4-9-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली. रिवाइज: 1-4-1992: “दो बातों का बैलेन्स – ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह युक्त योग”
Table of Contents
“उड़ती कला का अनुभव करने के लिए दो बातों का बैलेन्स – ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह युक्त योग“
“ओम् शान्ति”
आज बापदादा अपने स्नेही भावना-मूर्त आत्माओं और ज्ञान-स्वरूप योगी आत्माओं को देख रहे हैं। दोनों प्रकार की आत्मायें बाप को प्रिय हैं और दोनों ही बाप से अपने अपने यथा स्नेह और भावना प्रमाण प्रत्यक्ष फल वर्से के अधिकारी हैं। ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्मायें अपने शक्ति प्रमाण बाप के समीप समान सर्वशक्तियों की अनुभूति का वर्सा प्राप्त कर रही हैं। दोनों ही प्राप्ति स्वरूप हैं। लेकिन दोनों के प्राप्ति में अन्तर है। स्नेह और भावना-मूर्त बच्चे सदा भावना के कारण याद में रहते हैं। बाप से प्यार का अनुभव करते हैं, शक्ति का भी अनुभव भावना के फल के स्वरूप में करते हैं। लेकिन सदा और सर्वशक्तियाँ अनुभव नहीं करते।
ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्माएं सदा सर्वशक्तियों की अनुभूति द्वारा सहज विजयी बनने का विशेष अनुभव करती हैं, समानता का अनुभव करती हैं। तो दोनों प्रकार के बच्चे वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। सदा अचल अटल स्थिति का अनुभव योगी तू आत्माएं ही करती हैं। स्नेही वा भावना-स्वरूप आत्मायें भावना से, स्नेह से आगे बढ़ रहे हैं लेकिन सदा विजयी नहीं। स्नेही आत्माओं के मन में, मुख में सदा बाबा-बाबा है इस कारण समय प्रति समय सहयोग प्राप्त होता रहता है। भावना का फल समय प्रमाण बाप द्वारा प्राप्त हो ही जाता है। लेकिन समान बनने में ज्ञानी योगी तू आत्मायें समीप हैं इसलिए भावना और ज्ञान स्वरूप बनने का लक्ष्य रखो। जितनी भावना हो उतना ही ज्ञान स्वरूप भी हो।
सिर्फ भावना वा सिर्फ ज्ञान यह भी सम्पूर्णता नहीं। ज्ञान-युक्त भावना, स्नेह-सम्पन्न योगी आत्मा – यह दोनों का बैलेन्स सहज उड़ती कला का अनुभव कराता है। बाप समान अर्थात् दोनों की समानता।
वर्तमान समय भावना स्वरूप आत्मायें सेवा में ज्यादा आती हैं। यह आत्मायें भी स्थापना के कार्य में, चाहे आदि सनातन देवता धर्म की स्थापना में, चाहे राज्य के स्थापना में, दोनों में आवश्यक है। लेकिन अभी समय प्रमाण ज्ञानी योगी तू आत्माओं की आवश्यकता और ज्यादा है क्योंकि आगे के समय में वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के कारण भावना स्वरूप आत्मायें और भी सहज आनी ही हैं। इसलिए सेवा के लक्ष्य में ज्ञानी-योगी तू आत्माओं के तरफ अटेन्शन ज्यादा चाहिए। ऐसी आत्माओं की वृद्धि आवश्यक है। समझा, ऐसे नहीं समझो कि संख्या बहुत बढ़ रही है। लेकिन ऐसी बाप समान सर्वशक्तियों की अनुभूति वाली आत्माएं तैयार करो।
राजधानी की वृद्धि तो अच्छी हो रही है। लेकिन विश्व परिवर्तन में दोनों स्वरूप के बैलेन्स वाली आत्माएं ही निमित्त बनती हैं क्योंकि विश्व परिवर्तन के लिए बहुत सूक्ष्म शक्तिशाली स्थिति वाली आत्माएं चाहिए। जो अपने वृत्ति द्वारा, श्रेष्ठ संकल्प द्वारा अनेक आत्माओं को परिवर्तन कर सके। स्नेही वा भावुक आत्मा स्वयं में बहुत अच्छे चलते हैं लेकिन वह स्नेह व भावना विश्व के प्रति नहीं होती। स्वयं के प्रति वा कुछ समीप आत्माओं के प्रति होती है। बेहद की सेवा वा विश्व प्रति सेवा बैलेन्स वाली आत्माएं कर सकती हैं। बेहद की सेवा वा अपनी शक्तिशाली मन्सा शक्ति द्वारा, शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा होती है। सिर्फ स्वयं के प्रति भावुक नहीं लेकिन औरों को भी शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा परिवर्तित कर सकते हो।
तो ऐसी भावना और ज्ञान, स्नेह और योग शक्ति हो, ऐसी आत्माएं बने हो कि सिर्फ स्नेही भावुक आत्माओं को देख खुश हो रहे हो? कल्याणकारी बने हो या बेहद विश्व कल्याणकारी बने हो, यह चेक करो। क्या रिज़ल्ट है? बापदादा ने सुनाया कि बाप को दोनों ही प्यारे हैं। दोनों प्रकार की आत्माओं को देख बाप-दादा खुश होते हैं। फिर भी स्नेही आत्माएं बन बाप को अपना तो बना लिया ना? पहचान लिया, वर्से के अधिकारी बन गये, कोटों में कोई की लाइन में आ गये, अपने ठिकाने पर पहुँच गये, तन के भटकने, मन के भटकने से बच गये, इसलिए खुश होते हैं ना। बच्चे भी खुश, बाप भी खुश हैं। खुश]िकस्मत वाले तो बन गये हैं ना?
