16-1-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
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“रूहानी फखुर में रह बेफिक्र बादशाह बनो”
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“ओम् शान्ति”
आज बड़े-ते-बड़े बाप बच्चों को अलौकिक दिव्य संगमयुग के हर दिन की मुबारक दे रहे हैं। दुनिया वालों के लिए विशेष एक बड़ा दिन होता है और बड़े दिन पर क्या करते हैं? वह समझते हैं बड़े दिल से मना रहे हैं। लेकिन आप जानते हो उन्हों का मनाना क्या है! उन्हों का मनाना और आप बड़े-ते-बड़े बाप के बड़े दिल वाले बच्चों का मनाना – कितना न्यारा और प्यारा है! जैसे दुनिया वालों का बड़ा दिन है। खुशी में नाचते-गाते एक-दो को उस दिन की मुबारक देते हैं। ऐसे आप बच्चों के लिए संगमयुग ही बड़ा युग है। आयु में छोटा है लेकिन विशेषताओं और प्राप्ति दिलाने में सबसे बड़ा युग है। तो संगमयुग का हर दिन आपके लिए बड़ा दिन है क्योंकि बड़े-ते-बड़ा बाप बड़े युग “संगमयुग” में ही मिलता है। साथ-साथ बाप द्वारा बड़े-ते-बड़ी प्राप्ति भी अभी होती है। बापदादा सभी बच्चों को बड़े-ते-बड़ा “पुरुषोत्तम” अब बनाते हैं। जैसे आज के दिन की विशेषता है खुशियां मनाना और एक-दो को गिफ्ट देना, मुबारक देना और फॉदर द्वारा ही गिफ्ट मिलने का दिन मनाते हैं।
आप सबको बाप ने संगमयुग पर ही बड़े-ते-बड़ी गिफ्ट क्या दी है? बापदादा सदा कहते हैं कि मैंने आप बच्चों के लिए हथेली पर स्वर्ग का राज्य-भाग्य लाया है। तो सबकी हथेली पर स्वर्ग का राज्य-भाग्य है ना। जिसको कहते हैं – तिरी पर बहिश्त (हथेली पर स्वर्ग)। इससे बड़ी गिफ्ट और कोई दे सकता है? कितने भी बड़े आदमी बड़ी गिफ्ट दें लेकिन बाप की गिफ्ट के आगे वह क्या होगी? जैसे सूर्य के आगे दीपक। तो संगमयुग की यादगार निशानियां अन्य धर्मो में भी रह गई हैं। आपको बड़े युग में बड़े बाप ने बड़े-ते-बड़ी गिफ्ट दी है, इसलिए आज के बड़े दिन पर इस विधि से मनाते हैं। वह क्रिसमस फॉदर कहते हैं। फॉदर सदा बच्चों को देने वाला “दाता” है। चाहे लौकिक रीति से भी देखो -फॉदर बच्चों का दाता होता है। यह है बेहद का फॉदर। बेहद का फॉदर गिफ्ट भी बेहद की देते हैं। और कोई भी गिफ्ट कितना समय चलेगी? कितने अच्छे-अच्छे मुबारक के कार्ड गिफ्ट में देते हैं। लेकिन आज का दिन बीत गया, फिर उस कार्ड को क्या करेंगे? थोड़ा समय चलता हैं ना। खाने-पीने की मीठी चीजें भी देंगे, वह भी कितना समय चलेंगी! कितना समय खुशी मनायेंगे! नाचेंगे, गायेंगे – एक रात।
लेकिन आप आत्माओं को बाप ऐसी गिफ्ट देते हैं जो इस जन्म में तो साथ है ही लेकिन जन्म-जन्म साथ रहेगी। दुनिया वाले कहते हैं खाली हाथ आये और खाली हाथ जाना है। लेकिन आप क्या कहेंगे? आप फलक से कहते हो कि हम आत्माएं बाप द्वारा मिले हुए खजानों से भरपूर होकर जायेंगी और अनेक जन्म भरपूर रहेंगी। 21 जन्मों तक यह गिफ्ट साथ रहेगी। ऐसी गिफ्ट कभी देखी है? चाहे किसी भी फॉरेन के देश के राजा वा रानी हों, ऐसी गिफ्ट दे सकते हैं? चाहे पूरा तख्त दे देवें, ऑफर करें – यह तख्त आप ले लो। आप क्या करेंगे, कोई लेगा? बाप के दिलतख्त के आगे यह तख्त भी क्या है! इसलिए आप सभी फखुर में रहते हो, फखुर अर्थात् रूहानी नशा।
इस रूहानी फखुर में रहने वाले किसी भी बात का फिक्र नहीं करते, बेफिक्र बादशाह बन जाते हैं। अभी के भी बादशाह और भविष्य में भी राजाई प्राप्त करते हो इसलिए सबसे बड़ी और सबसे अच्छी यह बेफिक्र बादशाही है। कोई फिक्र है? और प्रवृत्ति में रहने वालों को बाल-बच्चों का फिक्र है? कुमारों को खाना बनाने का फिक्र ज्यादा है, कुमारियों को क्या फिक्र होता है? नौकरी का कि अच्छी नौकरी मिले, फिक्र है क्या? बेफिक्र हो ना! जिसको फिक्र होगा वह बेफिक्र बादशाही का मजा नहीं ले सकेंगे। विश्व की राजाई तो 20 जन्म होगी लेकिन यह बेफिक्र बादशाही और दिलतख्त – यह एक ही इस युग में मिलते हैं एक जन्म के लिए। तो एक का महत्व है ना!
