20-3-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली. रिवाइज:01/02/90.
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“ब्राह्मण-जीवन का फाउण्डेशन – दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि”
“ओम् शान्ति”
आज दिव्य बुद्धि विधाता और रूहानी दृष्टि दाता बापदादा चारों ओर के दिव्य बुद्धि प्राप्त करने वाले बच्चों को देख रहे हैं। हर एक ब्राह्मण बच्चे को यह दोनों वरदान ब्राह्मण जन्म से ही प्राप्त हैं। दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि – यह बर्थ राइट में सबको मिली हुई हैं। यह वरदान ब्राह्मण-जीवन का फाउण्डेशन है। जीवन परिवर्तन वा मरजीवा जन्म, ब्राह्मण-जीवन इन दोनों प्राप्तियों को ही कहा जाता है। पास्ट जीवन और वर्तमान ब्राह्मण-जीवन – दोनों का अन्तर इन दो बातों का ही विशेष है। इन दोनों बातों के ऊपर संगमयुगी पुरुषार्थियों का नम्बर बनता है। इन दो बातों को सदा हर संकल्प में, बोल में, कर्म में जितना जो यूज़ करता है उतना ही नम्बर आगे लेता है।
रूहानी दृष्टि, दृष्टि से वृत्ति, कृत्ति स्वत: ही बदल जाती है। दिव्य बुद्धि द्वारा स्वयं प्रति, सेवा प्रति ब्राह्मण-परिवार के सम्बन्ध-सम्पर्क प्रति सदा और स्वत: हर बात के लिए निर्णय यथार्थ होता है और जहाँ दिव्य बुद्धि द्वारा यथार्थ निर्णय होता है तो निर्णय के आधार पर ही स्वयं, सेवा, सम्बन्ध-सम्पर्क यथार्थ शक्तिशाली बन जाता है। मूल बात है ही दृष्टि और दिव्य बुद्धि।
आज बापदादा सभी बच्चों की दिव्य बुद्धि को चेक कर रहे थे। सबसे पहले दिव्य बुद्धि की पहली परख – वह सदा बाप को, आपको (स्वयं को) और हर ब्राह्मण-आत्मा को जो है, जैसा है वैसे जानकर उस रूप में बाप से जितना लेना चाहिए वह अधिकार सदा प्राप्त करता रहता है। जो बाप ने बनाया है, सेवा के निमित्त रखा है, जो बाप ने ब्राह्मण-जीवन की विशेषतायें वा दिव्यगुण दिये हैं, जैसा निमित्त बनाया है – ऐसे अपने-आपको पहचान उस प्रमाण अपने को आगे बढ़ाना – इसको कहते हैं बाप को, आप (स्वयं) को और ब्राह्मण-आत्मा जो है, जैसी है वैसे उसको जानकर आगे बढ़ाना। यह है दिव्य बुद्धि की पहली परख।
दिव्य बुद्धि अर्थात् होलीहंस बुद्धि। हंस अर्थात् स्वच्छता, क्षीर और नीर को वा मोती और पत्थर को पहचान मोती ग्रहण करने वाले। जानते हैं कि यह कंकड है, यह मोती है लेकिन कंकड़ को धारण नहीं करते इसलिए होलीहंस संगमयुगी ज्ञान-स्वरूप विद्या देवी “सरस्वती” का वाहन है। आप सभी ज्ञान स्वरूप हो, इसलिए विद्यापति या विद्या देवी हो। यह वाहन दिव्य बुद्धि की निशानी है। आप सभी ब्राह्मण बुद्धियोग द्वारा तीनों लोकों की सैर करते हो। बुद्धि को भी वाहन कहते हैं। यह दिव्य बुद्धि का वाहन सभी वाहन से तीव्रगति वाला है। दिव्य बुद्धि को बुद्धिबल भी कहा जाता है क्योंकि बुद्धिबल द्वारा ही बाप से सर्वशक्तियाँ कैच कर सकते हो इसलिए बुद्धिबल कहा जाता है।
