18-12-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

“मीठे बच्चे – श्रीमत कहती है पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान दो, पढ़ेंगे-लिखेंगे तो बनेंगे नवाब अर्थात् दिलतख्तनशीन बन जायेंगे”

प्रश्नः– सर्विस की वृद्धि न होने का कारण क्या है?

उत्तर:- अगर सर्विस करने वाले बच्चों में देह-अभिमान आ जाता है, थोड़ी भी सर्विस की और नशा चढ़ गया कि मैंने फलाने को ज्ञान दिया तो सर्विस वृद्धि को नहीं पा सकेगी। बच्चे यह भूल जाते हैं कि इनको बाबा ने टच किया है। देह-अभिमान ही सर्विस को बढ़ने नहीं देता इसलिए बाबा बार-बार युक्ति बताते हैं कि देही-अभिमानी भव।

गीत:- हमें उन राहों पर चलना है , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARMATMA LOVE SONGS

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > Hindi Murli” 

त्रिमूर्ति चित्र , Three Deity Picture
त्रिमूर्ति चित्र , Three Deity Picture

“ओम् शान्ति”

एक है सदैव परमधाम में रहने वाला ऊंचे ते ऊंचा बाप। उस शिवबाबा के नीचे विष्णु का चित्र है। अभी तुम जानते हो कि हमको शिवबाबा विष्णुपुरी का मालिक बना रहे हैं। विष्णु अर्थात् लक्ष्मी-नारायण। इन दो का कम्बाइन्ड रूप है विष्णु। यह हमारा एम आब्जेक्ट है, किसको भी समझाने के लिए। बुद्धि में रहना चाहिए कि बाबा है निराकार फिर हमको कैसे पढ़ाये इसलिए ब्रह्मा का चित्र दिखाया है। बाबा हमको ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी का मालिक बना रहे हैं। तुमको यह सरटेन भी है। फिर भूल जाते हो कि हम स्टूडेन्ट हैं, हमको शिवबाबा पढ़ा रहे हैं। भारत को ही विष्णुपुरी बना रहे हैं। अगर यह बुद्धि में रहे तो कितनी खुशी होनी चाहिए।

यह त्रिमूर्ति का चित्र कितना नामीग्रामी है। त्रिमूर्ति में वो लोग ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को दिखाते हैं परन्तु शिव को भूल गये हैं। कितनी यह भारी भूल है। अभी तुम बच्चे जानते हो कि शिवबाबा हमको विष्णुपुरी का मालिक बना रहे हैं और आये हुए हैं। इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म के भी अन्त में आकर प्रवेश करते हैं। बाबा आते ही भारत में हैं और भारत को ही विश्व का मालिक बनाते हैं।

विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel
विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel

तुम बच्चों को यह निश्चय है कि हर 5 हजार वर्ष के बाद संगमयुग में ही आते हैं। तुम बच्चे यहाँ आये हो राजाई लेने के लिए अर्थात् स्वर्ग का मालिक बनने के लिए। यह तो तुम बच्चों को मालूम है कि भारत में सिर्फ एक ही धर्म था। उस समय और कोई धर्म नहीं था तो कितना नशा चढ़ना चाहिए और दैवीगुणों की धारणा भी करनी चाहिए। अगर बाप देखते हैं बच्चे दैवीगुण धारण नहीं करते हैं तो कहेंगे ना – यह कोई कमबख्त है। पढ़ते नहीं तो मानो अपने पैर पर कुल्हाड़ा मारते हैं। बाप कितना सहज समझाते हैं। तुम जानते हो कि बाबा राजयोग सिखला रहे हैं। तो बच्चों को यहाँ ही दैवीगुण धारण करने हैं। सतयुग में चलकर तो नहीं करेंगे ना। जो धारणा करते और कराते हैं उनको खुशी भी बहुत रहती है।

बाप है ही ऊंच ते ऊंच, मूलवतन में रहने वाला। सूक्ष्मवतन वासियों को देवता कहा जाता है और यहाँ हैं मनुष्य। परमात्मा है सभी आत्माओं का बाप अथवा स्वर्ग का रचयिता। यह ज्ञान भी अभी तुमको मिलता है। तुम जानते हो कि हम भी पहले पत्थरबुद्धि थे। बाप द्वारा हम भी पावन बन रहे हैं। पहले-पहले भारत में गॉड गॉडेज का राज्य था। उसको भगवती श्री लक्ष्मी, भगवान श्री नारायण का राज्य कहा जाता है। अब वह कहाँ गये? उन्हों को ऐसा किसने बनाया? यह न कोई बता सकेंगे, न यह बातें किसको ख्याल में ही आयेंगी। तुम जानते हो इस साकार सृष्टि में ही उन्हों का राज्य था। अभी भी वह भिन्न नाम रूप से यहाँ हैं। यह सब बातें जानने से बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए कि बाबा हमको पढ़ाकर ऐसा बना रहे हैं।

