27-1-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

“मीठे बच्चे – तुम्हारे सुख के दिन अब आ रहे हैं, लोक लाज़, कलियुगी कुल की मर्यादायें छोड़ अब तुम कमाई करो, बाप से पूरा वर्सा लो”

प्रश्नः– अन्त मती सो गति किस पुरुषार्थ से होगी?

उत्तर:- बाबा कहते बच्चे, तुमने अब तक जो कुछ पढ़ा है उसे भूल सिर्फ एक बात याद करो – चुप रहो। अपने को आत्मा समझ बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करो, बाप बच्चों को कोई तकलीफ नहीं देते लेकिन दरबदर होने से बचाते हैं। गरीब बच्चे जो शादी आदि के लिए कर्जा लेते हैं, बाबा उससे भी छुड़ा देते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे, तुम पवित्र बनो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी।

गीत:- धीरज धर मनुआ…  , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.

“ओम् शान्ति”

यह गीत है भक्ति मार्ग का। वह इनका अर्थ समझते नहीं हैं। सिर्फ बच्चे ही जानते हैं। अब बरोबर हमारे सुख के दिन आ रहे हैं जिसके लिए हम पुरुषार्थ कर रहे हैं। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना सुख मिलना है। श्रीमत पर झोली भरते हैं।

Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग
Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग

भक्ति मार्ग को कहा जाता है ब्रह्मा की रात। उन्हों को यह पता नहीं है कि पतित-पावन बाप कब आयेंगे। अब तुम बच्चे जानते हो कि कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि को ही संगमयुग कहा जाता है, अब तुम उन्हों को कुम्भकरण की नींद से जगाते हो। मनुष्य याद करते हैं, एक पतित-पावन, ज्ञान सागर बाप को। उस सागर को तो याद नहीं करते जिससे यह पानी की नदियां निकलती हैं। वहाँ तो नदियों का संगम है, सागर और नदियों का नहीं है। खूबी है तो सागर और नदियों के मेले में। सागर तो जरूर चाहिए ना।

सतयुग की स्थापना करने वाला ही सच्चा बाप सच्ची कहानी नर से नारायण बनने की सुनाते हैं। याद भी उनको ही करते हैं कि हे पतित-पावन आओ। तो जब परमात्मा आये तब ही कहा जाए आत्माओं और परमात्मा का मेला संगम का। यह है सच्चा-सच्चा मेला। तुम लिख सकते हो यह आत्मा और परमात्मा का एक ही पुरुषोत्तम संगमयुग पर मेला लगता है, जिससे पतित सृष्टि बदल पावन जरूर बनती है। वह है पावन दुनिया, यह है पतित दुनिया। यह है सच्चा मेला, जबकि पतित-पावन बाप आकर पतित आत्माओं को पावन बनाए साथ ले जाते हैं। परमात्मा और आत्माओं का मेला लगता है – पतित दुनिया को पावन बनाने के लिए। तो इसका कार्टून भी बनाना चाहिए। बाबा यह सब एडवांस में समझाते हैं।

त्रिवेणी पर अक्सर करके शिवरात्रि पर ही जाते हैं। तो यह सब समझाने का भी नशा चढ़ना चाहिए। जो अच्छा समझाने वाला होगा वह युक्ति से समझायेगा। नहीं तो बित-बित करता रहेगा। कुम्भ का मेला सच्चा और झूठा सिद्ध करना चाहिए। यह है संगम जबकि पतित दुनिया पावन दुनिया बनती है। तो सच्चा-सच्चा मेला यह है।

वह कुम्भकरण की अज्ञान नींद में सोये हुए हैं। परमात्मा के लिए सर्वव्यापी कह देते हैं। वह तो पतित-पावन है, उनको तो आना है पावन बनाने। तुम जानते हो यह एक ही पुरुषोत्तम संगमयुग है, जिसमें चढ़ती कला होती है। सतयुग के बाद फिर नीचे गिरना ही है। जो समय बीता वह कहेंगे पूरा हुआ। पुराना होते-होते बिल्कुल ही पुराने बन जायेंगे। तुम्हारी स्वास्तिका भी ऐसी बनाई हुई है। सतोप्रधान, सतो रजो तमो….. तुम जानते हो हम अभी बाप से सदा सुख का वर्सा पाने का पुरुषार्थ करते हैं। बाबा पुरुषार्थ भी बहुत सहज कराते हैं। कोई तकलीफ नहीं और ही दरबदर होने से बचाते हैं।

