28-12-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

“मीठे बच्चे – प्रैक्टिस करो मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, शरीर का भान छोड़ दो, बस शिवबाबा को याद करते-करते घर जाना है”

प्रश्नः– शिवबाबा को किन बच्चों पर बहुत-बहुत तरस पड़ता है?

उत्तर:- जो बच्चे अपना वैल्युबुल समय व्यर्थ गँवा देते हैं, बाप का बनकर बाप की सर्विस नहीं करते। उन पर बाप को बहुत-बहुत तरस पड़ता है। बाबा कहते – मेरे बच्चे बने हो तो फर्स्ट ग्रेड बनकर दिखाओ। ज्ञान रत्न जो मिलते हैं उनका दान करो।

गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ      ,अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARMATMA LOVE SONGS

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > Hindi Murli” 

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

“ओम् शान्ति”

जैसे बाबा ज्ञान का सागर है बच्चों को भी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान समझाते रहते हैं और चित्रों के ऊपर भी अच्छी तरह समझाते रहते हैं। बाबा का सीढ़ी के चित्र पर सारी रात विचार चल रहा था क्योंकि यह है सबसे अच्छे ते अच्छा चित्र समझाने का और है भी भारतवासियों के लिए। शिवबाबा तो ज्ञान का सागर है, यह बाबा भी ज्ञान की उछालें देते रहते हैं, इसको कहा जाता है विचार सागर मंथन। तुम बच्चों का बहुत थोड़ा विचार सागर मंथन चलता है। कई बच्चों का तो विचार सागर मंथन चलता ही नहीं है। हर एक की बुद्धि चलनी चाहिए।

सीढ़ी पर बहुत विचार चलते हैं। मूलवतन भी ऊपर में दिखाना पड़े। सीढ़ी तो है स्थूल वतन की, 84 जन्मों की। ज्ञान के बिगर यह चित्र कोई बना न सकें। ज्ञान तो तुम बच्चों में ही है। सीढ़ी बनाते भी विचार सागर मंथन चलते रहना चाहिए। यह बड़ी अच्छी चीज़ है। ऊपर में मूलवतन भी जरूर चाहिए। समझाया जाता है – आत्मायें मूलवतन में स्टार मिसल रहती हैं। मूलवतन के बाद है ब्रह्मा-विष्णु-शंकर पुरियां, जिसको सूक्ष्म वतन कहा जाता है। सीढ़ी में तो भारत का ही दिखाते हैं। भारत पावन था, अभी पतित है। अक्षर सब लिखने पड़ते हैं। बिचारे मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते। जो पूज्य थे वही पुजारी बने हैं, यह किसको भी पता नहीं है। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जो जानते हैं। राजधानी स्थापन हो रही है।

कोई तो बहुत अच्छी रीति पुरुषार्थ करने लग पड़ते हैं। मैं आत्मा हूँ। शरीर को जैसे भूल जाते हैं और कुछ दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि समझाया जाता है कि तुम अपने को आत्मा समझो। शरीर का भान टूट जाये। कहते हैं ना – आप मुये मर गई दुनिया। शिवबाबा को याद करते-करते अपने घर जाना है। इस अवस्था को जमाने में ही मेहनत है।

सीढ़ी पर भी समझाया जाता है कि भारत में आदि सनातन देवी-देवता धर्म था तो सुख-शान्ति-पवित्रता थी। अभी मनुष्य दु:खी हुए हैं तो घर को याद करते हैं। कोई को भी इस सीढ़ी के चित्र पर समझाना बहुत अच्छा है। सीढ़ी के आगे जाकर बैठ जाएं तो भी बुद्धि में रहे – हम भारतवासियों ने 84 जन्म लिए हैं। 84 जन्म सिद्ध करने हैं। फिर इस हिसाब से समझाया जाता है – जो आधाकल्प के बाद आते हैं उन्हों के जरूर कम जन्म होंगे। सारा दिन बुद्धि में यह ज्ञान टपकता रहे। सतयुग त्रेता में सम्पूर्ण निर्विकारी, पूज्य थे फिर विकारी पुजारी बने। विकारी बनने के कारण ही अपने को हिन्दू कहलाते रहते हैं। और कोई ने अपना नाम नहीं बदला है। हिन्दुओं ने ही बदला है। अभी तुम बच्चों को यह ज्ञान मिलता है। ज्ञान सागर बाबा तुमको नया ज्ञान दे रहे हैं। सीढ़ी के चित्र पर बहुत बच्चों को ध्यान देना है। सिर्फ कोई चित्र के सामने आकर बैठ जाये तो भी बुद्धि में सब कुछ आ जायेगा।

विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel
विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel

सारी रात बुद्धि चलती रहे। 84 का चक्र कैसे समझाया जाए। आधाकल्प है रावण राज्य, बाद में जो आने वाले हैं वह यह ज्ञान उठायेंगे ही नहीं। सतयुग त्रेता में आने वाले ही उठायेंगे। जिनको सतयुग त्रेता में आना ही नहीं है, वह यह ज्ञान उठायेंगे भी नहीं। अभी तो भारत की कितनी संख्या है। सतयुग त्रेता में होता है एक बच्चा, एक बच्ची। पिछाड़ी में थोड़ी गड़बड़ होती है, परन्तु विकार की बात नहीं। रावणराज्य होता ही है – द्वापर में। परन्तु त्रेता में दो कला कम हो जाने से कुछ न कुछ प्युरिटी कम हो जाती है। रावण राज्य और रामराज्य को भी कोई समझते नहीं हैं। राजाई पद पाने वाले अच्छा पढ़ेंगे। शौक चाहिए कोई का कल्याण करने का। परन्तु तकदीर में नहीं है तो तदबीर ही नहीं करते हैं। धारणा करते जायें तो सर्विस पर भी बाबा भेज दें। जिनको सर्विस का शौक है वह तो दिन रात सर्विस करते हैं।

सीढ़ी के राज़ को कोई समझ जाएं तो खुशी का पारा चढ़ जाये। बाबा ज्ञान का सागर है, हम बच्चे नदियां हैं तो वह शो दिखाना है। दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जायेगी। राजाई तो स्थापन होनी ही है। सीढ़ी में भी दिखाया है सतयुग श्रेष्ठाचारी पावन भारत, वही अब पतित भ्रष्टाचारी दुर्गति को पाया हुआ भारत है। सब दुर्गति को पाये हुए हैं तब तो बाबा आकर सद्गति करते हैं। इसमें भल कोई आत्मा अच्छी वा बुरी भी होती है। रिलीजस आदमी इतना पाप कर्म नहीं करते हैं। वेश्यायें आदि बहुत पाप कर्म करती हैं। यह है वेश्यालय। सतयुग है शिवालय, उनकी स्थापना शिवबाबा करते हैं। उनको कृष्णपुरी भी कहते हैं अर्थात् कृष्णालय कहें… परन्तु स्थापना तो शिवबाबा करते हैं ना।

यह सीढ़ी का चित्र भी जरूरी है। इस पर तो बहुत ध्यान देना चाहिए। सीढ़ी को देखने से सारा 84 का चक्र बुद्धि में आ जाता है। परन्तु अन्दर बड़ा शुद्ध होना चाहिए। शिवबाबा से योग हो तब नशा चढ़े और पद भी पा सकें। ऐसे नहीं कहना चाहिए कि जो मिलेगा, तकदीर में जो होगा… सर्विस का शौक रखना चाहिए। शरीर पर तो भरोसा नहीं है। आगे चलकर कैलेमेटीज़ भी जोर से आती रहेंगी फिर खाली हाथ जायेंगे। अर्थक्वेक में लाखों मनुष्य मर पड़ते हैं तो डर रहना चाहिए, योग की यात्रा से हम सतोप्रधान बन जायें फिर औरों को भी बनाना है। धन दिये धन ना खुटे… मेहनत करनी है।