जैसे साइन्स-बल है। साइन्स-बल कितनी हद की कमाल दिखाते हैं! कई बातें जो आज मानव को असम्भव लगती हैं वह सम्भव कर दिखाते हैं। लेकिन यह विनाशी बल है। साइन्स बुद्धिबल है लेकिन दिव्य बुद्धिबल नहीं है, संसारी बुद्धि है, इसलिए इस संसार के प्रति, प्रकृति के प्रति ही सोच सकते हैं और कर सकते हैं। दिव्य बुद्धि बल मास्टर सर्वशक्तिवान् बनाता है, परमात्म-पहचान, परमात्म-मिलन, परमात्म-प्राप्ति की अनुभूति कराता है। दिव्य बुद्धि जो चाहो, जैसे चाहो, असम्भव को सम्भव करने वाली है। दिव्य बुद्धि द्वारा हर कर्म में परमात्म-प्यार (पवित्र टचिंग) अनुभव कर हर कर्म में सफलता का अनुभव कर सकते हैं। दिव्य बुद्धि कोई भी माया के वार को हार खिला सकती है।
जहाँ परमात्म-टचिंग है, प्योर-टचिंग है, मिक्सचर नहीं, वहाँ माया की टचिंग अथवा वार असम्भव है। माया का आना तो छोड़ो लेकिन टच भी नहीं कर सकती। माया दिव्य बुद्धि के आगे सफलता की वरमाला बन जाती है, माया नहीं रहती। जैसे द्वापर के रजोगुणी ऋषि-मुनि आत्माएं शेर को भी अपनी शक्ति से शान्त कर देते थे ना। शेर साथी बन जाता, वाहन बन जाता, खिलौना बन जाता, परिवर्तन हो जाता है ना।
तो आप सतोप्रधान, मास्टर सर्वशक्तिवान, दिव्य-बुद्धि- वरदानी – उन्हों के आगे माया क्या है, माया दुश्मन से परिवर्तन नहीं हो सकती? दिव्य बुद्धि बल अति श्रेष्ठ बल है। सिर्फ इसको यूज करो। जैसा समय उस विधि से यूज़ करो तो सर्व सिद्धियाँ आपकी हथेली पर है। सिद्धि कोई बड़ी चीज नहीं है, सिर्फ दिव्य बुद्धि की सफाई है। जैसे आजकल के जादूगर हाथ की सफाई दिखाते है ना। यह दिव्य बुद्धि की सफाई सर्व सिद्धियों को हथेली में कर देती है।
आप सभी ब्राह्मण आत्माओं ने सर्व सिद्धियां प्राप्त की हैं लेकिन दिव्य सिद्धियां साधारण नहीं। तब आपकी मूर्तियों द्वारा आज तक भी भक्त सिद्धि प्राप्त करने के लिए जाते हैं। जब सिद्धि-स्वरूप बने हैं तब तो भक्त आपसे मांगने जाते हैं। तो समझा दिव्य बुद्धि की क्या कमाल है! स्पष्ट हुई ना दिव्य बुद्धि की कमाल। लेकिन आज क्या देखा? क्या देखा होगा? टीचर्स सुनाओ।
टीचर्स तो बाप समान मास्टर शिक्षक हो गई ना! टीचर अर्थात् हर संकल्प, बोल और हर सेकण्ड सेवा में उपस्थित – ऐसे सेवाधारी को ही बापदादा टीचर कहते हैं। हर समय तो वाणी द्वारा सेवा नहीं कर सकते हो। थक जायेंगे ना। लेकिन अपने फीचर्स द्वारा हर समय सेवा कर सकते हो। इसमें थकावट की बात नहीं है। यह तो कर सकते हैं ना, टीचर्स बोलने की सेवा तो यथाशक्ति समय प्रमाण ही करेंगे लेकिन फरिश्ता फ्यूचर के फीचर्स हों।
संगमुयग का फ्यूचर फरिश्ता है, वह फीचर्स में दिखाई दे तो कितनी अच्छी सेवा होगी? जब जड़-चित्र फीचर्स द्वारा अन्तिम जन्म तक भी सेवा कर रहे हैं, तो आप चैतन्य श्रेष्ठ आत्माएं अपने फीचर्स द्वारा सेवा सहज कर सकते हो। आपके फीचर्स में सदा सुख की, शान्ति की, खुशी की झलक हो। कैसी भी दु:खी अशान्त आत्मा, परेशान आत्मा आपके फीचर्स द्वारा अपना श्रेष्ठ फ्यूचर बना सकती है। ऐसा अनुभव है ना।
