31-08-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
31-08-2021 | प्रात: मुरली ओम् शान्ति | ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन |
“मीठे बच्चे – विशाल बुद्धि बन बड़ों-बड़ों की ओपीनियन ले अनेक आत्माओं का कल्याण करो, उनसे हाल आदि लेकर खूब प्रदर्शनियां लगाओ”
प्रश्नः- अभी तुम्हें कौन सी स्मृति आई है जिसका सिमरण करो तो कभी दु:खी नहीं होंगे?
उत्तर:- अभी स्मृति आई कि हम पूज्य राव थे, फिर रंक बनें। अब फिर से बाबा हमें राव (राजा) बना रहे हैं। बाबा अभी हमें सारे विश्व का समाचार सुनाते हैं, हम वर्ल्ड की हिस्ट्री जॉग्राफी को जान गये हैं। इन्हीं स्मृतियों का सिमरण करते रहो तो कभी अपने को दु:खी नहीं समझेंगे। सदा खुश रहेंगे।
गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू…
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। बच्चे समझते हैं कि बाप को मिलना वा बाप से वर्सा लेना बहुत सहज है। गाया भी जाता है बाप से एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का वर्सा मिलता है। जीवनमुक्ति माना सुख-शान्ति-सम्पत्ति आदि का वर्सा। अब जीवनमुक्ति और जीवनबन्ध दो अक्षर हैं। बच्चे जानते हैं इस समय भक्ति मार्ग और रावण राज्य के कारण सब जीवनबन्ध में हैं। बाप आकर बन्धन से मुक्त करते हैं, वर्सा देते हैं। जैसे बच्चा जन्मा और माँ-बाप, मित्र-सम्बन्धी आदि समझ जाते हैं वारिस पैदा हुआ। जैसे यह समझना सहज है वैसे वह भी सहज है, बच्चे कहते हैं बाबा कल्प पहले मिसल आप हमको आकर मिले हो। आप से ही सहज वर्सा पाने का रास्ता मिला है। यह तो हर एक जानते हैं नई सृष्टि का रचयिता भगवान ही है। वह हमको भटकने से बचाते हैं। कल भक्ति करते थे, आज बाप से सहज ज्ञान और राजयोग का रास्ता मिला है।
बच्चे अपना अनुभव सुनाते हैं कि हमने बी.के. द्वारा सुना कि दो बाप हैं। यह सिवाए तुम्हारे और कोई मुख से कह न सके कि दो बाप हैं। तुम्हारी हर एक बात वन्डरफुल है। अभी स्मृति में आता है जो यहाँ के होंगे उनको झट स्मृति में आ जायेगा। हाँ, स्मृति में आये हुए को भी माया कोई समय जोर से थप्पड़ लगाए विस्मृत कर देती है। इसमें बच्चों को बड़ा खबरदार रहना है। स्मृति तो बाप ने दिलाई है।
पवित्रता का कंगन भी पूरा बांधना है। रक्षाबन्धन का रहस्य क्या है, सो तो अभी तुम जानते हो। किसने यह प्रतिज्ञा कराई है। काम तो महाशत्रु है। बाप कहते हैं – मेरे साथ प्रतिज्ञा करो कि कभी भी पतित नहीं बनूँगा और मुझे याद करते रहो तो आधाकल्प के पाप जलकर खत्म हो जायेंगे। बाप गैरन्टी करते हैं परन्तु यह तो बच्चे समझते भी हैं – बाप गैरन्टी करते यह तो बात ठीक है ना। सोनार गैरन्टी भी क्या करेंगे कि हम पुराने जेवर को नया बनायेंगे। उनका तो यह काम ही है। आग में डालने से जरूर वह सच्चा सोना बन ही जायेगा। तो बाप समझाते हैं – आत्मा में भी खाद पड़ी है। कैसे सतो रजो तमो में आते हैं – यह बहुत सहज है।
चित्र भी इसलिए बनाये हैं कि इस पर सहज समझा सकें। युनिवर्सिटी कालेजेस आदि में भी नक्शे होते हैं ना – अनेक प्रकार के। तुम्हारे भी यह नक्शे हैं। तुम अच्छी रीति किसको समझा सकते हो। ज्ञान सागर पतित-पावन बाप ही आकर यह रास्ता बताते हैं। और कोई पतित को पावन बना न सकें।
