24-09-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
24-09-2021 | प्रात: मुरली ओम् शान्ति | ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम यहाँ श्रीकृष्ण जैसा प्रिन्स बनने की पढ़ाई पढ़ते हो, तुम्हें पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है”
प्रश्नः- बाबा जब भगवानुवाच शब्द बोलते हैं तो कई बच्चे भी मूँझ जाते हैं – क्यों?
उत्तर:- क्योंकि भगवान तो गुप्त है। वह समझते हैं शायद इस दादा ने भगवानुवाच बोला है। परन्तु निराकार भगवान को बोलने के लिए जरूर मुख चाहिए ना। बाबा कहते यह वन्डरफुल समझने की बात है कि मैं कैसे इनमें प्रवेश कर तुम्हें पढ़ाता हूँ।
ओम् शान्ति। भगवानुवाच। भगवान क्या कहते हैं? यह भगवानुवाच किसने कहा? देखने में तो कोई आता नहीं। मनुष्य को भगवान नहीं कहा जाता। कोई समझेंगे कि बोलने वाले ही कहते हैं – भगवानुवाच। लेकिन निराकार भगवान बोल रहे हैं, यह सिर्फ तुम ही जानते हो। यह कौन बैठा है! भगवान कहाँ हैं! यह नई बात है ना इसलिए मनुष्य मूंझ जाते हैं। लेकिन भगवानुवाच है जरूर। कहते हैं कि मैं बच्चों को राजयोग सिखा रहा हूँ। नर से नारायण अथवा कृष्ण, नारी को लक्ष्मी अथवा राधे बनाने लिए योग और ज्ञान सिखाता हूँ, इनसे और क्या चाहिए। तुमको हम राजाओं का राजा, प्रिन्स का प्रिन्स बनाता हूँ। प्रिन्स-प्रिन्सेज भी तो मन्दिर में जाते होंगे ना। विकारी प्रिन्स, निर्विकारी प्रिन्स श्रीकृष्ण को नमन करते हैं। तो मैं तुमको प्रिन्स का भी प्रिन्स बनाता हूँ। श्रीकृष्ण जैसे स्वर्ग का प्रिन्स बनो। नॉलेज पढ़ने से ही तो बनेंगे ना। डॉक्टर वा बैरिस्टर कहेंगे ना स्टूडेन्ट को, कि मैं तुमको डॉक्टर वा बैरिस्टर बनाता हूँ। परन्तु पढ़ेंगे तब तो बनेंगे। बाबा कहते बच्चे, अच्छी रीति समझते हो कि राजयोग सिखलाने वाला एक ही भगवान है, न कि कृष्ण। राधे-कृष्ण तो अलग-अलग राजाई के बच्चे हैं। उन्हों की आपस में सगाई होती है, शादी के बाद नाम बदलता है इसलिए चित्र में भी लक्ष्मी-नारायण के नीचे राधे कृष्ण को दिखाया है।
अब बाप अच्छी रीति समझाते हैं कि यह ब्रह्मा भी नम्बरवन भगत था। पिछाड़ी में नारायण की पूजा करते थे। कृष्ण की भक्ति की वा नारायण की भक्ति की, एक ही बात है। कृष्ण ही बड़ा होकर नारायण बनता है। अब तुमको नर से नारायण बनने के लिए राजयोग सिखला रहे हैं। अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए। अब इनकी आत्मा भी पढ़ रही है फिर भविष्य में श्रीकृष्ण बनती है। बाप कहते हैं – बच्चों तुम ज्ञान-चिता पर बैठ गोरे बनते हो फिर काम-चिता पर बैठ सांवरे बन गये हो। यह है कंसपुरी, मैं तुमको कृष्ण पुरी ले जाने के लिए आया हूँ। श्रीकृष्ण ही सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण है… यहाँ कोई में सर्वगुण हैं नहीं। मैं आया हूँ बच्चों को सम्पूर्ण निर्विकारी बनाने। बनना है योगबल से। बाहुबल है – हिंसक लड़ाई, जो तीर-कमान से होती थी। फिर बन्दूकों, तलवारों से हुई। अब तो होती है बाम्बस से। खुद कहते हैं हम ऐसे बाम्बस बनाते हैं जो घर बैठे सब खत्म हो जायेंगे। फिर मिलेट्री क्या करेगी!