Satyug Prince, सतयुगी राजकुमार
Satyug Prince, सतयुगी राजकुमार

नम्बरवन हीरो-हीरोइन यह हैं। सूक्ष्मवतन में भी तुम इन्हों को देखते हो। इन्हों को भी सरटेन है कि यह बन रहे हैं। नॉलेजफुल श्री श्री इन्हों को पढ़ाकर ऐसा श्री लक्ष्मी-नारायण बना रहे हैं। तुम इनके बच्चे भी गॉड गॉडेज बनेंगे। गॉड द्वारा तुम यह गॉड गॉडेज बन रहे हो, प्रजा भी बन रहे हो परन्तु उनको गॉड गॉडेज नहीं कह सकते, इसलिए उनको देवी-देवता कहा जाता है। फिर भी मुख्य लक्ष्मी-नारायण को गॉड गॉडेज कह देते हैं। इन्होंने सबसे ऊंच पुरुषार्थ कर ये पद पाया है। सभी को तो भगवान भगवती नहीं कहेंगे ना। नम्बरवन की ही महिमा गाई जाती है सर्वगुण सम्पन्न… और कोई धर्म वाले की यह महिमा नहीं है। कोई ऐसे भी नहीं कह सकते – यह तो बना-बनाया ड्रामा है। पहले है ही दैवी घराना फिर दूसरे धर्म वाले आते हैं। तुम बच्चों को भी पुरूषार्थ कराया जाता है। जिन्हों का पार्ट है वही स्वर्ग में आयेंगे, बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे। इसमें कोई का प्रश्न नहीं उठ सकता।

अब मांगते भी हैं हमको शान्ति मिले। स्वर्ग को तो वह जानते ही नहीं। तो बाबा उन्हों की आश पूर्ण कर देते हैं। और भारतवासी स्वर्ग को याद करते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि स्वर्ग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अब तुम्हारी बुद्धि में है कि हमको भगवान पढ़ा रहे हैं – भगवान भगवती बनाने के लिए। फॉरेन वाले तो शान्तिधाम को स्वर्ग समझते हैं। समझते हैं गॉड फादर वहाँ रहते हैं। तुम जानते हो हेविन अलग है, शान्तिधाम अलग है। तुम ही हेविन में आते हो। पहले शान्तिधाम फिर सुखधाम फिर दु:खधाम फिर शान्तिधाम में जाना है… यह खेल बना हुआ है।

विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel
विश्व सृष्टि चक्र , World Drama Wheel

सब आत्मायें सतयुग में आयें, यह हो नहीं सकता। यह वैरायटी धर्मों वाला सृष्टि चक्र है। पहले सूर्यवंशी फिर दूसरे धर्म आते हैं। इस ड्रामा में फ़र्क नहीं पड़ सकता। वही हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट होती है परन्तु कैसे रिपीट होती है, यह आकर जानना चाहिए। सतयुग में तुम्हारा राज्य था, अब फिर सतयुग में जाने के लिए तुम्हारा कल्प पहले वाला पुरुषार्थ चल रहा है।

तुम बच्चे हर एक धर्म के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। क्रिश्चियन धर्म कब स्थापन होता है, कैसे होता है, कैसे वृद्धि को पाता है। यह झाड़ में साफ दिखाया हुआ है कि नये-नये जो आते हैं उनकी कैसे टाल टालियां निकलती हैं, उनके कितने पत्ते होंगे? बहुत थोड़े। प्रजापिता ब्रह्मा को ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। पहले है देवी-देवता धर्म फिर और बिरादरियां निकलती हैं। अब अन्त में झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाता है। मनुष्यों को इस सृष्टि रूपी झाड़ का पता ही नहीं। तुम जानते हो यह अनादि अविनाशी ड्रामा है, इसमें एक सेकेण्ड का भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। इस झाड़ की आयु भी एक्यूरेट है। यह मनुष्य सृष्टि रूपी बेहद का नाटक है। यहाँ हम आते हैं पार्ट बजाने। यह ज्ञान बाबा ही समझाते हैं।