नयन हीन दु:खी मनुष्य हैं। तुम बच्चे जानते हो पहले दो युगों में दु:ख होता नहीं। न भक्ति होती है। वह है ही स्वर्ग। भारत के इस समय के मनुष्यों का और भारत के प्राचीन मनुष्यों का कान्ट्रास्ट है ना। परन्तु यह और कोई समझते नहीं। कितनी पूजा चलती है। जितना-जितना जो साहूकार होते हैं उतना देवी-देवताओं को अच्छे जेवर पहनाते हैं। बाबा खुद अनुभवी है। बाम्बे में लक्ष्मी-नारायण का जो मन्दिर है, उनके ट्रस्टी ने लक्ष्मी-नारायण के लिए हीरों का हार बनवाया था। बाबा को उस ट्रस्टी का नाम भी याद है। पहले शिवबाबा का मन्दिर बनाया तो उनको बहुत सजाया फिर देवताओं का बनाया तो लक्ष्मी-नारायण आदि को भी कितने जेवर पहनाये। उस समय कितना धन होगा। मुहम्मद गजनवी कितने ऊंट भरकर ले गये। भारत में कितना अथाह धन था। अभी तुम यथार्थ रीति समझते हो। हमारा भारत क्या था! हमारे भारत में कुबेर का खजाना था। हीरे-जवाहरों के मन्दिर बनाते थे। अभी वह चीजें हैं नहीं, सब लूटकर ले गये। अभी तो क्या हाल हुआ है।
तुम ही पूज्य राव थे फिर तुम ही 84 जन्म ले पूरे रंक बने हो। ऐसी-ऐसी बातें घड़ी-घड़ी सिमरण करनी चाहिए। तो फिर कभी भी तुम अपने को दु:खी नहीं समझेंगे। दिल में सिमरण करते रहेंगे हम बाबा से क्या ले रहे हैं। बाप आकर हमको सारे विश्व का समाचार सुनाते हैं। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई भी जानते नहीं। तुम जानते हो पहले एक धर्म, एक राज्य, एक ही मत, एक भाषा थी। सभी सुखी थे। पीछे यह आपस में लड़ने-झगड़ने लगे और भारत टुकड़ा-टुकड़ा होने लगा। पहले ऐसे नहीं था। वहाँ कोई भी किसम का दु:ख नहीं था। बीमारी का नाम निशान नहीं था। उसका नाम ही है स्वर्ग। तुमको अपनी स्मृति आई है। बरोबर कल्प-कल्प हमको विस्मृति होती है फिर स्मृति में आता है। पहली एकज़ भूल हुई है जो रचता और रचना को भूल गये। अभी तुम आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। सतयुग में भी यह नॉलेज नहीं होगी, तो फिर परम्परा कैसे चल सकती। उस समय मुख्य तो राजे लोग ही होते हैं। ऋषि-मुनि थोड़ेही होते हैं। वे द्वापर से आते हैं। ऋषि-मुनि आदि को खान-पान भी राजाओं से ही मिलता है। राजायें सम्भाल करते हैं क्योंकि फिर भी संन्यास करते हैं ना। प्राचीन भारत का प्राचीन राजयोग गाया जाता है। प्राचीन ऋषि-मुनि नहीं कहेंगे। वह तो द्वापर में ही आते हैं। वह राजाओं के आधार पर चलते हैं।
कहते हैं हम रचता और रचना को नहीं जानते। बाप कहते हैं – यह खुद राजायें भी नहीं जानते। इस दुनिया में कोई भी इस नॉलेज को नहीं जानते। अभी तुम बच्चे समझदार बने हो। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर जो बनाते हैं उनको तुम लिख सकते हो। इतने लाखों रूपये खर्च कर मन्दिर बनाया है परन्तु उनकी जीवन कहानी का आपको पता है? इन्होंने राज्य कैसे पाया फिर कहाँ चले गये। अभी कहाँ हैं, हम आपको सब राज़ बता सकते हैं। ऐसा उन्हों को लिख सकते हो। तुम बच्चे तो हर एक की जीवन कहानी को जान चुके हो तो क्यों नहीं लिखना चाहिए। हमको टाइम दो तो हम एक-एक की जीवन कहानी बतायेंगे।
