2-10-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
Table of Contents
“मीठे बच्चे – अब इस मृत्युलोक का अन्त है, अमरलोक की स्थापना हो रही है, इसलिए तुम्हें मृत्युलोक वालों को याद नहीं करना है”
प्रश्नः- बाप अपने गरीब बच्चों को कौन सी स्मृति दिलाते हैं?
उत्तर:- बच्चे, जब तुम वाइसलेस (पवित्र) थे तो बहुत सुखी थे। तुम्हारे जैसा साहूकार दूसरा कोई नहीं था, तुम अपार सुखी थे। धरती, आसमान सब तुम्हारे हाथ में था। अब बाप तुम्हें फिर से साहूकार बनाने आये हैं।
गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू… सुनने के लिए गीत पर Click करे I
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों, आत्माओं ने गीत सुना। किसने कहा? आत्माओं के रूहानी बाप ने। रूहानी बाप को रूहानी बच्चों ने कहा – बाबा। उनको ईश्वर भी कहा जाता, पिता भी कहा जाता। कौन सा पिता? परमपिता। बाप हैं दो। एक लौकिक दूसरा पारलौकिक। लौकिक बाप के बच्चे पारलौकिक बाप को पुकारते हैं। हे बाबा, बाबा का नाम? शिव। वह शिव निराकारी पूजा जाता है। उनको कहा जाता है सुप्रीम फादर। लौकिक बाप को सुप्रीम नहीं कहा जाता। ऊंच ते ऊंच सभी आत्माओं का बाप एक ही है। सभी जीव आत्मायें उस बाप को याद करती हैं। आत्मायें यह भूल गई हैं कि हमारा बाप कौन है? पुकारते हैं ओ गॉड फादर, हम नयन हीन को नयन दो तो हम अपने बाप को पहचानें। भक्ति मार्ग में हम अन्धे बन ठोकरें खाते रहते हैं, अब इन ठोकरों से छुड़ाओ। बाप ही कल्प-कल्प आकर भारत को हेविन बनाते हैं।
अब कलियुग है, सतयुग आने वाला है। कलियुग और सतयुग के बीच को संगम कहा जाता है। यह है पुरूषोत्तम संगम। बेहद का बाप आकर जो भ्रष्टाचारी बन गये हैं, उन्हों को श्रेष्ठाचारी, पुरूषोत्तम बनाते हैं। लक्ष्मी-नारायण पुरूषोत्तम थे। लक्ष्मी-नारायण की डिनॉयस्टी का राज्य था। यह बाप आकर स्मृति दिलाते हैं। तुम भारतवासी आज से 5 हजार वर्ष पहले स्वर्गवासी थे, अब नर्कवासी हो। आज से 5 हजार वर्ष पहले भारत हेविन था, भारत की बहुत महिमा थी। सोने हीरे के महल थे। अब कुछ नहीं है। उस समय और कोई धर्म नहीं था, सिर्फ सूर्यवंशी थे। चन्द्रवंशी पीछे आते हैं। बाप समझाते हैं तुम ही सूर्यवंशी थे। अब तक लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर बनाते रहते हैं।
परन्तु लक्ष्मी-नारायण का राज्य कब था? कैसे राज्य पाया? यह किसको पता नहीं, पूजा करते हैं परन्तु जानते नहीं तो ब्लाइन्ड फेथ हुआ ना। शिव की, लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं, बायोग्राफी कोई नहीं जानते। भारतवासी खुद कहते हैं हम पतित हैं। हे पतित-पावन बाबा आओ, आकर हमको दु:खों से, रावण राज्य से लिबरेट करो। बाप आकर सबको लिबरेट करते हैं। बच्चे जानते हैं कि सतयुग में एक ही राज्य था। कांग्रेसी लोग अथवा बापू जी भी यही मांगते थे कि हमको फिर से रामराज्य चाहिए। हम स्वर्गवासी बनने चाहते हैं। अब नर्कवासियों का क्या हाल है, देख रहे हो? इनको कहा जाता है हेल, डेविल वर्ल्ड। यही भारत डीटी वर्ल्ड था। अब डेविल वर्ल्ड बन गया है।