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

शादी आदि में कितना खर्चा होता है। गरीबों को तो कर्जा लेकर भी शादी करानी पड़ती है। बाबा इन कर्जे आदि से भी छुड़ाते हैं। नर्क में गिरने से भी बचाते हैं, तो खर्चे आदि से भी बचाते हैं इसलिए यहाँ गरीब बहुत आते हैं। कितनी अच्छी-अच्छी कन्यायें आती थी, अचानक काम का तूफान आया, सगाई की, शादी कर ली। शादी करके फिर पछताती हैं – यह बड़ी भूल हो गई। टाइम लगता है ना। तो बाप कितनी बचाने की कोशिश करते हैं।

साहूकार तो आ न सकें। वह न खुद वर्सा पाते, न रचना को सच्ची कमाई करने देते। गरीबों में भी बहुत गन्दी रसम-रिवाज है। लोक-लाज, कुल मर्यादा मार डालती है। कोई बच्चे बच्चियां ठीक नहीं पढ़ते हैं तो दोज़क में चले जाते हैं। बाप दोज़क से निकालने आये हैं। कोई नहीं निकलते हैं। जानवर तो नहीं जो नाक में रस्सी डाल बचायें। समझाते रहते हैं। बाप बच्चों का रचयिता होने कारण समझाते हैं बच्चे तुम सच्ची कमाई करो, बच्चों को भी कराओ। तो भी कितनी खिटपिट होती है। स्त्री आये तो पति न आये, पति आये तो बच्चा न आये – इसीलिए खिटपिट होती है। समझाते तो बहुत अच्छी रीति है। मूल बात है पवित्रता की।

बच्चे लिखते हैं बाबा क्रोध आ गया। तो समझाया जाता है तुम बच्चों पर क्रोध क्यों करते हो! कृष्ण के लिए दिखाते हैं – जशोदा हाथ बांध उखरी से बांध देती थी। परन्तु ऐसी बात है नहीं। वहाँ तो मर्यादा पुरूषोत्तम बड़े रमणीक बच्चे होते हैं। यहाँ भी कोई-कोई बच्चे बड़े अच्छे होते हैं। बात करने की बहुत फजीलत रहती है। यहाँ तो ढेर बच्चे हैं। कोई-कोई तो श्रीमत पर चलते ही नहीं हैं, कायदे पर चलते नहीं। कायदे भी तो हैं ना।

मिलेट्री में काम करने वाले पूछते हैं – वहाँ खाना पड़ता है बाबा क्या करें? बाबा कहते हैं कोशिश करो – शुद्ध चीज खाने की। लाचारी हालत में दृष्टि देकर खाओ और क्या करेंगे। डबल रोटी तो मिल सकती है। शहद, मक्खन, आलू ले सकते हो। जिस चीज़ की आदत पड़ गई तो फिर चलता रहेगा। हर बात में पूछना पड़े। बाबा तो बहुत सहज कर देते हैं। सबसे अच्छा है पवित्र बनना। कोई-कोई बच्चे ऐसे होते हैं जो घर को ही उड़ा देते हैं। बाप की मिलकियत को उड़ाए नाम बदनाम कर देते हैं।

