23-08-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

23-08-2021प्रात: मुरली ओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे – अपने आपसे वायदा करो कि हमें बहुत-बहुत मीठा बनना है, सबको सुख की, प्यार की दृष्टि से देखना है, किसी के नाम-रूप में नहीं फँसना है”

प्रश्नः- योग की सिद्धि क्या है? पक्के योगी की निशानी सुनाओ?

उत्तर:- सब कर्मेन्द्रियाँ बिल्कुल शान्त, शीतल हो जाएं – यह है योग की सिद्धि। पक्के योगी बच्चे वह जिनकी कर्मेन्द्रियाँ जरा भी चंचल न हों। रिंचक भी किसी देहधारी में आंख न डूबे। मीठे बच्चे अब तुम जवान नहीं, तुम्हारी वानप्रस्थ अवस्था है।

गीत:- जाग सजनियाँ जाग… CLICK the song to play

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। इसके अर्थ पर दिल में विचार सागर मंथन करना है और खुशी में आना है क्योंकि यह है नई दुनिया के लिए नई बातें। यह नई बातें अभी सुननी है। बच्चे अब जानते हैं नई दुनिया स्थापन करने वाला कोई मनुष्य नहीं हो सकता। तुम जब यह बातें सुनते हो तो समझते हो यह तो 5 हजार वर्ष पहले वाली पुरानी बातें हैं जो फिर नयेसिर सुनाई जाती हैं। तो पुरानी सो नई, नई सो पुरानी हो जाती हैं। अभी तुम जानते हो 5 हजार वर्ष पहले वाली वही बातें बाबा नई करके सुनाते हैं। बातें वही हैं। किसलिए सुनाते हैं? नई दुनिया का वर्सा पाने। इसमें ज्ञान डांस करना होता है। भक्ति में भी बहुत डांस करते हैं। चारों तरफ फेरे लगाते डांस करते हैं। ज्ञान का डांस तो बिल्कुल सहज है। उसमें कर्मेन्द्रियाँ बहुत चलती हैं, मेहनत करनी पड़ती है। यह तो सिर्फ अन्दर में ज्ञान डांस चलता है।

सृष्टि चक्र कैसे फिरता है – वह नॉलेज बुद्धि में है। इसमें कोई तकलीफ नहीं है। हाँ, याद में मेहनत लगती है। बच्चे कई फेल हो पड़ते हैं, कहाँ न कहाँ गिर पड़ते हैं। सबसे मुख्य बात है – नाम-रूप में नहीं फँसना है। स्त्री-पुरुष काम वश नाम रूप में फँसते हैं ना। क्रोध नाम-रूप में नहीं फँसाता है। पहले-पहले है यह जिसकी बड़ी सम्भाल करनी है, कोई के भी नाम रूप में नहीं फँसना है। अपने को आत्मा समझना है। हम आत्मा अशरीरी आई थी, अब अशरीरी होकर जाना है। इस शरीर का भान तोड़ना है। यह नाम-रूप में फँसने की बहुत खराब बीमारी है। बाप सावधानी देते हैं बच्चों को। कोई-कोई इस बात को समझते नहीं हैं। कहते हैं बाबा नाहेक ऐसे कहते हैं कि नाम-रूप में फँसे हो।

परन्तु यह गुप्त बीमारी है इसलिए साजन सजनियों को अथवा बाप बच्चों को जगाते हैं। बच्चे जागो, अब फिर से कलियुग के बाद सतयुग आना है। बाप ज्योति जगाने आते हैं। मनुष्य मरते हैं तो उनकी ज्योत जगाते हैं। फिर दीपक की सम्भाल करते हैं कि बुझ न जाए। आत्मा को अन्धियारा न हो। वास्तव में यह है सब भक्ति मार्ग की बातें। आत्मा तो सेकेण्ड में चली जाती है। कई लोग ज्योति को भी भगवान मानते हैं। ब्रह्म को बड़ी ज्योति कहते हैं। ब्रह्म समाजियों का मन्दिर होता है, जहाँ रात दिन ज्योति जगती है। कितना खर्चा होता है। फालतू घृत जाता है। यहाँ वह कुछ भी डालने का है नहीं। याद घृत का काम करती है। याद रूपी घृत है। तो मीठे-मीठे बच्चे यह समझते हैं।

