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15-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “किसी में भी मोह नहीं रखना है – मोह जीत बनना है”

संगमयुगी ब्राह्मण अर्थात् दु:ख का नाम-निशान नहीं क्योंकि सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हो। जो मास्टर सुखदाता, सुख स्वरूप हैं वह स्वयं दु:ख में कैसे आ सकते हैं। बुद्धि से दु:खधाम का किनारा कर लिया। वे स्वयं तो सुख स्वरूप रहते ही हैं लेकिन औरों को भी सदा सुख...

14-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “मीठे बच्चे – तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है”

संगमयुग परमात्म स्नेह का युग है। इस युग के महत्व को जानकर स्नेह की अनुभूतियों में समा जाओ। स्नेह का सागर स्नेह के हीरे मोतियों की थालियां भरकर दे रहे हैं, तो अपने को सदा भरपूर करो।ये परमात्म प्यार के हीरे-मोती अनमोल हैं, इससे सदा सजे सजाये रहो...

13-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “शिवजयन्ती का त्योहार बड़े ते बड़ा त्योहार है इसे तुम बच्चों को बहुत धूमधाम से मनाना है”

स्नेह की शक्ति मेहनत को सहज कर देती है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं होती। मेहनत मनोरंजन बन जाती है।रमात्म स्नेही आत्मायें सहज ही मेहनत से मुक्त हो जाती हैं। यह स्नेह का वरदान सदा स्मृति में रहे तो कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो, प्यार से, स्नेह से...

12-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “तुम्हारा बुद्धि-योग सदा ऊपर लटका रहे”

यदि सेवा योगयुक्त और यथार्थ है तो सेवा का फल खुशी, अतीन्द्रिय सुख, डबल लाइट की अनुभूति अथवा बाप के कोई न कोई गुणों की अनुभूति प्रत्यक्षफल के रूप में जरूर होती है। और जो प्रत्यक्षफल खाते हैं वह मन-बुद्धि से सदा तन्दरूस्त रहते हैं।प्रत्यक्षफल सदा हेल्दी बनाता है...

11-12-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “प्रत्यक्षता का आधार – दृढ़ प्रतिज्ञा”

श्रेष्ठ कर्म की निशानी है - स्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसे नहीं मैं तो सन्तुष्ट हूँ, दूसरे हों या नहीं। योगी जीवन वाले का प्रभाव दूसरों पर स्वत: पड़ता है। योगी जीवन के तीन सर्टीफिकेट हैं - एक स्व से सन्तुष्ट, दूसरा - बाप सन्तुष्ट और...