अमृतवेले अपने फीचर्स को चेक करो। जैसे शरीर के फीचर्स को चेक करते हो ना, वैसे फरिश्ते फीचर्स में खुशी का, शान्ति का, सुख का श्रृंगार ठीक है – यह चेक करो तो स्वत: और सहज सेवा होती रहेगी। सहज लगता है ना टीचर्स को? यह तो 12 घण्टा ही सेवा कर सकते हो। यह वाणी की सेवा तो दो-चार घंटा ही करेंगे। प्लैनिंग का काम, भाषण का काम करेंगे तो थक जायेंगे, इसमें तो थकने की बात ही नहीं। नैचुरल हैं ना।
वैसे अनुभवी सभी हो लेकिन… बापदादा ने देखा फॉरेन में कुत्ते और बिल्ली बहुत पालते हैं। ऐसे खिलौने भी यही लाते हैं। तो अनुभव बहुत अच्छा करते हो लेकिन कभी कुत्ता आ जाता, कभी कोई बिल्ली आ जाती है। उसको निकालने में टाइम लगा देते हो।
लेकिन आज सुनाया ना कि माया आपकी सफलता की माला बन जायेगी। सभी निमित्त सेवाधारी के गले में माला पड़ी हुई है। सफलता की माला है वा कभी-कभी गले में माला होते भी दिखाई नहीं देती है? बाहर ढूंढते रहते कि सफलता मिले। जैसे रानी की कहानी सुनाते हैं ना। गले में हार होते हुए भी बाहर ढूंढती रही। ऐसे तो नहीं करते हो ना। सफलता हर ब्राह्मण-आत्मा का अधिकार है। सभी टीचर्स सफलतामूर्त हो ना कि पुरुषार्थी मूर्त, मेहनत मूर्त हो? पुरुषार्थ भी सहज पुरुषार्थ, मेहनत वाला नहीं। यथार्थ पुरुषार्थ की परिभाषा ही है कि नैचुरल अटेन्शन। कई कहते हैं – अटेन्शन रखना है ना। लेकिन अटेन्शन टेन्शन में बदल जाता है, यह पता नहीं पड़ता। नैचुरल अटेन्शन अर्थात् यथार्थ पुरुषार्थी।
टीचर्स से बापदादा का प्यार है, इसलिए मेहनत करने नहीं देते हैं। दिल का प्यार तो यही होता है ना। अच्छा, फिर दूसरी बार सुनायेंगे कि और क्या-क्या देखा! थोड़ा-थोड़ा सुनायेंगे। सबके अंदर अपना चित्र तो आ रहा है।
देश-विदेश में सेवा की धूमधाम अच्छी है। भारत की कान्फ्रेंस भी बहुत अच्छी सफल रही। सफलता की निशानी है – सफलता की खुशबू पर आने वाली आत्मायें अपने उमंग-उत्साह से संख्या में बढ़ती जाती है। अच्छे की निशानी यह है कि सबके अंदर देखने-सुनने-पाने की इच्छा बढ़ रही है। यह है अच्छे की निशानी। तो यह नहीं सोचो – संख्या कम होगी। अगर अच्छा करते हो तो इच्छा बढ़ेगी, संख्या तो बढ़ेगी। चाहे फारेन की रिट्रीट में, चाहे कांफ्रेन्स में – दोनों की रिजल्ट दिन-प्रतिदिन अच्छे-ते-अच्छी दिखाई दे रही है।
सबसे अच्छी रिजल्ट यह है कि पहले जो फारेन में कहते थे कि ब्रह्माकुमारियों के नाम से कोई आयेगा नहीं। “ अभी तो डायरेक्ट ब्रह्माकुमारियों के आश्रम में रिट्रीट करने जा रहे हैं, राजयोग सीखने के लिए जा रहे हैं” यह समझते हैं। तो यह है पर्दे के बाहर आये, घूंघट खोला है। मधुबन निवासी वा सेवाधारी सभी ने चाहे भारत के अनेक स्थानों से आकर सेवा की, मधुबन निवासी वा चारों ओर के सेवाधारियों ने स्नेह से, बातों को न देख, आराम को न देख, अच्छी अथक सेवा की इसलिए बापदादा चारों ओर के अथक सेवा की सफलता को प्राप्त करने वाले विशेष बच्चों को सेवा की मुबारक, दिल की मुबारक दे रहे हैं। आवाज गूंजती हुई चारों ओर फैल रही है। अच्छा!