यह शास्त्र सब भक्ति मार्ग के हैं, आधाकल्प भक्ति मार्ग चलता है। उसमें एक सेकण्ड भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। इस ज्ञान की प्रालब्ध भी एक्यूरेट आधाकल्प चलती है, जिसने जो पार्ट बजाया है वह बजायेंगे। अब तुम्हारी बुद्धि बेहद की हो गई है। औरों की बुद्धि को भी बेहद में लाना है तब ही तुम बेहद विश्व के मालिक बनते हो। निराकारी दुनिया में है निराकार बाप और निराकारी आत्मायें सब बच्चे। सूक्ष्मवतन का पार्ट तो बहुत थोड़े समय का है।

अब इस साकारी दुनिया में सबसे नम्बरवन सुप्रीम कौन है? लक्ष्मी-नारायण। सुप्रीम बाप ही सुप्रीम धर्म की स्थापना करते हैं। और कोई भी धर्म को तुम सुप्रीम नहीं कह सकते हो। अभी तो सभी तमोप्रधान हैं। एक बाप ही है जो एवर प्योर है, एवर सुप्रीम है। बाकी सबको सतो रजो तमो में आना है। अब तो तमोप्रधान दुनिया का विनाश होना ही है। इन आंखों से जो कुछ देखते हो – सब विनाश होने वाला है। जब नया मकान बनता है तो पुराना खत्म करना ही पड़ता है। तुम बच्चे नई दुनिया का साक्षात्कार भी करते हो। अब पुरानी से दिल हटानी है। गीत है ना – जाग सजनियां जाग, बाप तुमको अर्थ समझाते हैं कि बच्चे अब नई दुनिया स्थापन हो रही है। तो अब तुम्हारी बुद्धि में स्मृति आ गई है कि हमारा इस ड्रामा में अविनाशी पार्ट है, हमको फिर भी आना है। आदि से अन्त तक तुम्हारा ही पार्ट है। आधाकल्प के बाद और टाल टालियां भी निकलती ही रहती हैं। जब टालियां निकलना बन्द हो जायेंगी तब समझना कि वहाँ से आना बंद है। फिर यहाँ से जाना शुरू हो जायेगा।

फिर यह सब इतनी आत्मायें कहाँ जायेंगी। यह तुम बच्चे जानते हो, सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य होंगे। एक बिरादरी की फिर कितनी वृद्धि होती है। कितना बड़ा झाड़ होता है। अभी सभी तमोप्रधान मनुष्यों का नाटक है अथवा कांटों का जंगल है। यह मनुष्य सृष्टि झाड़ एकदम विनाश नहीं हो जाता है। भल कितने भी तूफान आयें परन्तु एकदम विनाश नहीं होता। परिवर्तन जरूर होता है।

अब तुम बच्चे कांटों से फूल बन रहे हो। यह बात भी जब धन्धेधोरी में जाते हैं तो भूल जाते हैं, जिनको धारणा होती है वह सारा दिन विचार सागर मंथन करते रहते हैं कि कैसे हम सर्विस करें अथवा कांटों को फूल बनायें। बाप सबसे बड़ा धर्मात्मा है, जो साधुओं का भी उद्धार करने वाला है। बाप जब तक साकार में न आये तो मनुष्यों का उद्धार कैसे हो। बाकी प्रेरणा से थोड़ेही होगा। तो बाबा आकर सारा ज्ञान देकर तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तो तुम बच्चों को कितना नशा रहना चाहिए। बाबा बहुत युक्तियां बताते हैं कि ऐसी-ऐसी सर्विस करेंगे तो बहुतों का कल्याण होगा। बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे और चक्र को याद करो तो चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। औरों को भी बनाते जाओ। जैसे पढ़ाई से मनुष्य बैरिस्टर बन जाते हैं, तुम मनुष्य से देवता बन जाते हो। बाबा कहते हैं – अगर आप समान नहीं बनाते तो गोया सर्विसएबुल नहीं बने हो। सर्विस किसकी छिपी नहीं रह सकती। तुम्हारा भी अन्त में प्रभाव निकलेगा।

