20-1-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
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“मीठे बच्चे – आधाकल्प से जो 5 विकारों की बीमारियाँ लगी हुई थी वह अब छूटी कि छूटी, इसलिए अपार खुशी में रहना है”
प्रश्नः– तुम बच्चों को अब कौन सी एक हॉबी (शौक) रखना है, किन बातों से तुम्हारा तैलुक नहीं?
उत्तर:- एक बाप से पूरा वर्सा लेने की हॉबी रखनी है। मनुष्यों को तो अनेक प्रकार की हॉबियाँ होती हैं। तुम्हें वह सब छोड़ देनी है। तुम ईश्वर के बच्चे बने हो, बाप के साथ वापिस जाना है इसलिए इस शरीर से तैलुक रखने वाली सब बातों को भूल जाना है। पेट को दो रोटी खिलानी है और बुद्धि नई दुनिया से लगानी है।
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“ओम् शान्ति”
जो भी अनन्य महावीर अडोल बच्चे हैं वह समझते हैं कि अनेक प्रकार के मन्सा तूफान भी आयेंगे और कैलेमिटीज़, बीमारियाँ आदि भी आयेंगी क्योंकि अब पिछाड़ी का पाम्प है। माया खूब झोके लगायेगी। जो पक्के निश्चयबुद्धि हैं उन्हों को तो मालूम पड़ता है कि शरीर के हिसाब-किताब भी चुक्तू होंगे। जब कोई बीमारी छूटने पर होती है तो खुशी होती है। अब हम इस बीमारी से छूटने वाले हैं। तुम जानते हो बाकी थोड़े रोज़ हैं। यह 5 विकारों की बीमारी आधाकल्प की लगी हुई है, जिससे मनुष्य अजामिल जैसे पाप आत्मा बन जाते हैं। ऐसी दुनिया अब बाकी थोड़े रोज़ है। यह बीमारियाँ छूटी कि छूटी। दुनिया तो इन बातों को नहीं जानती वह तो जैसेकि आसुरी बुद्धि हैं। वह तो हाय-हाय करते रहेंगे। तुम तो यह घटनायें देखते रहेंगे। तुम्हारा इन बातों से कोई तैलुक नहीं है। यह कोई नई बात नहीं है, यह तो होना ही है इसमें डरने की कोई बात नहीं। बाकी थोड़ा समय है।
पेट को दो रोटी खिलानी हैं। अभी अपने को हॉबी है – बाबा से वर्सा लेने की। अनेक प्रकार की हॉबी (आदत) मनुष्यों को होती हैं। यहाँ कोई हॉबी नहीं। शरीर के साथ तैलुक रखने वाली बातों को भूल जाना है। हम ईश्वर के बन गये। अब वापिस बाबा के पास अथवा साजन के पास जाना है।
यह साज़न भी बड़ा विचित्र है। विचित्र होने के कारण उनको पूरा याद नहीं कर सकते। यह नई रसम है ना। आत्मा को परमात्मा को याद करना है। ऐसे तो कभी याद किया नहीं है आधाकल्प से, सतयुग में सिर्फ इतना समझते हैं – हम आत्मा हैं बस और कोई ज्ञान नहीं। हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेंगे। यहाँ तो आत्मा को परमात्मा बना दिया है। परमात्मा सर्वव्यापी कह देते हैं।
अभी यह पुरानी दुनिया जैसेकि तुम्हारे लिए है नहीं। बुद्धि नई दुनिया से लगी हुई है। जैसे कोई नया घर बनता है तो बुद्धि पुराने घर से निकल नये में लग जाती है। अभी इतने धर्म वाले कान्फ्रेन्स आदि करते हैं परन्तु एक का भी बुद्धियोग परमपिता परमात्मा से नहीं है।
अभी तुमको सिखलाने वाला बाप मिला है। वही ज्ञानेश्वर और योगेश्वर है। ईश्वर जो अपने साथ योग लगाना सिखलाते हैं, ज्ञानेश्वर माना ईश्वर में ही ज्ञान है। वही ज्ञान और योग सिखा सकते हैं। जिनको पक्का निश्चय है – वह तो समझते हैं इस दुनिया में हम थोड़े समय के लिए हैं। हमको तो अब वापिस जाना है। जैसे नाटक में एक्टर्स को मालूम पड़ जाता है कि बाकी थोड़ा समय है फिर हम घर जायेंगे। घड़ी को देखते रहते हैं।