बाबा समझाते हैं तुमने 84 जन्म लिए हैं, न कि 84 लाख। यह तो शास्त्रों में गपोड़े लगा दिये हैं। आज से 5 हजार वर्ष पहले सद्गति मार्ग था। वहाँ न भक्ति, न दु:ख का नामनिशान था, उनको सुखधाम कहा जाता है। बाप समझाते हैं तुम असुल में शान्तिधाम के रहने वाले हो। तुम यहाँ पार्ट बजाने आये हो। पुनर्जन्म 84 होते हैं, न कि 84 लाख। अब बेहद का बाप आया है, तुम बच्चों को बेहद का वर्सा देने। बाप तुम आत्माओं से बात करते हैं। और सतसंगों में मनुष्य, मनुष्य को भक्ति की बातें सुनाते हैं। आधाकल्प जब भारत स्वर्ग था, एक भी पतित नहीं था। अब एक भी पावन नहीं है। यह है पतित दुनिया।
बाप समझाते हैं – गीता में कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है। कृष्ण भगवान नहीं है, न कि उसने गीता सुनाई है। यह लोग अपने धर्म शास्त्र को भी नहीं जानते। अपने धर्म को ही भूल गये हैं। धर्म मुख्य हैं 4, पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म सूर्यवंशी, पीछे चन्द्रवंशी, दोनों को मिलाकर कहते हैं देवी-देवता धर्म। वहाँ दु:ख का नाम नहीं था। 21जन्म तुम सुखधाम में थे। फिर रावणराज्य, भक्तिमार्ग शुरू होता है। शिवबाबा कब आते हैं? जब रात होती है। भारतवासी घोर अन्धियारे में आ जाते हैं तब बाबा आते हैं। गुड़ियों की पूजा करते रहते हैं। एक की भी बायोग्राफी नहीं जानते। भक्ति मार्ग में अनेक धक्के खाते हैं, तीर्थो पर जाओ फेरा लगाओ। कोई प्राप्ति नहीं है।
बाप कहते हैं – मैं आकर तुमको ब्रह्मा द्वारा यथार्थ ज्ञान सुनाता हूँ। पुकारते हैं कि हमको सुखधाम और शान्तिधाम की राह बताओ। बाप कहते हैं – आज से 5 हजार वर्ष पहले हमने तुम्हें बहुत साहूकार बनाया था। इतना धन दिया फिर कहाँ गँवाया? तुम कितने साहूकार थे। भारत कौन कहलावे। भारत ही सबसे ऊंचे से ऊंचा खण्ड था। वास्तव में सबका यह तीर्थ है क्योंकि पतित-पावन बाप का बर्थ प्लेस है। जो भी धर्म वाले हैं सभी की बाप आकर सद्गति करते हैं। अब रावण का राज्य सारी सृष्टि में है सिर्फ लंका में नहीं। जब सूर्यवंशी राज्य था तब यह विकार नहीं थे। भारत वाइसलेस था, अब विशश है। सब नर्कवासी हैं। सतयुग में जो दैवी सम्प्रदाय थे, वे फिर 84 जन्म भोग आसुरी सम्प्रदाय बने हैं फिर दैवी सम्प्रदाय बनने हैं। भारत बहुत साहूकार था। अब गरीब बना है इसलिए भीख मांग रहे हैं। बाप तुम गरीब बच्चों को स्मृति दिलाते हैं बच्चे, तुम कितने सुखी थे। तुम्हारे जैसा सुख किसको मिल नहीं सकता। धरती, आसमान सब तुम्हारे हाथों में था।
शास्त्रों में कल्प की आयु लम्बी बताकर सभी को कुम्भकरण की आसुरी नींद में सुला दिया है। यह भारत शिवबाबा का स्थापन किया हुआ शिवालय था। वहाँ पवित्रता थी, उस नई दुनिया में देवी-देवता राज्य करते थे। मनुष्य तो यह भी नहीं जानते कि राधे कृष्ण का आपस में क्या सम्बन्ध है। दोनों अलग-अलग राजधानी के थे फिर स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनें। यह ज्ञान कोई मनुष्य मात्र में नहीं है। स्प्रीचुअल नॉलेज सिर्फ एक बाप ही देते हैं। अब बाप कहते हैं – आत्म-अभिमानी बनो। मुझ अपने परमपिता को याद करो। याद से तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। तुम यहाँ आते हो मनुष्य से देवता अथवा पतित से पावन बनने। अब यह है रावण राज्य। भक्ति में रावण राज्य शुरू होता है। सब भक्ति करने वाले रावण के पंजे में हैं। सारी दुनिया 5 विकारों रूपी रावण की कैद में है, शोक वाटिका में है। बाप आकर सबको लिबरेट कर गाइड बन साथ ले जाते हैं। उसके लिए यह महाभारत लड़ाई है, जो 5 हजार वर्ष पहले लगी थी, अब बाप फिर से स्वर्ग बना रहे हैं। ऐसे नहीं जिनको धन बहुत है, वह स्वर्ग में हैं। अभी है ही नर्क। पतित-पावन बाप को कहा जाता है, न कि नदी को। यह सब है भक्ति मार्ग। यह बातें बाबा ही आकर समझाते हैं।
