8-11-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “तुम्हारी रूहानी यात्रा बहुत गुप्त है जो तुम्हें बुद्धियोग से करते रहना है”

शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – तुम्हारी रूहानी यात्रा बहुत गुप्त है जो तुम्हें बुद्धियोग से करते रहना है, इसमें ही कमाई है”

प्रश्नः– याद की यात्रा पर रहने वाले बच्चों की निशानी क्या होगी?

उत्तर:- 1.वह बहुत गम्भीर और समझदार होंगे। सदा शान्तचित रहेंगे।

2- उनमें अशुद्ध अहंकार नहीं होगा।

3- उन्हें सिवाए एक बाप की याद के और कोई भी बात अच्छी नहीं लगेगी।

4- वह बहुत कम और धीरे बोलेंगे। वह हर काम ईशारे से करेंगे। जोर से बोलेंगे वा हसेंगे नहीं।

5- उनकी चलन बहुत-बहुत रॉयल होगी। उन्हें नशा होगा कि हम ईश्वरीय सन्तान हैं।

6- आपस में बहुत प्यार से रहेंगे। कभी लूनपानी नहीं होंगे। उनकी वाचा बहुत फर्स्टक्लास होगी।

गीत:- “रात के राही………………..”

गीत:- “रात के राही………………..”, अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.

Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव
Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव

-: ज्ञान के सागर और पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-

अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)

“ओम् शान्ति”

शिव भगवानुवाच : बच्चे जानते हैं कि हम रात के राही हैं। परन्तु ऐसे नहीं कि तुम कोई रात्रि को ही बुद्धियोग लगाते हो वा मुसाफिरी पर हो, नहीं। यह तो बेहद की बात है। वो जिस्मानी यात्रा सिर्फ दिन में ही होती है। रात्रि को नहीं जाते हैं। रात्रि को तो सब सो जाते हैं। इस यात्रा को तो तुम जानो अथवा बाप जाने अर्थात् निराकार परमपिता परमात्मा जाने और निराकारी आत्मायें ही जानें। अभी परमपिता परमात्मा शरीर में बैठ यह यात्रा सिखलाते हैं। यह कभी न कोई शास्त्र में सुना, न कोई विद्वान पण्डित सिखला सकते हैं।

यह यात्रा रात को भी, अमृतवेले भी हर समय हो सकती है। भक्त लोग सवेरे उठकर कोठरी में बैठ जाते हैं। पूजा करते हैं। तुमको भी कहा जाता है कि सवेरे याद की यात्रा अच्छी होगी। यह है रूहानी यात्रा। बच्चे देही-अभिमानी बने हैं। हम आत्मा हैं, यह निश्चय करना भी मासी का घर नहीं है। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। बहुत बच्चे हैं जो इस यात्रा को जानते भी नहीं हैं। बुद्धि में बैठता ही नहीं है। अगर यात्रा पर चला हुआ है तो नित्य यात्रा करते रहे ना। यात्रा में फिर ठहरना थोड़ेही होता है। ठहर जाते हैं अर्थात् यात्रा करने का शौक नहीं है।

तुम्हारी है गुप्त यात्रा, इनका वर्णन कोई शास्त्र में नहीं है। जितना यात्रा पर बुद्धि योग रहेगा अर्थात् बाप को याद करते रहेंगे उतना कमाई होगी। बुद्धि का योग दौड़ी पहनता है – बाप के पास, इसमें आत्म-अभिमानी बनना है। आधाकल्प तुम देह-अभिमानी बने हो। वह आधाकल्प की आदत तुमको इस एक जन्म में मिटानी है अथवा खत्म करनी है। यह कोई वह सतसंग नहीं है शास्त्र सुनने का। तुम बैठे हो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो। फिर बाप की मत पर भी चलना है, जो मत बाबा ब्रह्मा द्वारा दे रहे हैं।

फिर लक्षण भी अच्छे रखने हैं। शैतानी लक्षण नहीं होने चाहिए। उसमें भी जो पहला नम्बर अशुद्ध अहंकार है उनके बाद सब और विकार आते हैं। तो अपने को आत्मा निश्चय करना, यह अभ्यास बड़ी मेहनत का है। बहुतों से यह मेहनत पहुँचती नहीं है। क्यों? तकदीर में नहीं है।

Paramdham - Soul World, परमधाम - आत्माओ का घर
Paramdham – Soul World, परमधाम – आत्माओ का घर