बापदादा सदा बच्चों को यही कहते – “ब्राह्मण जीवन अर्थात् बेफिक्र बादशाह”। ब्रह्मा बाप बेफिक्र बादशाह बने तो क्या गीत गाया – पाना था सो पा लिया, काम बाकी क्या रहा, आप क्या कहते हो? सेवा का काम बाकी रहा हुआ है, लेकिन वह भी करावनहार बाप करा रहे हैं और कराते रहेंगे। हमको करना है – इससे बोझ हो जाता है।
बाप हमारे द्वारा करा रहे हैं – तो बेफिक्र हो जायेंगे। निश्चय है यह श्रेष्ठ कार्य होना ही है वा हुआ ही पड़ा है इसलिए निश्चयबुद्धि, निश्चिंत, बेफिक्र रहते हैं। यह तो सिर्फ बच्चों को बिजी रहने लिए सेवा का एक खेल करा रहे हैं। निमित्त बनाए वर्तमान और भविष्य सेवा के फल का अधिकारी बना रहे हैं। काम बाप का, नाम बच्चों का। फल बच्चों को खिलाते, खुद नहीं खाते हैं। तो बेफिक्र हुए ना।
सेवा में सफलता का सहज साधन ही यह है, कराने वाला करा रहा है। अगर “मैं कर रहा हूँ” तो आत्मा की शक्ति प्रमाण सेवा का फल मिलता है। बाप करा रहा है तो बाप सर्वशक्तिवान है। कर्म का फल भी इतना ही श्रेष्ठ मिलता है। तो सदा बाप द्वारा प्राप्त हुई बेफिक्र बादशाही वा हथेली पर स्वर्ग के राज्य-भाग्य की गॉडली गिफ्ट स्मृति में रखो। बाप और गिफ्ट दोनों की याद से हर दिन तो क्या लेकिन हर घड़ी बड़े-ते-बड़ी घड़ी है, बड़ा दिन है – ऐसी अनुभूति करेंगे। दुनिया वाले तो सिर्फ मुबारक देते हैं। क्या कहते हैं? हैप्पी हो, हेल्दी-वेल्दी हो… कह देते हैं। लेकिन बन तो नहीं जाते हैं ना।
बाप तो ऐसी मुबारक देते जो सदा के लिए हेल्थ-वेल्थ हैपी वरदानों के रूप में साथ रहती है। सिर्फ मुख से कह करके खुश नहीं करते हैं, लेकिन बनाते हैं और बनना ही मनाना है क्योंकि अविनाशी बाप की मुबारक भी अविनाशी होगी ना। तो मुबारक वरदान बन जाती है।
आप तना से निकले हुए हो। यह सब शाखायें हैं, यह सभी धर्म आपकी शाखायें हैं ना! कल्प वृक्ष की शाखायें हैं इसलिए वृक्ष की निशानी क्रिसमस ट्री दिखाते हैं। क्रिसमस ट्री कभी सजी हुई देखी है? इसमें क्या करते हैं? (स्टेज पर दो क्रिसमस वृक्ष सजे रखे हैं) इसमें क्या दिखाया है? विशेष चमकते हुए जगे हुए बल्ब दिखाते हैं। छोटे-छोटे बल्बों से ही सजाते हैं। इसका अर्थ क्या है? कल्प वृक्ष की आप चमकती हुई आत्मायें हो और जो भी धर्म पितायें आते हैं वह भी अपने हिसाब से सतोप्रधान होते हैं इसलिए गोल्डन एजेड आत्मा चमकती हुई होती है इसलिए यह कल्प वृक्ष की निशानी अन्य धर्म की शाखाएं भी हर वर्ष निशानी मनाते रहते हैं।
सारे वृक्ष का ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर है ना। कौन सा बाप ग्रेट-ग्रेट ग्रैंड फादर है? बाप ने ब्रह्मा को आगे रखा है। साकार सृष्टि की आत्माओं का आदि पिता, आदिनाथ ब्रह्मा है इसलिए ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर है। आदि देव के साथ आप भी हो ना कि अकेले आदि देव है। आप आदि आत्मायें अभी आदि देव के साथ हो और आगे भी साथ रहेंगी, इतना नशा है? खुशी के गीत सदा गाते रहते हो ना या सिर्फ आज गायेंगे?
