20-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “बाप ही इस गरीब भारत को फिर से साहूकार बनाते हैं”
जिन बच्चों को बहानेबाजी का खेल आता है वह कहेंगे - ऐसे नहीं होता तो वैसा नहीं होता। इसने ऐसे किया, सरकमस्टांश वा बात ही ऐसी थी....अब इस बहानेबाजी की भाषा को समाप्त कर दृढ़ प्रतिज्ञा करो कि ऐसा हो या वैसा लेकिन मुझे तो बाप जैसा बनना है।...
20-10-2022 ”Avyakt-BapDada” Madhuban Morning Murli: “Only the Father makes this poor Bharat wealthy once again.”
The children who know how to play the game of making excuses say, “If it weren’t for this, it would be like this.” “This one did this”, or “The circumstances were like this…” Now, finish this language of making excuses and make this determined promise: No matter what happens,...
19-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “तुम अभी इस शोक वाटिका से अशोक वाटिका में चलते हो”
प्रतिज्ञा में लूज़ होने का मूल कारण है - अलबेलापन। पुरूषार्थ वा प्लैन को कमजोर करने का स्क्रू एक ही है - अलबेलापन। वह नये-नये रूप में आता है। इसी लूज़ स्क्रू को टाइट करो। मुझे बाप समान बनना ही है - इसी दृढ़ संकल्प से तीव्र पुरूषार्थी बन...
19-10-2022 ”Avyakt-BapDada” Madhuban Morning Murli: “You are now going from this cottage of sorrow to the cottage that is free from sorrow.”
The main reason why you become loose in your promise is carelessness. the one screw that makes you weak in your efforts and your plans is carelessness. It comes in new forms. Now, tighten that loose screw. “I definitely have to become equal to the Father”. By having this...
18-10-2022 ”Avyakt-BapDada” Madhuban Morning Murli: “sit in silence by withdrawing your senses like a tortoise and spin the discus of self-realisation.”
While living at home with your family, never think that you are there because of your karmic accounts or bondages. No, that too is service. When you are bound with the bond of service, your karmic bondages finish. Until you have the consciousness of serving, karmic bondages will pull...
18-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “कछुये मिसल सब कुछ समेटकर चुप बैठ स्वदर्शन चक्र फिराओ”
प्रवृत्ति में रहते हुए कभी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्मबन्धन है...लेकिन यह भी सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता है। कर्मबन्धन होगा तो दुख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन...
17-10-2022 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “दूसरों का कल्याण करने के निमित्त बनो”
बाप की याद ही छत्रछाया है, जितना याद में रहते उतना साथ का अनुभव होता है। छत्रछाया में रहना अर्थात् सदा सेफ रहना। छत्रछाया के नीचे, मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने से कोई की हिम्मत नहीं अन्दर आने की।इसलिए साथ के अनुभव से मायाजीत बनो।- ओम् शान्ति।...
17-10-2022 ”Avyakt-BapDada” Madhuban Morning Murli: “Become instruments to bring constant benefit to yourselves and others.”
Remembrance of the Father is your canopy of protection. According to how much you have remembrance of the Father, you experience His company. To stay under the canopy of protection means to be constantly safe. When you stay under the canopy of protection and within the line of the...
16-10-2022 ”Avyakt-BapDada” Madhuban Murli. Revised:03-11-1992: “The signs of souls who are filled with spiritual royalty.”
In the physical world, it is said: Eat fresh fruit and you will stay healthy. They show fruit as a means of staying healthy. You children eat instant fruit at every second. I am in a happy state and I move like an angel. I am healthy, wealthy and...
16-10-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली. रिवाइज: 3-11-1992: “रूहानी रॉयल्टी सम्पन्न आत्माओं की निशानियां”
जैसे साकार दुनिया में कहते हैं कि ताजा फल खाओ तो तन्दरूस्त रहेंगे। हेल्दी रहने का साधन फल बताते हैं और आप बच्चे तो हर सेकण्ड प्रत्यक्ष फल खाने वाले हो, हाल है खुशहाल और चाल है फरिश्तों की, हम हेल्दी भी हैं, वेल्दी भी हैं तो हैपी भी...