इस यात्रा पर रहने वाले की निशानी क्या होगी? वह बड़े गम्भीर और समझदार रहते हैं। एक बाप की याद के सिवाए उनको और कोई बात अच्छी नहीं लगेगी। शान्ति तो बहुत लोग पसन्द करते हैं। संन्यासी लोग भी एकान्त में जंगल आदि में जाकर रहते हैं। परन्तु वह तत्व अथवा ब्रह्म की याद में रहते हैं। वह यात्रा तो है झूठी क्योंकि ब्रह्म अथवा तत्व कोई सर्वशक्तिमान बाप तो है नहीं। आत्माओं का बाप तो एक ही निराकार परमपिता परमात्मा शिव है, जिसको सब आत्मायें पुकारती हैं। आत्मा ऐसे कब नहीं कहती, हे ब्रह्म बाबा, हे तत्व बाबा। नहीं। आत्मा सदैव कहती है हे परमपिता परमात्मा, उनका नाम चाहिए। ब्रह्म तो महतत्व रहने का स्थान है।

बाप कहते हैं ब्रह्म ज्ञानी वा ब्रह्म योगी कहना यह भ्रम है। कोई ने कह दिया और मान लिया। भक्ति में सब झूठा रास्ता बताते हैं, इसलिए देही-अभिमानी बन नहीं सकते। आत्मा सो परमात्मा कह दिया तो फिर योग किससे लगायें। बाप कहते हैं यह सब मिथ्या ज्ञान है अर्थात् ज्ञान ही नहीं है। ज्ञान और भक्ति दो अक्षर आते हैं। आधाकल्प ज्ञान और आधाकल्प भक्ति चलती है। बाप आकर समझाते हैं कि इन शास्त्र आदि में भक्ति का ही वर्णन है। ज्ञान अलग चीज़ है, आधाकल्प ज्ञान सतयुग त्रेता दिन। आधाकल्प भक्ति यानी रात द्वापर कलियुग। ऐसी सहज बातें भी विद्वान आचार्य नहीं जानते। बिल्कुल ताकत नहीं रही है।

तुम कहते हो परमपिता परमात्मा हमको पढ़ाते हैं। लोग तो कहते हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी है, पढ़ायेंगे कैसे? बहुत माथा मारना पड़ता है। एक बच्ची ने समाचार लिखा – एक सेठ ने प्रश्न पूछा तुम शास्त्र पढ़ी हो? उसने कहा परमात्मा ने हमको शास्त्रों का सार समझाया है। हमारा दूसरा गुरू है नहीं। तो वह अपनी तीक-तीक करने लगा कि शास्त्र जरूर पढ़ना चाहिए। यह करना चाहिए। वह सुनती रही। परन्तु बड़े आदमियों को समझाने की हिम्मत चाहिए। कहना चाहिए कि यह ठीक है। वेद शास्त्र पढ़ना है परन्तु भगवानुवाच – कि इन्हें पढ़ने से मेरे साथ कोई मिल नहीं सकते, मुक्ति-जीवनमुक्ति पा नहीं सकते।

पहली बात यह समझानी चाहिए – परमपिता परमात्मा के साथ आपका क्या सम्बन्ध है? भल आप नगर सेठ हो सिर्फ एक बात आपसे पूछते हैं? देखना चाहिए क्या जवाब देते हैं क्योंकि बाप को सब भूले हुए हैं। तो पहले परिचय देना पड़े। परन्तु बच्चे ऐसी-ऐसी बातें भूल जाते हैं। श्रीमत पर चलते नहीं।

पहले श्रीमत कहती है कि मुझे याद करो। एक घण्टा आधा घण्टा सिर्फ याद जरूर करो। कई बच्चे सारे दिन में 5 मिनट भी याद नहीं करते। यह सब लक्षणों से पता लग जाता है। अगर याद करते हो तो चलन बड़ी रॉयल होनी चाहिए। बच्चों ने राजाओं को कब देखा नहीं है। यह बाबा का रथ तो बहुत अनुभवी है। सबको जानते हैं। कोई जेवर आदि लेने होंगे तो महाराजा आयेगा – सिर्फ हाथ लगाया और गये फिर पोट्री आपेही बात करेंगे। तो उन्हों का कितना दबदबा रहता है।

तुम गुप्त हो परन्तु बड़ा रॉयल्टी से चलना चाहिए। बिल्कुल थोड़ा बोलना चाहिए। क्यों? हमको टाकी से सूक्ष्म, सूक्ष्म से मूल में जाना है। भक्तिमार्ग में बहुत रड़ियां मारते हैं। गीत गाते हैं। यहाँ तुमको आवाज बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अन्दर में यह ज्ञान है कि हम आत्मा हैं। यहाँ बाकी थोड़े रोज़ हैं। अब जाना है।

