28-09-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

“मीठे बच्चे – सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करो, अगर कोई उल्टी सुल्टी बातें सुनाये तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल दो”

प्रश्नः- जो बच्चे ज्ञान की खुशी में रहते हैं उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:- वे पुराने कर्मभोग का हिसाब-किताब उस खुशी में मर्ज करते जायेंगे। ज्ञान की खुशी में दु:ख दर्द, गम की दुनिया ही भूल जाती है। बुद्धि में रहता अब तो हम खुशी की दुनिया में जा रहे हैं। रावण ने श्रापित कर दु:खी किया, अब बाप आये हैं उस दु:ख की, गम की दुनिया से निकाल खुशी की दुनिया में ले जाने।

गीत:- तुम्हें पाके हमने…. सुनने के लिए गीत पर Click करे I

ओम् शान्ति। अन्धियारा और सवेरा, दुनिया के लिए बिल्कुल अलग है। वह तो कॉमन है। तुम बच्चों का सवेरा अन-कॉमन है। दुनिया को पता नहीं अन्धियारा और सवेरा किसको कहा जाता है। वास्तव में यह अन्धियारा और सवेरा कल्प के इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर होता है। अभी अज्ञान अन्धियारा दूर होता है। गाते भी हैं – ज्ञान सूर्य प्रगटा। वह सूर्य तो रोशनी देने वाला है। यह है ज्ञान सूर्य की बात। भक्ति को अन्धियारा, ज्ञान को रोशनी कहा जाता है। अभी तुम बच्चे जानते हो सवेरा हो रहा है। भक्ति मार्ग का अन्धियारा पूरा हो जाता है। भक्ति को अज्ञान कहा जाता है क्योंकि जिसकी भक्ति करते हैं उनका ज्ञान कुछ भी नहीं है। वेस्ट ऑफ टाइम होता है। गुड़ियों की पूजा होती रहती है। आधाकल्प से यह गुड़ियों की पूजा होती है। पूजा जिसकी करते उनका पूरा ज्ञान भी चाहिए। देवी-देवताओं का है पूज्य घराना। वही पूज्य फिर पुजारी बनते हैं, पूज्य से पुजारी, पुजारी से पूज्य बनने की कितनी लम्बी चौड़ी कहानी है। मनुष्य तो पूज्य पुजारी का अर्थ भी नहीं समझते हैं।

परमपिता परमात्मा आते ही हैं संगम पर, जबकि अन्धियारा पूरा होता है। सवेरा बनाने आते हैं। परन्तु उन्होंने कल्प के संगम-युगे के बदले युगे-युगे लिख दिया है। जब 4 युग पूरे होते हैं तो पुरानी दुनिया पूरी हो फिर नई दुनिया शुरू होती है। तो इसको कहेंगे कल्याणकारी संगमयुग। इस समय सब नर्कवासी हैं। जब कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग पधारा तो जरूर नर्क में था। यह कोई समझते नहीं कि हम नर्क में हैं। रावण ने सबकी बुद्धि को एकदम ताला लगा दिया है। सबकी बुद्धि एकदम मारी गई है।

बाप समझाते हैं – भारतवासियों की बुद्धि सबसे विशाल थी। फिर जब बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि बन जाते हैं तब ही दु:ख पाते हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार बेसमझ बनना ही है। बेसमझ बनाती है माया। पूज्य को समझदार और पुजारी को बेसमझ कहा जाता है। कहते भी हैं हम नींच पापी हैं। परन्तु समझदार कब थे, यह पता नहीं पड़ता। रावण रूपी माया बिल्कुल ही पत्थर बुद्धि बना देती है। अभी तुमको समझ आई है कि हम ही पूज्य थे फिर पुजारी बनें। अभी तुम बच्चों को खुशी होती है। बहुत दिनों से चिल्लाते आये हैं कि हमको शान्ति मिले अथवा जन्म मरण से छूट जायें। लेकिन इस माया की जजीरों से मुक्ति हो जाए, यह ज्ञान भी किसकी बुद्धि में नहीं है। तुम जानते हो सीढ़ी उतरते आते हैं। सतयुग में तो फिर भी धीरे-धीरे उतरते हैं, टाइम लगता है। सुख की सीढ़ी उतरने में टाइम लगता है। दु:ख की सीढ़ी जल्दी-जल्दी उतरते हैं। सतयुग त्रेता में है 21 जन्म, द्वापर-कलियुग में 63 जन्म, आयु कम हो जाती है। अभी तुम जानते हो हमारी चढ़ती कला चपटी में हो जाती है।

गाते भी हैं जनक को सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली। परन्तु जीवनमुक्ति का अर्थ समझते नहीं हैं। एक जनक को जीवनमुक्ति मिली वा सारी दुनिया को मिली? अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला खुल गया है। किसकी डल बुद्धि होती है तो कहते हैं परमात्मा इनको अच्छी बुद्धि दो। सतयुग में ऐसी कोई बात नहीं। जो आत्मायें बहुतकाल परमात्मा से अलग रहती हैं, उनका भी हिसाब है। बाप जब परमधाम में थे, उस समय जो आत्मायें उनके साथ मुक्तिधाम में रहती हैं, पिछाड़ी में आती हैं, वह बहुत समय साथ रहती हैं। हम तो थोड़ा टाइम वहाँ रहते हैं। पहले-पहले हम बाप से बिछुड़ते हैं इसलिए गाया जाता है आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल….. उन्हों का ही अब मेला होता है जो बहुत समय बाप से अलग रहे हैं। जो वहाँ बहुत समय साथ रहते हैं, उनको नहीं मिलते हैं।

बाप कहते हैं – खास तुम बच्चों को मैं पढ़ाने आता हूँ। तुम बच्चों के साथ हूँ तो सबका कल्याण होता है। अभी सबकी कयामत का समय है। अभी सब हिसाब-किताब चुक्तू कर चले जायेंगे। बाकी तुम राज-भाग पायेंगे। यह बातें कोई की बुद्धि में नहीं हैं। गाते भी हैं गॉड फादर, लिबरेटर, गाइड। दु:ख से लिबरेट कर शान्तिधाम में ले जाने के लिए गाइड बनते हैं। सुखधाम के लिए गाइड नहीं बनते। आत्माओं को शान्तिधाम में ले जाते हैं, वह है निराकारी दुनिया – जहाँ आत्मायें रहती हैं। परन्तु वहाँ कोई जा नहीं सकता क्योंकि पतित हैं, इसलिए पतित-पावन बाप को पुकारते हैं। खास भारतवासी जब उल्टे बन जाते हैं तब बेहद बाप को ही कुत्ते-बिल्ली, पत्थर-ठिक्कर में ले जाते हैं। वन्डर है ना। अपने से भी मुझे नीचे ले जाते हैं। यह भी ड्रामा बना हुआ है। किसका दोष नहीं है, सब ड्रामा के वश हैं। ईश्वर के वश नहीं। ईश्वर से भी ड्रामा तीखा है।

बाप कहते हैं – मैं भी ड्रामा अनुसार अपने समय पर आऊंगा। मेरा आना एक ही बार होता है। भक्ति मार्ग में मनुष्य कितने धक्के खाते हैं। तुमको बाप मिला है। बाप से चपटी में वर्सा लेना है। वर्सा मिल गया फिर धक्के खाने की दरकार नहीं।

भगवान खुद कहते हैं मैं आकर वेदों शास्त्रों का सार समझाता हूँ। पहले सचखण्ड था फिर झूठ खण्ड कैसे बना, यह किसको पता नहीं। गीता किसने सुनाई, यह भी भारतवासी नहीं जानते। भारत का ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। देवता धर्म वाले ही सतोप्रधान पूज्य से जब तमोप्रधान पुजारी बन जाते हैं तब देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है फिर बाप आकर फिर से उस धर्म की स्थापना करते हैं। चित्र भी हैं, शास्त्र भी हैं। भारतवासियों का एक ही शास्त्र शिरोमणी गीता है। हर एक अपने धर्म को ही भूल गये हैं, इसलिए नाम बदल हिन्दू रख दिया है। ड्रामा में नूँध है। आत्मा ही पुनर्जन्म में आते तमोप्रधान बन जाती है, खाद पड़ जाती है। तुम जानते हो हम सच्चे जेवर थे, अब झूठे बन गये। जेवर शरीर को कहा जाता है। शरीर द्वारा ही पार्ट बजाते हैं। हमको कितना लम्बा 84 जन्मों का पार्ट मिला हुआ है। देवता, क्षत्रिय.. आपे ही पूज्य, पुजारी तुम बनते हो।

बाप समझाते हैं मैं अगर पूज्य फिर पुजारी बनूँ तो तुमको पूज्य कौन बनाये। मैं तो एवर पावन, ज्ञान का सागर, पतित-पावन हूँ। तुम ही पूज्य पुजारी बन दिन और रात में आते हो। परन्तु वो लोग जानते नहीं। बाप समझाते हैं दुनिया झूठी बनती जाती है तो इतनी झूठी कहानियाँ बैठ बनाई हैं।व्यास ने भी कमाल की है। अब व्यास भगवान तो नहीं है।भगवान ने तो आकर ब्रह्मा द्वारा वेदों शास्त्रों का सार समझाया है। उन्होंने शास्त्र दे दिये हैं ब्रह्मा को। अब भगवान कहाँ?ऐसे तो नहीं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला। तो विष्णु ने बैठ शास्त्रों का सार बताया। नहीं, ब्रह्मा द्वारा समझाया है।

त्रिमूर्ति के ऊपर है शिवबाबा, वह बैठ सार बताते हैं-ब्रह्मा द्वारा। जिनके द्वारा समझाते हैं वही फिर पालना करेंगे। तुम हो ब्रह्माकुमार कुमारियां। ब्राह्मण वर्ण है ऊंच ते ऊंच। तुम अभी हो ईश्वरीय सन्तान। ईश्वर के रचे हुए यज्ञ की तुम सम्भाल करते हो। इस ज्ञान यज्ञ में सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हो जानी है। इनका नाम रखा है – राजस्व अश्वमेध अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ। राजाई प्राप्त कराने के लिए बाप ने यज्ञ रचा है। वह यज्ञ रचते हैं तो मिट्टी का शिव और सालिग्राम बनाते हैं। उत्पत्ति कर, पालना कर फिर खलास कर देते हैं। देवताओं की मूर्तियां भी ऐसे ही करते हैं। जैसे छोटे बच्चे गुड़ियों का खेल करते हैं, ऐसे यह भी करते हैं। अब बाप के लिए तो कहते हैं स्थापना, पालना फिर विनाश करते हैं, पहले स्थापना।

अभी तुम मृत्युलोक में अमरलोक के लिए पढ़ रहे हो। यह तुम्हारा मृत्युलोक का अन्तिम जन्म है। बाप आते हैं अमरलोक स्थापन करने। एक पार्वती को कथा सुनाने से क्या होगा। अमरनाथ शंकर को कहते हैं, उनको पार्वती देते हैं। अब शंकर पार्वती स्थूल में आ कैसे सकते? जबकि उन्हों को सूक्ष्मवतन में दिखाया है। अभी तुमको समझाया है जगत अम्बा, जगत पिता लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण फिर 84 जन्मों के बाद, जगत अम्बा, जगतपिता बनते हैं। वास्तव में जगत अम्बा है पुरुषार्थी, फिर लक्ष्मी है पावन प्रालब्ध। महिमा जास्ती किसकी है? जगत अम्बा पर देखो कितना मेला लगता है। काली कलकत्ते वाली मशहूर है। काली माता के पास भला काला पिता क्यों नहीं बनाया है? वास्तव में जगत अम्बा आदि देवी ज्ञान चिता पर बैठ काले से गोरी बनती है। पहले ज्ञान ज्ञानेश्वरी है फिर राज-राजेश्वरी बनती है। यहाँ तुम आये हो ईश्वर से ज्ञान लेकर राज-राजेश्वरी बनने। लक्ष्मी-नारायण को राज्य किसने दिया? ईश्वर ने। अमरकथा सत्य नारायण की कथा बाप ही सुनाते हैं, सेकेण्ड में जिससे नर से नारायण बनते हैं।

अभी तुम बच्चों के कपाट खुल गये कि काम महाशत्रु है। कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहकर पवित्र रहना असम्भव है। समझाया जाता है – बाप स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर वह अपने बच्चों को स्वर्ग की बादशाही देंगे। तो स्वर्ग की बादशाही पाने के लिए एक जन्म तो पवित्र रहना पड़ेगा। यह तो सस्ता सौदा हुआ ना। व्यापारी लोग इस बात को अच्छा उठायेंगे क्योंकि व्यापारी लोग दान भी करते हैं। धर्माऊ भी निकालते हैं। बाप कहते हैं – यह सौदा कोई विरला करते हैं। कितना सस्ता व्यापार है। फिर भी कई हैं जो सौदा करके फिर फारकती भी दे देते हैं। यह नॉलेज बाप के सिवाए कोई समझा न सके। ज्ञान सागर एक ही है, वही समझाते हैं। जो पावन पूज्य था फिर 84 जन्म के अन्त में पुजारी बना है। इनके तन में मैने प्रवेश किया। प्रजापिता तो यहाँ होगा ना। अब तुम पुरुषार्थ कर फरिश्ता बन रहे हो। अब भक्ति मार्ग की रात के बाद ज्ञान अर्थात् दिन होता है। तिथि तारीख तो है नहीं। शिवबाबा कब आया, किसको भी पता नहीं है। कृष्ण जयन्ती धूमधाम से मनाते हैं। शिव जयन्ती का पूरा किसको मालूम भी नहीं है।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) इस कल्याणकारी युग में एक बाप से ही सच्ची सत्य नारायण की कथा, अमरकथा सुननी है। बाकी जो कुछ सुना है उसे भूल जाना है।

2) सतयुगी बादशाही लेने के लिए इस एक जन्म में पवित्र रहना है। फरिश्ता बनने का पुरुषार्थ करना है।

वरदान:-     बालक सो मालिकपन की स्मृति से सर्व खजानों के अधिकारी, प्राप्ति सम्पन्न भव

हम बाप के सर्व खजानों के बालक सो मालिक हैं, नेचरल योगी, नेचरल स्वराज्य अधिकारी हैं। इस स्मृति से सर्व प्राप्ति सम्पन्न बनो। यही गीत सदा गाते रहो कि “पाना था सो पा लिया।” खोया-पाया, खोया-पाया यह खेल नहीं करो। पा रहा हूँ, पा रहा हूँ – यह अधिकारी के बोल नहीं। जो सम्पन्न बाप के बालक, सागर के बच्चे हैं वह नौकर के समान मेहनत कर नहीं सकते।

स्लोगन:-    योगबल द्वारा कर्मभोग पर विजय प्राप्त करना – यही श्रेष्ठ पुरूषार्थ है।

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