7-6-2022- ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली.
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“मीठे बच्चे – रात-दिन इसी चिन्तन में रहो कि सबको बाप का परिचय कैसे दें, फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर, इसी में बुद्धि लगानी है”’
प्रश्नः– ज्ञान जरा भी व्यर्थ न जाये उसके लिए किस बात का ध्यान रखना है?
उत्तर:- ज्ञान धन देने के लिए पहले देखो कि यह हमारे ब्राह्मण कुल का है! जो शिवबाबा के वा देवताओं के भक्त हैं, कोशिश कर उनको ज्ञान धन दो। यह ज्ञान सब नहीं समझेंगे। समझ में उन्हें ही आयेगा जो शूद्र से ब्राह्मण बनने वाले हैं। तुम कोशिश कर एक बात तो सबको सुनाओ कि “सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही है, वह कहता है कि तुम अशरीरी बन मुझे याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा।“
गीत:- ओम् नमो शिवाए………… , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARMATMA LOVE SONGS”.
“ओम् शान्ति”
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं – दोनों बाप आ गये। चाहे वह बाप समझावे, चाहे यह बाप समझावे। तो बाप बैठ समझाते हैं – तुम जो बाबा की याद में शान्ति में बैठते हो, इसको ही सच्ची शान्ति कहा जाता है। यह है प्रत्यक्षफल देने वाली रीयल शान्ति, वह है झूठी। अपने स्वधर्म का पता नहीं है। स्व को अपने परमपिता परमात्मा का पता नहीं है, तो शान्ति, शक्ति कौन देवे? शान्तिदाता बाप ही है। जो बाप कहते हैं बच्चे अशरीरी हो अपने को आत्मा समझ बैठो। तुम तो अविनाशी हो ना। अपने स्वधर्म में बैठो और कोई ऐसे बैठते नहीं हैं।
बरोबर आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परमपिता परमात्मा तो एक ही है, उनकी महिमा बड़ी भारी है। वह बाप है, सर्वव्यापी नहीं है। एक बात सिद्ध की तो तुम्हारी जीत है। फिर गीता का भगवान भी सिद्ध हो जायेगा। प्वाइन्ट्स तो तुमको बहुत मिलती हैं।
सिक्ख लोग भी कहते हैं सतगुरू अकाल.. वही अकालमूर्त है। कहते भी हैं, वह लिबरेटर है, सर्व का सद्गति दाता है। दु:ख से आकर लिबरेट करते हैं। पतित-पावन भी एक ही बाप है। ऐसी-ऐसी प्वाइन्ट्स हमेशा विचार-सागर मंथन करनी चाहिए।
बाप को भूलने कारण ही सबकी दुर्गति हुई है। भगवान एक है तो दूसरे कोई को भगवान कह नहीं सकते। सूक्ष्मवतनवासी को भी भगवान कह न सकें। ऊंचे ते ऊंच एक भगवान है। यहाँ तो है मनुष्य सृष्टि जो पुनर्जन्म में आते हैं। परमपिता परमात्मा तो पुनर्जन्म में नहीं आते हैं, फिर कैसे कहते हो कि कुत्ते बिल्ली सबमें परमात्मा है।
सारा दिन यह बुद्धि में रहना चाहिए – बाप का परिचय कैसे दें। अब रात-दिन तुम इस चिन्तन में रहो कि कैसे सबको रास्ता बतायें? पतितों को पावन बनाने वाला एक ही है। फिर गीता का भगवान भी सिद्ध हो जायेगा। तुम बच्चों की ही जीत होनी है, सो जब मेहनत करेंगे। महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे तो हैं ना।
