8-12-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
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“मीठे बच्चे – संगम की इन अमूल्य घड़ियों में श्वाँसों श्वॉस बाप को याद करो, तुम्हारी एक भी श्वाँस व्यर्थ न जाये”
प्रश्नः– इस समय तुम्हारा मनुष्य जीवन बहुत-बहुत वैल्युबुल है – कैसे?
उत्तर:- इस जीवन में तुम बाप के बच्चे बन बाप से पूरा वर्सा लेते हो। इसी मनुष्य तन में पुरुषार्थ कर तुम कौड़ी से हीरे जैसा बनते हो। बेगर से प्रिन्स, इनसालवेन्ट से 100 परसेन्ट सालवेन्ट बनते हो इसलिए तुम्हें इस समय को व्यर्थ नहीं गँवाना है। हर श्वाँस बाप की याद में रहकर सफल करना है। कर्म करते भी याद में रहना है।
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“ओम् शान्ति”
यह जो इस समय मनुष्य का जीवन है इनको अमूल्य कहा जाता है। बच्चे भी समझते हैं और बाप भी समझाते हैं कि यह तुम्हारा अन्तिम मनुष्य का जन्म है, यह बहुत वैल्युबुल है। इनका मूल्य कोई कर नहीं सकता। वैसे यह टाइम भी बहुत वैल्युबुल है। तुम बच्चे जानते हो अब कौड़ी से हीरे जैसा वा बेगर से प्रिन्स, इनसालवेन्ट से 100 प्रतिशत सालवेन्ट बन रहे हैं। यह तुम्हारा मनुष्य तन बहुत वैल्युबुल है जबकि बाप के बच्चे बने हो। और मनुष्यों का वैल्युबुल नहीं है। तुम बच्चों को इस समय अपना श्वाँस व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए।
कैसे सफल करना चाहिए सो तो बाप समझाते हैं। श्वाँसों श्वाँस याद करो बाप को। मनुष्य भक्ति मार्ग में तो अनेक प्रकार के सिमरण करते हैं। वह है अनेकों की व्यभिचारी याद। तुम बच्चे एक के सिवाए और किसी को याद नहीं करते हो। समझते हो हमारा श्वाँस व्यर्थ न जाये। श्वाँसों श्वाँस कोशिश कर बाबा को याद करना है। ऐसे डायरेक्शन मिलते हैं। इसमें कोई जाप आदि नहीं करना है। हमारा स्वधर्म ही है आवाज से परे रहना। इस शरीर द्वारा हम पार्ट बजाते हैं।
आत्मा असुल शान्तिधाम की रहने वाली है। यह भी हमारे सिवाए कोई कह न सके कि हम असुल शान्तिधाम के रहने वाले हैं। कोई पूछे तुम कहाँ के रहने वाले हो तो तुम कहेंगे हम आत्मा तो शान्तिधाम की रहने वाली हैं। बाकी यहाँ के लिए पूछते हो तो यहाँ हम फलानी जगह रहने वाले हैं। शान्तिधाम से यहाँ आकर शरीर लेकर पार्ट बजाना ही है। अभी यह है इस मृत्युलोक का अन्तिम जन्म, इसमें श्वाँस व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए।
वो लोग बहुत फास्ट (व्रत) रखते हैं। उनको कहना है क्यों तुम टाइम वेस्ट करते हो, इससे ऊंचे ते ऊंचे बाप को याद करो। यह भी तुम जैसे जीवघात करते हो। आत्म-घात नहीं कहेंगे क्योंकि आत्मा का घात कभी नहीं होता। कहा जाता है जीवघाती, महापापी। इस समय अपने शरीर को तकलीफ देना – यह भी तो महापाप है। तुम कह सकते हो कि इस समय तुम महान पुण्य आत्मा बन सकते हो, इस पुरूषार्थ से। उन्हों को तो यह पता नहीं है कि बाप यहाँ आया हुआ है। यह बापदादा है ना। शिवबाबा ब्रह्मा दादा। प्रजापिता ब्रह्मा तो मशहूर है। वह तो कह सकते हैं ना कि क्यों ऐसे वैल्युबुल शरीर का घात करते हो। इससे तो मनमनाभव, बाप को याद करो तो जीवनमुक्ति मिलेगी अथवा कोई द्वारा मैसेज भी भेज सकते हो।