शिव के मन्दिर जो बनाते हैं उनको भी तुम लिख सकते हो। बनारस में शिव का मन्दिर कितना बड़ा है। वहाँ भी ट्रस्टी लोग होंगे। कोशिश करनी चाहिए – बड़ों-बड़ों को समझायें। बड़े आदमी समझ गये तो उनका आवाज़ बहुत होता है। गरीब लोग झट सुन लेते हैं। मदद बड़ों की लेनी है। ओपीनियन भी बड़ों-बड़ों की लिखवानी है क्योंकि उन्हों का आवाज भी मदद करता है। वास्तव में वह इतना आवाज़ करते नहीं हैं जितना होना चाहिए। तुम प्रेजीडेंट को भी समझाते हो। अच्छा-अच्छा भी कहते हैं। चीफ मिनिस्टर, गवर्नर आदि ओपनिंग करते हैं – लिखते हैं यह बी.के. तो बहुत अच्छा सहज रास्ता ईश्वर से मिलने का बताते है। परन्तु ईश्वर क्या चीज़ है, यह कुछ भी नहीं समझते। सिर्फ उस समय कहते हैं रास्ता बड़ा अच्छा है। शान्ति मिलने का मार्ग अच्छा है। परन्तु खुद नहीं समझते हैं।
बाबा बड़ों-बड़ों को समझाने के लिए भी कहते हैं। बड़े-बड़े मनुष्यों से बड़े-बड़े जो नामीग्रामी हाल हैं वह ले लो। बोलो, हम सब मनुष्यों के कल्याण लिए यह प्रदर्शनी हमेशा के लिए रखना चाहते हैं, सिर्फ एडवरटाइज करनी है। ऐसे 50 या 100 हाल लेने चाहिए। भारत तो बहुत बड़ा है ना। एक-एक शहर में 10-12 हाल लो। अखबार में पड़ जाए इतने हालों में प्रदर्शनी हो रही है। जिनको समझना है वह आकर समझें। तो कितने का कल्याण हो जायेगा। बच्चों को बड़ा विशाल बुद्धि बनना चाहिए। सर्विस बच्चों को करनी चाहिए ना। बाप सब बच्चों को कहते हैं प्रदर्शनियाँ बहुत जोर-शोर से करो। बाबा तैयारी करा रहे हैं। बच्चों को कोशिश करनी चाहिए, यह सब समझने की बातें हैं।
भगवान आते हैं प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं प्रजा की। तो जरूर कितने ब्राह्मण रचे होंगे। अब फिर रच रहे हैं। कितने ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ हैं। बाबा यह ब्राह्मण धर्म रचते हैं संगम पर। तुम प्रैक्टिकल में देख रहे हो और समझ रहे हो। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। तुम बच्चे समझते हो बाबा आते ही तब हैं जब पतित दुनिया को पावन बनना होता है। यह भी जानते हैं परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ही रचना रचते हैं। परन्तु कब रचते हैं – यह नहीं समझते। वह समझते हैं कोई नई रचना रचते होंगे। ब्रह्मा को तो सूक्ष्मवतन में समझते हैं। अभी तुम समझते हो प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ है।
तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो। पवित्र बन फिर फरिश्ते बन जाते हो, साक्षात्कार करते हैं। बच्चे आकर सुनाते हैं वहाँ मूवी चलती है। वह है ही मूवी वर्ल्ड, तुमने मूवी बाइसकोप भी देखा था। अभी प्रैक्टिकल सब बातों को तुम जान चुके हो। मूलवतन है साइलेन्स वर्ल्ड, वहाँ आत्मायें रहती हैं। सूक्ष्मवतन में सूक्ष्म शरीर भी है। तो जरूर कुछ भाषा भी होगी। तुम बच्चों की बुद्धि में है हम आत्माओं का स्थान शान्तिधाम है फिर है सूक्ष्मवतन। वहाँ ब्रह्मा-विष्णु-शंकर रहते हैं। और यह है कलियुग और सतयुग का संगम। यहाँ बाप आते हैं, यहाँ से तुम ब्राह्मण जाते हो। पियरघर और ससुरघर है ना। यहाँ दोनों तुम्हारे पियर हैं। बापदादा दोनों मेहनत करते हैं बच्चों को गुल-गुल (फूल) बनाने।
