“आत्मा और परमात्मा दोनों अनादि हैं तो फिर परमात्मा को रचयिता क्यों कहते हैं?”
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य : “परमात्मा को रचयिता क्यों कहते हैं?”
ज्ञान, योग, धारणा, जितना इन तीनों बातों पर अटेंशन देंगे तो उन्नति होती रहेगी। इन्हें प्रैक्टिकल जीवन में लाना है। इस अविनाशी ईश्वरीय ज्ञान की प्रालब्ध से इमार्टल सुख प्राप्त होता है, उसको ही देवताई सुख कहते हैं, देवताओं की तो प्रैक्टिकल सुखी जीवन थी। ऐसे नहीं कि जब वह ब्राह्मण थे तब कोई शास्त्र अध्ययन करते थे, उन्हें तो स्वयं गीता के भगवान से सहारा मिला, तो मनुष्यों द्वारा बनाये हुए शास्त्रों को हम फॉलो कैसे करें।
इस ईश्वरीय सुख का अनुभव अभी प्रैक्टिकल हो रहा है, हम इस दु:ख के जमाने से निकल सुख के जमाने में आ गये हैं। वो दु:ख का जमाना अब लौट गया, पहले सुख के जमाने में थे वो जमाना पूरा हुआ तो दु:ख के जमाने में आये, अब फिर से उस सुख की दुनिया में आ गये, जहाँ 21 जन्म सुख में रहेंगे फिर जल्दी दु:ख में नहीं आयेंगे। धीरे-धीरे उतरेंगे, अब यह गम का जमाना सदा के लिये जा रहा है।
अब तो सच्चा अतीन्द्रिय सुख होना चाहिए, भल इसमें मायावी विघ्न भी खूब पड़ेंगे तो भी जिन्हों को यह पूर्ण निश्चय है कि पुरानी दुनिया गुज़र चुकी है, उन्हों को गम की लेस नहीं आ सकती। अगर कहाँ लैस आती है तो समझना है कहाँ जरूर विस्मृति है।
तो अपना भी ईश्वरीय ज्ञान सिर्फ सुनने तक नहीं है परन्तु धारण कर लाइफ में फर्क आना चाहिए। यह यथार्थ मार्ग हमें अभी मिला है। बाकी ऐसे नहीं समझना हमने परमात्मा की गोद ली तो बस, इतना करने से पूरी प्राप्तियां नहीं हो सकती। परमात्मा मिला है पुरुषार्थ का मार्ग बताने के लिये, अब उस मार्ग पर चल प्रैक्टिकल ईश्वरीय जीवन बनाना, बस यही है सच्चा सुख।
बहुत मनुष्य यह प्रश्न पूछते हैं जब आत्मा और परमात्मा दोनों अनादि हैं तो फिर परमात्मा को रचयिता क्यों कहते हैं? परमात्मा को बाप और आत्मा को संतान क्यों कहते हैं? अब इस पर समझाया जाता है, परमात्मा भी अनादि है, यह सारी दुनिया अवश्य मानती है, उसके लिये ऐसा प्रश्न उठ नहीं सकता कि परमात्मा को किसने पैदा किया? नहीं।
वैसे आत्मायें भी अनादि और अविनाशी हैं परन्तु दुनिया के लोग ऐसे समझते हैं आत्मा परमात्मा का अंश है, तो वो भी परमात्मा हो गया। इस हिसाब से अनादि समझते हैं। अब यह तो हुई उन्हों की मत लेकिन स्वयं परमात्मा द्वारा हम जान चुके हैं कि परमात्मा पिता है और हम आत्मायें बच्चे हैं। पहले बाप आता है, बाद में बच्चे पैदा होते हैं।
भल हैं दोनों अनादि लेकिन परमात्मा को पार्ट मिला हुआ है आत्माओं को बच्चा बनाकर वर्सा देने का। हम बाप से सुख शान्ति पवित्रता का वर्सा लेते हैं क्योंकि आत्माओं ने यह सुख शान्ति का वर्सा खोया है, तो फिर उन्हों को ही लेना पड़ेगा। हम इस हिसाब से परमात्मा बाप और आत्मा बच्चे का सम्बन्ध रखते हैं,
बाकी परमात्मा तो खुद पिता है वह स्वयं सुख शान्ति का सागर है, उसके पास फुल नॉलेज है, वो खुद ही दाता है, इस प्रकार से भी हम बाप कहेंगे। जब हम बाप कहते हैं तो जरूर बच्चा भी है, बाप कहने से बच्चा सिद्ध हो जाता है। अगर परमात्मा न होता तो देने वाला कौन होता? जब देने वाला है तभी तो हम लेने वाले हैं। तो दोनों का पार्ट अलग अलग ठहरा। आत्मा परमात्मा का भल रूप एक है परन्तु परमात्मा को नॉलेजफुल कहते हैं, उन्हें रचने का पार्ट मिला हुआ है, आत्मायें उनकी क्रियेशन हैं।
अच्छा – ओम् शान्ति।
SOURSE: 9-7-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.