2-6-2022- ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली.
“मीठे बच्चे – सत्य बाप तुम्हें सब सत्य सुनाते हैं, ऐसे सच्चे बाप से सदा सच्चे रहना है, अन्दर में कोई भी झूठ कपट नहीं रखनी है”
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प्रश्नः– संगम पर तुम बच्चे किस कान्ट्रास्ट को अच्छी तरह से जानते हो?
उत्तर:- ब्राह्मण क्या करते और शूद्र क्या करते, ज्ञान मार्ग क्या है और भक्ति मार्ग क्या है, उस जिस्मानी सेना के लिए युद्ध का मैदान कौन सा है और हमारा युद्ध का मैदान कौन सा है – यह सब कान्ट्रास्ट तुम बच्चे ही जानते हो। सतयुग अथवा कलियुग में इस कान्ट्रास्ट को कोई नहीं जानते।
गीत:- माता ओ माता………… , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARMATMA LOVE SONGS”.
“ओम् शान्ति”
यह है भारत माताओं की महिमा। जैसे परमपिता परमात्मा शिव की महिमा है। सिर्फ एक माता की महिमा तो चल न सके। एक तो कुछ कर न सके। जरूर सेना चाहिए। सेना बिगर काम कैसे चले। शिवबाबा है एक। वह एक न हो तो मातायें भी न हों। न बच्चे हो, न ब्रह्माकुमार और कुमारियां हों। मैजारिटी माताओं की है, इसलिए माताओं को ही महिमा दी गई है। भारत मातायें जो शिव शक्ति गुप्त सेना हैं और अहिंसक है। कोई भी प्रकार की हिंसा नहीं करती हैं।
हिंसा दो प्रकार की होती है। एक है काम कटारी चलाना, दूसरा है गोली आदि चलाना, क्रोध करना, मारना आदि। इस समय जो भी जिस्मानी सेनायें हैं, वह दोनों हिंसा करती हैं। आजकल बन्दूक आदि चलाना माताओं को भी सिखाते हैं। वह हैं जिस्मानी सेना की मातायें और यह हैं रूहानी सेना की दैवी सम्प्रदाय वाली मातायें। वह कितनी ड्रिल आदि सीखती हैं। तुम शायद कभी मैदान में गई भी नहीं हो। वह बहुत मेहनत करते हैं। काम विकार में भी जाते हैं, ऐसे कोई मुश्किल होंगे जो शादी नहीं करते होंगे। उस मिलेट्री में भी बहुत सीखते रहते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को भी सिखाते हैं। वह भी सेना है, यह भी सेना है।
सेना का तो गीता में अच्छा ही विस्तार लिखा हुआ है। परन्तु प्रैक्टिकल में क्या है – यह तो तुम ही जानते हो कि हम कितने गुप्त हैं। शिव शक्ति सेना क्या करती है? विश्व का मालिक कैसे बनते हैं? इसको कहा जाता है युद्धस्थल। तुम्हारा युद्ध का मैदान भी गुप्त है। मैदान इस माण्डवे को कहा जाता है। आगे मातायें युद्ध के मैदान में नहीं जाती थी। अभी यहाँ से पूरी भेंट होती है। दोनों सेनाओं में मातायें हैं। उनमें मैजारिटी पुरुषों की है, यहाँ मैजारिटी माताओं की है। कान्ट्रास्ट है ना।
ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग का। यह लास्ट कान्ट्रास्ट है। सतयुग में कान्ट्रास्ट की बात नहीं होती। बाबा आकर कान्ट्रास्ट बताते हैं। ब्राह्मण क्या करते और शूद्र क्या करते हैं? दोनों ही यहाँ युद्ध के मैदान में हैं। सतयुग वा कलियुग की बात नहीं है। यह है संगमयुग की बात। तुम पाण्डव संगमयुगी हो। कौरव हैं कलियुगी। उन्होंने कलियुग का टाइम बहुत लम्बा कर दिया है। इस कारण संगम का उन्हों को मालूम ही नहीं है। धीरे-धीरे यह ज्ञान भी तुम्हारे द्वारा समझेंगे। तो एक माता की महिमा नहीं है। यह है शक्ति सेना। ऊंचे ते ऊंच एक भगवान है और तुम हूबहू कल्प पहले वाली सेना हो। इस भारत को दैवी राजस्थान बनाना, यह तुम्हारा ही काम है।
तुम जानते हो पहले हम सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी, वैश्य वंशी बने। परन्तु महिमा सूर्यवंशी की ही करेंगे। हम पुरुषार्थ ही ऐसा कर रहे हैं जो हम पहले सूर्यवंशी अर्थात् स्वर्ग में आवें। सतयुग को स्वर्ग कहा जाता है। त्रेता को वास्तव में स्वर्ग नहीं कहा जाता है। कहते भी हैं फलाना स्वर्ग पधारा। ऐसे तो नहीं कहते फलाना त्रेता में राम-सीता के राज्य में गया। भारतवासी जानते हैं कि बैकुण्ठ में श्रीकृष्ण का राज्य था। परन्तु श्रीकृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। मनुष्यों को सत्य का पता ही नहीं है।