देहली वाले बच्चे भी भेज सकते हैं कि इस समय यह दुनिया बदल रही है। इस पुरुषार्थ से तुमको जीवनमुक्ति मिल सकती है। देखते हो; सामने महाभारत लड़ाई भी है इसलिए बच्चों को एक भी श्वाँस वेस्ट नहीं करना चाहिए। सारा कल्प सीढ़ी नीचे उतरते-उतरते एकदम तमोप्रधान बन गये हैं। अब फिर सतोप्रधान बनना है, इसमें मेहनत लगती है। मासी का घर नहीं है। जनक को एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति कैसे मिली? वह भी तुम जानते हो और लिख सकते हो। जीवनमुक्ति एक सेकेण्ड में बिना कौड़ी खर्चा मिल सकती है।
यह मृत्युलोक का लास्ट जन्म है। अमरलोक में है जीवनमुक्ति, मृत्युलोक में है जीवन बन्ध। यह भागवत में भी गाया हुआ है। यह भी एक कहानी बना दी है कि जनक को ज्ञान देने वाला कोई मिल न सका। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा ज्ञान देते हैं, इसको ही ब्रह्मा ज्ञान कहा जाता है। ब्रह्मा को भी जरूर किसी ने दिया होगा ना। ज्ञान सागर तो परमपिता परमात्मा है, वह ब्रह्मा द्वारा आकर देते हैं। त्रिमूर्ति चित्र द्वारा तुम अच्छी तरह समझा सकते हो।
कोई भी अन्दर आते हैं तो उनसे पूछो बोर्ड पढ़ा, क्या लिखा हुआ है। बी.के. प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ठहरे। प्रजापिता को सिर्फ कुमारियां ही होंगी क्या? जरूर कुमार भी होंगे। तो हमारी यह फैमली हो गई। ब्रह्मा बाप है, ब्रह्मा किसका बच्चा? शिवबाबा का। इन द्वारा स्थापना कर रहे हैं। यह फैमली की फैमली भी है, पाठशाला की पाठशाला भी है। सर्व का सद्गति दाता तो एक ही बाप है। वही यह दुनिया स्थापन कर रहे हैं। तो जरूर डेविल वर्ल्ड खत्म होगा। राईज़ और फाल भारत का होता है। भारत ही हेविन से हेल एकदम ऊंच से नीच बनता है। हेविन माना नई दुनिया। बुद्धिवान जो होंगे, वह समझेंगे बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म था।
तुम लिखते भी हो कि डिटीज्म कैसे स्थापन हो रहा है, एक सेकेण्ड में जीवन-मुक्ति कैसे मिलती है…, आकर समझो। अभी यह पुरानी दुनिया है, वह बदलकर नई दुनिया बन रही है इसलिए यह अन्तिम जन्म बहुत वैल्युबुल है, इनका बहुत महत्व है। जबकि हम बाबा से वर्सा लेते हैं और आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले ही आकर वर्सा लेंगे। अगर नहीं लेते हैं तो समझना चाहिए यह 84 जन्म लेने वाला, सूर्यवंशी में आने वाला नहीं है। पिछाड़ी में आयेंगे।
जिनकी फुल ज्योत जगती है वह सतयुग में आयेंगे। पीछे दिन-प्रतिदिन कम ताकत वाले होंगे। महान सौभाग्यशाली ही एक्यूरेट नई दुनिया में आयेंगे। रहना तो नये मकान में चाहिए। 10-12 वर्ष के बाद जाकर रहे, ऐसा कच्चा पुरूषार्थ क्यों करना चाहिए। मम्मा बाबा नई दुनिया में महाराजा महारानी बनते हैं तो हम भी क्यों न बनें। सर्विस को बढ़ायें। बच्चों का यह ख्याल चलना चाहिए।
बाप कहते हैं – मैं तुमको आज बहुत गुह्य बातें सुनाता हूँ। बाप को जान लिया तो जीवनमुक्ति का हकदार तो बन ही जायेंगे। ज्ञान का विनाश तो होता नहीं। कई मनुष्य तो अच्छी रीति समझते भी हैं। कोई तो कुछ नहीं समझते, ऐसे ही देखकर चले जाते हैं। कोई कहकर भी जाते हैं हम जरूर आयेंगे। परन्तु माया फिर भुला देती है। माया बिल्ली कम नहीं है। गुल बकावली का एक खेल भी दिखाते हैं। यह भी मिसाल तुम्हारे लिए है।
बाप ही समझाते हैं। यहाँ तुम आये हो माया पर जीत पहन जगतजीत बनने। इस पर कहानी बनी हुई है। तुम योगबल में रहते हो, माया पर जीत पाने लिए। परन्तु माया बिल्ली पासा फिरा देती है। गुलबकावली, अल्लाह अवलदीन यह इस समय की बातें हैं। अल्लाह ही अवलदीन, देवता धर्म की स्थापना करते हैं। हातमताई का खेल भी इस समय का है। बाप को न याद करने से माया आ जाती है। जो कुछ हो चुका है, उनकी बैठ बाद में कहानियां बनाते हैं। जो होने वाला है, वह तो कुछ बता नहीं सकते। पास्ट में जो कुछ हुआ है उसका ड्रामा बनाते हैं। कंस वध, अमृत मंथन, किसम-किसम के खेल बनाते हैं। वह बिचारे यह नहीं जानते कि यह बेहद का ड्रामा है।
