4-7-2022- ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली.
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“मीठे बच्चे – बाबा आया है तुम्हें सौभाग्यशाली बनाने, सौभाग्यशाली अर्थात् स्वर्ग का मालिक, तुम्हारा भी कर्तव्य है सबको आपसमान बनाना”
प्रश्नः– सबसे नम्बरवन कान्फ्रेन्स कब और कौन सी होती है? उससे प्राप्ति क्या है?
उत्तर:- संगम पर आत्मा और परमात्मा का मिलन ही नम्बरवन कान्फ्रेन्स है। जब यह कान्फ्रेन्स होती है तब आत्माओं को परमात्मा से मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा मिलता है। इसे ही सच्चा-सच्चा कुम्भ भी कहा जाता है। यह कुम्भ का मेला फर्स्टक्लास कान्फ्रेन्स है। इसके बाद फिर कोई कान्फ्रेन्स, यज्ञ तप आदि होते नहीं। सब बन्द हो जाते हैं।
गीत:- माता ओ माता……. , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
“ओम् शान्ति”
बच्चों ने महिमा का गीत सुना। बच्चे जानते हैं भक्ति मार्ग में महिमा ही होती आई है। जो पास्ट हो गया है उनकी फिर महिमा होती है। जगत अम्बा की महिमा गाते हैं – तू हो भाग्य विधाता। अब यह हुई भक्ति और महिमा। तुम भक्ति और महिमा कर नहीं सकते हो। तुम जानते हो कि सौभाग्य विधाता एक ही बाप है। भाग्य विधाता वा सौभाग्य विधाता है ही एक, दूसरा न कोई। यह इस समय ही तुम जानते हो। वह सिर्फ भक्ति करते हैं, महिमा गाते हैं। अभी हम भगत तो नहीं हैं। हम हो गये भगवान के बच्चे। कैसे भाग्य अथवा सौभाग्य बनाते हैं, कैसे अपने को भाग्यशाली अथवा सौभाग्यशाली श्रीमत पर बनाते हैं, वह है हर एक के पुरुषार्थ पर।
इस समय पर तुम पुरुषार्थी हो बाप से वर्सा लेने के। यह जानते हो सभी बच्चों को एक बाप से वर्सा लेना है। भाग्यशाली वा सौभाग्यशाली अथवा सौभाग्य विधाता तुम हो क्योंकि माँ बाप के बच्चे हो। तुम्हारा भी यह कर्तव्य है, हर एक मनुष्य को भाग्यशाली, सौभाग्यशाली बनाना। सौभाग्यशाली अर्थात् स्वर्ग के मालिक बनें। 100 प्रतिशत भाग्यशाली जो हैं, वह स्वर्ग के मालिक बनते हैं। उनमें भी फिर नम्बरवार हैं। सूर्यवंशी को ही सौभाग्यशाली कहेंगे। त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं तो उनको स्वर्ग नहीं कहेंगे। उनको सूर्यवंशी नहीं कहेंगे। बच्चे तो जानते हैं कि हमको तो 100 प्रतिशत सौभाग्यशाली बनना है। सूर्यवंशी में प्रिन्स-प्रिन्सेज बनना है।
यह ईश्वरीय कॉलेज है ना। ईश्वर है विश्व का रचयिता। यह है ही विश्व का मालिक बनने का कॉलेज। ईश्वर पढ़ाते हैं, कहते हैं मैं तुमको पढ़ाता हूँ। महाराजाओं का महाराजा बनाता हूँ। यह है तुम्हारी पढ़ाई के ऊपर, जो जितना पढ़ता है वह औरों को भी ऐसे ही पढ़ायेंगे। ऐसे ही सौभाग्यशाली बनायेंगे। तुम बच्चों का धन्धा ही यह है। शिवबाबा है सिखलाने वाला। बाकी सब, ब्रह्मा सरस्वती ब्राह्मण बच्चे सब सीखते हैं। ब्राह्मण ब्राह्मणियां जानते हैं हम फिर सो देवता बनेंगे। इस समय भारत का कोई धर्म है नहीं। देवता धर्म को जानते ही नहीं। धर्म को न जानना गोया इरिलीजस हैं। धर्म में ताकत होती है,
देवी-देवता धर्म वाले जब सतयुग में थे तो अथाह सुख था। अभी तो है कलियुग। पुरुषार्थ कर सतयुग में आना है। जीवनमुक्त बनना है। जीवनबन्ध का त्याग करना है। स्वर्ग को याद करना है। याद कहो या योग कहो, बात एक ही है। योग को ही कहा जाता है कम्यूनियन (मिलाप) तुम्हारा योग है ही एक शिवबाबा से। दूसरे से कम्यूनियन है ही नहीं, सिवाए एक शिवबाबा के। तो उसको ही याद करो। बाबा आप कितने मीठे हो। न मन, न चित था, आपने तो कितनी कमाल की है जो हमको स्वर्ग की बादशाही देते हो। कोई भी हालत में बाप को याद करना है अथवा कम्यूनियन करना है। बाबा को याद करते हैं, बाबा से बोलते हैं। उनके साथ सभी का कम्यूनियन है।