बाप तो समझाते रहते हैं तुमको 21 जन्मों के लिए अपने पांव पर खड़ा रहना है इसलिए अच्छी रीति पुरुषार्थ करते रहो। पुरुषार्थ का समय ही अभी है। दुनिया में किसको पता नहीं है कि 21 जन्मों के लिए राजाई कैसे मिलती है। तुम इस सीढ़ी पर बहुत अच्छी रीति समझा सकेंगे। 84 जन्म कैसे हैं? ऊपर में लिखा हुआ भी है शिव भगवानुवाच, निराकार पतित-पावन ज्ञान का सागर समझा रहे हैं। जिनको समझाते हैं वह फिर औरों को भी समझायेंगे कि बच्चे तुमको अब कारून का खजाना मिलता है तो वह लेना चाहिए। ऊंच पद पाना चाहिए। यह है प्रवृत्ति मार्ग का ज्ञान। एक ही घर से एक भाती ज्ञान में है, दूसरा नहीं है। खिट-खिट तो होगी ही।

Knowledge seed & Brhaman Birth, ज्ञान बीज व ब्राह्मण जन्म
Knowledge seed & Brhaman Birth, ज्ञान बीज व ब्राह्मण जन्म

यह सैपलिंग लग रहा है। हम पूज्य से पुजारी कैसे बनें। यह राज़ बड़ा समझने का है। जो सबसे जास्ती पूज्य पावन बनते हैं, वही सबसे जास्ती पतित बनते हैं। इनके बहुत जन्मों के अन्त में ही प्रवेश किया है। सब पतित हैं ना। बाप भी समझाते हैं तो दादा भी समझाते हैं तो दादियां भी समझाती हैं। बहन-भाईयों का धन्धा ही यह है। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहें तो तुमसे भी तीखे जा सकते हैं। जो कांटों के जंगल में रहते सर्विस करते हैं, उनको फल जास्ती मिलता है। गृहस्थ व्यवहार में रहते सर्विस बहुत अच्छी करते हैं, उन्हों को सर्विस में बड़ा मज़ा आयेगा।

शिवबाबा भी मदद तो करेंगे ना। कहेंगे अच्छा सर्विस छोड़कर फलानी जगह जाओ। जैसे देखो निमन्त्रण मिलते हैं – प्रोजेक्टर शो के लिए। 4-5 मुख्य चित्र भी ले जाओ। वहाँ सर्विस करके आओ। सर्विस के जो शौकीन होंगे, कहेंगे हम जाकर समझाते हैं। वहाँ सेन्टर भी खुल सकता है। निमन्त्रण तो बहुत मिल सकते हैं। सर्विस वृद्धि को पाती रहेगी। बाप गायन तो करेंगे ना। यह बच्चा बहुत अच्छी सर्विस करने वाला है। कोई तो सर्विस से 3 कोस दूर भागते हैं। सर्विस का शौक रखने से मदद भी मिलती है, जितना बाप की सर्विस करेंगे उतना ताकत मिलेगी, आयु भी बढ़ेगी। खुशी का पारा चढ़ेगा। नामी-ग्रामी भी होंगे अपने कुल में। पुरुषार्थ से इतना ऊंच बन सकते हो तो इतना पुरुषार्थ करना चाहिए। चलन से ही मालूम पड़ जाता है। किसको सर्विस का शौक है। रात-दिन अपनी कमाई का चिंतन रखना पड़े। बहुत भारी कमाई है।

बाबा को भी कब-कब ख्याल आता है, जाकर बच्चों को रिफ्रेश करें। बहुत खुशी होगी। बाबा को तो सर्विसएबुल बच्चे ही याद पड़ते हैं। अमृतवेले विचार सागर मंथन का डांस अच्छा चलता है, जिसका जो धन्धा उसी में लगे रहते हैं। सवेरे में विचार सागर मंथन चलता है। बच्चों को भी पहले तो मुरली अच्छी रीति धारण करनी पड़े। रिवाइज करें तब फिर आकर मुरली चलायें। आगे बाबा रात को दो बजे उठकर लिखते थे फिर सवेरे मम्मा मुरली पढ़कर फिर चलाती थी। भल मुरली हाथ में न भी लेवें, तो भी अच्छी चला सकते हैं। जिन-जिन बच्चों को मुरली पढ़ने और उस पर चिंतन करने का शौक है, वह सर्विस करते रहेंगे। मुरली पढ़ने से जाग पड़ेंगे। यह मुरली छपने का काम तो बहुत जोर से चलेगा। टेप का भी काम बहुत बढ़ जायेगा। मुरली विलायत तक भी जायेगी। कोई की बुद्धि में बैठ जाए तो एकदम नशा चढ़ जायेगा। उठते-बैठते 84 का चक्र बुद्धि में फिरता रहेगा। कोई की बुद्धि में तो कुछ भी नहीं बैठता है। खुशी का पारा नहीं चढ़ता है।

