17-09-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

17-09-2021प्रात: मुरली ओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे – इस देह-भान से मर जाओ अर्थात् इस पुरानी पतित देह से प्रीत तोड़ एक बाप से सच्ची प्रीत जोड़ो”

प्रश्नःसंगम पर तुम बच्चों की नेचुरल ब्युटी कौन सी है?

उत्तर:- ज्ञान के जेवरों से सदा सजे सजाये रहना – यही तुम्हारी नेचुरल ब्युटी है। जो ज्ञान के जेवरों से सजे हुए रहते हैं उनका चेहरा खुशी में फूल की तरह खिला रहता है। अगर खुशी नहीं रहती तो जरूर कोई देह-अभिमान की आदत है, जिससे ही सब विकार उत्पन्न होते हैं।

ओम् शान्ति। इस गीत का अर्थ कितना विचित्र है। प्रीत बनी है किसके लिए? (मरने के लिए) किससे बनी है? भगवान से क्योंकि इस दुनिया से मरकर उनके पास जाना है। ऐसी कब किसके साथ प्रीत हुई है क्या? जो यह ख्याल में आये कि मर जायेंगे। फिर कोई प्रीत रखेंगे? गीत का अर्थ कितना वन्डरफुल है। शमा से परवाने प्रीत रख फेरी पहन जल मरते हैं। तुमको भी बाप के पास आते-आते यह शरीर छोड़ना है अर्थात् बाप को याद करते-करते शरीर छोड़ना है। यह तो जैसे बड़ा दुश्मन हो गया, जिसके साथ हम प्रीत रखें और मर जाएं इसलिए मनुष्य डरते हैं। दान-पुण्य, तीर्थ यात्रा आदि करते हैं, भगवान के पास जाने के लिए। शरीर छोड़ते हैं तो मनुष्य कहते हैं भगवान को याद करो।

भगवान कितना नामी-ग्रामी है। वह आते हैं तो सारी पुरानी दुनिया को खत्म कर देते हैं। तुम बच्चे जानते हो – हम इस युनिवर्सिटी में आते ही हैं – पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाने के लिए। पुरानी दुनिया को पतित दुनिया हेल कहा जाता है। बाप नई दुनिया में जाने का रास्ता बताते हैं सिर्फ मुझे याद करो, मैं हूँ हेविनली गॉड फादर। उस फादर से तुमको धन, मिलकियत, मकान आदि मिलेगा। बच्चियों को वर्सा मिलना नहीं है। उनको दूसरे घर भेज देते हैं। गोया वह वारिस नहीं ठहरी। यह तो बाप है सब आत्माओं का बाप, इनके पास सबको आना है, मरना है। कोई समय जरूर बाप आते हैं, सबको घर ले जाते हैं क्योकि नई दुनिया में बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। पुरानी दुनिया में तो बहुत हैं, नई दुनिया में मनुष्य भी थोड़े और सुख भी बहुत होता है। पुरानी दुनिया में बहुत मनुष्य हैं तो दु:ख भी बहुत है इसलिए पुकारते रहते हैं।

बापू गांधी जिसको भारत का पिता समझते थे, वह भी कहते थे हे पतित-पावन आओ। सिर्फ उनको जानते नहीं थे। समझते भी हैं पतित-पावन परमपिता परमात्मा है। वही वर्ल्ड का लिबरेटर है। राम सीता को तो सारी दुनिया नहीं मानेगी ना। यह भूल है। सारी दुनिया परमपिता परमात्मा को लिबरेटर गाइड मानती है। लिबरेट करते हैं दु:खों से। अच्छा दु:ख देने वाला कौन? बाप तो दु:ख दे न सके क्योंकि वह पतित-पावन है। पावन दुनिया सुखधाम में ले जाने वाला है। तुम हो उस रूहानी बाप के रूहानी बच्चे। जैसे बाप वैसे बच्चे। लौकिक बाप के हैं जिस्मानी बच्चे।