जब आफत आती है तब कहते हैं हे भगवान इनकी आयु बड़ी करो, अर्जी हमारी मर्जी बाबा आपकी। तो यह कम्यूनियन हुआ ना। यह याद की यात्रा होती ही एक बार है जबकि बाप आकर सिखलाते हैं। और सब कम्यूनियन मनुष्य, मनुष्य को सिखलाते हैं। गुरू के पास जायेंगे, कृपा, क्षमा करो, यह आफत मिटाओ। अभी तुम बाबा के पास बैठे हो। बाबा को याद कर कह सकते हो, बाबा इस हालत में हम क्या करें। बाबा समझाते हैं बच्चे यह ड्रामा अनुसार दु:ख सुख होता है। तुम्हारा कम्यूनियन है ही बाप से।
बाबा कहते हैं बच्चे यह तुम्हारा कर्मभोग है। अभी हम तुम्हारी कर्मातीत अवस्था बनाने आया हूँ। कर्मभोग तो भोगना ही है। अभी मैं तुमको ऐसा ऊंच कर्म सिखलाता हूँ। यह कम्यूनियन होती ही है आत्माओं की परमात्मा के साथ। परमात्मा बैठ आत्माओं के साथ कम्यूनियन करते हैं और कहाँ भी परमात्मा आत्माओं से कम्यूनियन करे या आत्मायें परमात्मा से करें, यह हो नहीं सकता। वह तो न आत्मा अपने को जानती है, न परमात्मा को ही जानते हैं। सिर्फ गपोड़े मारते हैं। यह कब सुना कि परमात्मा स्टार है, उनमें सारा अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। कब ऐसे अक्षर सुने? उन्हों का कम्यूनियन कभी होता नहीं है। बातचीत होती नहीं है। वह तो सिर्फ ब्रह्म को याद करते हैं। ब्रह्म से तो कुछ बातचीत हो न सके। बातचीत तो होगी आत्माओं से। आकाश से क्या बातचीत करेंगे।
आत्मायें जो महतत्व में रहती हैं, वह यहाँ पार्ट बजाने आती हैं, बाकी निर्वाणधाम में क्या कम्यूनियन करेंगे। वह तो तत्व है ना। कम्यूनियन होती है परमात्मा के साथ। आत्मा ही बोलती है, सुनती है इन आरगन्स से। आत्मा बिगर तो शरीर कुछ काम कर न सके। यह आत्माओं की परमात्मा के साथ कम्यूनियन एक ही बार होती है। जिसकी ही महिमा है आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल…..। अभी कम्यूनियन होता है। बस फिर कभी होता ही नहीं।
देवताओं की कम्यूनियन होती है क्या? वह तो कभी याद भी नहीं करते। अभी तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं का कनेक्शन है ही बाप से। बाप को ही सब याद करते हैं हे पतित-पावन आओ। आत्मा ने कहा परमपिता परमात्मा को, जो इस समय इस शरीर में प्रवेश है। उनको कहते हैं शान्ति देने वाला दाता। हम फिर शान्तिधाम में कैसे आवें? बाप कहते हैं बच्चे मुझे सुख शान्ति का वर्सा देने कल्प-कल्प आना पड़ता है। याद भी करते हैं पतित-पावन आओ।
तो बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं बच्चे, अब मेरे पास आना है। आत्मा पर पापों को बोझा बहुत है। आत्मा को ही भोगना पड़ता है। शरीर धारण कराए सजा देते हैं। तब तो आत्मा को फील होगा ना। शरीर को चोट लगने से आत्मा को दु:ख होता है ना। पुण्य आत्मा, पाप आत्मा कहा जाता है। परन्तु मनुष्यों में ज्ञान है नहीं कि मैं आत्मा हूँ। कम्यूनियन सब आत्माओं की आत्माओं के साथ होती है। आत्मा ही सारा खेल करती है।