तुम्हारा तो सारा दिन धन्धा ही यह रहना चाहिए। यह है ऊंचे ते ऊंचा धन्धा। बाबा को व्यापारी भी कहा जाता है ना। यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का व्यापार कोई विरला करे। सारा दिन बुद्धि में यही फिरता रहना चाहिए और खुशी में मस्त रहना चाहिए। यह खुशी है सारी अन्दर की। आत्मा को खुशी होती है – ओहो! हमको बाबा मिल गया है। बेहद के बाप ने 84 जन्मों की कहानी सुनाई है। बच्चे; बाप का, टीचर का शुक्रिया मानेंगे ना। स्टूडेन्ट टीचर द्वारा पास होते हैं तो फिर टीचर को सौगात भी भेज देते हैं। तुम बच्चे जानते हैं बाबा हमको ऊंच पढ़ाई पढ़ाते हैं, जिससे हम विश्व के मालिक बन जाते हैं। यह पढ़ाई है बहुत सहज। परन्तु पूरा ध्यान नहीं देते हैं। फर्स्टक्लास नॉलेज है। इनको समझने से कारून का खजाना मिलता है भविष्य में। कमाल है ना!

हर एक बच्चा समझ सकता है हम किस ग्रेड में है। सारा मदार है – सर्विस पर। बाबा तो कहेंगे थर्ड ग्रेड से निकल फर्स्ट ग्रेड में आ जाओ तब कुछ पद पा सकेंगे। 21 जन्मों की रिजल्ट निकल जाती है। बाबा को तो तरस पड़ता है। व्यर्थ समय गँवाते हैं। बाबा समझाते हैं ड्रामा प्लैन अनुसार मुझे आना पड़ता है – सद्गति देने के लिए। यह है ही दुर्गति की दुनिया। पूछो तुम दुर्गति में हो? तो कहेंगे हमारे लिए तो यहाँ ही स्वर्ग है। हम तो स्वर्ग में बैठे हैं। यह बुद्धि में नहीं आता है कि स्वर्ग सतयुग को कहा जाता है। बड़े-बड़े पण्डित, विद्वान हैं। किसकी भी बुद्धि में नहीं आता है कि यह तो पुरानी आइरन एजेड दुनिया है। बड़े घमण्ड से बैठे हैं। कितना भक्ति मार्ग का ज़ोर है। भक्ति का तो बहुत पाम्प है। कुम्भ के मेले पर लाखों मनुष्य जाते हैं। यह है अन्तिम पाम्प। माया इस तरफ आने नहीं देती है। चूहे मिसल फूँक देती है, सारा खून चूस लेती है। 

अच्छा!, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सवेरे-सवेरे उठकर विचार सागर मंथन करना है। मुरली पढ़कर उस पर चिंतन करके धारण करना है। अविनाशी ज्ञान रत्नों का व्यापार करना है।

2) सर्विस का बहुत-बहुत शौक रखना है। शरीर पर कोई भरोसा नहीं, इसलिए 21 जन्मों की कमाई अभी ही जमा करनी है।

वरदान:-     साइलेन्स की शक्ति द्वारा अपने रजिस्टर को साफ करने वाले लोकप्रिय, प्रभू प्रिय भव!

जैसे साइन्स ने ऐसी इन्वेन्शन की है जो लिखा हुआ सब मिट जाए, मालूम न पड़े। ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से अपने रजिस्टर को रोज़ साफ करो तो प्रभू प्रिय वा दैवी लोक प्रिय बन जायेंगे। [सच्चाई सफाई को सभी पसन्द करते हैं। इसलिए एक दिन के किये हुए व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्म की दूसरे दिन लीक भी न रहे, बीती को बीती कर फुलस्टाप लगा दो] तो रजिस्टर साफ रहेगा और साहेब राज़ी हो जायेगा।

स्लोगन:-    व्यर्थ संकल्प करना वा दूसरों के व्यर्थ संकल्प चलाने के निमित्त बनना – यह भी अपवित्रता है।

धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।

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