अभी तुम बच्चों को समझना है हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा हमको वर्सा देने आये हैं। हम स्टूडेन्ट हैं, यह भूलना नहीं चाहिए। बच्चों की बुद्धि में रहता है शिवबाबा मधुबन में मुरली बजाते हैं। वह काठ की मुरली तो यहाँ नहीं है। कृष्ण का डांस करना, मुरली बजाना वह भक्ति मार्ग का है। तुम कृष्ण के लिए मुरली नहीं कह सकते। मुरली शिवबाबा बजाते हैं। तुम्हारे पास अच्छे-अच्छे गीत बनाने वाले आयेंगे। गीत अक्सर करके पुरुष ही बनाते हैं। तुमको कोई भक्ति मार्ग के गीत आदि नहीं गाने हैं। तुम्हें तो एक शिवबाबा को ही याद करना है। बाप कहते हैं – मुझ अल्फ को याद करो।

शिव को कहते हैं बिन्दी। व्यापारी लोग बिन्दी लिखेंगे तो कहेंगे शिव। एक बिन्दी लिखें 10 हो जायेगा फिर बिन्दी लिखो तो 100 .. तुमको भी शिवबाबा को याद करना है। जितना शिव को याद करते हो तो आधाकल्प के लिए बहुत साहूकार बन जाते हो। वहाँ गरीब होते ही नहीं। सब सुखी रहते हैं। दु:ख का नाम नहीं। बाप की याद से विकर्म विनाश हो जायेंगे। तुम बहुत धनवान बनेंगे। इसको कहा जाता है सच्चे बाप द्वारा सच्ची कमाई। यही साथ चलेगी। मनुष्य सभी खाली हाथ जाते हैं। तुमको भरतू हाथ जाना है।

बाप को याद करना है और पवित्र बनना है। बाप ने समझाया है – प्योरिटी होगी तो पीस, प्रासपर्टी मिलेगी। तुम आत्मा पहले पवित्र थी फिर अपवित्र बनती हो। संन्यासियों को भी सेमी पवित्र कहेंगे। तुम्हारा है फुल संन्यास। तुम जानते हो वह कितना सुख पाते हैं। थोड़ा सुख है फिर तो दु:ख ही है। वह सब है भक्ति मार्ग।

भक्ति मार्ग में हनूमान की पूजा करो तो उसका दीदार हो जाता है। चण्डिका देवी का कितना मेला लगता है। उनका चित्र भी होगा, जिनका ध्यान करेंगे वह तो जरूर सामने आयेगा ही। परन्तु उससे क्या मिलेगा? अनेक प्रकार के मेले लगते हैं क्योंकि आमदनी तो होती है ना। यह सब उन्हों का धन्धा है। कहते हैं धन्धे सबमें धूर, बिगर धन्धे नर से नारायण बनाने के। यह धन्धा कोई बिरला करे। बाप का बनकर सब कुछ देह सहित बाप को दे देना क्योंकि तुम जानते हो हमको नया शरीर चाहिए। बाप कहते हैं – तुम कृष्णपुरी जा सकते हो परन्तु जब आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान बनें। कृष्णपुरी में ऐसे नहीं कहेंगे कि हमको पावन बनाओ। यहाँ सब मनुष्य मात्र पुकारते हैं – हे लिबरेटर आओ। इस पाप आत्माओं की दुनिया से लिबरेट करो। अभी तुम जानते हो बाप आया है हमको अपने साथ ले जाने। वहाँ जाना तो अच्छा है ना।