आत्मा शरीर के साथ कहती है मेरे 7 बच्चे हैं। परमपिता परमात्मा निराकार है। कहते हैं मैं इस शरीर में आया हूँ, मुझे इतने बच्चे हैं। कितने बच्चों का दादा बनता हूँ। हिसाब किया जाए। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं। अच्छा ब्रह्मा किसका बच्चा? शिवबाबा का। यह बुद्धि में रहता है परमपिता ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचते हैं। ब्रह्मा क्रियेटर नहीं है। क्रियेटर निराकार शिव परमात्मा को ही कहेंगे। वह आकर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं। बच्चे-बच्चे कहते रहते हैं। अभी यह बातें तुम समझते हो। वह भी सभी की बुद्धि में एकरस नहीं बैठता है।
बाप ही वर्सा देंगे, लायक बनायेंगे। बाप को याद करो। इसको ही भारत का प्राचीन योग कहा जाता है, इससे ही विकर्म विनाश होंगे। फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी। याद से ही निरोगी बनेंगे। आयु बड़ी हो जायेगी। पुरुषार्थ से प्रालब्ध मिली हुई है। सतयुग के मालिक वह कैसे बने, यह कोई भी नहीं जानते हैं। महिमा गाते रहते हैं। अर्थ कुछ भी नहीं समझते। कितनी पूजा करते हैं, यात्रायें करते हैं। यहाँ तो बिल्कुल शान्ति है। भल बाप ज्ञान का सागर है परन्तु कहते हैं यह तो सेकेण्ड की बात है। सिर्फ मुझे याद करो तो वर्सा तुम्हारा है ही। मनमनाभव, मध्याजी भव। बाकी है डीटेल की समझानी। वह भी कितने समय से देते रहते हैं।
वह लोग कितनी कान्फ्रेन्स करते रहते हैं। रिलीजस कान्फ्रेन्स बुलाते हैं। योग की कान्फ्रेन्स बुलाते हैं। सब फालतू हैं। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देने वाला है ही एक बाप। आत्माओं और परमात्मा की जब कान्फ्रेन्स होती है तब आत्माओं को परमात्मा से मुक्ति मिलती है। गाया भी जाता है आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल… सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरू मिला दलाल। बाप ही आकर नई दुनिया रचते हैं, लायक बनाते हैं। सबसे नम्बरवन कान्फ्रेन्स यह है। इनको कुम्भ का मेला कहते हैं। कुम्भ संगम को कहा जाता है। यह संगम का मेला फर्स्ट क्लास कान्फ्रेन्स है, जबकि आत्माओं से परमात्मा आकर मिलते हैं। सेकेण्ड में जीवन-मुक्ति मिलती है। इसके बाद फिर कोई कान्फ्रेन्स यज्ञ तप आदि कुछ होते नहीं, सब बन्द हो जाते हैं।
तुम्हारी कान्फ्रेन्स कैसी नम्बरवन है, आत्माओं और परमात्मा की। आत्मा जीव में प्रवेश करने से जीवात्मा बनती है। कहते हैं मैं इनमें प्रवेश न करूं तो अपना परिचय कैसे दूँ और त्रिकालदर्शी वा स्वदर्शन चक्रधारी कैसे बनाऊं। तुम कहते हो हम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं। मनुष्य नहीं समझते। विष्णु के साथ कृष्ण को भी पा दे देते हैं। गीता में कृष्ण का नाम दिया है। नहीं तो चक्र की बात है नहीं। तुमको बैठ सृष्टि के आदि मध्य अन्त का राज़ समझाते हैं। यह कान्फ्रेन्स कितनी फर्स्टक्लास है। और जो भी कान्फ्रेन्स करते हैं वेस्ट आफ टाइम है। सबसे अच्छी कान्फ्रेन्स यह है। जीव आत्माओं और परमात्मा की। जीव आत्मा याद करती है परमात्मा को, तो जरूर जीव में आयेंगे ना। नहीं तो बोले कैसें? यह कान्फ्रेन्स सबसे अच्छी है,जो परमपिता परमात्मा आकर सर्व को सद्गति देते हैं।