मुसलमान भी कहते हैं गॉर्डन ऑफ अल्लाह। कराची में एक पठान था – वह सामने खड़ा होता था। देखते-देखते गिर पड़ता था। पूछा जाता था तो कहता था हम खुदा के बगीचे में गया, खुदा ने फूल दिया। अब उनको ज्ञान तो था नहीं। अभी तुम समझते हो बगीचा किसको कहा जाता है। यह है कांटों का जंगल और वह है फूलों का बगीचा। तुम्हारी बुद्धि में सारा राज़ है। सतयुग क्या है, कलियुग क्या है। तुमको बहुत खुशी होनी चाहिए। सारा चक्र तुम्हारी बुद्धि में है। विस्तार तो इनका बहुत है। तुम्हारी बुद्धि में कितना शॉर्ट में बैठा हुआ है।
तुम बच्चों ने रचता बाप द्वारा रचता और रचना को जाना है। ब्रह्मा को रचता नहीं कहेंगे। रचता एक है – बलिहारी भी एक की है। पहले-पहले रचना ब्रह्मा की है फिर कहेंगे कृष्ण की। ब्रह्मा तो है, ब्राह्मण भी जरूर चाहिए। पाण्डवों को ब्राह्मण नहीं समझेंगे। ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण चाहिए। यह है रूहानी यज्ञ, इसको स्प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है। रूह को वही बाप ज्ञान देंगे। तुम जानते हो हमको मनुष्य नहीं पढ़ाते हैं। सभी आत्माओं को बाप पढ़ाते हैं। कहते भी हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना। कृष्ण थोड़ेही कहेंगे। वह तो हो भी न सके।
ब्रह्मा द्वारा स्थापना कौन कराते हैं? क्या कृष्ण? नहीं, परमपिता परमात्मा। विष्णु द्वारा पालना। ब्रह्मा और विष्णु का कितना पार्ट है। ब्रह्मा मुख वंशावली ही फिर जाकर विष्णुपुरी के देवता बनते हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा। यह भी बच्चों को समझाया है। ब्रह्मा सो विष्णु बनने में एक सेकेण्ड, विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 84 जन्म। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। कोई भी समझ न सके।
यह है बेहद की बातें। बेहद के बाप से बेहद की पढ़ाई पढ़ बेहद का राज्य लेना है। सृष्टि चक्र को जानना है। आत्मा ही जानती है शरीर द्वारा। ऐसे नहीं कि शरीर नॉलेज लेता है आत्मा द्वारा। नहीं, आत्मा नॉलेज लेती है। तुमको कितनी खुशी है। यह आन्तरिक गुप्त खुशी होनी चाहिए। पढ़ाई के संस्कार आत्मा में हैं। दु:ख भी आत्मा को होता है। कहते हैं हमारी आत्मा को दु:खी मत करो। बच्चों को अब कितनी रोशनी मिल रही है। तुमको खुशी रहती है। सागर से रिफ्रेश हो बादलों को मिलकर वर्षा बरसानी है। आपस में मिलकर प्रदर्शनी आदि तैयार करने में मदद करो। शौक होना चाहिए। सर्विस, सर्विस और सर्विस।
अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज का सिमरण कर अपार खुशी में रहना है। विशाल बुद्धि बन जोर-शोर से सर्विस करनी है।
2) बाप द्वारा जो स्मृति मिली है उसे विस्मृति में नहीं लाना है। पवित्र रहने की जो बाप से प्रतिज्ञा की है उसे पूरा निभाना है।
वरदान:- अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाने वाले सदा प्रसन्नचित भव
सभी ब्राह्मण बच्चों को जन्म से ही ताज, तख्त, तिलक जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। तो इस भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते हुए अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते रहो तो गुण सम्पन्न बन जायेंगे। अपनी कमजोरियों के गुण नहीं गाओ, भाग्य के गुण गाते रहो, प्रश्नों से पार रहो तब सदा प्रसन्नचित रहने का वरदान प्राप्त होगा। फिर दूसरों को भी सहज ही प्रसन्न कर सकेंगे।
स्लोगन:- एकनामी और इकॉनामी से चलना ही ब्राह्मण जीवन में सफलता का आधार है।