26-09-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
26-09-2021 | प्रात: मुरली ओम् शान्ति | ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन |
“सर्वश्रेष्ठ सितारा – ‘सफलता का सितारा”
आज ज्ञान-सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा अपने अलौकिक तारामण्डल को देख रहे हैं। यह अलौकिक विचित्र तारामण्डल है जिसकी विशेषता सिर्फ बाप और ब्राह्मण बच्चे ही जानते हैं। हर एक सितारा अपनी चमक से इस विश्व को रोशनी दे रहे हैं। बापदादा हर एक सितारे की विशेषता देख रहे हैं। कोई श्रेष्ठ भाग्यवान लक्की सितारे हैं, कोई बाप के समीप के सितारे हैं और कोई दूर के सितारे हैं। है सभी सितारे लेकिन विशेषता भिन्न-भिन्न होने के कारण सेवा में वा स्व-प्राप्ति में अलग-अलग फल की प्राप्ति अनुभव करने वाले हैं। कोई सदा ही सहज सितारे हैं, इसलिए सहज प्राप्ति का फल अनुभव करने वाले हैं। और कोई मेहनत करने वाले सितारे हैं, चाहे थोड़ी मेहनत हो, चाहे ज्यादा हो लेकिन बहुत करके मेहनत के अनुभव बाद फल की प्राप्ति का अनुभव करते हैं। कोई सदा कर्म के पहले अधिकार का अनुभव करते हैं कि सफलता जन्म-सिद्ध अधिकार है, इसलिए ‘निश्चय’ और ‘नशे’ से कर्म करने के कारण कर्म की सफलता सहज अनुभव करते हैं। इसको कहा जाता है सफलता के सितारे।
सबसे श्रेष्ठ सफलता के सितारे हैं क्योंकि वह सदा ज्ञान-सूर्य, ज्ञान-चन्द्रमा के समीप हैं, इसलिए शक्तिशाली भी हैं और सफलता के अधिकारी भी हैं। कोई शक्तिशाली है लेकिन सदा शक्तिशाली नहीं हैं, इसलिए सदा एक जैसी चमक नहीं है। वैराइटी सितारों की रिमझिम अति प्यारी लगती है। सेवा सभी सितारे करते हैं लेकिन समीप के सितारे औरों को भी सूर्य, चन्द्रमा के समीप लाने के सेवाधारी बनते हैं। तो हर एक अपने से पूछो कि मैं कौन-सा सितारा हूँ? लवली सितारे हो, लक्की हो, सदा शक्तिशाली हो, मेहनत अनुभव करने वाले हो वा सदा सहज सफलता के सितारे हो? ज्ञान-सूर्य बाप सभी सितारों को बेहद की रोशनी वा शक्ति देते हैं लेकिन समीप और दूर होने के कारण अन्तर पड़ जाता है। जितना समीप सम्बन्ध है, उतना रोशनी और शक्ति विशेष है क्योंकि समीप सितारों का लक्ष्य ही है समान बनना।
इसलिए बापदादा सभी सितारों को सदा यही ईशारा देते हैं कि लक्की और लवली – यह तो सभी बने हो, अब आगे अपने को यही देखो कि सदा समीप रहने वाले, सहज सफलता अनुभव करने वाले सफलता के सितारे कहाँ तक बने हैं? अभी गिरने वाले तारे तो नहीं हो वा पूँछ वाले तारे भी नहीं हो। पूँछ वाला तारा उसको कहते हैं जो बार-बार स्वयं से वा बाप से वा निमित्त बनी आत्माओं से ‘यह क्यों’, ‘यह क्या’, ‘यह कैसे’ – पूछते ही रहते हैं। बार-बार पूछने वाले ही पूँछ वाले तारे हैं। ऐसे तो नहीं हो ना? सफलता के सितारे जिनके हर कर्म में सफलता समाई हुई है – ऐसा सितारा सदा ही बाप के समीप अर्थात् साथ है। विशेषतायें सुनीं, अभी इन विशेषताओं को स्वयं में धारण कर सदा सफलता के सितारे बनो। समझा, क्या बनना है? लक्की और लवली के साथ सफलता – यह श्रेष्ठता सदा अनुभव करते रहो। अच्छा!
