3-11-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “यह अनादि खेल बना हुआ है”

शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – यह अनादि खेल बना हुआ है, इसमें हर एक पार्टधारी का पार्ट अपना-अपना है, एक का पार्ट दूसरे से नहीं मिल सकता, यह भी कुदरत है”

प्रश्नः– भक्तिमार्ग में गंगाजल को इतना मान क्यों देते हैं? भक्तों की इतनी प्रीत गंगाजल से क्यों?

उत्तर:- क्योंकि तुम बच्चे अभी ज्ञान जल (अमृत) से सद्गति को पाते हो, तुम्हारी प्रीत ज्ञान से है, जिससे तुम ज्ञान गंगा बन जाते हो इसलिए भक्तों ने फिर पानी को इतना मान दिया है। वैष्णव लोग हमेशा गंगा जल ही काम में लाते हैं। परन्तु पानी से कोई सद्गति नहीं होती। सद्गति तो ज्ञान से होती है। ज्ञान सागर बाप तुम्हें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं। आत्मा को पावन बनाने का साधन पानी नहीं, उसके लिए तो ज्ञान और योग का इन्जेक्शन चाहिए जो एक बाप के पास ही है।

गीत:- “तकदीर जगाकर आई हूँ………..”

गीत:- “तकदीर जगाकर आई हूँ………..”, अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.

Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव
Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव

-: ज्ञान के सागर और पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-

अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)

“ओम् शान्ति”

शिव भगवानुवाच : मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि यह ज्ञान मार्ग है जिससे सद्गति होती है अथवा स्वर्ग का राज्य भाग्य मिलता है, इसलिए इनको पाठशाला कहो अथवा कॉलेज कहो, युनिवर्सिटी कहो बात एक ही है। युनिवर्सिटी में बड़ी विद्या, उनमें छोटी विद्या मिलती है। हैं तो सब पाठशालायें, पाठशाला में कमाई के लिए पढ़ते हैं। तुम बच्चे जानते हो हमारी यह गुप्त पढ़ाई है। बेहद का बाप आकर आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मायें ही पढ़ती हैं।

अगर श्रीकृष्ण भगवान होता तो तुम्हारा बुद्धियोग उनके चित्र की तरफ जाता, उनकी तरफ कशिश होती। उनके चित्र बिगर तुम रह नहीं सकते। परन्तु श्रीकृष्ण तो भगवान है नहीं। तो उल्टा समझने के कारण मनुष्यों को श्रीकृष्ण की ही याद रहती है। जिस्मानी याद तो बड़ी सहज है। रूहानी याद में मेहनत है।

पूछते हैं बाबा कैसे याद करें? किसको याद करें? श्रीकृष्ण का चित्र तो स्वीट है, परमपिता परमात्मा तो निराकार है। वह खुद कहते हैं, मैं इस बुजुर्ग शरीर में बैठ तुम बच्चों को फिर से सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाता हूँ। है बहुत सहज सिर्फ बाबा को याद करना है। शिवबाबा को याद तो करते हैं ना।

बनारस में कहते हैं शिव काशी, फिर कहते हैं विश्वनाथ गंगा। विश्वनाथ ने गंगा लाई। अब पानी के गंगा की तो बात नहीं। ज्ञान सागर ने यह ज्ञान गंगायें लाई हैं। तो ज्ञान गंगाओं को जरूर ज्ञान देने वाले ज्ञान सागर बाप की याद रहनी चाहिए। हे ज्ञान गंगायें, अगर तुम अपने को ज्ञान गंगा समझती हो तो ज्ञान सागर को याद करो। जो अपने को ज्ञान गंगा नहीं समझते वह अज्ञानी ठहरे।

विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel
विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel

तुम बच्चे जानते हो हमको ज्ञान सागर ने सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान दिया है। अब हमको फिर सबको जाकर ज्ञान अमृत देना है। फिर कोई अंचली लेते, कोई लोटा भरते। वैष्णव जो होते हैं उनकी गंगा जल से प्रीत रहती है। वह हमेशा गंगाजल काम में लाते हैं। तुम्हारी फिर इस ज्ञान से प्रीत है क्योंकि इस ज्ञान से तुम सद्गति को पाते हो।

शिवबाबा ने यह ज्ञान दिया है कि तुम आत्मा मुझ बाप को याद करो। वर्से को भी तुम जान गये हो। यह कौन समझाते हैं? परमपिता परमात्मा। कब स्वप्न में भी किसको यह ख्याल नहीं आयेगा कि परमात्मा से वर्सा कैसे मिलता है। परमपिता परमात्मा के बिगर यह बेहद का वर्सा मिल न सके। परमपिता माना सभी मनुष्य मात्र का क्रियेटर। तो रचना का पिता हुआ ना।