बाप कहते हैं – मीठे-मीठे बच्चों यह पाठशाला है। मैं तुमको प्रिन्स श्रीकृष्ण जैसा बनाता हूँ। जो फर्स्ट प्रिन्स सतयुग का था, वह अब 84 जन्म लेकर कलियुग में बेगर बना है। भारत में ही उनका राज्य था। फिर पुनर्जन्म लेना पड़े ना। कृष्ण को भगवान कहते तो भगवान फिर पुनर्जन्म में कैसे आयेगा? भगवान तो निराकार है। वह है ही एक रचयिता। बाकी सब हैं रचना, तब तो कहते हैं कि हम आत्मायें सब भाई-भाई हैं। बाप समझाते हैं कि तुम ब्रह्माकुमार-कुमारी आपस में भाई-बहिन ठहरे। तो फिर क्रिमिनल एसाल्ट कैसे हो। तुम वर्सा एक बाप से लेते हो, भविष्य के लिए। अगर पवित्र नहीं रहेंगे तो शान्तिधाम, सुखधाम में कैसे जायेंगे। पुकारते भी हैं हम पतित बन गये हैं, पावन बनाने आओ। तो बाप कहते हैं मुझे याद करो। यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है। तुम सब आत्मायें अब वापिस वानप्रस्थ में जा सकती हो इसलिए वानप्रस्थी हो। ऐसा कोई गुरू रास्ता बता न सके। यह ज्ञान है ही एक बाप के पास। वही पतित-पावन निराकार है।
बाप कहते हैं कि मुझे याद करो, थोड़े टाइम के लिए, मैंने इस तन का लोन लिया है। शरीर बिगर आत्मा कैसे बोल सकेगी! भगवानुवाच है कि मैं बूढ़े साधारण तन में प्रवेश कर तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ। मैं गर्भ में नहीं आता हूँ। गर्भ में आने वाले को तो पुनर्जन्म में आना पड़े। मैं एक ही बार आता हूँ। प्रकृति का आधार मुझे जरूर चाहिए। मैं इसमें बैठ तुमको पढ़ाता हूँ। यह तो पहले अपना जवाहरात का धंधा करता था। कोई गुरू ने नहीं सिखाया, अचानक ही बाप ने प्रवेश किया। करनकरावनहार होने कारण इससे कर्तव्य कराते रहते हैं। यह भी सीखता जाता है। तुम भी साथ में सीखते जाते हो। बोलते हैं तुमको, परन्तु सुनता पहले मैं हूँ। पढ़ाने तुम बच्चों को आता हूँ परन्तु इनकी आत्मा भी पढ़ती रहती है। बच्चों को राजयोग सिखलाने आया हूँ। ऐसा कभी कोई पढ़ाते नहीं हैं। यह है पावन बनने की बात। यह संगमयुग है ही पुरुषोत्तम बनने का। पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण था। स्वयंवर के बाद उनकी डिग्री कुछ कम हो जाती है इसलिए श्रीकृष्ण की महिमा बहुत है। नाम ही है श्रीकृष्णपुरी, इनको कहा जाता है कंसपुरी। बाकी कहानी बनाई है – कृष्ण और कंस की।
बच्चों को समझाया है कि परिपक्व अवस्था होने से भक्ति आपेही छूट जायेगी। तुम कभी कोई को ऐसा नहीं कहना कि भक्ति न करो। उनको ज्ञान देना है। बाप तुमको ज्ञान दे स्वर्ग का प्रिन्स बनाने आये हैं। कृष्ण भी स्वर्ग का मालिक था, अब नहीं है। फिर से वह भी राजयोग द्वारा बन रहे हैं। तुमको भी पुरूषार्थ कर बाप को याद करना है। हेविन की स्थापना करने वाला है – हेविनली गॉड फादर। वही आकर नई सृष्टि रचते हैं। वह करेगा तब जब कलियुग पूरा होगा। सतयुग-त्रेता में नहीं आते।
कहते हैं मैं कल्प-कल्प संगमयुगे आता हूँ। उन्होंने कल्प अक्षर निकाल सिर्फ युगे-युगे लिख दिया है। तो भी 4 युग हैं। पांचवा है यह संगमयुग। अच्छा फिर तो 5 अवतार मानों। परन्तु इतने कच्छ-मच्छ परशुराम अवतार होते हैं क्या! यह सभी हैं शास्त्रों की बातें। धर्म का नाम और भारत का नाम ही बदली कर दिया है। हिन्दू धर्म और हिन्दुस्तान कह देते हैं। भारत नाम क्यों बदलना चाहिए! यदा यदाहि धर्मस्य… भारत। उसमें भी भारत का अक्षर आता है।