आज सभी से मिलना है। बापदादा आज विशेष मिलने के लिए ही आये हैं। सभी का यही लक्ष्य रहता है कि मिलना है। लेकिन बच्चों की लहर को देख करके बाप को सभी बच्चों को खुश करना होता है क्योंकि बच्चों की खुशी में बाप की खुशी है। तो आजकल की लहर है – अलग मिलने की। तो सागर को भी वही लहर में आना पड़ता है। इस सीजन की लहर यह है, इसलिए रथ को भी विशेष सकाश दे चला रहे हैं। अच्छा!
चारों ओर के अलौकिक तारामण्डल के अलौकिक सितारों को, सदा विश्व को रोशनी दे अंधकार मिटाने वाले चमकते हुए सितारों को, सदा बाप के समीप रहने वाले श्रेष्ठ सफलता के सितारों को, अनेक आत्माओं के भाग्य की रेखा परिवर्तन करने वाले भाग्यवान सितारों को, ज्ञान-सूर्य, ज्ञान-चन्द्रमा बापदादा का विशेष यादप्यार और नमस्ते।
पर्सनल मुलाकात :-
1. ‘सदा हर आत्मा को सुख देने वाले सुखदाता बाप के बच्चे हैं’ – ऐसा अनुभव करते हो? सबको सुख देने की विशेषता है ना। यह भी ड्रामा अनुसार विशेषता मिली हुई है। यह विशेषता सभी की नहीं होती। जो सबको सुख देता है, उसे सबकी आशीर्वाद मिलती है इसलिए स्वयं को भी सदा सुख में अनुभव करते हैं। इस विशेषता से वर्तमान भी अच्छा और भविष्य भी अच्छा बन जायेगा। कितना अच्छा पार्ट है जो सबका प्यार भी मिलता, सबकी आशीर्वाद भी मिलती। इसको कहते हैं ‘एक देना हजार पाना’। तो सेवा से सुख देते हो, इसलिए सबका प्यार मिलता है। यही विशेषता सदा कायम रखना।
2. ‘सदा अपने को सर्वशक्तिमान बाप की शक्तिशाली आत्मा हूँ’ – ऐसा अनुभव करते हो? शक्तिशाली आत्मा सदा स्वयं भी सन्तुष्ट रहती है और दूसरों को भी सन्तुष्ट करती है। ऐसे शक्तिशाली हो? सन्तुष्टता ही महानता है। शक्तिशाली आत्मा अर्थात् सन्तुष्टता के खजाने से भरपूर आत्मा। इसी स्मृति से सदा आगे बढ़ते चलो। यही खजाना सर्व को भरपूर करने वाला है।
3. ‘बाप ने सारे विश्व में से हमें चुनकर अपना बना लिया’ – यह खुशी रहती है ना। इतने अनेक आत्माओं में से मुझ एक आत्मा को बाप ने चुना – यह स्मृति कितना खुशी दिलाती है! तो सदा इसी खुशी से आगे बढ़ते चलो। बाप ने मुझे अपना बनाया क्योंकि मैं ही कल्प पहले वाली भाग्यवान आत्मा थी, अब भी हूँ और फिर भी बनूँगी – ऐसी भाग्यवान आत्मा हूँ। इस स्मृति से सदा आगे बढ़ते चलो।
4. ‘सदा निश्चिन्त बन सेवा करने का बल आगे बढ़ाता रहता है’। इसने किया या हमने किया – इस संकल्प से निश्चिन्त रहने से निश्चित सेवा होती है और उसका बल सदा आगे बढ़ाता है। तो निश्चिंत सेवाधारी हो ना? गिनती करने वाली सेवा नहीं। इसको कहते हैं निश्चिंत सेवा। तो जो निश्चिंत हो सेवा करते हैं, उनको निश्चित ही आगे बढ़ने में सहज अनुभूति होती है। यही विशेषता वरदान रूप में आगे बढ़ाती रहेगी।