“सर्व दिव्य बुद्धि रूहानी वरदानी आत्मायें, सदा बुद्धि-बल को समय प्रमाण, कार्य प्रमाण यूज़ करने वाली ज्ञान-स्वरूप आत्माओं को, सदा अपने फरिश्ते फीचर्स द्वारा अखण्ड सेवा करने वाले स्वत: सहज पुरुषार्थी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।“
डबल विदेशी भाई-बहनों के अलग-अलग ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
सभी अपने श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित रहते हो? चाहे और कितने भी आयें लेकिन आपका भाग्य तो सदा ही है। आप उन्हों को आगे करके भी आगे रहेंगे क्योंकि आगे करने वाले स्वत: ही आगे रहते हैं। औरों को आगे रखने से आपका पुण्य जमा हो जता है। तो आगे बढ़ गये ना! सदा यह लक्ष्य हर कदम में हो कि आगे बढ़ना और बढ़ाना है।
जैसे बाप ने बच्चों को आगे किया, स्वयं बैकबोन रहा लेकिन आगे बच्चों को किया। तो फालो फादर करने वाले हो ना! जितना यहाँ बाप को फालो करते हो उतना ही विश्व के राज्य तख्त पर भी नम्बरवार फालो करेंगे। तख्त लेना है या तख्तनशीन को देखना है? (बैठना है) सतयुग में तो आठ बैठेंगे, फिर क्या करेंगे? थोड़ा समय टेस्ट करेंगे!
जब विश्व-महाराजन अपने महल में जायेगा तो आप बैठकर देखेंगे! फिर क्या करेंगे? जितना इस समय सदा बाप के साथ खाते-पीते रहते, खेलते, पढ़ाई करते उतना ही वहाँ साथ रहते। तो ब्रह्मा बाप से बहुत प्यार है ना! बापदादा को भी खुशी है कि ब्रह्मा बाप के लाडले ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ है! ब्रह्मा बाप के साथ अनेक जन्म समीप रहेंगे, साथ रहेंगे। 21 जन्म की तो गारंटी है – भिन्न नाम-रूप से ब्रह्मा की आत्मा के साथ सम्बन्ध में रहेंगे। यह दिल में आता है या सुना है इसलिए कहते हो? फीलिंग आती है? जितना समीपता की स्मृति रहती है उतना नैचुरल नशा, निश्चय स्वत: रहेगा।
दिल से सदा यह अनुभव करो कि अनेक बार बाप के साथी बने हैं, अभी भी हैं अनेक बार बनते रहेंगे। बच्चों का अविनाशी पुरुषार्थ देख बापदादा को विशेष खुशी होती है। सदैव माँ-बाप और परिवार का छोटे बच्चों के ऊपर विशेष प्यार होता है और सभी का प्यार ही उन्हों को बढ़ाता है। बापदादा सदा देखते रहते हैं कि कौनसा बच्चा कितना आगे बढ़ रहा है और कितनी सेवा में वृद्धि कर रहा है! तो सदा यही वरदान याद रखना कि सदा निरन्तर और नैचुरल पुरुषार्थ हो। इस वर्ष इसी वरदान को स्मृति में रख स्मृति स्वरूप बनना। हर एक समझे कि यह वरदान पर्सनल मेरा वरदान है! अच्छा!