बाप समझाते हैं कि तुमने कोई एक जन्म थोड़ेही भक्ति की है। द्वापर से की है। भक्ति भी पहले अव्यभिचारी थी, सिर्फ शिव की भक्ति करते थे। जिस शिव-बाबा ने ही भारत को स्वर्ग बनाया था और अब फिर स्वर्ग का मालिक बनाने आये हैं। तो पतित शरीर में बैठ बताते हैं कि मैं आता ही हूँ, पतित शरीर में, पतित दुनिया में पतितों को पावन बनाने। भक्ति मार्ग में तो फिर भी मेरे लिए बड़ा भारी मन्दिर बनाते हैं। कितनी क्लीयर बात है। इनमें बाबा की प्रवेशता हुई और गीता आदि पढ़ना छोड़ दिया। भक्ति छूट गई। अनायास ही तो छोड़ा। तुमको कोई ने कहा नहीं कि भक्ति नहीं करो।
अब तुम बच्चों को बाबा समझाते हैं कि फिर से मैं तुमको कृष्णपुरी का मालिक बनाता हूँ। कृष्ण की फिर 8 डिनायस्टी चलती हैं। पहले कहेंगे प्रिन्स ऑफ सतयुग फिर बनता है किंग ऑफ सतयुग। 8 पीढ़ी उनकी चलती हैं। उस समय तो दूसरी राजाई होती नहीं। अब बाबा कहते हैं तुम बच्चे भी सतयुग के प्रिन्स बनो। भक्ति में कोई सुख नहीं है। ज्ञान से तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। कोई का बाप मर जाता है तो उनसे पूछा जाये तुम्हारा बाप कहाँ गया! कहेंगे स्वर्गवासी हुआ। समझते हैं आत्मा और शरीर दोनों गये। लेकिन शरीर तो यहाँ ही छोड़ गये, बाकी गई आत्मा। इसका मतलब पहले नर्क में था।
आत्मा शरीर छोड़ स्वर्ग में गई फिर इसमें रोने की क्या दरकार है? स्वर्ग अब यहाँ है क्या? परन्तु समझते नहीं हैं। कह देते सब ईश्वर का हुक्म है। सुख दु:ख सब ईश्वर देता है, सब ईश्वर के रूप हैं। परन्तु बाप कहते हैं कि मैं बच्चों को दु:ख कैसे दे सकता हूँ। बाप से बच्चे कब दु:ख माँगते हैं क्या? बाप तो बच्चों को लायक बनाकर प्रापर्टी दे जाते हैं। बाकी दु:ख तो हर एक को कर्मो के अनुसार ही मिलता है। बाप कहते हैं कि अभी बच्चे आदि कुछ नहीं माँगो। अभी यह प्रापर्टी आदि सब खत्म होने वाली है। फिर तुम्हारे बच्चों को क्या मिलेगा! इतना समय ही नहीं है जो तुम्हारी प्रापर्टी का बच्चा मालिक बन सके। बच्चा बड़ा हो तब तो मालिक बनें, परन्तु इतना टाइम ही नहीं है। विनाश समाने खड़ा है।
मनुष्य तो कहते हैं कि कलियुग में अजुन 40 हजार वर्ष पड़े हैं। यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो विनाश-विनाश करते रहते हैं। कहानी है ना – शेर आया, शेर आया… आखिर तो आया और खा गया। सब समझते हैं कि थोड़ा-थोड़ा काल आयेगा। यह तो होता ही रहता है लेकिन तुम कहते हो कि महाकाल आया हुआ है। शिवबाबा कालों का काल आया हुआ है, जो सभी आत्माओं को वापिस ले जायेगा। तो शरीर तो जरूर छोड़ना पड़े इसलिए बाबा कहते हैं – योग से पवित्र बनो। आत्माओं को पवित्र बनाए फिर वापिस ले जायेंगे। अगर पवित्र नहीं बनेंगे तो बहुत सजायें अन्त में खानी पड़ेंगी और ऊंच पद भी पा नहीं सकेंगे।
श्रीकृष्ण नम्बरवन पास विद् ऑनर है, उनको स्कॉलरशिप मिलती है। 21 जन्म राज्य पाते हैं। कितना सहज समझाते हैं। बुद्धि में बैठता भी है फिर गुम हो जाता है। किसको भी भक्ति छुड़ानी नहीं है। बाप आये हैं – भक्तों को भक्ति का फल देने। कहते हैं मैं कल्प पहले मिसल फिर उसी साधारण तन में आया हूँ। कल्प-कल्प आकर तुमको पढ़ाता हूँ। यह है ऊंच से ऊंच पढ़ाई। तुम जानते हो हम सतो-प्रधान थे। अब तमोप्रधान हैं फिर भारत ही सतोप्रधान बनता है।