सत्य बताने वाला सतगुरू कोई उनको मिला ही नहीं है, तुमको मिला है। वह सब सच बताते हैं और सच्चा बनाते हैं। बच्चों को कहते हैं, बच्चे तुम कभी भी झूठ कपट नहीं करना। तुम्हारा कुछ भी छिपा नहीं रहेगा, जो जैसा कर्म करते हैं, ऐसा पाते हैं। बाप अच्छे कर्म सिखलाते हैं। ईश्वर के पास कोई का विकर्म छिप नहीं सकता। कर्मभोग भी बहुत कड़ा होता है। भल तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है तो भी सजा तो खानी पड़ेगी क्योंकि अनेक जन्मों का हिसाब-किताब चुक्तू होना है।
बाबा ने समझाया है काशी कलवट खाते हैं तो जब तक प्राण निकलें, तब तक भोगना भोगनी पड़ती है। बहुत कष्ट सहन करना पड़ता है। एक तो कर्मभोग बीमारी आदि का दूसरा फिर विकर्मों की सजा। उस समय कुछ बोल नहीं सकते, चिल्लाते रहते हैं। त्राहि-त्राहि करते हैं। पाप आत्माओं को यहाँ भी सजा वहाँ भी सजा मिलती है। सतयुग में पाप होता ही नहीं। न कोर्ट, न मजिस्ट्रेट होते हैं, न गर्भ जेल की सजा होती है। वहाँ गर्भ महल होता है।
दिखाते भी हैं पीपल के पत्ते पर कृष्ण अंगूठा चूसता हुआ आया। वह गर्भ महल की बात है। सतयुग में बच्चे बड़े आराम से पैदा होते हैं। आदि-मध्य-अन्त सुख ही सुख है। इस दुनिया में आदि मध्य अन्त दु:ख ही दु:ख है। अभी तुम सुख की दुनिया में जाने के लिए पढ़ रहे हो। यह गुप्त सेना वृद्धि को पाती रहेगी। जितना जो बहुतों को रास्ता बतायेंगे। वह ऊंच पद पायेंगे। मेहनत करनी है याद की। बेहद का वर्सा जो मिला था वह अब गँवाया है। अब फिर से पा रहे हैं।
लौकिक बाप पारलौकिक बाप दोनों को याद करते हैं। सतयुग में एक लौकिक को याद करते, पारलौकिक को याद करने की जरूरत ही नहीं। वहाँ सुख ही सुख है। यह ज्ञान भी भारतवासियों के लिए है, और धर्म वालों के लिए नहीं है। परन्तु जो और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं वह निकल आयेंगे। आकर योग सीखेंगे। योग पर समझाने के लिए तुमको निमंत्रण मिलता है तो तैयारी करनी चाहिए। स
मझाना है क्या तुम भारत का प्राचीन योग भूल गये हो? भगवान कहते हैं मनमनाभव। परमपिता परमात्मा कहते हैं निराकारी बच्चों को कि मुझे याद करो तो तुम मेरे पास आयेंगे। तुम आत्मा इन आरगन्स से सुनती हो। मैं आत्मा इन आरगन्स के आधार से सुनाता हूँ। मैं सबका बाप हूँ। मेरी महिमा सब गाते हैं सर्वशक्तिमान् ज्ञान का सागर, सुख का सागर आदि आदि। यह भी टापिक अच्छी है।
शिव परमात्मा की महिमा और कृष्ण की महिमा बताओ। अब जज़ करो कि गीता का भगवान कौन? यह जबरदस्त टापिक है। इस पर तुम्हें समझाना है। बोलो, हम जास्ती समय नहीं लेंगे। एक मिनट दें तो भी ठीक है। भगवानुवाच मनमनाभव, मामेकम् याद करो तो स्वर्ग का वर्सा मिलेगा। यह किसने कहा? निराकार परमात्मा ने ब्रह्मा तन द्वारा ब्राह्मण बच्चों को कहा, इनको ही पाण्डव सेना भी कहते हैं। रूहानी यात्रा पर ले जाने के लिए तुम पण्डे हो। बाबा निबन्ध (येसे) देते हैं।
उनको फिर कैसे रिफाइन कर समझायें, सो बच्चों को ख्याल करना है। बाप को याद करने से ही मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा मिलेगा। हम ब्रह्माकुमार और कुमारियां हैं। वास्तव में तुम भी हो परन्तु तुमने बाप को पहचाना नहीं है। तुम बच्चे अभी परमपिता परमात्मा द्वारा देवता बन रहे हो। भारत में ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। छोटे-छोटे बच्चे बुलन्द आवाज से बड़ी-बड़ी सभा में समझायें तो कितना प्रभाव पड़ेगा। समझेंगे ज्ञान तो इनमें है। भगवान का रास्ता यह बताते हैं।