तुम जानते हो यह अनादि अविनाशी ड्रामा है। मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते कि यह ड्रामा कितने वर्ष का है। भल कहते हैं हिस्ट्री रिपीट होती है। परन्तु समझते नहीं हैं। बाप किसम-किसम के राज़ समझाते हैं कि बुद्धि में यह बैठे कि हमारा यह अन्तिम जन्म बड़ा वैल्युबुल है। इसमें टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। हथ कार डे दिल यार डे…दिल तो आत्मा में है ना। आत्मा ही कहती है – मुझे तंग नहीं करो। मेरी दिल को दु:खी नहीं करो। बुद्धि समझती है, जज करती है – यह हमको सुख देते हैं, यह दु:ख देते हैं। आत्मा शरीर के बिना तो कह न सके। आत्मा ही सब कुछ सीखती है। संस्कार आत्मा में भरते हैं। अभी तुमको परमपिता परमात्मा सिखला रहे हैं।
तुम जानते हो बाप ज्ञान का सागर है, पतित-पावन है। वह भारत के लिए सौगात ले आते हैं वैकुण्ठ की इसलिए गाया हुआ है, सर्व के सद्गति दाता। उनका बर्थ प्लेस भारत है। सोमनाथ का मन्दिर भी यहाँ ही है। शिवबाबा आया था तब तो उनका यादगार मन्दिर बनाया है। वह कब आये, क्या करके गये, यह नहीं जानते। लक्ष्मी-नारायण थे फिर कहाँ गये वह थोड़ेही समझते हैं कि वह इस पतित दुनिया में हैं। सतोप्रधान थे फिर चक्र लगाकर तमोप्रधान बने हैं। नाम रूप तो बदल जाता है ना। हर जन्म में फीचर्स बदल जाते हैं। यह बना बनाया ड्रामा है, इसमें जरा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। फीचर्स एक न मिलें दूसरे से।
बाबा को बच्चों पर रहम पड़ता है कि बच्चे अपने बाप को जान लेवें। मालूम तो पड़ता है ना। बी.के. वृद्धि को पाते रहेंगे एक दिन यह भी आयेगा, जो फेरा पहनते रहेंगे। तुम्हारी प्रदर्शनी में सब आयेंगे। दिन-प्रतिदिन नाम बाला होता जाता है। बाबा ओपीनियन की भी किताब छपाते हैं। वह भी काम में आयेगी। बहुतों को भेज देनी पड़ेगी। बच्चे जो सर्विसएबुल हैं, उनको सारा दिन ख्यालात रखने पड़ते हैं। वह झट कहेंगे भल बी.के. आकर मिल सकती हैं।
भूख हड़ताल रखते हैं तो 10-12 दिन के बाद कमजोर हो जाते हैं। फिर इतनी बात नहीं कर सकते। तुम्हारी बात को समझेंगे और कहेंगे कि बरोबर जीवनमुक्ति पाने का यही ठीक रास्ता है। सर्व का सद्गति दाता तो एक ही बाप है। बाकी सब हैं भक्ति मार्ग के गुरू। गुरू तो बहुत हो गये हैं ना। स्त्री का पति भी गुरू है। कथा सुनाने वाले को भी गुरू कहते हैं। यह सब समझने की बातें हैं।
बच्चों का माथा बहुत विशाल होना चाहिए सर्विस के लिए। बाप को याद कर रावण पर विजय पानी है। श्वाँस व्यर्थ नहीं गँवाना है। जो समय बरबाद करते रहते हैं उनको बेसमझ कहा जाता है। बाप कहेंगे – किसका जीवन हीरे जैसा बनाने तुम सर्विस नहीं करते हो! कितना वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ एनर्जी करते हो। कुछ भी समझते नहीं, इसलिए पत्थरबुद्धि कहा जाता है। इसमें सारी योग की बात है। बाप को याद करो और वर्सा ले लो। यह अर्थ कभी कोई समझ न सके। वह तो ब्रह्म को याद करते हैं।