मनुष्य शान्ति चाहते हैं। अब शान्ति कहते किसको हैं – यह नहीं जानते। कर्म बिगर तो कोई रह नहीं सकते। शान्ति तो है शान्तिधाम में। फिर यह शरीर लेकर कर्म तो करना ही है। सतयुग में कर्म करते हुए शान्त रहते हैं, अशान्ति में मनुष्य को दु:ख होता है इसलिए कहते हैं शान्ति कैसे मिले। अभी तुम बच्चे जानते हो शान्तिधाम हमारा घर है। सतयुग में शान्ति सुख सब कुछ है। अब वह चाहिए या सिर्फ शान्ति चाहिए। यहाँ तो दु:ख है इसलिए पतित-पावन बाप को भी यहाँ पुकारते हैं। भक्ति करते ही हैं भगवान से मिलने के लिए। भक्ति भी पहले अव्यभिचारी फिर व्यभिचारी होती है। व्यभिचारी भक्ति में देखो क्या-क्या करते हैं। सीढ़ी में देखो कितना अच्छा दिखाया है। परन्तु पहले-पहले तो सिद्ध करना चाहिए भगवान कौन है। श्रीकृष्ण को ऐसा किसने बनाया! आगे जन्म में यह कौन था! समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। जो अच्छी सर्विस करते हैं, उनकी दिल भी गवाही देती है। युनिवर्सिटी में जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वह जरूर तीखे जायेंगे। नम्बरवार तो होते ही हैं। कोई डलहेड भी होते हैं।

शिवबाबा को आत्मा कहती है मेरी बुद्धि का ताला खोलो। बाप कहते हैं – बुद्धि का ताला खोलने के लिए ही तो आया हूँ। परन्तु तुम्हारे कर्म ही ऐसे हैं जो ताला खुलता ही नहीं। फिर बाबा क्या करेंगे। बहुत पाप किये हुए हैं, अब बाबा उनको क्या करेंगे! टीचर को कहेंगे, हम कम पढ़ते हैं। टीचर क्या करेंगे? टीचर तो कोई कृपा नहीं करेंगे। करके एक्स्ट्रा टाइम रखेंगे। वह तो तुमको मना नहीं है। प्रदर्शनी खाली पड़ी है, बैठकर प्रैक्टिस करो। भक्ति मार्ग में तो कोई कहेंगे माला फेरो। कोई कहेंगे यह मन्त्र याद करो। यहाँ तो बाप अपना परिचय देते हैं। बाप को ही याद करना है, जिससे वर्सा मिलता है।

सतयुग में तो पारलौकिक बाप का वर्सा मिल जाता है फिर याद करने की दरकार ही नहीं रहती। 21 जन्मों के लिए वर्सा मिल जाता है, तो बाप से अच्छी रीति से वर्सा लेना चाहिए ना। इसमें भी बाप कहते हैं, विकार में कभी नहीं जाना। थोड़ी भी विकार की टेस्ट बैठी तो फिर वृद्धि हो जायेगी। सिगरेट आदि की एक बार टेस्ट करते हैं तो संग का रंग झट लग जाता है फिर उस आदत को छोड़ना मुश्किल हो जाता है। बहाना कितने करते हैं। आदत कोई नहीं डालनी चाहिए। छी-छी आदतें मिटानी हैं। बाप कहते हैं – जीते जी देह का भान छोड़ो, मुझे याद करो। देवताओं को भोग हमेशा पवित्र ही लगाया जाता है तो तुम भी पवित्र खाओ।

अभी तुम बच्चों को फूल मुआफिक हर्षित रहना चाहिए। कन्या को पति मिलता है तो मुखड़ा खिल जाता है ना। अच्छे जेवर आदि कपड़े पहनती है तो चमक उठती है। अभी तुम तो ज्ञान के जेवर पहनते हो। वहाँ स्वर्ग में तो नेचुरल ब्युटी रहती है। कृष्ण का नाम ही है सुन्दर। राजा-रानी, प्रिन्स-प्रिन्सेज सब सुन्दर होते हैं। वहाँ प्रकृति भी सतोप्रधान हो जाती है। लक्ष्मी-नारायण जैसे नेचुरल ब्युटी यहाँ कोई बना न सके। उनको कोई इन ऑखों से देख थोड़ेही सकते हैं। हाँ साक्षात्कार होता है परन्तु साक्षात्कार से कोई हूबहू चित्र बना थोड़ेही सकेंगे। हाँ कोई आर्टिस्ट को साक्षात्कार हो जाए और उसी समय बैठ बनाये। परन्तु है मुश्किल। तो