Paradice -Satyug , स्वर्ग - सतयुग
Paradice -Satyug , स्वर्ग – सतयुग

तुम बच्चों की बुद्धि में अब है कि हमारे सुख के दिन आ रहे हैं तो क्यों न हम पुरुषार्थ कर ऊंचे ते ऊंचा पद पायें। पुरुषार्थ से ही मर्तबा मिलेगा। मम्मा बाबा तख्तनशीन होते हैं। ज्ञान-ज्ञानेश्वरी सो फिर राज-राजेश्वरी बनेंगे। तुमको भी ईश्वर ज्ञान देते हैं। तो तुम भी यह ज्ञान उठाए फिर आप समान बनायेंगे तो राज-राजेश्वरी बनेंगे। मां बाप को फालो करना चाहिए। इसमें अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं। संन्यासियों के फालोअर्स बनते हैं, परन्तु फालो तो करते नहीं। जिनको संन्यास धर्म में जाना है वह घर में ठहरेंगे नहीं। उनसे संन्यासी बनने का पुरुषार्थ जरूर होगा।

ड्रामा अनुसार ही भक्ति मार्ग शुरू हुआ है। सतो रजो तमो में तो सबको आना है। सबसे पहले श्रीकृष्ण को देखो, उनको भी 84 जन्म लेने हैं जरूर। अब अन्तिम जन्म में होंगे तब तो फिर शुरू में आयेंगे। लक्ष्मी-नारायण नम्बरवन सो फिर लास्ट में हैं फिर नम्बरवन में आयेंगे। उन्हों को जगत नाथ किसने बनाया? कब वर्सा मिला? तुम बच्चे जानते हो संगम पर उनको यह वर्सा मिला है। सारी राजधानी स्थापन होनी है। ब्राह्मणों ने 84 जन्म लिए हैं, जो अभी पार्ट बजा रहे हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। परन्तु कोई क्या धारणा करते, कोई क्या … इसमें है पुरुषार्थ की बात।

बाप प्रजापिता ब्रह्मा के मुख द्वारा सम्मुख कहते हैं – मैं आया हूँ मुझे याद करो तो योग से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। आत्मा कहती है हाँ बाबा मैं इन कानों से सुनता हूँ। शरीर बिगर आप राजयोग कैसे सिखलायेंगे। शिव जयन्ती भी है जरूर। मैं आता हूँ परन्तु कोई को पता नहीं पड़ता है।

बाबा समझाते हैं मै कल्प-कल्प ब्रह्मा के तन में ही आता हूँ, जिसने 84 जन्म लिए हैं, इसमें बदली हो न सके। यह राज-राजेश्वर था फिर अब ज्ञान-ज्ञानेश्वर बन फिर राज-राजेश्वर बनना है। यह बना बनाया ड्रामा है। गाया भी जाता है – ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। प्रजापिता तो ब्रह्मा को ही कहेंगे। विष्णु वा शंकर को तो नहीं कहेंगे। प्रजा माना मनुष्य। कहते हैं मनुष्य को ही देवता बनाता हूँ। रचना कोई नई नहीं करते हैं।

त्रिमूर्ति चित्र , Three Deity Picture
त्रिमूर्ति चित्र , Three Deity Picture

बाबा पूछते हैं बच्चे, अभी स्वर्ग में चलेंगे? वारी जायेंगे? मैं आया हूँ – अब मुझे याद करो। जितना हो सके देहधारियों की याद कम करते जाओ। हां, तुम कर्मयोगी हो, दिन में भल सब कुछ करो परन्तु साथ-साथ ऐसी याद में रहो, जो अन्त में भी मेरी याद रहे। नहीं तो जिनके साथ लगन होगी वहाँ जन्म लेना पड़ेगा। गृहस्थ व्यवहार में रहते बाप को याद करने में मेहनत लगती है।

बाप कहते हैं रात को जागो। तुम्हारी तबियत खराब नहीं होगी। योग से तो और ही बल मिलेगा। स्वदर्शन चक्रधारी बन चक्र फिराओ। हे नींद को जीतने वाले लाडले बच्चे, जिसका रथ लिया है – उनको कहते हैं। तुम जानते हो राज-राजेश्वर भी यह बनते हैं तो नींद को जीतना है। दिन में तो सर्विस करनी है। बाकी कमाई रात को ही करनी है। भक्त लोग सुबह सवेरे उठते हैं। गुरू लोग उनको कहते हैं माला फेरनी है। धन्धे में तो नहीं फेर सकेंगे। कोई-कोई अन्दर पॉकेट में माला फेरते हैं।