बाप कहते हैं – मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। ब्रह्म कोई पतित-पावन है क्या? पतित-पावन तो परमपिता परमात्मा है। ब्रह्म कैसे हो सकता। बिचारे बहुत भूले हुए हैं। बाप बच्चों को फिर भी कहते हैं बच्चे टाइम वेस्ट नहीं करो। बाबा को याद करो। बाबा जानते हैं कई बच्चे दिन-रात बहुत टाइम वेस्ट करते हैं। सारा दिन कुछ भी पुरुषार्थ नहीं करते हैं।
बाबा अपना मिसाल भी बताते हैं। भोजन पर बैठते हैं तो भी बाबा को याद करते हैं। हम दोनों इकट्ठे खाते हैं। शरीर में दो आत्मायें हैं ना। याद करते-करते फिर भूल जाता हूँ, और-और ख्यालात आ जाते हैं। इनके ऊपर जवाबदारी बहुत है। बहुत ही ख्यालात आते हैं इसलिए बाबा कहते हैं तुम जास्ती याद में रह सकते हो, इनको तो मेहनत करनी पड़ती है। हमेशा समझो शिवबाबा समझाते हैं। उनको याद करो, ब्रह्मा को याद करने से शिवबाबा भूल जायेगा। बच्चों को पहले तो अपना ही कल्याण करना है, फिर दूसरे का। कई तो ऐसे हैं दूसरों का कल्याण करते रहते हैं, अपना करते नहीं हैं। औरों को आप समान बनाते खुद फिर गुम हो जाते हैं। वन्डर है ना। यह भी तुम समझते हो। तुम अनुभव भी सुनाते हो और कोई सतसंग आदि में थोड़ेही समझाते हैं। यहाँ भी नम्बरवार धारणा होती है।
यह नॉलेज बुद्धि में धारण की जाती है। गाते हैं भर दो झोली। यह नॉलेज तो बुद्धि में भरी जायेगी वा झोली में? पारसबुद्धि और पत्थरबुद्धि गाया जाता है। तुम्हारा यह जीवन बहुत अमूल्य है। इसमें पुरूषार्थ की बहुत जरूरत है। गृहस्थ व्यवहार में रहकर सब कुछ करना है। सरकमस्टांश देखे जाते हैं। भल कुमार है, देखा जाता है सर्विस अच्छी कर सकते हैं तो छुड़ा भी लेते हैं। हर एक का सरकमस्टांश देखकर फिर राय दी जाती है। सर्जन नब्ज देखने बिना राय दे न सकें। यह है अविनाशी सर्जन। आत्मा को मनमनाभव का इन्जेक्शन लगाते हैं। इनका यह एक ही इन्जेक्शन है जो 21 जन्म के लिए एवरहेल्दी बना देते हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा के कितने ढेर बच्चे हैं, कितना बड़ा गृहस्थी है। यह है बेहद का गृहस्थ व्यवहार। यह शिवबाबा का रथ है ना, तो कितनी आमदनी होती है। बाप कहते हैं – मैं इस रथ में बैठ नॉलेज देता हूँ, नहीं तो कैसे दूँगा। कृष्ण तो होता ही है सतयुग आदि में। वही आत्मा सांवरी बनी है, तो इनके बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ इसलिए भाग्यशाली रथ गाया हुआ है।
अच्छा!, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना तथा दूसरों का जीवन हीरे जैसा बनाने की सेवा करते रहना है। टाइम, मनी, एनर्जी बरबाद नहीं करना है।
2) दूसरों का कल्याण करने के साथ-साथ अपना भी कल्याण करना है। बुद्धि रूपी झोली में ज्ञान रत्न धारण कर दान भी करना है।
वरदान:- प्रालब्ध की इच्छा को त्याग अच्छा पुरुषार्थ करने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव
श्रेष्ठ पुरुषार्थी उन्हें कहा जाता है जो पुरुषार्थ की प्रालब्ध को भोगने की इच्छा नहीं रखते। जहाँ इच्छा है वहाँ स्वच्छता खत्म हो जाती है और सोचता (सोचने वाले) बन जाते हैं। जो यहाँ ही प्रालब्ध भोगने की इच्छा रखते हैं वह अपनी भविष्य कमाई जमा होने में कमी कर देते हैं इसलिए इच्छा के बजाए अच्छा शब्द याद रखो। श्रेष्ठ पुरुषार्थी सदा फ्लोलेस बनने का पुरुषार्थ करते हैं, किसी भी बात में फेल नहीं होते।
स्लोगन:- साधन कमल पुष्प बनकर यूज़ करो क्योंकि ये आपके कर्मयोग का फल हैं।
*** ॐ शान्ति। ***
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धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।
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