तुम बच्चे जानते हो भारत को ही बाप से वर्सा मिला हुआ था। अब छीना हुआ है, फिर बाप देते हैं। बाप आते ही भारत में हैं। यह जो इतने धर्म हैं, यह सब खत्म हो जाने हैं, फिर सतयुग होगा। हाय-हाय के बाद जय-जयकार हो जाती है। मनुष्य दु:ख के समय हाय राम करते हैं ना। कहते हैं ना – राम नाम का दान दो। इस पर श्लोक बने हुए हैं।
सिक्ख लोगों का भी नाम बहुत है। वह भी कहते हैं अकालतख्त। तुम बच्चों का तख्त कौन सा है? तुम आत्मायें सब अकालमूर्त हो। तुमको कोई काल खा न सके। यह शरीर तो खत्म हो जायेंगे। वह समझते हैं अकालतख्त अमृतसर में है परन्तु अकाल तख्त तो महतत्व है। हम आत्मायें भी वहाँ के रहने वाले हैं।
गाते भी हैं – बाबा आप अपना तख्त छोड़कर आओ। वह सर्व के लिए शान्ति का तख्त है। राज्य तख्त कोई सर्व के लिए नहीं कहेंगे। बाबा का तख्त सो हमारा। वहाँ से हम पार्ट बजाने आते हैं, बाकी आकाश छोड़ने की बात नहीं है। बच्चों को इसमें ही बुद्धि लगानी है कि बाप का परिचय किसको कैसे देवें? फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर। हमारा बाबा कौन है, उनकी मिलकियत क्या है, जिसका मालिक बनेंगे। यह बुद्धि में है। मुख्य है ही बाप का परिचय। सारा रोला इसमें है। एकज़ भूल का नाटक है ना। भूल कराने वाला है रावण।
सतयुग में तुम देही-अभिमानी रहते हो। हम आत्मा हैं। बाकी यह नहीं कहेंगे कि हम परमपिता परमात्मा को जानते हैं। नहीं, वहाँ तो सुख ही सुख है। दु:ख में सिमरण सब करते हैं। भक्ति मार्ग पूरा हो गया, ज्ञान मार्ग शुरू हुआ, वर्सा मिल गया, फिर भगवान को क्यों याद करेंगे! कल्प-कल्प वर्सा मिलता है। यह ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है। बाप को कोई भी जानते नहीं हैं। अब तुम बच्चों को बाप ने पहचान दी है। रात-दिन बुद्धि में यही बातें चलती रहें।
यह बुद्धि के लिए भोजन है। कैसे बाप का परिचय सबको देवें! बाप का एक ही रीइनकारनेशन गाया जाता है। समझते हैं आयेंगे जरूर, कलियुग अन्त, सतयुग आदि के संगम पर, पतितों को पावन बनाने। मुख्य है गीता। गीता से ही हीरे जैसा बन सकते हैं। बाकी सब शास्त्र हैं गीता के बाल बच्चे, उनसे कोई वर्सा नहीं मिल सकता है। सर्वशास्त्रमई शिरोमणी गीता।
श्रीमत मशहूर है। श्री है सबसे ऊंचे ते ऊंचा। श्री श्री 108 रुद्र माला। यह है शिवबाबा की माला। तुम जानते हो सभी आत्माओं का बाप यह है। बाबा-बाबा तो सब करते हैं ना। बाबा की रचना रची हुई है, यह कोई भी जान नहीं सकता। बाबा कहते हैं तुमको कोई जास्ती तकलीफ नहीं देते। सिर्फ बाप को भूलने से गिरे हो, उनको जानना है। अब तुम घोर अन्धियारे से घोर सोझरे में आ गये हो। तुमको ज्ञान की डान्स करनी है।