5. सेवा भी अनेक आत्माओं को बाप के स्नेही बनाने का साधन बनी हुई है। देखने में भल कर्मणा सेवा है लेकिन कर्मणा सेवा मुख की सेवा से भी ज्यादा फल दे रही है। कर्मणा द्वारा किसकी मन्सा को परिवर्तन करने वाली सेवा है, तो उस सेवा का फल ‘विशेष खुशी’ की प्राप्ति होती है। कर्मणा सेवा भल देखने में स्थूल आती है लेकिन सूक्ष्म वृत्तियों को परिवर्तन करने वाली होती है। तो ऐसी सेवा के हम निमित्त हैं – इसी खुशी से आगे बढ़ते चलो। भाषण करने वाले भाषण करते हैं लेकिन कर्मणा सेवा भी भाषण करने वालों की सेवा से ज्यादा है क्योंकि इसका प्रत्यक्षफल अनुभव होता है।
6. ‘सदा पुण्य का खाता जमा करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ’ – ऐसे अनुभव होता हैं? यह सेवा, नाम सेवा है, लेकिन पुण्य का खाता जमा करने का साधन है। तो पुण्य के खाते सदा भरपूर हैं और आगे भी भरपूर रहेंगे। जितनी सेवा करते हो, उतना पुण्य का खाता बढ़ता जाता है। तो पुण्य का खाता अविनाशी बन गया। यह पुण्य अनेक जन्म भरपूर करने वाला है। तो पुण्य आत्मा हो और सदा ही पुण्यात्मा बन औरों को भी पुण्य का रास्ता बताने वाले। यह पुण्य का खाता अनेक जन्म साथ रहेगा, अनेक जन्म मालामाल रहेंगे – इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते चलो।
7. ‘सदा एक बाप की याद में रहने वाली, एकरस स्थिति का अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ’ – ऐसे अनुभव करते हो? जहाँ एक बाप याद है, वहाँ एकरस स्थिति स्वत: सहज अनुभव होगी। तो एकरस स्थिति श्रेष्ठ स्थिति है। एकरस स्थिति का अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ – यह स्मृति सदा ही आगे बढ़ाती रहेगी। इसी स्थिति द्वारा अनेक शक्तियों की अनुभूति होती रहेगी।
8. बापदादा के विशेष श्रृंगार हो ना! सबसे श्रेष्ठ श्रृंगार है मस्तकमणि। मणि सदा मस्तक पर चमकती है। तो ऐसे मस्तकमणि बन सदा बाप के ताज में चमकने वाले कितने अच्छे लगेंगे। मणि सदा अपनी चमक द्वारा बाप का भी श्रृंगार बनती और औरों को भी रोशनी देती है। तो ऐसे मस्तकमणि बन औरों को भी ऐसे बनाने वाले हैं – यह लक्ष्य सदा रहता हैं? सदा शुभ भावना सर्व की भावनाओं को परिवर्तन करने वाली है।
9. सदा बाप को फालो करने में तुरन्त दान महापुण्य की विधि से आगे बढ़ रहे हो ना। इसी विधि को सदा हर कार्य में लगाने से सदा ही बाप समान स्थिति का स्वत: ही अनुभव होता है। तो हर कार्य में फालो-फादर करने में आदि से अनुभवी रहे हो, इसलिए अब भी इस विधि से समान बनना अति सहज है क्योंकि समाई हुई विशेषता को कार्य में लगाना। बाप समान बनने की विशेष अनुभूतियाँ अलौकिक करते रहेंगे और औरों को भी कराते रहेंगे। इस विशेषता का वरदान स्वत: मिला है। तो इस वरदान को सदा कार्य में लगाये आगे बढ़ते चलो।