दुनिया के हिसाब से डायरेक्ट बाप के बनने वाले देखो कितनी साधारण आत्मायें हैं! विश्व के शिक्षक के स्टूडेन्ट देखो कैसे वन्डरफुल हैं! पढ़ाने वाला ऊंचे ते ऊंचा और पढ़ने वाले साधारण। लेकिन साधारण ही साधारण स्वरूप में आने वाले बाप को जानते हैं। बापदादा भी वी.आई.पी. बनके तो नहीं आते हैं ना, साधारण रूप में आते हैं। कोई प्राइम मिनिस्टर वा किसी राजा के तन में नहीं आते इसलिए पहचानने वाले साधारण ही भाग्य प्राप्त करते हैं। खुशनसीब हो ना, कितना भाग्य मिला हैं पद्मापद्म कहना भी कुछ नहीं है।
अभी भी देखो संख्या तो बहुत है ना। पहले सोचते थे यह इतना बड़ा हॉल किस काम में आयेगा और अभी क्या लगता है इससे बड़ा हॉल होना चाहिए ना। ब्राह्मणों को यह वरदान है, जितना बड़ा बनाते जायेंगे उतना छोटा होता जायेगा। जो भी आये हैं सभी आने वालों को मुबारक देते हैं, लेकिन सिर्फ भावुक नहीं बनो, ज्ञानी भी बनो। प्रकृति के भी ज्ञानी बनो। ज्ञान सिर्फ आत्मा का नहीं। आत्मा, परम आत्मा और प्रकृति। उसमें ड्रामा भी आ जाता है। तीनों का ज्ञान चाहिए। कहाँ जा रहे हैं और अपने लिए क्या अटेन्शन चाहिए, यह प्रकृति का भी अगर नॉलेज नहीं है तो नॉलेजफुल नहीं है। स्थान का, व्यक्ति का, स्थिति तीनों का ज्ञान रखो।
सिर्फ भावुक नहीं बनो, जाना ही है, लाना ही है…। ज्ञान स्वरूप माना दूरादेशी, त्रिकालदर्शी, तीनों का ज्ञान अगर स्पष्ट है तो सफलता मिलती है। अगर कोई अपनी गलती से बार-बार बीमार होता है तो बापदादा उसको ज्ञान योगी नहीं कहते। ज्ञान का अर्थ है समझ। अपनी स्थिति को भी समझो, अपने शरीर को भी समझो। आत्मा की स्थिति, शरीर की स्थिति, वायुमण्डल का सब ज्ञान बुद्धि में है तो नॉलेजफुल हैं इसीलिए सिर्फ भावना पर राज़ी नहीं हो जाओ।
आने वाले, लाने वाले, दोनों को नॉलेजफुल होना चाहिए। जो होता है वह तो मीठा ड्रामा ही कहेंगे। हलचल में तो नहीं आयेंगे ना – अचल। लेकिन आगे के लिए अटेन्शन। बापदादा भी जानते हैं कि बच्चे कितनी मेहनत सहन करके पहुँचते हैं, इसके लिए तो मुबारक दे ही दी। जिस आत्मा का जो वर्सा है वह उसको प्राप्त होना ही है। वर्से से वंचित कोई नहीं रह सकता। चाहे साकार में सम्मुख हैं, चाहे अपने स्थान पर मनमनाभव रहते, वर्सा अवश्य प्राप्त होना है। डबल नॉलेजफुल होना है, हाफ नॉलेजफुल नहीं बनो। अच्छा!