सिर्फ निराकार को ही परमपिता परम आत्मा कहा जाता है, उनको इन आंखों से देख नहीं सकते। भक्ति मार्ग में दिव्य दृष्टि से देखा जाता है। यहाँ भी तुमने आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है, फिर भी अपने को आत्मा निश्चय करते हो। जानते हो आत्मा अविनाशी है। आत्मा निकलने से शरीर कोई काम का नहीं रहता। यह तो सब जानते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।

परन्तु आत्मा क्या चीज़ है, यह कोई को पता नहीं। आत्मा बिन्दी मिसल अति सूक्ष्म ते सूक्ष्म है, जो भ्रकुटी के बीच निवास करती है। बिल्कुल छोटी सी आत्मा है, वही सब कुछ करती है। आत्मा नहीं होती तो यह कर्मेन्द्रियाँ भी चल न सकें। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेकर अपना पार्ट बजाती है। हर एक का पार्ट अपना-अपना है। एक न मिले दूसरे से। एक्टर कभी एक जैसे नहीं होते हैं। इस खेल को कोई भी समझ नहीं सकते हैं।

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

हर एक आत्मा का अपना-अपना पार्ट है। आत्मायें सभी एक ही रूप की हैं। बाकी शरीर भिन्न-भिन्न हैं। यह अनादि खेल बना हुआ है। इन बातों को विशालबुद्धि ही समझ सकते हैं। वन्डर खाना चाहिए – आत्मा बिन्दी मिसल उनमें 84 जन्मों का पार्ट अविनाशी नूँधा हुआ है जो कभी विनाश नहीं होता, इसको कहा जाता है कुदरत।

आत्मा खुद कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा पार्ट बजाता हूँ। हम साक्षी हो सारी सृष्टि के पार्टधारियों का एक्ट देखते हैं। हम परमपिता परमात्मा से अपना 21 जन्मों के सुख का वर्सा फिर से ले रहे हैं जिसके लिए हमने 2500 वर्ष (आधाकल्प) भक्ति की है। तो जरूर भक्तों को भगवान मिलना ही है। अब तुमको पता पड़ा है – नम्बरवन भक्त, पुजारी तुम ठहरे।

इस ड्रामा में पहले-पहले सतयुग में तुम देवी-देवताओं का पार्ट बजाने आते हो। इस समय तुम ब्राह्मण वर्ण में हो। हम आत्मा ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण धर्म के हैं। अभी पढ़ते इसलिए हैं कि हम ब्राह्मण धर्म से बदल दैवी धर्म में जायें। आत्मा को ज्ञान मिला है। ज्ञान से सद्गति होती है। जब सद्गति मिलनी होती है तो सबको मिलती है।

बाप कहते हैं मैं ही सर्व का सद्गति दाता हूँ। मनुष्य गुरू कब होता नहीं। हमेशा देही-अभिमानी रहना है। समझो किसको बच्चा है, तो समझना चाहिए यह कर्मो के हिसाब-किताब से बच्चा बना, मर गया तो बस एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा लिया, हिसाब-किताब इतना ही था, पूरा किया, इसमें अ़फसोस करने वा रोने की बात ही नहीं। साक्षी हो खेल देखना है।

तुम बच्चे जानते हो हम 84 जन्म लेते हैं। सतयुग में हम देवी देवता थे। पहले तुम कुछ नहीं जानते थे। ब्रह्मा ने भी बहुत गुरू किये थे परन्तु इनको भी कुछ पता नहीं था। समझते थे 84 लाख जन्म होते हैं। अभी तुम ऐसे नहीं कहेंगे – बाप समझाते हैं मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे हम ही आकर सबकी सद्गति करते हैं। सभी धर्म वाले भक्त भगवान को किस न किस प्रकार से याद जरूर करते हैं। कहते हैं – ओ गॉड फादर, हे परमपिता परमात्मा… परन्तु परमात्मा को जानते नहीं।

Threeloks-THREE Worlds ,त्रिलोक
Threeloks-THREE Worlds ,त्रिलोक

सिर्फ इतना समझते हैं परमपिता परमात्मा परमधाम में रहते हैं। परन्तु हम वहाँ कैसे जायें, हम तो जा नहीं सकते। सतयुगी देवतायें भी नहीं जा सकते, उनको 84 जन्म लेने हैं। वहाँ सुख है, वहाँ ख्याल भी नहीं होता, कहाँ जाने का है। बाप को भी याद नहीं करते। कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करें… बाप समझाते हैं हम तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। वहाँ तुम सदा सुखी रहेंगे। कल्प को लाखों वर्ष आयु दे दी है, यह है भूल।