तुम्हारी है बेहद की घड़ी, तुम जानते हो यह अन्तिम जन्म है। तो तुमको तो बड़ी खुशी होनी चाहिए – हमको यह पुराना शरीर छोड़ विश्व का प्रिन्स और प्रिन्सेज बनना है। हमारे मम्मा बाबा भी जाकर प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे। बच्चों को भी अच्छी दौड़ी लगाकर विजय माला में नजदीक नम्बर में आना चाहिए। बाबा से कोई पूछे तो बाबा बतला सकते हैं – तुम्हारी चलन ऐसी है, जिससे दिखाई पड़ता है कि तुम बरोबर विजय माला में नजदीक आ जायेंगे। खुद को भी मालूम पड़ जाता है। हम कहाँ तक पास होंगे। कोई तो समझते हैं – हम कभी भी पास नहीं होंगे।
भल बाबा का बच्चा हूँ, सब कुछ सरेन्डर किया है, बाबा की गोद में बैठा हूँ, परन्तु धारणा नहीं है तो ऊंच पद मिल न सके। जो गृहस्थ व्यवहार में रहकर सर्विस कर रहे हैं, वह यहाँ रहने वालों से अच्छा पद पा सकते हैं। और देखने में आता है – वह बहुत तीखे जा रहे हैं। सिर्फ साथ में रहने से थोड़ा फायदा होता है। बादल सागर के पास आये, भरे और फिर यह गये बरसने।
मुरली तो सब तरफ जाती रहती है। मुरली सुनकर फिर सुनाते भी हैं। बहुत सर्विस करते हैं, वह अच्छा ऊंच पद पा लेते हैं, मेहनत है। यहाँ मेहनत नहीं होती है तो गिर पड़ते हैं। सारा मदार पुरुषार्थ पर है। अपनी नब्ज आपेही भी देखी जा सकती है। समझ सकते हैं इस पुरुषार्थ से मैं क्या पद पाऊंगा! अब पुरुषार्थ कर ऊंच पद नहीं पाया तो कल्प-कल्पान्तर ऐसे पद होगा। यह है बेहद का ड्रामा। अपने को अब बेहद की बुद्धि मिली है। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानना, बड़ा मजा है। परन्तु माया के तूफान ऐसे हैं जो कुछ न कुछ उल्टा करा लेते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चों को माया जीत लेती है।
आगे चल वृद्धि भी जास्ती होगी। तुम्हारा नाम बाला होगा। अब देहली में रिलीजस कान्फ्रेन्स होती है। कान्फ्रेन्स में समझाने की बड़ी अच्छी बुद्धि चाहिए। बहुत अच्छी लिखा पढ़ी चलनी चाहिए। हेड्स जो होते हैं उन्हों की पहले छोटी कमेटी होती है फिर बड़ी कान्फ्रेन्स बुलाते हैं। पोप आदि का पहले से सब प्रबन्ध किया जाता है। यह भी कान्फ्रेन्स में बहुत ख्यालात करते हैं। तो ऐसी कान्फ्रेन्स में बड़े बुद्धिवान बच्चे चाहिए जो बड़े-बड़े समझदार हैं, उनको जाकर समझाना चाहिए।
पहले तो यह बात निकालो कि हेड कौन है। अब बाबा भी आया हुआ है – इनके पहले तो किसको भी देवी-देवता धर्म का पता ही नहीं था। अभी खुशी होती है कि देवी-देवता धर्म का भी हेड है। जो ज्ञान में परिपक्व हुए हैं वो समझते हैं, अभी हम इन्हों से पूछ सकते हैं कि बताओ – सब धर्मों में ऊंच धर्म कौन सा है? उनको ही हेड बनाना चाहिए। तुम बी.के. हो सबसे हेड, तुम जगत मातायें हो। मर्तबा भी माताओं का है। दिखाते भी हैं – कुमारियों ने बाण मारे हैं – भीष्म पितामह आदि को। इन कुमारियों के आगे सबको आना है। तो यह समझाना पड़ता है कि ऊंच से ऊंच कौन है। फिर समझ जायेंगे कि सर्वव्यापी का ज्ञान झूठा है।
अभी तुम हो युद्ध के मैदान पर। बाप का परिचय देना – तुम्हारे लिए कोई नई बात नहीं है। अच्छे-अच्छे जो बच्चे हैं उन्हों को नशा चढ़ा हुआ है – यह पार्ट तो अनेक बार हमने बजाया है। अभी यह पुरानी दुनिया खत्म हो जानी है। यह पुराना चोला छोड़ना है फिर नयेसिर आकर पार्ट बजायेंगे। अभी तुम्हारी बुद्धि विशाल बनी है। अभी यह पुराना चोला छोड़ना है फिर 84 जन्म नये-नये चोले लेते हैं। यह बुद्धि में सदैव रहना चाहिए – हर एक पार्टधारी को अपने-अपने पार्ट का तो पता होना चाहिए ना। 84 जन्म ले पार्ट बजाया। अब खेल पूरा होता है। यह चोला भी पूरा होता है।
