18-11-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
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“मीठे बच्चे – यह मंजिल बहुत भारी है इसलिए अपना समय बरबाद न कर सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करो”
प्रश्नः– बच्चों की चढ़ती कला न होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:- चलते-चलते थोड़ा भी अहंकार आया, अपने को होशियार समझा, मुरली मिस की, ब्रह्मा बाप की अवज्ञा की तो कभी भी चढ़ती कला नहीं हो सकती। साकार की दिल से उतरा माना निराकार की दिल से भी उतरा।
गीत:- लाख जमाने वाले….. ,मधुबन मुरली:- Hindi Murli I सुनने व देख़ने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे I
“ओम् शान्ति”
बच्चों ने गीत सुना। बच्चे कहते हैं कोई भी हमको संशयबुद्धि बनाने के लिए कुछ भी करे हम संशय-बुद्धि नहीं बनेंगे। भल कितनी भी उल्टी सुल्टी बातें सुनायेंगे तो भी हम संशयबुद्धि नहीं बनेंगे। श्रीमत पर चलते रहेंगे। बाप रोज़-रोज़ भिन्न-भिन्न प्वाइंटस समझाते रहते हैं। सतयुग में 9 लाख थे। तो जरूर इतने बाकी सब मनुष्य विनाश होंगे। तो बुद्धिवान जो होगा वह इशारे से समझ जायेगा कि बरोबर इस लड़ाई से ही अनेक धर्म विनाश हो एक देवी-देवता धर्म की स्थापना होनी है। जो लायक बनेंगे वही मनुष्य से देवता बनेंगे। बाप के बिना कोई मनुष्य से देवता बना नहीं सकता। तो बच्चों को याद रहना चाहिए कि अब हमको घर जाना है, परन्तु माया घड़ी-घड़ी भुला देती है। यहाँ से अब बाबा को याद कर सतोप्रधान बनना है। कोई भी समय लड़ाई बड़ी हो जाए, नियम थोड़ेही है। कहते भी हैं शायद बड़ी लड़ाई हो भी जाये, जो बन्द भी न हो सके। सभी एक दो में लड़ने लग पड़ेंगे। तो विनाश होने के पहले क्यों न हम याद में रह तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करें।
याद की यात्रा में ही माया विघ्न डालती है इसलिए बाबा रोज़-रोज़ कहते हैं – चार्ट लिखो। मुश्किल कोई 2-4 लिखते हैं। बाकी तो अपने धन्धे-धोरी में ही सारा दिन पड़े हैं। अनेक प्रकार के विघ्नों में पड़े रहते हैं। बच्चों को यह तो मालूम है कि हमको सतोप्रधान जरूर बनना है। तो कहाँ भी रहते पुरुषार्थ करना है। मनुष्यों को समझाने के लिए चित्र आदि भी बनाते रहते हैं क्योंकि इस समय मनुष्य हैं 100 परसेन्ट तमोप्रधान। पहले जब मुक्तिधाम से आते हैं तो सतोप्रधान होते हैं। फिर सतो रजो तमो में आते-आते इस समय सब तमोप्रधान बन गये हैं। सबको बाबा का पैगाम देना है तो बाप को याद करने से तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। विनाश भी सामने खड़ा है।
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सतयुग में एक ही धर्म था तो बाकी सब निर्वाणधाम में थे। बच्चों को चित्रों पर ध्यान देना चाहिए। बड़े चित्र होने से समझ अच्छी तरह सकेंगे। सबको बाबा का सन्देश देना है। मन्मनाभव का अक्षर मुख्य है अथवा अल्फ और बे इस समझाने में मेहनत कितनी करनी पड़ती है। समझाने वाले भी नम्बरवार हैं, बेहद बाप के साथ लव होना चाहिए। बुद्धि में यह रहना चाहिए कि हम बाबा की सर्विस कर रहे हैं। खुदाई खिदमतगार बनना है। वह लोग अक्षर भल कहते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। अब बाबा आया है – बच्चों की खिदमत करने। कितना उत्तम देवी-देवता बनाते हैं। आज हम कितने कंगाल बन पड़े हैं। सतयुग में कितने सर्वगुण सम्पन्न बन जायेंगे, यहाँ एक दो में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। यह किसको पता नहीं कि विनाश होना है। समझते हैं शान्ति हो जायेगी, बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में पड़े हैं। अब उन्हों को समझाने वाला चाहिए। विलायत में भी तो यह नॉलेज दे सकते हो।