नई बात होने के कारण ही झगड़ा होता है। बाप कहते हैं- मैं आता हूँ स्वीट चिल्ड्रेन के पास। भारत में ही आता हूँ। अपना जन्म, देश सबको प्यारा लगता है ना। बाप को तो सब प्यारे लगते हैं। फिर भी मैं अपने भारत देश में ही आता हूँ। गीता में अगर कृष्ण का नाम नहीं होता तो सब मनुष्य मात्र शिवबाबा को मानते। शिव के मन्दिर में कितने जाते हैं। बड़े ते बड़ा मन्दिर सोमनाथ का था। अभी तो कितने ढेर के ढेर मन्दिर बने हैं। कृष्ण को इतना सब मानते नहीं, जितना बेहद के बाप को मानते हैं। तो इस समय तुमको इन जैसी प्यारी वस्तु और कोई है नहीं। इसमें साकार की महिमा कोई है नहीं। यह तो निराकार की महिमा है, जो अभोक्ता है। जबकि बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है तो उससे स्वर्ग का वर्सा लेने का पुरूषार्थ करना चाहिए ना।

आजकल करते-करते काल खा जायेगा। समय बाकी थोड़ा है। बाप से वर्सा तो ले लो। जब प्रोब लिखते हैं तो उस समय समझाना भी है। जबकि निश्चय करते हो वह बेहद का बाप है तो बाप से वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो, नहीं तो बाहर जाने से झट भूल जायेंगे। बाप तो कल्याणकारी है ना। कहते हैं इस योग से ही तुम्हारे सब दु:ख 21 जन्म के लिए दूर होने हैं। बच्चियाँ घर में भी समझाती रहें कि अब सब दु:ख दूर करने वाले बेहद के बाप को याद करने से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। पवित्र तो जरूर रहना पड़े। मूल बात है पवित्रता की। जितना-जितना याद में जास्ती रहेंगे तो इन्द्रियाँ भी शान्त हो जायेंगी। जब तक योग की सिद्धि पूरी नहीं होती है तो इन्द्रियाँ भी शान्त नहीं होती हैं।

हर एक अपनी जांच करे – काम विकार मुझे कोई धोखा तो नहीं देता? कोई चंचलता नहीं होनी चाहिए, अगर मैं पक्का योगी हूँ तो। यह जैसे कि वानप्रस्थ अवस्था है – बाप को ही याद करते रहना है। बाप सब बच्चों को समझाते हैं। जब तुम अच्छे योगी बनेंगे, कहाँ भी आंख नहीं डूबेगी तो फिर तुम्हारी इन्द्रियाँ शान्त हो जायेंगी। मुख्य हैं यह जो सबको धोखा देती हैं। योग में अच्छी रीति अवस्था जम जायेगी तो फिर महसूस होगा – हम जैसे जवानी में ही वानप्रस्थ अवस्था में आ गये हैं। बाप कहते हैं- काम महाशत्रु है। तो अपनी जांच करते रहो। जितना याद में रहेंगे उतना कर्मेन्द्रियाँ शान्त हो जायेंगी और बहुत मीठा स्वभाव बन जायेगा। फील होगा मैं पहले कितना कड़ुवा था, अब कितना मीठा बन गया हूँ। बाबा प्रेम का सागर है ना तो बच्चों को भी बनना है। तो बाबा कहते हैं सबके साथ प्यार की दृष्टि रहे। अगर किसको दु:ख देंगे तो दु:खी होकर मरेंगे इसलिए बहुत मीठा बनना है।

बाबा कहते हैं मैं रूप-बसन्त हूँ ना। बाबा से कितने अमूल्य ज्ञान रत्न मिलते हैं, जिससे तुम झोली भरते हो। वो लोग फिर शंकर के आगे जाकर कहते हैं भर दे झोली। उनको यह पता नहीं है कि शंकर झोली भरने वाला नहीं है। अभी तुम समझते हो ज्ञान सागर बाबा हम बच्चों की ज्ञान के रत्नों से झोली भरते हैं। तुम भी रूप-बसन्त हो। हर एक की आत्मा रूप-बसन्त है। अपने को देखते रहो हम कितना ज्ञान रत्न धारण कर और ज्ञान डांस करते हैं अथवा रत्नों का दान करते हैं। सबसे अच्छा रत्न है मनमनाभव। बाप को याद करने से बाप का वर्सा पाते हो। जैसे बाबा में ज्ञान भरा हुआ है वैसे बाप बैठ बच्चों को आप समान बनाते हैं। गुरू लोग भी आपसमान बनाते हैं।