सृष्टि भी तमोप्रधान है, अब हमारी राजधानी स्थापन हो जायेगी फिर विनाश शुरू होगा। हम जाकर विश्व के मालिक बनेंगे – दूसरे जन्म में। यहाँ जो पढ़ते हैं तो उससे इस जन्म में ही मिलता है। तुमको वह फिर याद आया, हम जाकर दैवी जन्म लेंगे फिर क्षत्रिय जन्म लेंगे। यह बुद्धि में टपकना चाहिए, तब खुशी का पारा चढ़ा रहेगा। जो अच्छे पुरुषार्थी होंगे उनकी बुद्धि में ऐसी-ऐसी बातें चलती रहेंगी।
बाबा ने समझाया है – कर्म तो करना ही है। फिर अपने याद के चार्ट को बढ़ाना है। रात का टाइम अच्छा है इसमें कोई थकावट नहीं होती है। सारा समय उस अवस्था में नहीं रह सकते फिर तूफान आते हैं तो थका भी देते हैं। न चाहते भी तूफान आ जाते हैं। वह थकावट करेंगे। बाकी बाप को याद करते रहेंगे। टापिक आदि निकालते रहेंगे तो उसमें माथा और ही भरपूर हो जायेगा। यह बाबा का अनुभव है। तूफान तो बहुत आयेंगे। जितना रूसतम बनेंगे उतना माया जास्ती पछाड़ेगी। यह एक लॉ है।
बाप कहते हैं – माया बड़ी बलवान है क्योंकि उनका राज्य अभी जाना है तो खूब तूफान मचायेगी। उनसे डरना नहीं है। शरीर को कुछ होता है, वह भी कर्मभोग है। इसमें घुटका नहीं खाना है। पिछाड़ी का शरीर है। बाकी थोड़ा समय है, ऐसे करते खुशी में रहते हैं। ड्रामा में इस समय तुम सबसे जास्ती मर्तबे वाले हो क्योंकि परमपिता परमात्मा की गोद ली है। तुम्हारे में भी जो अच्छे पुरुषार्थी हैं उन्हों जैसा सौभाग्यशाली कोई नहीं।
यह ईश्वरीय सुख बहुत ऊंच है। तुम समझा सकते हो भारत ही स्वर्ग था, अविनाशी खण्ड है और कोई धर्म नहीं था। वह तो बाद में आये हैं। सूर्यवंशी राजधानी पास्ट हुई तो फिर चन्द्रवंशी हुए। उनकी हिस्ट्री-जॉग्राफी का किसको पता ही नहीं है। अभी तुम्हें पता पड़ा है। वहाँ थोड़ेही कोई भी जानते हैं कि सतयुग के बाद त्रेता होता है तो दो कला कम होने से वह सुख कम हो जाता है। यह ज्ञान सतयुग में हो तो अन्दर ही घुटका खाते रहें। दिल खायेगी क्या हम फिर उतरेंगे। राजाई ही अच्छी नहीं लगेगी।
यहाँ भी कोई-कोई कहते हैं हम स्वर्ग के मालिक बनेंगे फिर नीचे उतरना पड़ेगा! परन्तु वहाँ फिर भी राजाई मिलने की खुशी है। अभी तुमको बाबा त्रिकालदर्शी बना रहे हैं। लक्ष्मी-नारायण जो स्वर्ग के मालिक हैं, वह भी त्रिकालदर्शी नहीं हैं। संगम पर ही बाप आकर तीसरा नेत्र ज्ञान का दे त्रिकालदर्शी बनाते हैं। देवताओं को यह सब अंलकार क्यों देते हैं? क्योंकि वह फाइनल में हैं। ब्राह्मण तो गिरते और चढ़ते रहते हैं। उन्हों को अलंकार कैसे दे सकते हैं, शोभते ही नहीं। ड्रामा में कितना वन्डरफुल राज़ है। स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण ही हैं। इस ज्ञान से ही तुम देवता बनते हो। इस समय तुम स्वदर्शन चक्रधारी, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी हो। यह तुम्हारा टाइटिल है। यह सब बातें समझने और समझाने की हैं।
पहले-पहले बाप का परिचय देना है। परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है? उनका नाम ही है गॉड फादर। ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि गॉड फादर सर्वव्यापी है। वह तो बाप है ना। हम लिखते ही हैं कि परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है? परमपिता कहते हैं तो जरूर पिता ठहरा ना। बाप सर्वव्यापी कैसे होगा! बाप से तो वर्सा मिलना होता है। बाप तो रचयिता है नई दुनिया का। इन लक्ष्मी-नारायण को नई दुनिया का वर्सा मिला हुआ है। वहाँ देवताओं को तीसरे नेत्र की दरकार नहीं रहती है। तीसरा नेत्र जरूर ब्रह्मा द्वारा ही देंगे। त्रिमूर्ति का अर्थ कितना अच्छा है। समझाने की बड़ी रौनक चाहिए। तो जो अच्छा उस्ताद होगा, उनको समझाने की प्रैक्टिस होगी। दिन-प्रतिदिन किसको समझाना बहुत सहज होता जायेगा।
परमपिता परमात्मा आपका क्या लगता है? कहेंगे बाप लगता है। बाप है नई दुनिया का रचता। सतयुग में देवी-देवताओं का राज्य था। जरूर उन्हों को प्रापर्टी मिली होगी परमपिता परमात्मा से। राजयोग सीख राजाई पाते हैं। हम सब बी.के. हैं। कोई को भी समझाओ – अच्छा तुम कहते हो प्रजापिता ब्रह्मा। तो तुम्हारा पिता हुआ ना। वह (शिव) भी पिता है। तुम भी ब्रह्माकुमार कुमारी हो। हम दादे से वर्सा ले रहे हैं, तुम नहीं ले रहे हो। आकर समझो, पुरुषार्थ करो तो तुमको भी मिल जायेगा।
प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा दो हैं मुख्य। वर्सा मिलता है – लक्ष्मी-नारायण पद। बच्चों को बहुत प्रकार से समझाते हैं। बड़ी-बड़ी कान्फ्रेन्सेज़ में तुम बच्चे जाओ तब नाम बाला हो। हमारी बात ही ज्ञान की है, दूसरे सबकी बातें हैं भक्ति की। ज्ञान से हमको अथॉरिटी है – कोई से भी पूछने की। परन्तु समझने वाले भी कोई झट समझते नहीं हैं, बखेरे बहुत करते हैं। समझ जायें तो सारी आबरू ही चट हो जाए। लिखा हुआ है कुमारियों ने भीष्म पितामह को जीता है। यह होना है। ड्रामा में यह पार्ट है जरूर।
अच्छा !, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विजय माला में आने के लिए मम्मा बाबा के समान सर्विस करनी है। मुरली धारण कर फिर सुनानी है। चलन बड़ी रॉयल रखनी है।
2) अपनी विशाल बुद्धि से इस बेहद ड्रामा को जान अपार खुशी में रहना है। तूफानों से डरना नहीं है। ज्ञान मंथन से बुद्धि को भरपूर रखना है।
वरदान:- विपरीत भावनाओं को समाप्त कर अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सद्भावना सम्पन्न भव !
जीवन में उड़ती कला वा गिरती कला का आधार दो बातें हैं – भावना और भाव। सर्व के प्रति कल्याण की भावना, स्नेह-सहयोग देने की भावना, हिम्मत-उल्लास बढ़ाने की भावना, आत्मिक स्वरूप की भावना वा अपने पन की भावना ही सद्भावना है, ऐसी भावना वाले ही अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हैं। अगर इनके विपरीत भावना है तो व्यक्त भाव अपनी तरफ आकर्षित करता है। किसी भी विघ्न का मूल कारण यह विपरीत भावनायें हैं।
स्लोगन:- सर्वशक्तिमान् बाप जिसके साथ है, माया उसके सामने पेपर टाइगर है। – “ॐ शान्ति”।
*** “ॐ शान्ति” ***
-: ”लवलीन स्थिति का अनुभव करो” :-
जिससे प्यार होता है, उसको जो अच्छा लगता है वही किया जाता है। तो बाप को बच्चों का अपसेट होना अच्छा नहीं लगता, इसलिए कभी भी यह नहीं कहो कि क्या करें, बात ही ऐसी थी इसलिए अपसेट हो गये… अगर बात अपसेट की आती भी है तो आप अपनी स्थिति अपसेट नहीं करना।
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किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे।
धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।
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