“चारों ओर के सर्व खुशनसीब आत्माएं, सर्व स्नेह और योग शक्ति की समानता की अनुभवी आत्माएं, भावना और ज्ञान स्वरूप आत्माएं, सदा बाप समान बनने के लक्ष्य को पूर्ण करने वाली आत्माएं, सदा समीप अनुभव करने वाली आत्माएं, ऐसे सदा अचल-अडोल रहने वाली विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।“
नोट:- आज मधुबन में आई हुई पार्टी में एक ही घण्टे के अन्दर कर्नाटक ज़ोन के दो बुजुर्ग भाइयों ने अपना पुराना शरीर छोड़ा है इसलिए बापदादा ने सभी का विशेष अटेन्शन खिंचवाया है।
दादियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात :-
संगठन की शक्ति संगठन को आगे बढ़ा रही है। अच्छी हिम्मत से एक दो को सहयोग दे वृद्धि को प्राप्त कर रहे हो। आप निमित्त बनी हुई आत्माओं की हिम्मत अनेक आत्माओं की हिम्मत को बढ़ाती है। हर परिस्थिति के अनुभवी बन गये। नथिंग न्यु लगता है ना, बापदादा पर्दे के अन्दर सकाश दे रहे हैं, लेकिन पार्ट बजाने वाली स्टेज पर आप आत्मायें हो। अच्छा पार्ट बजा रही हो। बापदादा सदा महावीरों के निमित्त संगठन को विशेष अमृतवेले नम्बरवन उन्हीं आत्माओं को यादप्यार गुडमार्निंग करते हैं और वही सकाश कहो, प्यार कहो, सारे दिन की खुराक हो जाती है। ऐसे लगता है ना? सब ठीक है। हिम्मत से सफलता है ही।
अव्यक्त बापदादा से डबल विदेशी भाई बहिनों की मुलाकात : आस्ट्रेलिया पार्टी से :-
आस्ट्रेलिया निवासी बच्चों की विशेषता बापदादा देख रहे हैं। आस्ट्रेलिया निवासियों की विशेषता क्या है, जानते हो? (पहली बार आये हैं इसलिए नहीं जानते हैं) नये स्थान पर आये हो वा अपने पहचाने हुए स्थान पर आये हो? यहाँ पहुँचने से कल्प पहले की स्मृति इतनी स्पष्ट हो जाती है जैसे इस जन्म में भी अभी-अभी देखा है। यही निशानी है समीप आत्मा की। इसी अनुभव द्वारा ही अपने को जान सकते हो कि हम ब्राहमण आत्माओं में भी समीप की आत्मा हैं वा दूर की आत्मा है। फर्स्ट नम्बर है या सेकण्ड नम्बर हैं।
यही इस अलौकिक सम्बन्ध में विशेषता है जो हरेक समझता है कि मैं फर्स्ट जाऊंगा। लौकिक में तो नम्बरवार समझेंगे यह बड़ा है, यह दूसरा नम्बर, यह तीसरा नम्बर है। लेकिन यहाँ लास्ट वाला भी समझता है कि मैं लास्ट सो फर्स्ट हूँ। यही लक्ष्य अच्छा है। फर्स्ट आना ही है। तो फर्स्ट की निशानी – सदा बाप के साथ रहना। प्रयत्न नहीं करना है लेकिन सदा साथ का अनुभव रहे। जब यह अनुभव हो जाता है कि मेरा बाबा है, तो जो मेरा होता है वह स्वत: ही याद रहता है, याद किया नहीं जाता है। मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। “मेरा बाबा और मैं बाबा का” कितने थोड़े से शब्द हैं और सेकण्ड की बात हैं। इसको ही कहा जाता है सहजयोगी। आपके बोर्ड में भी सहज राजयोग केन्द्र लिखा हुआ है ना। तो ऐसा ही सहज योग सीखे हो?
माया आती है? बाप के साथ रहने वाले के सामने माया आ नहीं सकती। जैसे अपने शरीर के रहने का स्थान मालूम है, बना हुआ है तो जब भी फ्री होते हो तो सहज ही अपने घर में जाकर रेस्ट करते हो। इसी रीति से जब मालूम है कि मुझे बाप के पास रहना है, यही ठिकाना है तो कार्य करते भी रह सकते हो। ऐसे बुद्धि द्वारा अनुभव हो। हरेक अपनी तकदीर बनाकर, तकदीर बनाने वाले के सामने पहुँच गये। बापदादा हरेक की तकदीर का सितारा चमकता हुआ देख रहे हैं। वैरायटी ग्रुप है। बच्चे भी हैं, बुजुर्ग भी हैं, यूथ भी हैं। लेकिन अभी तो सब छोटे बच्चे बने गये। अभी कोई कहेंगे 8 मास के हैं, कोई 12 मास के। अलौकिक जन्म का ही वर्णन करेंगे ना! अच्छा!