एक ही बात सभा में बैठ समझाओ कि महाभारी लड़ाई तो नामीग्रामी है, इससे पुरानी दुनिया का विनाश होना है। अभी गॉड़ फादर भी यहाँ है, जरूर वही ब्रह्मा द्वारा स्थापना कर रहे हैं स्वर्ग की। शंकर द्वारा विनाश भी होना है कलियुग का, क्योंकि अभी है संगम। नेचुरल कैलेमिटीज़ भी होनी है। थर्ड वर्ल्ड वार दी लास्ट वार कहते हैं। फाइनल विनाश भी जरूर होना है। अब सबको यह कहना पड़े कि बेहद के बाप को याद करो तो मुक्तिधाम में चले जायेंगे। भल अपने धर्म में रहें तो भी बाबा को याद करने से अपने धर्म में अच्छा पद पा सकते हैं।
तुम जानते हो – बेहद का बाप हमको प्रजापिता ब्रह्मा के तन द्वारा नॉलेज दे रहे हैं फिर औरों को भी समझाना पड़े। चैरिटी बिगेन्स एट होम। आस-पास सबको सन्देश देना है। और धर्म वालों को भी बाबा का परिचय देना है। बाहर वालों को, राजाओं को नॉलेज देनी है। उसके लिए तैयारी करनी चाहिए। बाबा कहते हैं यह मुख्य चित्र जो हैं – त्रिमूर्ति, गोला, झाड़ भी कपड़े पर छप जाएं तो बाहर भी ले जा सकते हो। बड़ा साइज़ नहीं छपे तो दो टुकड़े कर दो। सारा ज्ञान इस त्रिमूर्ति, झाड़ गोले में हैं। सीढ़ी का भी ज्ञान गोले में आ जाता है। सीढ़ी डिटेल में बनाई है तो 84 जन्म कैसे लिए जाते हैं। चक्र में सब धर्म वालों का आ जाता है। सीढ़ी में दिखाते हैं कैसे सतोप्रधान फिर सतो रजो तमो में आते हैं, नीचे उतरते हैं।
अब बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो। बाबा का सारा दिन ख्याल चलता रहता है। तो कोई नया बड़ा मकान बनायें, उसमें दीवार इतनी बड़ी हो जो उस पर 6 गुणा 9 फुट साइज़ के चित्र बनाये जायें। 12 फुट की दीवार चाहिए। इस समय भाषायें भी बहुत हैं। सब धर्म वालों को समझाना पड़े तो कितनी भाषाओं में बनाना पड़ेगा। इतनी विशाल बुद्धि से युक्ति रचनी चाहिए। सर्विस का शौक रखना चाहिए। खर्चा तो करना ही है। बाकी तुमको भीख माँगने की दरकार नहीं है। आपेही हुण्डी भर जायेगी। ड्रामा में नूँध है। बच्चों की बुद्धि चलनी चाहिए। परन्तु बच्चे कुछ थोड़ा ही करते हैं तो नशा चढ़ जाता है कि हम बहुत होशियार हैं। बाबा कहते हैं – रूपये से 4 आना भी नहीं सीखे हो। कोई दो आना, कोई एक आना, कोई एक पैसे जितना भी मुश्किल सीखे हैं। कुछ भी समझते नहीं। मुरली पढ़ने का भी शौक नहीं।
साहूकार प्रजा, गरीब प्रजा सब कुछ यहाँ ही बनना है। कोई तो बाप से अन्जाम (वायदा) कर फिर मुँह काला कर देते हैं। कहते हैं बाबा हार खा ली। बाप कहते हैं – तुम तो प्यादों से भी प्यादे हो, वर्थ नाट ए पेनी। ऐसे क्या पद पायेंगे! अब सूर्यवंशी राजधानी स्थापन हो रही है। जिनको बाबा की याद रहती है, वही खुशी में रहते हैं। सिर्फ यह भी याद रहे कि बाप द्वारा क्या वर्सा ले रहे हैं, तो भी बहुत फायदा है। धारण कर फिर आपसमान बनाना है। बच्चों से सर्विस पहुँचती नहीं है। थोड़ी सर्विस की तो समझते हैं हम पास हो गये। देह-अभिमान में आकर गिर पड़ते हैं।
अगर बाबा (ब्रह्मा) की बेअदबी की तो शिवबाबा कहते हैं – गोया मेरी बेअदबी की। बापदादा दोनों इकट्ठे हैं ना। ऐसे नहीं हमारा तो शिवबाबा से कनेक्शन है, अरे वर्सा तो इन द्वारा मिलेगा ना। इनको दिल का समाचार सुनाना है। राय लेनी है। शिवबाबा कहते हैं हम साकार द्वारा राय देंगे। ब्रह्मा के बिना शिवबाबा से वर्सा कैसे लेंगे। बाप के बिना कुछ काम हो न सके इसलिए बच्चों को बहुत-बहुत सम्भाल रखनी है। उल्टे अहंकार में आकर अपनी बरबादी कर देते हैं। साकार की दिल से उतरे तो निराकार की दिल से भी उतर जाते हैं। ऐसे बहुत हैं – जो कभी मुरली भी नहीं सुनते, पत्र भी नहीं लिखते तो बाप क्या समझेंगे!