भक्ति में मुँझारा बहुत है। दर-दर धक्का खाना, जप तप तीर्थ आदि करना सब भक्ति मार्ग है। आधाकल्प भक्ति मार्ग चलता है, यह भी खेल बना हुआ है। बाप कहते हैं सब बच्चे ड्रामा के वश हैं। मैं भी भल क्रियेटर, डायरेक्टर, करनकरावनहार हूँ। परन्तु मैं भी ड्रामा के वश हूँ। सिवाए एक टाइम, एक शरीर के दूसरे कोई शरीर में आ नहीं सकता हूँ।

कहते हैं सदैव दादा के तन में आयेगा और इनको ही ब्रह्मा बनायेगा? हाँ, पहले-पहले इनका ही जन्म लक्ष्मी-नारायण था ना फिर इनको ही आदि देव, आदि देवी बनायेंगे। इस देलवाड़ा मन्दिर में शिव का भी चित्र है। आदि देव, आदि देवी भी हैं, बच्चे भी हैं। सब तपस्या में बैठे हैं। ऊपर में स्वर्ग भी है, पूरा यादगार खड़ा है। तुम यहाँ बैठे-बैठे दैवी झाड की स्थापना कर रहे हो। वह है जड़ चित्र। यहाँ तुम चैतन्य में बैठे हो।

तुम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो श्रीमत पर। जो अच्छी तरह पढ़ते पढ़ाते हैं वह ऊंच पद पाते हैं। लक्ष्मी-नारायण ने क्या पुरुषार्थ किया होगा। तुम भी पुरुषार्थ कर रहे हो फिर से देवता बनें तो जरूर देवताओं ने पिछले जन्म में पुरुषार्थ किया होगा? मनुष्य मृत्युलोक में रहते हैं, देवतायें अमरलोक में रहते हैं। भारत अमरलोक था, फिर मृत्युलोक हुआ है।

Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग
Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग

अभी है संगम, इनको कुम्भ का मेला कहा जाता है। कुम्भ का सच्चा-सच्चा मेला यह है। आत्मा परमात्मा मिलते हैं। अनेक बार मिले होंगे, अनेक बार मिलने वाले हैं। कोई तो पुरुषार्थ कर पूरा वर्सा लेंगे। कोई फिर चले जायेंगे। (परवानों का मिसाल) आते तो बहुत हैं। तुम बच्चों को निश्चय है कि यह हमारा बापदादा है। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। ब्रह्मा भी शिव का बच्चा है। हम धर्म के बच्चे हैं। बाप के बच्चे तो सब कहलाते हैं। परन्तु जो हम बी.के. कहलाते हैं तो गोया हम शिववंशी ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हो गये। शिवबाबा है दादा, उनको मुख्य बालक एक है, एक से फिर दूसरे पैदा होते हैं।

तुम जानते हो हम ब्रह्मा मुख वंशावली ढेर हैं। ढेर होते जायेंगे, पढ़ाने वाला शिवबाबा है। ब्रह्मा की आत्मा भी मुझको याद करती है, तुम्हें भी याद करना है। सृष्टि चक्र को याद करेंगे तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे। अभी तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार यह सिमरण करते हैं। गाया जाता है ना – सिमर-सिमर जीवनमुक्ति पाओ, वहाँ दु:ख होता नहीं।

यह तो पुरानी दुनिया है। यह शरीर भी पुरानी जुत्ती है। घड़ी-घड़ी चत्तियाँ लगती रहती हैं। सर्प का मिसाल देते हैं ना। वह पुरानी खाल छोड़ नई ले लेते हैं। नई खाल चमकने लग पड़ती है। तो यह तुम्हारे 84 जन्मों की पुरानी खाल बिल्कुल जड़जड़ीभूत, तमोप्रधान है। अब तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों सतोप्रधान कैसे बनें, यह बाप आकर समझाते हैं। मीठे-मीठे बच्चे मामेकम् याद करो। इस याद रूपी अग्नि से जो तुम्हारे में खाद पड़ी है, वह जलकर भस्म हो जायेगी। तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान बन जायेगी। फिर यह पुराना शरीर छोड़ आत्मा जाकर दूसरा शरीर लेगी। बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे।

भक्ति मार्ग में भी सिमरण करते हैं ना। नाम जपते हैं। पूजा करते हैं। उनको स्नान आदि कराते हैं। यहाँ तो शिवबाबा को स्नान आदि नहीं कराना है। वह तो अशरीरी है। शिव के मन्दिर में कभी शिव को कपड़ा आदि पहनाकर श्रृंगारते हैं क्या? श्रीकृष्ण को, लक्ष्मी-नारायण आदि को तो कितना श्रृंगारते हैं। निराकार का क्या श्रृंगार करेंगे!

Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव
Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव

तो बाप कहते हैं तुम मुझ निराकार शिव की पूजा क्यों करते थे? जरूर कुछ मैं करके गया हूँ तब तो तुम पूजा आदि करते हो। तुम आत्मायें निराकार हो – मैं भी निराकार हूँ। तुम पुनर्जन्म लेते हो, मैं पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ। मैं आकर तुमको स्वर्ग का, 21 जन्मों का वर्सा देता हूँ। संन्यासी आदि तो घरबार छोड़कर जाते हैं। तुमको तो कुछ छोड़ना नहीं है। सिर्फ यह अन्तिम जन्म पवित्र बन बाप को याद करो, बस। याद से ही तुम्हारी आत्मा कंचन हो जायेगी। आत्मा को लोहे से सोना पारसनाथ बना देते हैं।

तुम ही सच्ची-सच्ची कमाई करते हो। वह झूठी कमाई भी भल करते रहो, साथ-साथ यह भी करो। कोई भी पाप नहीं करना है। सर्जन तो एक है। हर एक के कर्मो के हिसाब की बीमारी अपनी है। बाप से कोई पूछे तो झट बतायेंगे कि ऐसे-ऐसे करो। एक बाप ही कर्मातीत अवस्था में ले जाने वाला है। यह है अविनाशी सर्जन की मत। हर एक के जो-जो बन्धन हैं, वह आकर पूछो।

बच्चियाँ तो पति को भूँ-भूँ कर साथ में ले आती हैं। उनको समझाती हैं – पवित्र बनने बिगर तो स्वर्ग में जा नहीं सकेंगे। मरना तो सभी को है ही। यह भी समझ की बात है। मृत्युलोक का यह अन्त है। यह है संगम। अमरलोक की स्थापना हो रही है। अभी हम बाप का बनकर अर्थात् ब्राह्मण बनकर फिर देवता बनेंगे। फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। यह मंत्र कितना अच्छा है फिर भी तुम भूल जायेंगे।

योग में नहीं रहेंगे तो जो 63 जन्मों के पापों का बोझा सिर पर है वह कैसे भस्म होगा। गंगा के पानी से थोड़ेही पाप धुलेंगे। पाप आत्मा पर लगे हुए हैं। पापात्मा, पुण्यात्मा कहते हैं ना। तो तुम आत्माओं को पावन बनने का इन्जेक्शन चाहिए। वह इन्जेक्शन पतित-पावन बाप के ही पास है और कोई के पास यह इन्जेक्शन है नहीं इसलिए सब पुकारते हैं हे पतित-पावन आओ – आकर के हम पतितों को ज्ञान इन्जेक्शन दो तो हम पावन बनें। अब बच्चों को यात्रा पर तो चलना है ना। उठते-बैठते सदैव यात्रा पर रहो। बाप और घर को याद करो तो कमाई जमा होती रहेगी। अच्छा!

“मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे जो खुद भी अल्फ और बे को याद करते और दूसरों को भी याद दिलाते हैं वही प्यारे लगते हैं। ऐसे बच्चों को मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) साक्षी हो हर एक पार्टधारी का पार्ट देखना है। बाप से 21 जन्मों का वर्सा लेने के लिए पूरा पुरुषार्थ करना है।

2) आत्मा को सच्चा सोना (कंचन) बनाने के लिए इस अन्तिम जन्म में पवित्र बन बाप को याद करना है। सच्ची कमाई करनी है।

वरदान:-     “दाता बन अखुट खजानों का दान करने वाले महादानी सो विश्व सेवाधारी भव”

सदा याद रखो कि बाप द्वारा जो भी अखुट खजाने मिले हैं, वह देने ही हैं। खजानों को कार्य में लगाओ। चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में सफल करते चलो, दाता के बच्चे एक दिन भी देने के बिना रह नहीं सकते। विश्व सेवाधारी को हर दिन सेवा करनी ही है। अगर वाचा का चांस नहीं मिलता तो मन्सा करो, मन्सा नहीं कर सकते तो अपने कर्म वा प्रैक्टिकल लाइफ द्वारा करो। जितना आप मन्सा से, वाणी से, स्वयं सैम्पल बनेंगे तो सैम्पल को देखकरके स्वत: सब आकर्षित होंगे।

स्लोगन:-    “जिसके पास दृढ़ता की शक्ति है उसके लिए असम्भव भी सम्भव हो जाता है। – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे

अच्छा – ओम् शान्ति।

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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल” को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।

खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस सेंटर मेरे आस पास.

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