पतित आत्माओं के साथ जरूर पतित-पावन की ही कान्फ्रेन्स होगी, तब तो पावन बनायेंगे। कितनी सहज समझने की बातें हैं। उत्तम ते उत्तम योग है आत्माओं का परमात्मा के साथ। सो भी परमात्मा खुद आकर सिखलाते हैं मामेकम् याद करो। हे जीव की आत्माओं मुझ अपने पारलौकिक बाप के साथ योग रखो तो तुम्हारे सारे विकर्म विनाश होंगे। जबकि आत्मायें सब परमात्मा से मिलती हैं, तो जरूर परमात्मा आकर वर्सा देंगे। सर्व का सद्गति दाता जीवनमुक्ति दाता वह बाप है। ऐसी बातें और कोई तो सुनाते नहीं। तुम सुनायेंगे तो कहेंगे और तो किसी से ऐसी बातें सुनी नहीं। तुम तो बहुत अच्छा समझाते हो।
यह बातें तो शास्त्रों में भी नहीं हैं। परन्तु शास्त्रों में कहाँ से आयें? बाप कहते हैं सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। शास्त्रों से क्या सीखेंगे? बाबा है कालों का काल। बच्चों को ले जाते हैं। जरूर आयेंगे तब तो पावन बनाकर ले जायेंगे। तुमको पावन बना रहे हैं। सतयुग में सब पावन हैं। जरूर संगम पर आया होगा पावन बनाने। अब तुम बच्चे जानते हो यह कल्प का संगम है। बाप आये हैं तुम्हारा कम्यूनियन अपने साथ कराते हैं।
कहते हैं मैं साधारण ब्रह्मा तन में आया हूँ। यह दादा कोई ब्रह्मा नहीं था। भल असुल ब्राह्मण थे परन्तु वह छोड़ दिया। अब ब्रह्मा द्वारा रचना रचनी है तो ब्रह्मा चाहिए। खुद कहते हैं मैं ब्रह्मा के तन में आता हूँ। नम्बरवन पावन सो ही नम्बरवन पतित, 84 जन्म पूरे लिये तो पावन बनेगा ना। फिर फरिश्ता बनते हैं ततत्वम्। ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। जिसका जास्ती पुरुषार्थ चलता वह जास्ती ऊंच पद पायेंगे। तुम सब कल्याणकारी हो ना। सिर्फ एक बाबा थोड़ेही करते हैं। खुदाई खिदमतगार तो बहुत चाहिए ना। तुम आन गॉड फादरली सर्विस पर हो।
अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छा है। वह भल हेविन में जाते नहीं हैं, गाते हैं ना – स्थापन करता हेविनली गॉड फादर है। मुसलमान बहिश्त कहते हैं। खुद बहिश्त में जाते थोड़ेही हैं। यह तो बुद्धि की बात है। स्वर्ग भारत था, अभी नर्क है। हेविन स्थापन करने वाला बाप के सिवाए कोई हो न सके। हेल का अन्त आये तब तो फिर बाप आकर हेविन में ले जावे। हेल में ही बाप को आना पड़ता है, हेविन का मालिक बनाने। अभी तुम दोज़क और बहिश्त के बीच में बैठे हो और तो सभी हैं ही दोज़क में। सिर्फ तुम बच्चे ही अपने पुरुषार्थ से बहिश्त में जाते हो, इसलिए तुमको बहुत खुशी होनी चाहिए।
“अच्छा! मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) एक बाप से ही सच्चा कम्यूनियन (योग) रखना है बाप से ही दिल की वार्तालाप करनी है। बाप के सामने ही अपनी बात रखनी है, किसी देहधारी के सामने नहीं।
2) खुदाई खिदमतगार बन सबको बहिश्त में चलने का रास्ता बताना है। सबका कल्याणकारी बनना है।
वरदान:- ब्राह्मण जीवन में सदा सुख देने और लेने वाले अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी भव
जो अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी हैं वे सदा बाप के साथ सुखों के झूलों में झूलते हैं। उन्हें कभी यह संकल्प नहीं आ सकता कि फलाने ने मुझे बहुत दु:ख दिया। उनका वायदा है – न दु:ख देंगे, न दु:ख लेंगे। अगर कोई जबरदस्ती भी दे तो भी उसे धारण नहीं करते। ब्राह्मण आत्मा अर्थात् सदा सुखी। ब्राह्मणों का काम ही है सुख देना और सुख लेना। वे सदा सुखमय संसार में रहने वाली सुख स्वरूप आत्मा होंगी।
स्लोगन:- “नम्र बनो तो लोग नमन करते हुए सहयोग देंगे। “ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > “Hindi Murli”
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