मंजिल बहुत भारी है। बच्चों को टाइम बरबाद नहीं करना चाहिए। जो अपने को महारथी समझते हैं उन्हों को ऊंचे कार्य में मदद करनी चाहिए। तो बाप खुश होकर आफरीन देवे, इनसे बहुतों का कल्याण होगा। प्रदर्शनी में तो ढेर आते हैं। प्रजा तो बनती है। बाबा की सर्विसएबुल बच्चों में ऑख रहती है। इस इन्द्रसभा में आने चाहिए – सूर्यवंशी राजा रानी बनने वाले। जो सर्विस नहीं करते वह लायक नहीं। आगे चलकर सब पता पड़ेगा – कौन-कौन क्या बनेगा! बच्चों को बहुत नशा रहना चाहिए कि हम कल स्वर्ग में जाकर राजकुमार बनेंगे। यहाँ तुम आये हो राजयोग सीखने। अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे तो पद कम पायेंगे।
बाबा के पास सर्विस का समाचार आना चाहिए। बाबा आज मैंने यह सर्विस की। पत्र ही कभी नहीं लिखते तो बाबा क्या समझे? मर गया। बाबा को भी याद वही बच्चे रहते हैं जो सर्विस में रहते हैं। बाप का परिचय देते रहते हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माकुमार कुमारियों को वर्सा देते हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की रचना रचते हैं। अभी और सब धर्म हैं बाकी देवी-देवता धर्म जो फाउन्डेशन है, वह गुम है। यह सारा खेल बना हुआ है। सीढ़ी में सब धर्म हैं नहीं। इस कारण गोले पर समझाना पड़े, गोले में साफ है। यह भी समझाना है कि सतयुग में देवी-देवता डबल सिरताज थे। इस समय पवित्रता का ताज कोई को है नहीं। एक भी नहीं जिसको हम लाइट का ताज देवें। अपने को भी नहीं दे सकते। हम लाइट के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। शरीर तो यहाँ पवित्र नहीं है। आत्मा योगबल से पवित्र होते-होते अन्त में पवित्र हो जायेगी। ताज तो मिलेगा सतयुग में। सतयुग में डबल ताज, भक्ति मार्ग में सिंगल ताज। यहाँ कोई ताज नहीं।
अब तुमको सिर्फ प्योरिटी का ताज कहाँ दिखावें? लाइट कहाँ रखें? ज्ञानी तो बने हो परन्तु कम्पलीट पवित्र जब बनते हो तो लाइट होनी चाहिए। तो सूक्ष्मवतन में लाइट दिखावें? जैसे मम्मा सूक्ष्म-वतन में पवित्र फरिश्ता है ना। वहाँ सिंगल ताज है। परन्तु अब लाइट कैसे दिखावें? पवित्र होते हैं पिछाड़ी में। योग में जब बैठते हो तो वहाँ लाइट दिखावें? आज लाइट दो कल पतित बन जाए तो लाइट ही गुम हो जाती इसलिए अन्त में जब कर्मातीत अवस्था होगी तब लाइट हो सकती है। परन्तु तुम सम्पूर्ण बनते ही चले जायेंगे सूक्ष्मवतन में। जैसे बुद्ध, क्राइस्ट को दिखाते हैं। पहले-पहले पवित्र आत्मा धर्म स्थापन करने आती है, उनको लाइट दे सकते हैं, ताज नहीं। तुम भी बाबा को याद करते-करते पवित्र बन जायेंगे। स्वदर्शन चक्र फिराते-फिराते तुम राजाई पद पायेंगे। वहाँ वजीर होते नहीं। यहाँ बहुतों से राय लेनी पड़ती है। वहाँ सब सतोप्रधान हैं। यह सब समझने की बातें हैं।
अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बापदादा से आफरीन लेने के लिए बाप के ऊंचे कार्य में पूरा-पूरा मददगार बनना है। बाबा को अपनी सेवाओं का समाचार देना है।
2) देह-अभिमान में आकर कभी भी बेअदबी नहीं करनी है। उल्टे नशे में नहीं आना है। अपना समय बरबाद नहीं करना है। सर्विस की युक्तियाँ रचनी हैं, सर्विसएबुल बनना है।
वरदान:- त्याग और स्नेह की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले स्नेही सहयोगी भव
जैसे शुरू में नॉलेज की शक्ति कम थी लेकिन त्याग और स्नेह के आधार पर सफलता मिली। बुद्धि में दिन रात बाबा और यज्ञ तरफ लगन रही, जिगर से निकलता था बाबा और यज्ञ। इसी स्नेह ने सभी को सहयोग में लाया। इसी शक्ति से केन्द्र बनें। साकार स्नेह से ही मन्मनाभव बनें, साकार स्नेह ने ही सहयोगी बनाया। अभी भी त्याग और स्नेह की शक्ति से घेराव डालो तो सफलता मिल जायेगी।
स्लोगन:- फरिश्ता बनना है तो व्यर्थ बोल वा डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त बनो।
*** ॐ शान्ति। ***