अब यह तो जानते हो एक है लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक, तीसरा है अलौकिक। अब पारलौकिक बाप शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म स्थापन करते हैं। ब्राह्मणों को देवता बनाने के लिए राजयोग सिखलाते हैं। आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है। आत्मा ही कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। बाप कहते हैं – अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो तुम पावन बनेंगे। कोई भी देहधारी को याद नहीं करो। अब मृत्युलोक का अन्त है, अमरलोक की स्थापना हो रही है। बाकी सब अनेक धर्म खलास हो जायेंगे। सतयुग में एक ही देवी-देवता धर्म था फिर चन्द्रवंशी राम सीता त्रेता में थे। तुम बच्चों को सारे चक्र की याद दिलाते हैं। शान्तिधाम और सुखधाम की स्थापना बाप ही करते हैं। मनुष्य, मनुष्य को सद्गति दे नहीं सकते। वह सब है भक्ति मार्ग के गुरू।
अभी तुम हो ईश्वरीय सन्तान। बाबा से राज्य भाग्य ले रहे हो। यह राजधानी स्थापन हो रही है। प्रजा तो बहुत बननी है। कोटों में कोई राजा बनते हैं। सतयुग को कहा जाता है फूलों का बगीचा। अब है कांटों का जंगल। रावण राज्य बदल रहा है। विनाश होना है। यह ज्ञान अब तुमको मिल रहा है। लक्ष्मी-नारायण को यह ज्ञान नहीं रहता। प्राय: लोप हो जाता है। भक्ति मार्ग में बाप को कोई भी यथार्थ नहीं जानते। बाप है रचयिता। ब्रह्मा विष्णु शंकर भी रचना है। सर्वव्यापी कहने से वर्से का हक खत्म हो जाता है। बाबा आकर सबको वर्सा देते हैं। 84 जन्म वही लेते हैं जो पहले-पहले सतयुग में आते हैं। क्रिश्चियन लोग करके 40 जन्म लेते होंगे।
एक भगवान को ढूँढने के लिए कितने धक्के खाते हैं। अब तुम धक्के नही खायेंगे। एक बाप को याद करो तो तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। यह है यात्रा। यह है गॉड फादरली युनिवर्सिटी। तुम्हारी आत्मा पढ़ती है। साधू-सन्त कह देते – आत्मा निर्लेप है। लेकिन आत्मा ही कर्मो अनुसार दूसरा जन्म लेती है। आत्मा ही अच्छा वा बुरा कर्म करती है। इस समय (कलियुग में) तुम्हारे कर्म विकर्म होते हैं, सतयुग में तुम्हारे कर्म, अकर्म होते हैं। वहाँ विकर्म होता नहीं। वह है पुण्य आत्माओं की दुनिया।
अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक बाप से बेहद का वर्सा लेना है। श्रेष्ठ कर्म करने हैं। जब बाप मिला है तो किसी भी प्रकार के धक्के नहीं खाने हैं।
2) बाप ने जो स्मृति दिलाई है, उसे स्मृति में रख अपार खुशी में रहना है। कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है।
वरदान:- निमित्तपन की स्मृति द्वारा अपने हर संकल्प पर अटेन्शन रखने वाले निवारण स्वरूप भव
निमित्त बनी हुई आत्माओं पर सभी की नज़र होती है इसलिए निमित्त बनने वालों को विशेष अपने हर संकल्प पर अटेन्शन रखना पड़े। अगर निमित्त बने हुए बच्चे भी कोई कारण सुनाते हैं तो उनको फालो करने वाले भी अनेक कारण सुना देते हैं। अगर निमित्त बनने वालों में कोई कमी है तो वह छिप नहीं सकती इसलिए विशेष अपने संकल्प, वाणी और कर्म पर अटेन्शन दे निवारण स्वरूप बनो।
स्लोगन:- ज्ञानी तू आत्मा वह है जिसमें अपने गुण वा विशेषताओं का भी अभिमान न हो।
*** Om Shanti ***