आज विशेष डबल फारेनर्स का दिन है। आप के लिए रोज़ बड़ा दिन है या आज है? चारों ओर देश-विदेश के बच्चे कल्प वृक्ष में चमकते हुए सितारे दिखाई दे रहे हैं। सूक्ष्म रूप में तो सब मधुबन में पहुंचे हुए हैं। वह भी सब आकारी रूप में मना रहे हैं। आप साकारी रूप में मना रहे हो। सभी का मन बाप की गॉडली गिफ्ट को देख खुशी में नाच रहा है। बापदादा भी सर्व साकार रूप और आकार रूपधारी बच्चों को सदा हर्षित भव की मुबारक दे रहे हैं। सदा दिलखुश मिठाई खाते रहो और प्राप्ति के गीत गाते रहो। ड्रामा अनुसार भारत वालों को विशेष भाग्य मिला हुआ है। अच्छा।
सभी टीचर्स ने बड़ा दिन मनाया कि रोज़ मनाती हो? बड़ा बाप है और बड़े आप भी हो इसलिए जो दुनिया वालों के बड़े दिन हैं उसको महत्व देते हैं। इसमें भी आप बड़े, छोटे भाईयों को उत्साह दिलाते हो। सभी टीचर्स बेफिक्र बादशाह हो? बादशाह अर्थात् सदा निश्चय और नशे में स्थित रहने वाले क्योंकि निश्चय विजयी बनाता है और नशा खुशी में सदा ऊंचा उड़ाता है। तो बेफिक्र बादशाह ही होंगे ना! कोई फिक्र है क्या? सेवा कैसे बढ़ेगी, अच्छे-अच्छे जिज्ञासु पता नहीं कब आयेंगे, कब तक सेवा करनी पड़ेगी – यह सोचते तो नहीं हो?
असोच बनने से ही सेवा बढ़ेगी, सोचने से नहीं बढ़ेगी। असोच बन बुद्धि को फ्री रखेंगे तब बाप की शक्ति मदद के रूप में अनुभव करेंगे। सोचने में ही बुद्धि बिजी रखेंगे तो बाप की टचिंग, बाप की शक्ति ग्रहण नहीं कर सकेंगे। बाबा और हम – कम्बाइन्ड हैं, करावनहार और करने के निमित्त मैं आत्मा। इसको कहते हैं असोच अर्थात् एक की याद। शुभचिंतन में रहने वाले को कभी चिंता नहीं होती। जहाँ चिंता है वहाँ शुभचिंतन नहीं और जहाँ शुभचिंतन है वहाँ चिंता नहीं। अच्छा!
“चारों ओर के गाडॅली गिफ्ट के अधिकारी, बड़े ते बड़े बाप के बड़े ते बड़े भाग्यवान आत्मायें, आदि पिता के सदा साथी आदि आत्मायें, सदा बड़े ते बड़े बाप द्वारा मुहब्बत की मुबारक, अविनाशी वरदान प्राप्त करने वाले सर्व साकारी रूपधारी और आकारी रूपधारी – सभी बच्चों को दिलखुश मिठाई के साथ यादप्यार और नमस्ते।“
पूना-बीदर ग्रुप:-
रोज़ अमृतवेले दिलखुश मिठाई खाते हो? जो रोज़ अमृतवेले दिलखुश मिठाई खाते हैं वो स्वयं भी सारा दिन खुश रहते हैं और दूसरे भी उनको देख खुश होते हैं। यह ऐसी खुराक है जो कोई भी परिस्थित आ जाए लेकिन यह दिलखुश खुराक परिस्थिति को छोटा बना देती है, पहाड़ को रूई बना देती है। इतनी ताकत है इस खुराक में! जैसे शरीर के हिसाब से भी जो तन्दरूस्त वा शक्तिशाली होगा वह हर परिस्थिति को सहज पार करेगा और जो कमजोर होगा वह छोटी सी बात में भी घबरा जायेगा। कमजोर के आगे परिस्थिति बड़ी हो जाती है और शक्तिशाली के आगे परिस्थिति पहाड़ से रूई बन जाती है। तो रोज़ दिलखुश मिठाई खाना माना सदा दिलखुश रहें। यह अलौकिक खुशी के दिन कितने थोड़े हैं!