सभी कल्प पहले वाली सिकीलधी आत्मायें हो। सदा बाप के अटूट लगन में मगन रहते हुए आगे बढ़ते चलो। यह अटूट याद ही सर्व समस्याओं को हलकर उड़ता पंछी बनाए उड़ती कला में ले जायेगी। बापदादा के दिलतख्तनशीन रहते हुए सदा इसी नशे में रहो कि हम कल्प-कल्प के अधिकारी हैं। कल्प-कल्प अपना अधिकार लेते रहेंगे। मुबारक हो। सदा ही मुबारक लेने के पात्र आत्मायें हो। अच्छा।
अमेरिका पार्टी से:-
आप सब बापदादा के सिर के ताज, श्रेष्ठ आत्मायें हो ना। श्रेष्ठ आत्माओं का हर संकल्प, हर बोल श्रेष्ठ होगा। कभी कभी नहीं सदा, क्योंकि सदा का वर्सा पा रहे हो ना। तो जब सदा का वर्सा पाने के अधिकारी हो तो स्थिति भी सदाकाल की। ‘सदा’ शब्द को सदा याद रखना। यही वरदान सभी बच्चों को बापदादा देते हैं। सदा खुश रहेंगे, सदा उड़ती कला में रहेंगे, सदा सर्व खजानों से सम्पन्न रहेंगे। ऐसे वरदान लेने वाली आत्मायें सहजयोगी स्वत: हो जाती हैं।
आज खुशी का दिन है? सबसे अधिक खुशी किसको है, बाप को है या बच्चों को है? (बच्चों को है) बापदादा को यह खुशी है कि ऐसा कोई बाप सारे वर्ल्ड में नहीं होगा जिसका हरेक बच्चा श्रेष्ठ हो। बापदादा एक एक बच्चे की अगर विशेषता का वर्णन करें तो कई वर्ष बीत जाएं। हरेक बच्चे की महिमा के बड़े बड़े शास्त्र बन जाएं विशेष आत्मा हो – ऐसा निश्चय हो तो सदा मायाजीत स्वत: हो जायेंगे।
मैक्सिको ग्रुप से:-
जितना दूर हैं उतना दिल से समीप हो? ऐसा अनुभव करते हो ना? सभी ने अपनी सीट बापदादा का दिलतख्त रिजर्व कर लिया है? बापदादा एक एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। एक-एक रत्न स्थापना के कार्य को सफल करने के निमित्त हैं। तो अपने को इतने अमूल्य रत्न समझते हो? कितनी भाग्यवान आत्मायें हो जो इतनी दूर से भी बाप ने ढूंढ कर अपना बनाया है। आज की दुनिया में जो बड़े बड़े विद्वान, आचार्य हैं, उन्हों से आप पदमगुणा अधिक भाग्यवान हो। बस इसी खुशी मे रहो कि जो जीवन में पाना था वह पा लिया।
न्यूजीलैण्ड ग्रुप से:-
न्यू लैण्ड बना रहे हो ना? स्वयं को भी नया बनाया तो विश्व को भी नया बनायेंगे ना। अपना आक्यूपेशन यही सुनाते और लिखते हो ना कि हम सभी विश्व का नव निर्माण करने वाले हैं। तो जहाँ रहते हो उसको तो नया बनायेंगे ना। हरेक स्थान की अपनी विशेषता है। न्यूजीलैण्ड की विशेषता क्या है? न्यूजीलैण्ड में गये हुए भारतवासियों ने फिर से भारत के श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले बाप को पहचान लिया है। भारत में रहते भारतवासी बच्चों ने नहीं जाना लेकिन विदेश में रहते भारत की महिमा को और बाप को जान लिया। न्यूजीलैण्ड में भारत के बिछड़े हुए बच्चे अच्छे अच्छे निकले हैं। टीचर्स पीछे मिली हैं। लेकिन सर्विस की स्थापना पहले की इसलिए हिम्मत वाले बच्चे, उमंग-उल्लास वाले बच्चे विशेष हैं। समझा।
वरदान:- लगाव के सूक्ष्म धागों को समाप्त कर उड़ती कला में उड़ने वाले सम्पूर्ण फरिश्ता भव!
फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया से कोई रिश्ता नहीं। तो सूक्ष्म रीति से चेक करो कि अंश मात्र भी कोई धागा अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करता है? क्योंकि यदि कोई चीज़ अच्छी लगती है तो वह अपनी तरफ आकर्षित जरूर करती है। कई कहते हैं इच्छा नहीं है लेकिन अच्छा लगता है। तो इच्छा है मोटा धागा और अच्छा है सूक्ष्म धागा, अब उसे भी समाप्त कर सम्पूर्ण फरिश्ता बनो।
स्लोगन:- “मन्सा द्वारा शक्तियों का और कर्म द्वारा गुणों का दान देना ही महादानी बनना है। “– ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARMATMA LOVE SONGS”.
किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
o——————————————————————————————————————–o