तुम बच्चों को बहुत नशा रहना चाहिए। अभी बाबा हमको लेने लिए आया है। बाबा से हमें स्वर्ग का वर्सा मिलता है। यह हमारे 84 जन्म पूरे हुए। ऐसे-ऐसे ख्याल बुद्धि में होने से खुशी होगी। विकार का जरा भी ख्याल नहीं आना चाहिए। बाप कहते हैं – काम महाशत्रु है। द्रोपदी ने भी इसलिए पुकारा है ना।

बाप कहते हैं – तुम एक मेरे से ही सुनो और यही श्रीमत औरों को सुनाओ। फादर शोज़ सन। सन शोज़ फादर। फादर कौन? शिव फादर। शिव और सालिग्राम का गायन है। शिवबाबा जो समझाते हैं इस पर फॉलो करो। फॉलो फादर। यह गायन उनका है, बाप कहते हैं – मीठे बच्चे फॉलो कर पवित्र बनो, फॉलो करने से ही तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। लौकिक बाप को फॉलो करने से 63 जन्म तुम सीढ़ी नीचे उतरते हो। अब पारलौकिक बाप को फॉलो कर ऊपर चढ़ना है। बाप के साथ जाना है। बाप कहते हैं – एक-एक रत्न लाखों रूपयों का है।

बाप रोज़ समझाते रहते हैं – मीठे-मीठे बच्चों पहले-पहले सबको दो बाप का परिचय देना है। लौकिक बाप वर्सा देते हैं पतित बनने का। पारलौकिक बाप वर्सा देते हैं पावन बनने का। कितना फ़र्क है। अब पारलौकिक बाप कहते हैं पावन बनो। विकार में जाने वाले को पतित कहा जाता है।

तुम्हारी मिशन है पतितों को पावन बनाने का रास्ता बताने वाली। पारलौकिक बाप भी अभी कहते हैं – पावन बनो, जबकि विनाश सामने खड़ा है। तो अब क्या करना चाहिए? जरूर पारलौकिक बाप की मत पर चलना चाहिए ना। प्रदर्शनी में यह भी प्रतिज्ञा लिखानी चाहिए। पारलौकिक बाप को फॉलो करेंगे? पतित बनना छोड़ेंगे? लिखो। बाप ही गैरन्टी लेते हैं, तुम भी गैरन्टी ले सकते हो। तुम पतित बनते ही क्यों हो जो फिर पुकारते हो हे पतित-पावन आओ। सारी बात ही है प्योरिटी पर। तुम बच्चों को दिन-प्रतिदिन खुशी रहनी चाहिए। हमको बाप स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) कोई भी गन्दी (छी-छी) आदत नहीं डालनी है। जीते जी देह का भान छोड़ना है। फूल मुआफिक हर्षित रहना है।

2) पारलौकिक बाप को फॉलो कर पावन बनना है। उनकी श्रीमत पर चलने की प्रतिज्ञा करनी और करानी है।

वरदान:-     अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शुद्ध वायुमण्डल बनाने वाले सदा शक्तिशाली आत्मा भव

जो सदा अपनी श्रेष्ठ वृत्ति में स्थित रहते हैं वे किसी भी वायुमण्डल, वायब्रेशन में डगमग नहीं हो सकते। वृत्ति से ही वायुमण्डल बनता है, यदि आपकी वृत्ति श्रेष्ठ है तो वायुमण्डल शुद्ध बन जायेगा। कई वर्णन करते हैं कि क्या करें वायुमण्डल ही ऐसा है, वायुमण्डल के कारण मेरी वृत्ति चंचल हुई – तो उस समय शक्तिशाली आत्मा के बजाए कमजोर आत्मा बन जाते हैं। लेकिन व्रत (प्रतिज्ञा) की स्मृति से वृत्ति को श्रेष्ठ बना दो तो शक्तिशाली बन जायेंगे।

स्लोगन:-    गुणमूर्त बनकर सर्व को गुणमूर्त बनाना ही महादानी बनना है।

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