तो सवेरे उठ याद करना चाहिए। विचार सागर मंथन करना चाहिए। याद से ही विकर्म विनाश होगे। एवरहेल्दी बनना है तो एवर याद करना है तब अन्त मती सो गति हो जायेगी। बहुत भारी पद मिल जायेगा, इसमें धक्के खाने की बात नहीं। चुप रहना है और पढ़ना है। बाकी जो कुछ पढ़ा है, उसे भूल जाना है।

बच्चे अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। आत्मा ही शरीर द्वारा काम कराती है। करनकरावनहार आत्मा है। परमपिता परमात्मा भी आकर इन द्वारा काम करते हैं। आत्मा भी करती और कराती है। यह सब प्वाइंट्स अच्छी रीति धारण करें तब लायक बनें। जो समझकर फिर दूसरों को समझाते हैं – बाबा उन्हें लायक समझते हैं। स्वर्ग में ऊंच पद पाने के वह लायक हैं। जो समझाते ही नहीं, उनको न लायक समझेंगे – ऊंच पद पाने का।

बाप तो कहते हैं लायक बनो, राजा-रानी बनने के लिए। उनको ही सपूत बच्चा कहेंगे। यह समझने की बातें हैं और कुछ करना नहीं है। सब बातों से बाबा छुड़ा देते हैं, सिर्फ एक बात याद करनी है। अन्त काल जो स्त्री सिमरे…

जो सर्विसएबुल बच्चे होंगे वह बाबा की मुरली से झट कार्टून बनायेंगे। विचार सागर मंथन करेंगे। बच्चों को सर्विस करनी है। बाप की आशीर्वाद, सर्विसएबुल बच्चों पर रहती है। आशीर्वाद भी नम्बरवार होती है। यह बेहद का बाप सभी के प्रति कहते हैं – फालो मदर-फादर। यह तो शिवबाबा से नॉलेज लेते हैं। ब्रह्मा ऊंच पद पाते हैं तुम क्यों नही? अब फालो करेंगे तो कल्प-कल्पान्तर ऊंच पद पायेंगे। अभी फेल हुए तो कल्प कल्पान्तर फेल होंगे।

अच्छा !, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप की आशीर्वाद लेने के लिए सर्विसएबुल बनना है। आप समान बनाने की सेवा करनी है। अभी ज्ञान-ज्ञानेश्वरी बन फिर राज-राजेश्वरी बनना है।

2) एक बाप की याद में रहने की मेहनत करनी है। किसी देहधारी में लगाव नहीं रखना है। नींद को जीतने वाला बन रात में कमाई जमा करनी है।

वरदान:-     अपने स्नेह के शीतल स्वरूप द्वारा विकराल ज्वाला रूप को भी परिवर्तन करने वाले स्नेहीमूर्त भव !

स्नेह के रिटर्न में वरदाता बाप बच्चों को यही वरदान देते हैं कि “सदा हर समय, हर एक आत्मा से, हर परिस्थिति में स्नेही मूर्त भव।” कभी भी अपनी स्नेही मूर्त, स्नेह की सीरत, स्नेही व्यवहार, स्नेह के सम्पर्क-सम्बन्ध को छोड़ना, भूलना मत। चाहे कोई व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे माया कैसा भी विकराल रूप, ज्वाला रूप धारण कर सामने आये लेकिन उसे सदा स्नेह की शीतलता द्वारा परिवर्तन करते रहना। स्नेह की दृष्टि, वृत्ति और कृति द्वारा स्नेही सृष्टि बनाना।

स्लोगन:-    कठिनाईयों को पार करने से ताकत आती है इसलिए उनसे घबराओ मत। – “ॐ शान्ति”।

*** “ॐ शान्ति” ***

-: ”लवलीन स्थिति का अनुभव करो” :-

लवलीन स्थिति वाली समान आत्मायें सदा के योगी हैं। योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन। अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे! स्वत: याद है ही। जहाँ साथ होता है तो याद स्वत: रहती है। तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है, समाये हुए रहने की है।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > Hindi Murli” 

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किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे

धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।

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