यह है बेहद का बाप, जिसका रूप बिन्दी है। तुम्हारा भी रूप बिन्दी है। तुमको आप समान ज्ञान का सागर बनाते हैं। जितनी धारणा करेंगे, करायेंगे… वह समझें हमारा ऊंच पद है। बहुतों का कल्याणकारी बनेंगे तो बहुतों की आशीर्वाद मिलेगी। बाप भी रोज़ सर्विस करते हैं ना। यह गुल्जार बच्ची है, कितना मीठा समझाती है। सबको पसन्द आता है। दिल होती है ऐसी ब्राह्मणी हमको मिले। अब एक ब्राह्मणी सब जगह तो नहीं जा सकती है।

फिर भी बाबा कहते हैं जो समझते हैं मैं अच्छा समझाती हूँ तो उनको आलराउन्ड सर्विस करनी चाहिए। आपेही शौक होना चाहिए। मैं सेन्टर्स पर चक्कर लगाऊं…। जो-जो समझते हैं मैं बहुतों का कल्याण कर सकती हूँ, मेरी अच्छी खुशबू निकलती है तो शौक होना चाहिए। 10-15 दिन जाकर सेन्टर्स से चक्र लगा आऊं। एक को देखकर फिर और भी सीखेंगे, जो करेगा सो पायेगा। यह सर्विस बहुत कल्याणकारी है। तुम मनुष्यों को जीयदान देते हो। यह बड़ा उत्तम ते उत्तम काम है। धन्धे वाले भी युक्ति से टाइम निकाल सर्विस पर जा सकते हैं। सर्विसएबुल को तो बाप प्यार भी करेंगे, परवरिश भी करेंगे। जिनको सर्विस का शौक होगा वह सर्विस बिगर रह नहीं सकेंगे। बाप मदद भी करते हैं ना।

बच्चों को बहुत रहमदिल बनना है। बिचारों की बहुत दु:खी जीवन है। तुम जीयदान देते हो, किसको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करना, इन जैसा सर्वोत्तम ज्ञान दान कोई है नहीं। बहुत रहमदिल बनना है। ब्राह्मणी कमजोर होने के कारण सर्विस ढीली हो पड़ती है इसलिए अच्छी टीचर की मांगनी करते हैं। जब भी विचार आये तो चले जाना चाहिए। बाबा कौन सा सेन्टर ठण्डा है, हम जाकर चक्र लगा आयें। प्रदर्शनी के चित्र भी हैं। चित्र पर जास्ती अच्छी रीति समझेंगे। ख्याल चलाना चाहिए हम सर्विस कैसे बढ़ायें। बाप भी सबका जीवन हीरे जैसा बनाते हैं। तुम बच्चों को भी सर्विस करनी है।

बन्दे मातरम् गाया जाता है। परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं। पतित मनुष्यों की अथवा पृथ्वी आदि की कभी वन्दना नहीं की जाती। यह तो 5 तत्व हैं, उनकी क्या वन्दना करेंगे। 5 तत्वों से बना हुआ शरीर है तो शरीर की पूजा करना हो गई बुत की पूजा। शिवबाबा को तो शरीर है नहीं। उनकी पूजा है सबसे उत्तम। बाकी है मध्यम। आजकल तो मनुष्यों को भी पूजते रहते हैं, वह हैं पतित। महान आत्मायें तो देवतायें होते हैं। संन्यासियों से वह जास्ती पवित्र हैं।

अभी तुम बच्चे जानते हो हम देवता बन रहे हैं। बाप हमको यह अविनाशी ज्ञान रत्न दान करना सिखलाते हैं। इन जैसा ऊंच दान और कोई होता नहीं। एक बाप को ही याद करना है। शिव और लक्ष्मी-नारायण के चित्र तो हैं। हर एक अपने घर में लगा दे तो याद रहेगा। शिवबाबा हमको यह लक्ष्मी-नारायण बनाते हैं। इस समय तुम बन रहे हो। स्वर्ग का रचयिता है ही शिवबाबा। सतयुग में तो नहीं वर्सा देंगे। इस अन्तिम जन्म में शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करो तो तुम यह बनेंगे। और सब बातें छोड़कर बस सर्विस और सर्विस।