10. सदा परिवर्तन शक्ति को यथार्थ रीति से कार्य में लगाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हो ना। इसी परिवर्तन शक्ति से सर्व की दुआयें लेने के पात्र बन जाते। जैसे घोर अन्धकार जब होता है, उस समय कोई रोशनी दिखा दे तो अन्धकार वालों के दिल से दुआयें निकलती हैं ना। ऐसे जो यथार्थ परिवर्तन-शक्ति को कार्य में लगाते हैं, उनको अनेक आत्माओं द्वारा दुआयें प्राप्त होती हैं और सबकी दुआयें आत्मा को सहज आगे बढ़ा देती हैं। ऐसे, दुआयें लेने का कार्य करने वाली आत्मा हूँ – यह सदा स्मृति में रखो तो जो भी कार्य करेंगे, वह दुआयें लेने वाला करेंगे। दुआयें मिलती ही हैं श्रेष्ठ कार्य करने से। तो सदा यह स्मृति रहे कि ‘सबसे दुआयें लेने वाली आत्मा हूँ।’ यही स्मृति श्रेष्ठ बनने का साधन है, यही स्मृति अनेकों के कल्याण के निमित्त बन जाती हैं। तो याद रखना कि परिवर्तन-शक्ति द्वारा सर्व की दुआयें लेने वाली आत्मा हूँ। अच्छा!
ग्लोबल को-आपरेशन प्रोजेक्ट की मीटिंग का समाचार बापदादा को सुनाया :-
बापदादा खुश होते हैं – इतना मिलकर प्लैन बनाते हो वो प्रैक्टिकल में ला रहे हो और लाते रहेंगे। बापदादा को और क्या चाहिए! इसलिए बापदादा को पसन्द है। बाकी कोई मुश्किल हो तो बापदादा सहज कर सकते हैं। यह बुद्धि का चलना भी एक वरदान है। सिर्फ बैलेन्स रख करके चलो। जब बैलेन्स होगा तो बुद्धि निर्णय बहुत जल्दी करेगी और 4 घण्टे जो डिस्कस करते हो, उसमें एक घण्टा भी नहीं लगेगा। एक जैसा ही विचार निकलेगा। लेकिन यह भी अच्छा है, खेल है, कुछ बनाते हो, कुछ तोड़ते हो… इसमें भी मजा आता है। भले प्लैन बनाओ, फिर रिफाइन करो। बिज़ी तो रहते हो। सिर्फ बोझ नहीं महसूस करो, खेल करो। टाइम कम है, जितना कर सकते हो उतना करो। यह सेवा भी चलती ही रहेगी। जैसे भण्डारा बन्द नहीं होता। यह भी भण्डारा है, अविनाशी चलता रहेगा। अगर किसी कार्य में देरी होती है तो और अच्छा होना होगा, तब देरी होती है। बाकी मेहनत कर रहे हो, सुस्त नहीं हो इसलिए बापदादा उल्हना नहीं देगा। अच्छा!
वरदान:- सदा एकरस सम्पन्न मूड में रहने वाले पुरूषार्थी सो प्रालब्धी स्वरूप भव
बापदादा वतन से देखते हैं कि कई बच्चों के मूड बहुत बदलते हैं, कभी आश्चर्यवत की मूड, कभी क्वेश्चन मार्क की मूड, कभी कनफ्यूज़ की मूड, कभी टेन्शन, कभी अटेन्शन का झूला….लेकिन संगमयुग प्रालब्धी युग है न कि पुरूषार्थी इसलिए जो बाप के गुण वही बच्चों के, जो बाप की स्टेज वही बच्चों की – यही है संगमयुग की प्रालब्ध। तो सदा एकरस एक ही सम्पन्न मूड में रहो तब कहेंगे बाप समान अर्थात् प्रालब्धी स्वरूप वाले।
स्लोगन:- बापदादा के हाथ में बुद्धि रूपी हाथ हो तो परीक्षाओं रूपी सागर में हिलेंगे नहीं।