“कर्मबन्धन से रहित जीवनमुक्त”
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य:- “कर्मबन्धन से रहित जीवनमुक्त”जीवन
“कांटों की दुनिया से ले चलो फूलों की छांव में”, अब यह बुलावा सिर्फ परमात्मा के लिये कर रहे हैं। जब मनुष्य अति दु:खी होते हैं तो परमात्मा को याद करते हैं, परमात्मा इस कांटों की दुनिया से ले चल फूलों की छांव में, इससे सिद्ध है कि जरूर वो भी कोई दुनिया है।
अब यह तो सभी मनुष्य जानते हैं कि अब का जो संसार है वो कांटों से भरा हुआ है। जिस कारण मनुष्य दु:ख और अशान्ति को प्राप्त कर रहे हैं और याद फिर फूलों की दुनिया को करते हैं। तो जरूर वो भी कोई दुनिया होगी जिस दुनिया के संस्कार आत्मा में भरे हुए हैं।
अब यह तो हम जानते हैं कि दु:ख अशान्ति यह सब कर्मबन्धन का हिसाब किताब है। राजा से लेकर रंक तक हर एक मनुष्य मात्र इस हिसाब में पूरे जकड़े हुए हैं इसलिए परमात्मा तो खुद कहता है अब का संसार कलियुग है, तो वो सारा कर्मबन्धन का बना हुआ है और आगे का संसार सतयुग था जिसको फूलों की दुनिया कहते हैं। अब वो है कर्मबन्धन से रहित जीवनमुक्त देवी देवताओं का राज्य, जो अब नहीं है।
अब यह जो हम जीवनमुक्त कहते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम कोई देह से मुक्त थे, उन्हों को कोई देह का भान नहीं था, मगर वो देह में होते हुए भी दु:ख को प्राप्त नहीं करते थे, गोया वहाँ कोई भी कर्मबन्धन का मामला नहीं है। वो जीवन लेते, जीवन छोड़ते आदि मध्य अन्त सुख को प्राप्त करते थे।
तो जीवनमुक्ति का मतलब है जीवन होते कर्मातीत, अब यह सारी दुनिया 5 विकारों में पूरी जकड़ी हुई है, मानो 5 विकारों का पूरा पूरा वास है, परन्तु मनुष्य में इतनी ताकत नहीं है जो इन 5 भूतों को जीत सके, तब ही परमात्मा खुद आकर हमें 5 भूतों से छुड़ाते हैं और भविष्य प्रालब्ध देवी देवता पद प्राप्त कराते हैं।
अच्छा – ओम् शान्ति।
SOURSE: 8-6-2022 प्रात: मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन.