26-3-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली.
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“मीठे बच्चे – अब बेहद की रात पूरी हो रही है, दिन आने वाला है, वापिस घर चलना है इसलिए अब दर-दर भटकना बंद करो”
प्रश्नः– किस प्रैक्टिस के आधार पर तुम बच्चे सर्विस बहुत अच्छी कर सकते हो?
उत्तर:- यदि कम से कम 8 घण्टे तक याद बनी रहे, यह प्रैक्टिस हो जाए तो सर्विस बहुत अच्छी कर सकते क्योंकि याद से ही सारे विश्व में पवित्रता और शान्ति के वायब्रेशन फैलते हैं। याद से ही विकर्म भी विनाश होंगे और पद भी ऊंच मिलेगा इसलिए इस रूहानी यात्रा में कभी भी थकना नहीं है। जिस्म का भान छोड़ देही-अभिमानी बनने का निरन्तर अभ्यास करते रहना है।
गीत:- रात के राही थक मत जाना.………….. अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
“ओम् शान्ति”
बच्चों ने सावधानी सुनी। बाप ने बच्चों को सावधानी दी कि हे रात के राही…. क्योंकि अब तुम्हारे लिए दिन आ रहा है। यह है बेहद की रात और दिन। बेहद की रात पूरी होती है और बेहद के दिन की स्थापना हो रही है। अब तुम बच्चों (आत्माओं) को जाना है अपने घर। जिसके लिए तुमने आधाकल्प भक्ति की, परन्तु तुम बाप को ढूंढ न सके क्योंकि उनके नाम रूप को बदल दिया है। अब तुम जानते हो बाप दिन में अथवा कलियुग से सतयुग में जाने का रास्ता बता रहे हैं।
बाबा ने समझाया है – भ्रष्टाचारी उनको कहा जाता है जो विकार से पैदा होते हैं। भारतवासी बाप को ही भूल गये हैं, गीता का भगवान निराकार, उसके बदले साकार कृष्ण का नाम डाल दिया है। यह है बड़े ते बड़ी भूल, जिस कारण आधाकल्प दु:ख भोगना पड़ा है। भूल निमित्त बनी है दु:ख भोगवाने के। यह भी ड्रामा का पार्ट नूँधा हुआ है, भक्तिमार्ग में भटकते रहते हैं। अगर बाप को जान लें तो भटकने की दरकार नहीं। तुमने अब बाप को जाना है।
श्रीकृष्ण अगर इसी रूप में आये फिर तो उनको पहचानने में कोई तकलीफ न हो। झट सब जान जायें। परन्तु यह तो इतना गुप्त है जो तुम बच्चे भी भूल जाते हो। कृष्ण को तो कोई भूल न सके। सारी दुनिया एकदम चटक पड़े। समझे श्रीकृष्ण तो हमको स्वर्ग में ले चलेगा क्योंकि वह तो स्वर्ग का मालिक है। उनको कोई छोड़े ही नहीं, परन्तु समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। अगर समझाने की युक्ति नहीं आती है तो कहाँ-कहाँ डिससर्विस कर देते हैं क्योंकि खुद ही पूरा समझा हुआ नहीं है – जो किसको अच्छी रीति सिद्ध कर हिसाब-किताब बता सके।
इस समय सब पतित हैं। गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम। परन्तु पावन बनाने वाला कौन है – यह कोई नहीं जानते। गीता का भगवान कृष्ण समझ लिया है। राम का तो कोई शास्त्र नहीं है। ऐसे नहीं रामायण कोई रामचन्द्र का शास्त्र है। क्षत्रिय धर्म कोई राम ने नहीं स्थापन किया। ब्राह्मण, देवता और क्षत्रिय तीनों धर्म एक साथ ही शिवबाबा स्थापन करते हैं। तुम्हारे में भी थोड़े हैं जो इस बात को समझ सकते हैं।
राजा रानी तो एक होता है, बाकी प्रजा और दास दासियां तो अनेक बनते हैं। आगे राजाओं के पास ढेर दास दासियां थी, कोई बहलाने के लिए, कोई डांस करने के लिए। डांस का शौक तो वहाँ भी बहुत ही रहता है। बाकी राजा रानी बहुत थोड़े निकलते हैं। जो अच्छी रीति समझ और समझा सकते हैं। प्रदर्शनी की सर्विस से मालूम पड़ जाता है कि कौन-कौन अच्छी रीति समझा सकते हैं।
पहली बात यह समझानी है कि भगवान को न जानने के कारण सर्वव्यापी कह दिया है। दूसरा कृष्ण को भगवान कहने से स्वर्ग रचने वाले शिवबाबा का नाम गुम कर दिया है। निराकार बाप ही सबका रचयिता है। उस एक को ही याद करना है, वही राजयोग सिखलाते हैं। परन्तु गीता में जो कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है, इस कारण ही हाथ में गीता उठाए झूठी कसम लेते हैं। अब बताओ क्या श्रीकृष्ण हाज़िर नाज़िर है! वा निराकार परमात्मा हाज़िर नाजिर है! सब मूंझे हुए हैं।
अब तुम बच्चों को सवेरे उठ प्रैक्टिस करनी है समझाने की। (राजा जनक का मिसाल) कहते हैं अष्टापा ने जनक को ज्ञान दिया! परन्तु यह कोई ब्रह्म ज्ञान तो है नहीं, यह है ब्रह्मा ज्ञान। ब्रह्माकुमारियां यह ज्ञान दे रही हैं। ब्रह्म-कुमारियां नहीं। वह लोग ब्रह्म को ईश्वर समझते हैं, परन्तु नहीं। ईश्वर तो बाप है। बाप का नाम ही शिव है। ब्रह्म तो तत्व है। यह सब बातें मोटी बुद्धि वाले समझ न सकें। नम्बरवार दास दासियां भी बनते हैं। समझना चाहिए अगर हम किसको अच्छी तरह समझा नहीं सकते हैं तो हमारा पार्ट पिछाड़ी में है। तो फिर पुरुषार्थ करना चाहिए।
सारी दुनिया में जो जो कुछ सिखलाते हैं, वह देह-अभिमान से ही सिखलाते हैं। देही-अभिमानी सिवाए तुम ब्राह्मणों के कोई है नहीं। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जो आत्म-अभिमानी बनते हैं, हम आत्माओं को सुनाते हैं। आत्मा इन आरगन्स द्वारा बोलती है। आत्मा कहती है मैं नहीं सुन सकती हूँ, मेरे आरगन्स खराब हैं। तो देही-अभिमानी बनने में मेहनत है। सतयुग में देही-अभिमानी रहते हैं। बाकी परमात्मा का ज्ञान नहीं है। बाप कहते हैं मेरा सिमरण वहाँ कोई नहीं करते, वहाँ दरकार ही नहीं। सिमरण अथवा याद एक ही बात है।
वो लोग माला हाथ में लेते हैं, मुख से राम राम कहते हैं। यहाँ तो राम अक्षर कहना भी रांग हो जाता है। राइट अक्षर है शिवबाबा। परन्तु शिव शिव भी कहना नहीं है। बाप को याद करने के लिए नाम थोड़ेही लिया जाता है। बाप को याद करना – यह है यात्रा। जिस्मानी यात्रा पर जाते हैं तो भी याद रखते हैं – हम अमरनाथ पर जाते हैं। वो नाम तो लेना पड़ता है ना! तुमको कुछ भी जपना नहीं है।
तुम जान गये हो – नाटक पूरा होना है। हमारे 84 जन्म पूरे हुए। यह पुराना चोला छोड़ना है। पार्ट बजाते-बजाते पतित होना ही है। बाप कहते हैं यह जो मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है, उनका थुर सड़ गया है। बाकी टाल, टालियां बची हैं। यह भी तमोप्रधान हो गये हैं, झाड़ की आयु अब पूरी होती है। फिर से नाटक रिपीट होना है। हर एक अपना-अपना पार्ट बजायेंगे। दूसरी कोई दुनिया नहीं है। अगर होती तो हम पढ़ते क्यों? कहते हैं बाबा फिर से आकर राजयोग सिखलाओ, गीता ज्ञान सुनाओ, पावन बनाओ। परन्तु पतित हम कैसे बने हैं, यह कोई जानता नहीं है। अब तुम जानते हो हम ही पावन थे। फिर हिस्ट्री रिपीट होती है।
अब बाप कहते हैं वापिस घर चलना है। घर में तो बाप ही रहता है। कहते हैं परमधाम में रहते हैं फिर भूल जाते हैं। आत्मायें भी ब्रह्माण्ड में रहती हैं। यह सृष्टि है, इसमें मनुष्य रहते हैं। ब्रह्माण्ड में आत्मायें रहती हैं, फिर आती हैं यहाँ पार्ट बजाने। ऊपर में आकाश तत्व है। पैर सबके पृथ्वी पर हैं। बाकी शरीर कहाँ है? वह तो आकाश तत्व में ही है। वहाँ तो आत्मायें स्टार्स रहती हैं। वहाँ गिरने की चीज़ नहीं जो हम गिर पड़ेंगे। साइंस वाले राकेट में जाते हैं, चक्र लगाने फिर बाहर भी निकलते हैं। लिखते भी हैं, गिरने का डर नहीं, इतनी आकर्षण है जो मनुष्य आकाश तत्व में ठहर जाते हैं। तो इतनी छोटी सी आत्मा महतत्व में क्यों नहीं ठहर सकती। रहने का स्थान वहाँ ही है, यह सूर्य, चांद, स्टार्स बहुत बड़े हैं। यह कैसे ठहरे हुए हैं। कोई रस्सी आदि तो नहीं है। यह सारा ड्रामा बना हुआ है।