और धर्म वालों ने इतना सुख नहीं देखा है तो दु:ख भी नहीं देखा है। बाहर वालों के पास पैसा तो बहुत है तो गरीब देश को कर्ज देते हैं। उन बिचारों को पता नहीं है, यह तो रिटर्न हो रहा है। बिल्कुल घोर अन्धियारे में कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं। पिछाड़ी में हाय-हाय कर उठेंगे। फिर तुम कहेंगे – टू लेट क्योंकि लड़ाई शुरू हो जायेगी। फिर क्या करेंगे! भंभोर को आग लग जाती फिर तो टू लेट हो जाता है इसलिए बाप कहते हैं – बच्चे, अब जल्दी-जल्दी पुरुषार्थ करते जाओ।
बाबा कोई जास्ती तकलीफ नहीं देते हैं। बाबा को आकर कहते हैं कि बाबा अगर हम पूजा नहीं करते तो वह कहते हैं कि यह तो नास्तिक बन गया है। बाबा राय देते हैं कि साक्षी होकर बाबा की याद में रहो। थोड़ी-थोड़ी पूजा बाहर से कर दो। एक होता है दिल से करना, दूसरा होता है राज़ी करने के लिए करना। अन्दर में तुमको शिवबाबा को याद करना है। अगर कोई तंग करते हैं तो पूजा कर दिखाओ, तो वह खुश हो जायेंगे। यह कोई पाप का काम नहीं है। बाबा तो बहुतों को कहते हैं शादी आदि पर भले जाओ। दोनों तरफ तोड़ निभाना है। वहाँ भी सुनाते-सुनाते कोई न कोई को तीर लग जायेगा। युक्ति से चलना है।
बाप का फरमान है कि अब पतित नहीं बनना है। पवित्र बनने से ही तुम कृष्णपुरी के मालिक बनेंगे। शिवबाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और विश्व के मालिक बन जायेंगे। बच्चों, ऐसी-ऐसी युक्ति से अपने मित्र-सम्बन्धियों को समझाना है। वह है जिस्मानी यात्रा, यह है रूहानी यात्रा। यह रूहानी यात्रा बाप सिखलाते हैं। कहते हैं कि मामेकम् याद करो तो पतित से पावन बन जायेंगे और सब दु:ख दूर हो जायेंगे।
कोई विरला व्यापारी व्यापार करे अर्थात् बैकुण्ठ की बादशाही लेवे। श्रीमत पर चलते रहो। ऐसे भी न हो पैसे आदि कहाँ मुफ्त में जायें, कुछ फल नहीं निकले। घरबार भी सम्भालना है, बच्चों की पालना भी करनी है। सिर्फ श्रीमत पर चलना है। राय लेनी है कि बाबा इस हालत में हम क्या करें! बाबा बच्ची कहती हैं कि हम शादी करें तो बाबा कहते हैं कि शादी करानी ही पड़ेगी क्योकि उनका हिस्सा है, उनको दे दो। बाप सिर्फ समझाते हैं फिर भी कुछ पूछना हो तो पूछकर श्रीमत पर चलो। बच्चों को बाप की आज्ञा पर चलना है, इसमें ही कल्याण है।
अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हर कर्म साक्षी होकर शिवबाबा की याद में करना है। लौकिक, अलौकिक दोनों तरफ तोड़ निभाना है। लौकिक से युक्तियुक्त चलना है।
2) इस समय अन्तिम जन्म में भी यह वानप्रस्थ अवस्था है। वापिस घर जाना है इसलिए पावन जरूर बनना है। कोई भी बंधन नहीं बनाने हैं।
वरदान:- पुराने संस्कारों वा विघ्नों से मुक्ति प्राप्त करने वाले सदा शक्ति सम्पन्न भव
किसी भी प्रकार के विघ्नों से, कमजोरियों से या पुराने संस्कारों से मुक्ति चाहते हो तो शक्ति धारण करो अर्थात् अंलकारी रूप होकर रहो। जो अलंकारों से सदा सजे सजाये रहते हैं वह भविष्य में विष्णुवंशी बनते हैं लेकिन अभी वैष्णव बन जाते हैं। उन्हें कोई भी तमोगुणी संकल्प वा संस्कार टच नहीं कर सकता। वे पुरानी दुनिया अथवा दुनिया की कोई भी वस्तु और व्यक्तियों से सहज ही किनारा कर लेते हैं, उन्हें कारणे अकारणे भी कोई टच नहीं कर सकता।
स्लोगन:- हर समय हर कर्म में बैलेन्स रखना ही सर्व की ब्लैसिंग प्राप्त करने का साधन है।
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