मीरा की थी भक्ति की डान्स, अर्थ कुछ भी नहीं। व्यास भगवान कहते हैं, अब व्यास तो है बाप, जो गीता सुनाते हैं। तुम कोई को भी सिद्ध कर बता सकते हो – बाबा एक ही है, उनसे ही वर्सा मिलता है। नहीं तो भारत को स्वर्ग का वर्सा कौन देंगे? स्वर्ग की स्थापना बाप बिगर कोई कर न सके। सर्व को लिबरेट करना, एक बाप का ही काम है। पोप भी कहते थे – वननेस हो। परन्तु वह होगी कैसे? हम एक के तो सब बने हैं ना, फिर भाई-बहन कैसे हैं, यह जानना चाहिए। वननेस अर्थात् फादरहुड हो गया, यह तो सब ब्रदर्स हैं ना।
सारी दुनिया कहती है ओ गॉड फादर रहम करो। तो जरूर बेरहमी कर रहे हैं। यह नहीं जानते कि बेरहम करने वाला कौन है? रहम करने वाला तो एक बाप है। बेरहम है रावण, जिसको जलाते आते हैं, परन्तु जलता नहीं है। दुश्मन ही मर जाये फिर थोड़ेही बार-बार जलायेंगे। कोई को यह पता ही नहीं है कि यह क्या बनाते रहते हैं। आगे तुम घोर अन्धियारे में थे, अब तो नहीं हैं ना। तो मनुष्यों को कैसे समझावें। भारत को सुखधाम बनाने वाला एक ही बाप है। बाबा का ही परिचय देना है। यह भी समझाया जाता है लेकिन सब नहीं समझेंगे। समझेंगे फिर भी वही जिनको शूद्र से ब्राह्मण बनना है।
बाबा कहते हैं जो मेरा भक्त हो कोशिश कर उनको ही ज्ञान दो। ज्ञान धन व्यर्थ नहीं गंवाओ। देवताओं के भक्त तो जरूर देवता कुल के होंगे। ऊंच ते ऊंच है एक बाप, सब उनको याद करते हैं। यह तो शिवबाबा है ना। बाप से तो वर्सा लेना है। जो कोई अच्छा काम करके जाते हैं तो उनको पूजा जाता है। कलियुग में कोई से अच्छा काम होगा ही नहीं क्योंकि यहाँ है ही आसुरी रावण मत। सुख कहाँ है? कितना अच्छी रीति बाप समझाते हैं, परन्तु किसकी बुद्धि में बैठेगा तब, जब बाप का परिचय देंगे। यह बाप भी है, टीचर, सतगुरू भी है। इनका कोई बाप टीचर नहीं है। पहले-पहले हैं मात-पिता, फिर टीचर और फिर सद्गति के लिए गुरू। यह वन्डर है – बेहद का बाप एक ही बाप, टीचर और सतगुरू है।
तुम जानते हो वह बाप ऊंचे ते ऊंचा है। वही भारत को स्वर्ग का वर्सा देने वाला है। नर्क के बाद है ही स्वर्ग। नर्क के विनाश के लिए विनाश ज्वाला खड़ी है। होलिका में स्वांग बनाते हैं ना, फिर पूछते हैं स्वामी जी इनके पेट से क्या निकलेगा? बरोबर देखते हैं यूरोपवासी यादवों की बुद्धि से साइन्स की कितनी इन्वेन्शन निकलती है। तुमको कोशिश कर एक ही बात पर समझाना है। सर्व का सद्गति दाता एक है। बाप आते ही भारत में हैं – तो यह सबसे बड़ा तीर्थ हो गया। कहते भी हैं भारत प्राचीन था। परन्तु समझते नहीं।
अभी तुम समझते हो – जो प्राचीन हुआ है सो फिर से होगा। तुमने राजयोग सीखा था, वही फिर सीखते हो। बुद्धि में है – यह नॉलेज बाबा कल्प-कल्प देते हैं। शिव के भी अनेक नाम रखे हैं। बबुलनाथ का भी मन्दिर है। कांटों को फूल बनाया है, इसलिए बबुलनाथ कहते हैं। ऐसे बहुत नाम है, जिसका अर्थ तुम समझा सकते हो। तो पहले-पहले बाप का परिचय दो, जिसको सब भूले हुए हैं। पहले बाप को जानें तब बुद्धियोग लगे। बाप से वर्सा लेना है। मुक्तिधाम से फिर जीवन-मुक्तिधाम में जाना है। यह है पतित जीवनबंध।