निराकार परमात्मा ही कहते हैं हे आत्मायें मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। गंगा स्नान, तीर्थ आदि जन्म-जन्मान्तर करते-करते पतित ही बनते आये। भारत की ही चढ़ती कला, उतरती कला है। बाप राजयोग सिखलाकर चढ़ती कला अर्थात् स्वर्ग का मालिक बनाते हैं फिर माया रावण नर्क का मालिक बनाती है तो उतरती कला कहेंगे ना। जन्म बाई जन्म थोड़ी-थोड़ी उतरती कला होती जाती है। ज्ञान है चढ़ती कला। भक्ति है उतरती कला। कहते भी हैं भक्ति के बाद फिर भगवान मिलेगा। तो भगवान ही ज्ञान देंगे ना। वही ज्ञान का सागर है।
ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान अन्धेर विनाश। सतगुरू तो एक परमपिता परमात्मा ही है। महिमा सतगुरू की है न कि गुरू की। गुरू लोग तो ढेर हैं। सतगुरू तो एक है। वही सद्गति दाता पतित-पावन, लिबरेटर है। अभी तुम बच्चे भगवानुवाच सुनते हो। मामेकम् याद करने से तुम आत्मायें, शान्तिधाम चली जायेंगी। वह है शान्तिधाम, वह है सुखधाम और यह है दु:खधाम। क्या इतना भी नहीं समझते! बाप ही आकर पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाते हैं।
तुम जानते हो बेहद का सुख देने वाला बेहद का बाप ही है। बेहद का दु:ख रावण देते हैं। वह है बड़ा दुश्मन। यह भी कोई को पता नहीं है कि रावण राज्य को पतित राज्य क्यों कहा जाता है। अब बाप ने सारा राज़ हमको समझाया है। हर एक में यह 5-5 विकार प्रवेश हैं, इसीलिए 10 शीश वाला रावण बनाते हैं। यह बात विद्वान, पण्डित नहीं जानते हैं। अब बाप ने समझाया है रामराज्य कब से कहाँ तक चलता है। यह बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाते हैं। रावण है बेहद का दुश्मन भारत का। उसने कितनी दुर्गति की है। भारत ही हेविन था जो भूल गये हैं।
अभी तुम बच्चों को बाप की श्रीमत मिलती है बच्चे बाप को याद करो। अल्फ और बे। परमपिता परमात्मा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। रावण फिर नर्क स्थापन करते हैं। तुमको तो स्वर्ग स्थापन करने वाले बाप को याद करना है। भल गृहस्थ व्यवहार में रहो, शादी आदि पर जाओ। जब फुर्सत मिले तो बाप को याद करो। शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते हुए जिसके साथ तुम्हारी सगाई हुई है, उसे याद करना है। जब तक उनके घर जायें तब तक भल तुम सब कर्तव्य करते रहो, लेकिन बुद्धि से बाप को भूलो नहीं।
“अच्छा! मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) सजाओं से छूटने के लिए अपने सब हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं। सच्चे बाप से कुछ भी छिपाना नहीं है। झूठ कपट का त्याग करना है। याद की यात्रा में रहना है।
2) जैसे बाप अपकारियों पर भी उपकार करते हैं ऐसे सब पर उपकार करना है। सबको बाप का सत्य परिचय देना है।
वरदान:- ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाकर सफल करने वाले सफलता मूर्त भव!
जो बच्चे अपने ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाते हैं उनके व्यर्थ संकल्प स्वत: खत्म हो जाते हैं। सफल करना माना बचाना या बढ़ाना। ऐसे नहीं पुराने संस्कार ही यूज करते रहो और ईश्वरीय संस्कारों को बुद्धि के लॉकर में रख दो, जैसे कईयों की आदत होती है अच्छी चीजें वा पैसे बैंक अथवा अलमारियों में रखने की, पुरानी वस्तुओं से प्यार होता है, वही यूज करते रहते। यहाँ ऐसे नहीं करना, यहाँ तो मन्सा से, वाणी से, शक्तिशाली वृत्ति से अपना सब कुछ सफल करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:- “बाप और मैं” यह छत्रछाया साथ है तो कोई भी विघ्न ठहर नहीं सकता। – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > “Hindi Murli”
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