बाप को याद करते हो – यह भी बड़ी सर्विस करते हो। तत्व आदि सब पावन बन जाते हैं। योग की महिमा बहुत भारी है। दुनिया में योग आश्रम तो बहुत हैं परन्तु वह सब हैं जिस्मानी हठयोग, तुम्हारा यह है राजयोग, जिससे तुम्हारा बेड़ा पार हो जाता है। उन अनेक प्रकार के हठयोग आदि से सीढ़ी उतरते आये हो। मूल बात है याद की। देखना है हमारा मन कहाँ विकार तरफ तो नहीं जाता है? विकारी को ही पतित कहा जाता है अर्थात् कौड़ी मिसल। विकार में गिरने से अपना ही नुकसान कर देंगे। जो करेगा सो पायेगा। बाप देखे वा न देखे। अपने को चेक करना है – हम बाप की सर्विस करते हैं! हमारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं! अगर है तो निकाल देना चाहिए।

अपने से अवगुणों को निकालने के लिए बाप बहुत समझाते रहते हैं। निर्गुण का भी अर्थ कोई नहीं समझते। निर्गुण बालक की मण्डली क्या कर सकेगी, जिसमें कोई गुण नहीं हैं। बिगर अर्थ जो आया सो कह देते हैं। अनेक मत हैं ना। तुमको एक मत मिलती है, जिससे तुमको तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो और कमल फूल समान बनो। मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्र बनो। तुम बच्चे जानते हो हम ब्राह्मण श्रीमत पर अपने ही तन-मन-धन से अपनी और सारे विश्व की सेवा कर रहे हैं। बाप आयेंगे तो भारत में ना। तुम पाण्डव भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा कर रहे हो।

तुम अपना काम करते हो। आखिर विजय तो पाण्डवों की ही होनी है, इसमें लड़ाई की बात नहीं। तुम हो डबल नानवायोलेन्स। न विकार में जाते हो, न गोली चलाते हो। वायोलेन्स से कोई भी विश्व पर बादशाही पा नहीं सकते। बाबा ने समझाया है – वह दोनों (क्रिश्चियन लोग) अगर आपस में मिल जाएं तो विश्व पर राज्य कर सकते हैं। परन्तु ड्रामा में ऐसा है नहीं। क्रिश्चियन ने ही कृष्णपुरी को हप किया है। असुल तो भारत कृष्ण की ही पुरी था ना। लड़कर बादशाही ली, बहुत धन ले गये। अब फिर धन वापिस होता जाता है और फिर तुम विश्व के मालिक बन जाते हो। बाबा कितनी युक्तियाँ बताते हैं। उन्होंने ही तुम्हारा राज्य छीना है फिर वह आपस में लड़ते हैं और विश्व के मालिक तुम बन जाते हो। कितनी बड़ी बादशाही है। मेहनत सिर्फ इसमें है – याद करते रहो और अपना वर्सा लो। इसमें तंग नहीं होना चाहिए। 

 अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) दूसरी सब बातों को छोड़कर ज्ञान दान करना है। रूप-बसन्त बनना है। अपने अवगुणों को निकालने का पुरुषार्थ करना है। दूसरों को नहीं देखना है।

2) अपना स्वभाव बहुत मीठा बनाना है। सबके प्रति प्यार की दृष्टि रखनी है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है। कर्मेन्द्रिय जीत बनना है।

वरदान:-     अमृतवेले की मदद वा श्रीमत की पालना द्वारा स्मृति को समर्थवान बनाने वाले स्मृति स्वरूप भव

अपनी स्मृति को समर्थवान बनाना है वा स्वत: स्मृति स्वरूप बनना है तो अमृतवेले के समय की वैल्यु को जानो। जैसी श्रीमत है उसी प्रमाण समय को पहचान कर समय प्रमाण चलो तो सहज सर्व प्राप्ति कर सकेंगे और मेहनत से छूट जायेंगे। अमृतवेले के महत्व को समझकर चलने से हर कर्म महत्व प्रमाण होंगे। उस समय विशेष साइलेन्स रहती है इसलिए सहज स्मृति को समर्थवान बना सकते हो।

स्लोगन:-    याद और नि:स्वार्थ सेवा द्वारा मायाजीत बनने वाले ही सदा विजयी हैं।

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