GANDHI's Three MONKEYS Learnings , गाँधी जी कि तीन बन्दर से शिक्षा
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शिवबाबा कितना थोड़ा बोलते हैं सिर्फ ईशारा देते हैं कि मुझे और वर्से को याद करो। टॉक नो ईविल, सी नो ईविल… बहुत सेन्टर्स पर अच्छे-अच्छे बी.के. इतना जोर से बोलते-हँसते हैं, बात मत पूछो। बाबा समझाते रहते हैं। यहाँ तुम्हारा कितना लव चाहिए। सतयुग में शेर गाय इक्ट्ठा जल पीते हैं। यहाँ बहुत प्यार होना चाहिए। हम ईश्वरीय सन्तान हैं, बड़ी रॉयल चलन चाहिए। हम परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। हम श्रीमत पर चलकर बेहद का वर्सा ले रहे हैं। श्रीमत पर नहीं चलते तो कितनी डिस-सर्विस करते हैं इसलिए टाइम बहुत लग जाता है। वाचा बड़ी फर्स्टक्लास होनी चाहिए। स्कूल में बच्चे नम्बरवार होते हैं। कोई तो बहुत अच्छा पढ़ते हैं – कोई थर्ड क्लास।

गरीबों की लगन अच्छी होती है। 50 गरीब आयेंगे तो एक साहूकार। क्यों? बाबा है गरीब निवाज़। मम्मा गरीब थी। परन्तु बाबा से आगे चली गई। उन्हें लिफ्ट मिल गई। बाबा ने इसमें प्रवेश किया – यह भी लिफ्ट है। बच्चों को देही-अभिमानी बनना है। लक्षण भी सीखने हैं, तब खुशी का पारा चढ़ेगा। बाप कहते हैं तुमको सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, पवित्र आत्मा बनना है। इनके पास आते हो तो शिवबाबा को याद करके आओ। तुमको याद करना है शिवबाबा को। यह तो गॉवड़े का छोरा था।

यह है ही निधनके, दु:ख देने वाले छोकरों की दुनिया। छो करे अर्थात् क्यों गिरे। माया ने गिरा दिया है। बाबा कारण बतलाते हैं कि तुम भारतवासी स्वर्ग के मालिक थे। फिर गिरे क्यों? मुझ बाप को भूल गये। अब मुझे याद करो तो चढ़ जायेंगे। मुख्य बात है बाप को याद करना, ज्ञान की बातें सुननी और सुनानी है। सर्विस करनी है। मम्मा भी सर्विस करती थी। बाबा जास्ती नहीं जा सकते। बच्चे कमाई करते तो सर्विस करने वाले हो गये। बाबा को तो एक जगह रहना है।

सबको यहाँ आकर रिफ्रेश होना है। यहाँ मधुबन में जो आते हैं तो सागर बाबा बहुत प्वाइंटस देते हैं। फर्क है ना। भल सेन्टर्स पर अच्छे-अच्छे हैं तो भी यहाँ आना पड़ता है। बाबा अच्छी तरह समझाते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे भी आपस में लूनपानी हैं तो वह औरों को क्या सिखलायेंगे? आपस में बात नहीं करते, कितना नाम बदनाम करते हैं इसलिए बाबा मुरली चलाते हैं कि कहाँ बच्चों की आंख खुले। परन्तु ब्राह्मणियां आपस में मिलती नहीं हैं। बात नहीं करती हैं।

Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन - स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण
Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन – स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण

यह बहुत बड़ी मंजिल है। बाबा कहते हैं मैं आता हूँ तुमको विश्व का मालिक बनाने। कोई हथियार आदि नहीं। न कोई खर्चे की बात है। सिर्फ बाबा को याद करो और दैवीगुण धारण करो। आपस में बहुत मीठा बोलो। सबको ज्ञान की बातें सुनाओ। तुम्हारा धन्धा ही यह है। गीता का रहस्य इन चित्रों से समझाना है। वह भक्ति के गीत गाते हैं कि हे पतित-पावन आओ, आकर के पावन बनाओ। गीता के भगवान ने आकर पावन बनाया है। तुम जानते हो गीता का भगवान हमको फिर से नर से नारायण, मनुष्य से देवता बना रहे हैं। परन्तु अपने में गुण तो देखो। कोई-कोई का झूठ तो जैसे नम्बरवन धर्म है।