अभी तो बच्चों की अवस्था नीचे ऊपर होती रहती है। कुछ परीक्षायें आती हैं तो बच्चे मुरझा जाते हैं। तुमको भी फील होता होगा कि आज हमारी अवस्था याद में टिकती नहीं है। दशायें तो बदलती रहती हैं ना। ब्रहस्पति की दशा उतरती है तो एकदम नीचे गिरा देती है। बीमारी भी कर्मभोग है जो सर्विस नहीं कर सकते। अभुल तो अन्त में ही बनेंगे परन्तु सदैव यह नशा रहना चाहिए कि हमको परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं भगवान-भगवती बनाने के लिए। अभी अगर फेल हुए तो कल्प-कल्पान्तर तुम्हारा ऐसा पार्ट हो जायेगा। बाबा भी साक्षी होकर देख रहे हैं और अपने को भी देखना है कि हम क्या सर्विस करते हैं। कभी-कभी माया बच्चों को थप्पड़ लगा देती है। श्रीमत पर न चलने के कारण माया मार-मार कर मुर्दा बना देती है। सर्विस भी नहीं कर पाते हैं।

नहीं तो देख भी रहे हो कि मातायें कितनी सर्विस करती हैं। कोई-कोई तो देह-अभिमान में आकर कहते हैं – हमने इनको ज्ञान दिया, यह भूल जाते हैं कि बाबा ने इनको टच किया है – बच्चों का नाम बाला करने के लिए। देह-अभिमान होने के कारण जो सर्विस होनी चाहिए वह नहीं हो पाती है। फिर कहते हैं – बाबा भूल हो गई।

बाबा ने समझाया है बड़े आदमियों को बहुत युक्ति से समझाना है। उन्हों से ही आवाज निकलेगा और वाह-वाह होगी परन्तु बच्चों को अजुन योग की पावर भरनी है। अब बाबा आकर पुरुषार्थ करवाते हैं फिर भी तकदीर में नहीं है तो श्रीमत पर चलते ही नहीं हैं। पढ़ेंगे, लिखेंगे तो बनेंगे नवाब और बाबा की दिल पर चढ़ेंगे। देखो, सब बच्चे बाबा को बुलाते हैं क्यों? वह बाप भी बच्चों की दिल पर चढ़ा हुआ है। बाप ने सर्विस कर बच्चों को कितना गुल-गुल बना दिया है। सर्विस करना तो फ़र्ज है। मैगजीन में लिख सकते हो फलाना मरा नथिंगन्यु। इस ड्रामा के राज़ को ब्राह्मण समझ सकते हैं। शूद्र तो कुछ भी नहीं समझ सकते हैं। उनको तो संशय आता रहेगा। मैगजीन से भी तुम समझा सकते हो। वह लेंगे, पढ़ेंगे, अगर नहीं समझ में आया तो फेंक देंगे।

अगर किसकी तकदीर में नहीं है तो तदबीर क्या करेंगे। फिर जरा भी धारणा नहीं कर पाते हैं। तो दिल भी नहीं होगी कि ऐसे को यह मन्त्र देंवे, इसको कहा जाता है महामन्त्र, मनमनाभव। अच्छा अगर खुद नहीं याद करते हो तो दूसरों का तो कल्याण करो। घर-घर में यह पैगाम दो कि बाप कहते हैं मुझे याद करो। पतित-पावन मैं ही हूँ। सर्विस के लिए माथा फिरना चाहिए। 

अच्छा!, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपनी बुद्धि हद से निकाल बेहद में रखनी है। दूसरों को भी बेहद में लाना है। इस पुरानी दुनिया से दिल हटा देना है।

2) सदा खुशी में रहने के लिए धारणा करनी और करानी है। हमको भगवान पढ़ाते हैं – यह नशा रखना है।

वरदान:-     तपस्या द्वारा अपने विकर्मो वा तमोगुण के संस्कारों को भस्म करने वाले तपस्वीमूर्त भव

जैसे अभी ईश्वरीय पालना का कर्तव्य चल रहा है ऐसे लास्ट में तपस्या द्वारा अपने विकर्मो और हर आत्मा के तमोगुणी संस्कार वा प्रकृति के तमोगुण को भस्म करने का कर्तव्य चलना है। इसके लिए सदा एकरस स्थिति के आसन पर स्थित हो अपने तपस्वी रूप को प्रत्यक्ष करो। आपकी हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्म-अभिमानी बनने की तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे।

स्लोगन:-    संस्कारों की टक्कर से बचने के लिए बालक और मालिकपन का बैलेन्स रखो।

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आप से निवदेन है :- 

1. किर्प्या अपना अनुभव जरूर साँझा करे ताकि हम और बेहतर सेवा कर सकें।

धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।

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