बाबा कहते हैं बच्चे अशरीरी बनो। अशरीरी बन बाप को याद करो, इससे ही बेड़ा पार होगा। सब आत्माओं का बाप वह एक ही है। बाप का फरमान है मुझे याद करो तो योग से विकर्म विनाश होंगे। अन्त मती सो गति हो जायेगी। हमको वापिस जाना है, जितना हो सके जल्दी जावें। परन्तु जल्दी तो हो नहीं सकता। ऊंच पद पाना है तो बाबा को याद रखना है। हम एक बाप के बच्चे हैं।
अब बाप कहते हैं मनमनाभव। कृष्ण थोड़ेही कहते हैं। कृष्ण कहाँ है? यह तो बाप है परमपिता परमात्मा, प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं, तो जरूर यहाँ होना चाहिए। यह है व्यक्त पतित दुनिया। वह है पावन दुनिया। पतित दुनिया में पावन कोई हो नहीं सकता। झाड़ में देखो ऊपर में खड़ा है और यह नीचे तपस्या में ब्रह्मा बैठे हैं, इनके ही फीचर्स सूक्ष्मवतन में देखते हैं। यह जाकर फरिश्ते बनते हैं। श्रीकृष्ण इस समय सांवरा है ना। पहली बात जब तक न समझाई है तब तक कुछ समझेंगे नहीं। इसमें ही मेहनत लगती है।
माया फट से बाप की याद भुला देती है। निश्चय से लिखते भी हैं बरोबर हम नारायण पद पायेंगे फिर भी भूल जाते हैं। माया बड़ी दुश्तर है। माया के तूफान कितने भी आवें परन्तु हिलना नहीं है। वह है पिछाड़ी की स्टेज। माया रुसतम होकर लड़ेगी। रिढ़ बकरी होंगे तो उनको फट से गिरा देगी। डरना नहीं है। वैद्य लोग कहते हैं पहले सारी बीमारी बाहर निकलेगी। माया के तूफान भी बहुत आयेंगे। जब तुम पक्के हो जायेंगे फिर माया का प्रेशर कम हो जायेगा। समझेगी अब यह हिलने वाले नहीं हैं।
बाबा ही आकर पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाते हैं। यह बड़ी रमणीक नॉलेज है। भारत का प्राचीन राजयोग गाया जाता है। यह तुम जानते हो।
“अच्छा! मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) अशरीरी बन बाप को याद करना है। स्वधर्म में स्थित होने का अभ्यास करना है। ज्ञान की डांस करनी और करानी है।
2) माया के तूफानों से हिलना नहीं है। डरना नहीं है। पक्का बनकर माया के प्रेशर को खत्म करना है।
वरदान:- बाप को अपनी सर्व जिम्मेवारियां देकर सेवा का खेल करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव!
कोई भी कार्य करते सदा स्मृति रहे कि सर्वशक्तिमान् बाप हमारा साथी है, हम मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं तो किसी भी प्रकार का भारीपन नहीं रहेगा। जब मेरी जिम्मेवारी समझते हो तो माथा भारी होता है इसलिए ब्राह्मण जीवन में अपनी सर्व जिम्मेवारियां बाप को दे दो तो सेवा भी एक खेल अनुभव होगी। चाहे कितना भी बड़ा सोचने का काम हो, अटेन्शन देने का काम हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिमान के वरदान की स्मृति से अथक रहेंगे।
स्लोगन:- मुरलीधर की मुरली पर देह की भी सुध-बुध को भूल, खुशी के झूले में झूलने वाले ही सच्चे गोप गोपियां हैं। – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > “Hindi Murli”
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किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे [ निचे ]।