। पढ़ते तुम्हारे साथ वह भी हैं परन्तु कायदे अनुसार साक्षात्कार होता जाता है कि पहले नम्बर में यह पास होते हैं।

सर्विस का शौक बहुत रखना है। घर-घर में गीता पाठशाला खोलनी है तो वृद्धि होती जायेगी। लिख देना चाहिए आओ तो तुमको अपने पारलौकिक बाप का परिचय दें। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा कैसे मिलता है, वह आकर समझो। एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति कैसे मिल सकती है। कोई ऐसा बुद्धिवान है नहीं जो समझ सके। तुम्हारे में भी हड्डी ज्ञान बहुत थोड़ों में है, जिनको ज्ञान का नशा चढ़ा हुआ है वह अपनी राय निकालते रहते हैं।

स्लोगन की समझानी भी लिखनी पड़े। देहली बाम्बे में बहुत समझू बच्चे हैं, जिनको बहुतों का परिचय है, वह यह काम कर सकते हैं। एडीटर्स को समझाना चाहिए। उन्हों के हाथ में बहुत होता है। हाफ दाम में देवें, क्वाटर में देवें। रिलीजस बातें फ्री में भी डाल सकते हैं। बाबा राय देते हैं – इस शिव जयन्ती को बहुत धूमधाम से मनाया जाए, ऐसी प्रेरणा आई है। खर्चे का हर्जा नहीं। चित्र छपाओ।

रंगीन वीकली छोटी होती है, इसमें चित्र बड़े क्लीयर चाहिए। बाबा सर्विसएबुल बच्चों को राय देते हैं और सर्विसएबुल बच्चे ही रेसपान्ड करेंगे। आइडिया लिखेंगे, मैटर तैयार करेंगे। अलग मैटर छपाकर भी अखबार के साथ भेज सकते हैं। वह भी अखबार वालों से प्रबन्ध करा सकते हैं। अखबार के अन्दर पर्चा डाल देंगे। आगे ऐसे अलग कागज छपाकर दूसरों की एडवरटाइज़ का अखबार में डाल देते थे, अभी शायद बंद कर दिया है। परन्तु पुरुषार्थ करने से हो सकता है। नहीं तो सबको मालूम कैसे पड़े – त्रिमूति शिव जयन्ती का। प्रदर्शनी भी 7 रोज़ चलती। शिवजयन्ती का तो एक दिन है, वह धूमधाम से मनाना है। अच्छा!

मीठेमीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मातपिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। ओम् शान्ति।

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) बाप का मददगार बन, सभी को बाप का परिचय देने की युक्ति रचनी है। विचार सागर मंथन करना है। ज्ञान के नशे में रहना है।

2) देह-अंहकार छोड़ देही-अभिमानी बनना है। अपनी सेवा दूसरों से नहीं लेनी है। माँ-बाप से रीस नहीं करनी है। उनके समान बनना है।

वरदान:-        स्नेह की शक्ति द्वारा मेहनत से मुक्त होने वाले परमात्म स्नेही भव

स्नेह की शक्ति मेहनत को सहज कर देती है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं होती। मेहनत मनोरंजन बन जाती है। भिन्न-भिन्न बन्धनों में बंधी हुई आत्मायें मेहनत करती हैं लेकिन परमात्म स्नेही आत्मायें सहज ही मेहनत से मुक्त हो जाती हैं। यह स्नेह का वरदान सदा स्मृति में रहे तो कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो, प्यार से, स्नेह से परिस्थिति रूपी पहाड़ भी परिवर्तन हो पानी के समान हल्का बन जाता है।

स्लोगन:-       “सदा निर्विघ्न रहना और दूसरों को निर्विघ्न बनाना – यही यथार्थ सेवा है। ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।  

अच्छा – ओम् शान्ति।

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नोट: यदि आपमुरली = भगवान के बोल को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।

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