तुम बच्चों को बिल्कुल भी दु:ख नहीं देना चाहिए। किसको दु:ख देते हैं तो जानवर से भी बदतर हैं। मुख से कुछ और कहते हैं और आपस में लूनपानी होते रहते हैं तो बहुत डिस-सर्विस करते हैं। इसको ही माया का ग्रहण कहा जाता है। कोई पर ग्रहचारी बैठती है तो ग्लानी करने लग पड़ते हैं। किसकी ग्रहचारी थोड़ा समय चलती है, किसकी अन्त तक भी उतरती नहीं है। तो बच्चों को सर्विस में लगा रहना चाहिए। बाबा सर्विस बिगर हम रह नहीं सकते। हमको कहाँ भेजो। जो सर्विस ही नहीं जानते तो उनको बाबा थोड़ेही एलाउ करेंगे। देखेंगे इनको सर्विस का शौक है? कहते हैं बाबा हमको फलानी सर्विस का शौक है तो बाबा भेज देते हैं।

सर्विस बिगर क्या पद पायेंगे। तुम्हारी सर्विस ही है मनुष्य से देवता बनाना। पूछना ही यह है कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? बाबा ने कुरूक्षेत्र वालों को डायरेक्शन दिये हैं कि बड़े-बड़े बोर्ड लगा दो। मेले में यह पोस्टर जरूर लगा दो। तो सबका विचार चलेगा कि यह ठीक पूछते हैं। यह बड़ी अच्छी बात है। वहाँ पण्डे लोग ऐसे हैं जो माथा खराब कर देते हैं।

देखा गया है – तीर्थों पर बहुत सर्विस नहीं हो सकती है। बहुत समझ भी जाते हैं फिर कहते हैं हम अगर यह ज्ञान समझाने लग पड़े तो हमारी कमाई चट हो जायेगी। इतने सब फालोअर्स कहेंगे कि यह बी.के. पर आशिक हुआ है। इसमें बड़ी समझ और दूरादेशी चाहिए। बलिहारी शिवबाबा की है, उनकी श्रीमत पर चलना है। ज्ञान में बड़ी अच्छी बुद्धि चाहिए। श्रीमत पर चलना चाहिए।

बहुतों को अहंकार आ जाता है कि मेरे जैसा कोई है नहीं। कोई तो ऐसे बुद्धू हैं समझते हैं कि ब्रह्मा भी क्या है? जैसे हम जिज्ञासू हैं, वैसे ब्रह्मा भी जिज्ञासू है। कोई प्वाइंट में हम तीखे हैं, कोई प्वाइंट में करके ब्रह्मा तीखा जायेगा। अरे मम्मा बाबा तो जरूर सबसे तीखे होंगे। हम उन्हों का सामना क्यों करते हैं। बहुतों को अहंकार आ जाता है।

बाबा कहते हैं रात के राही थक मत जाओ। बन्दरपना छोड़ दो। नहीं तो फिर सज़ायें खायेंगे। दैवीगुण धारण करने हैं। किसको भी कभी उल्टी मत नहीं देनी चाहिए जो उनका बुद्धियोग टूट पड़े। धूतियां उल्टी मत देती हैं। यह भी शास्त्रों में है ना। राम है एक, बाकी सब हैं सीतायें। बच्चों की चाल बड़ी दैवी होनी चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। ओम् शान्ति।“

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) सत्य बाप सत्य बनाने आये हैं इसलिए कभी भी झूठ नहीं बोलना है। सदा सच्चे होकर रहना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।

2) मुख से ज्ञान की बातें बोलनी हैं। वाचा बहुत फर्स्टक्लास रखनी है। किसी को भी उल्टी मत देकर धूती-पना नहीं करना है।

वरदान:-     “कम्पेनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करने वाले स्मृति स्वरूप भव”

कई बच्चों ने बाप को अपना कम्पैनियन तो बनाया है लेकिन कम्पैनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करो, अलग हो ही नहीं सकते, किसकी ताकत नहीं जो मुझ कम्बाइन्ड रूप को अलग कर सके, ऐसा अनुभव बार-बार स्मृति में लाते-लाते स्मृति स्वरूप बन जायेंगे। जितना कम्बाइन्ड रूप का अनुभव बढ़ाते जायेंगे उतना ब्राह्मण जीवन बहुत प्यारी, मनोरंजक अनुभव होगी।

स्लोगन:-    “दृढ़ संकल्प की बेल्ट बांधी हुई हो तो सीट से अपसेट नहीं हो सकते। – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे

च्छाओम् शान्ति।

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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल” को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।

खोज करो:ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.

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