हम 84 के चक्र में आते हैं। यह झाड़ है। कितनी बड़ी टाल-टालियां हैं। बाकी छोटे-छोटे थोड़ेही देख सकेंगे। बाबा भी नटशेल में समझाते हैं, जो पीछे-पीछे आते हैं वह जरूर थोड़े जन्म ही लेंगे। बाकी एक एक का हिसाब नहीं बतायेंगे। तुम जानते हो ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म की स्थापना हो रही है। जिससे स्थापना हुई उनको ही फिर पालना करनी है। ब्रह्मा विष्णु शंकर तीनों ही देवतायें अलग-अलग हैं। बाकी ऐसे नहीं ब्रह्मा को 3 मुख हैं। ऐसे हो न सके।
बाप कहते हैं – बच्चे तुम बिल्कुल बेसमझ बन गये हो। बाप आकर समझदार बनाते हैं। अभी तुम सब सीतायें रावण की कैद में हो। तुम ही बन्दर थे, तुम्हारी सेना ली। तुमको ही मन्दिर लायक बनाया। अब राजधानी स्थापन हो रही है, जितना जो श्रीमत पर चलेंगे उतना ही ऊंच पद पायेंगे। तुम जानते हो हमारे मम्मा बाबा नम्बरवन में जाते हैं। स्थूल वतन में तुम्हारे सामने बैठे हैं। सूक्ष्मवतन में भी देखते हो बैठे हैं, और फिर बैकुण्ठ में भी देखते हो। पहले बहुतों को साक्षात्कार कराया गया फिर सब थोड़ेही कृष्ण बन जायेंगे। बाल-लीला आदि दिखाई जाती है, पुरुषार्थ कराने के लिए। बिगर पुरुषार्थ महाराजा महारानी तो नहीं बनेंगे।
जो पक्के निश्चयबुद्धि हैं वह एक-दम थम (ठहर) जाते हैं। बाबा हम तो आपको कभी नहीं छोड़ेंगे। कई फिर ऐसे कहते-कहते छोड़ भी देते हैं। आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो जाते हैं। पहले की कहावत है। अभी भी यह सब कुछ होता ही रहता है। कहते हैं कल्प पहले भी ऐसे भागन्ती हुए थे, किस पर भी भरोसा नहीं। जैसे श्वांस पर भरोसा नहीं। बाबा का बनकर फिर भी मर जाते हैं। ईश्वरीय जन्म दिन मनाकर भी मर जाते हैं अथवा हाथ छोड़ देते हैं।
बाबा घड़ी-घड़ी कहते रहते हैं तुम ऐसे समझो तो हमको अब अपने स्वीट होम में जाना है इसलिए बाप और घर याद पड़ता है। भक्ति मार्ग में भी आधाकल्प याद किया है। परन्तु वापिस कोई जा नहीं सकते। जानते ही नहीं तो जा कैसे सकेंगे। वह रूहानी राही बन कैसे सकते! तुम अब पूरे राही बने हो। जो जास्ती याद करते हैं उनके पाप कटते जाते हैं। यात्रा का भी ध्यान रखना है।
पिछाड़ी में 8 घण्टा तुम्हारी यह सर्विस रहे तो भी बहुत अच्छा है। यह है शान्ति और पवित्रता के वायब्रेशन फैलाना। याद से विकर्म भी विनाश होंगे और पद भी ऊंचा मिलेगा इसलिए कहा जाता है – रात के राही थक मत जाना। कलियुग का अन्त माना ब्रह्मा की रात पूरी होना। सबको वापिस जरूर जाना है। रूहानी घर को याद करना है। रूह को अब जाना है। जिस्म का भान छोड़ना है, देही-अभिमानी बनना है। यह है याद की यात्रा।
अच्छा !, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पक्का निश्चयबुद्धि बन दृढ़ संकल्प करना है कि बाप का हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे। बाप और घर को घड़ी-घड़ी याद करना है।
2) देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। 5 विकारों रूपी रावण की कैद से छूटने के लिए श्रीमत पर चलना है। मन्दिर लायक बनने का पुरुषार्थ करना है।
वरदान:- ज्ञान युक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले बाप समान भव!
जो ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्मायें हैं वे सदा सर्वशक्तियों की अनुभूति करते हुए विजयी बनती हैं। जो सिर्फ स्नेही वा भावना स्वरूप हैं उनके मन और मुख में सदा बाबा-बाबा है इसलिए समय प्रति समय सहयोग प्राप्त होता है। लेकिन समान बनने में ज्ञानी-योगी तू आत्मायें समीप हैं, इसलिए जितनी भावना हो उतना ही ज्ञान स्वरूप हो। ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग – इन दोनों का बैलेन्स उड़ती कला का अनुभव कराते हुए बाप समान बना देता है।
स्लोगन:- सदा स्नेही वा सहयोगी बनना है तो सरलता और सहनशीलता का गुण धारण करो।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > “Hindi Murli”
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