सभी बिजी रहते हो ना! जो बिजी होता है उसके पास माया नहीं आती क्योंकि आपके पास उसे रिसीव करने का टाइम ही नहीं है। तो इतने बिजी रहते हो या कभी-कभी रिसीव कर लेते हो? ब्राह्मण बने ही क्यों? बिजी रहने के लिए ना। बापदादा हंसी में कहते हैं कि बिजी रहने वाले ही बड़े-ते-बड़े बिजनसमैन हैं। सारे दिन में कितना बड़ा बिजनेस करते हो! जानते हो हिसाब? हिसाब रखना आता है? हर कदमों में पदमों की कमाई है। कदम में पदम – सारे कल्प में ऐसा बिजनेस कोई नहीं कर सकता।
तो जितना जमा होता है उस जमा की खुशी होती है। सबसे ज्यादा खुशी किसको रहती है? नशे से कहो – हम नहीं खुश होंगे तो कौन होगा! यह नशा भी हो किन्तु निर्माण। जैसे अच्छे वृक्ष की निशानी है – फल वाला होगा लेकिन झुका होगा। ऐसा नशा है? तो दोनों साथ-साथ हों। आप सबकी नैचुरल जीवन ही यह हो गई है – किसी को भी देखेंगे तो उसी स्मृति से देखेंगे कि यह एक ही परिवार की आत्मायें हैं इसलिए नुकसान वाला नशा नहीं है। हर आत्मा के प्रति दिल का प्यार स्वत: ही इमर्ज होता है। कभी किसी के प्रति घृणा नहीं आ सकती। कभी कोई गाली देवे तो भी घृणा नहीं आ सकती, क्वेश्चन नहीं उठ सकता। जहाँ क्वेश्चनमार्क होगा वहाँ हलचल जरूर होगी। फुलस्टॉप लगाने वाले फुल पास होते हैं। फुलस्टॉप वही लगा सकते हैं, जिनके पास शक्तियों का फुलस्टॉक हो। अच्छा!
बापदादा ने विदाई के समय सभी बच्चों को होली की मुबारक दी
होली बच्चों के लिए सदा होली है। सदा ही ज्ञान-रंग में रंगे हुए हो, इसलिए खास रंग लगाने की आवश्यकता ही नही पड़ती। ये लोग तो लगाते भी नहीं हैं ना! फॉरेन में नहीं लगाते हो। वह तो हुआ मनोरंजन। बाकी रंग में रंगकर मिक्की माउस नहीं बनना है। सदा होलीहंस हो, होली रहने वाले हो और होली मनाने वाले हो, औरों को भी होली बनाने का रंग डालते हो। सभी बच्चों को होली की मुबारक हो। और साथ-साथ उमंग-उत्साह वाली जीवन में उड़ने की मुबारक हो।
वरदान:- साक्षीपन के अचल आसन पर विराजमान रहने वाले अचल-अडोल, प्रकृतिजीत भवI
प्रकृति चाहे हलचल करे या अपना सुन्दर खेल दिखाये – दोनों में प्रकृतिपति आत्मायें साक्षी होकर खेल देखती हैं। खेल देखने में मजा आता है, घबराते नहीं। जो तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के अचल आसन पर विराजमान रहने का अभ्यास करते हैं, उन्हें प्रकृति की वा व्यक्तियों की कोई भी बातें हिला नहीं सकती। प्रकृति और माया के 5-5 खिलाड़ी अपना खेल कर रहे हैं आप उसे साक्षी होकर देखो तब कहेंगे अचल अडोल, प्रकृतिजीत आत्मा।
स्लोगन:- मन-बुद्धि को एक बाप में एकाग्र करने वाले ही पूज्य आत्मा बनते हैं। – ॐ शान्ति।
*** “ॐ शान्ति”। ***
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गीत:- अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS” https://totalspirituality.com/category/paramatma-love-songs/
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > “Hindi Murli” https://www.youtube.com/watch?v=WQFTEIYkgp8
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-; निवदेन :-
किर्प्या अपना अनुभव जरूर साँझा करे । [नीचे जाये ]
धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।