देवताई खुशी और ब्राह्मणों की खुशी में भी फर्क है। यह ब्राह्मण जीवन की परमात्म-खुशी, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति देवताई जीवन में भी नहीं होगी इसलिए इस खुशी को जितना चाहे मनाओ। रोज़ समझो आज खुशी मनाने का दिन है। यहाँ आने से खुशी बढ़ गई है ना! यहाँ से नीचे उतरेंगे तो कम तो नहीं होगी? उड़ती कला अभी है, फिर तो जितना पाया उतना खाते रहेंगे। तो सदा यह स्मृति में रखो कि हम दिलखुश मिठाई खाने वाले हैं और दूसरों को खिलाने वाले हैं क्योंकि जितना देंगे उतना और बढ़ती जायेगी।
देखो, खुशी का चेहरा सबको अच्छा लगता है और कोई दु:ख अशान्ति में घबराया हुआ चेहरा हो तो अच्छा नहीं लगेगा ना! जब दूसरों का अच्छा नहीं लगेगा तो अपना भी नहीं लगना चाहिए। तो सदैव खुशी के चेहरे से सेवा करते रहो। मातायें ऐसी सेवा करती हो? घर वाले आपको देखकर खुश हो जाएं। चाहे कोई ज्ञान को बुरा भी समझते हो फिर भी खुशी की जीवन को देखकर मन से अनुभव जरूर करते हैं कि इनको कुछ मिला है जो खुश रहते हैं। बाहर अभिमान से न भी बोलें लेकिन अन्दर महसूस करते हैं और आखिर तो झुकना ही है।
आज गाली देते हैं कल चरणों पर झुकेंगे। कहाँ झुकेंगे? “अहो प्रभू” कहकर झुकना जरूर है। तो ऐसी स्थिति होगी तब तो झुकेंगे ना! कोई भी किसी के आगे झुकता है तो उसमें कोई बड़ापन होता है, कोई विशेषता होती है, उस विशेषता पर झुकता है। ऐसे तो कोई नहीं झुकेगा ना। दिखाई दे – इन जैसी जीवन कोई की है ही नहीं, सदा खुश रहते हैं। रोने की परिस्थिति में भी खुश रहें, मन खुश रहे। ऐसे नहीं हंसते रहो, लेकिन मन खुश हो। पाण्डव क्या समझते हैं? ऐसा अनुभव दूसरों को होता है या अभी कम होता है?
खुशमिजाज़ रहने वाले अपने चेहरे से बहुत सेवा करते हैं। मुख से बोलो, नहीं बोलो लेकिन आपकी सूरत, ज्ञान की सीरत को स्वत: प्रत्यक्ष करेगी। तो यही याद रखना कि दिलखुश मिठाई खानी है और औरों को भी खिलानी है। जो स्वयं खाता है वह खिलाने के बिना रह नहीं सकता है। अच्छा!
बेलगाम, सोलापुर ग्रुप:–
अपने इस श्रेष्ठ जीवन का देख हर्षित होते हो? क्योंकि यह जीवन हीरे तुल्य जीवन है। हीरे का मूल्य होता है ना! तो इस जीवन को इतना अमूल्य समझकर हर कर्म करो। ब्राह्मण जीवन अर्थात् अलौकिक जीवन। अलौकिक जीवन में साधारण चलन नहीं हो सकती। जो भी कर्म करते हो वह अलौकिक होना चाहिए, साधारण नहीं। अलौकिक कर्म तब होता है जब अलौकिक स्वरूप की स्मृति रहती है क्योंकि जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति होगी। स्मृति में रहे – एक बाप दूसरा न कोई। तो बाप की स्मृति सदा समर्थ बनाती है, इसलिए कर्म भी श्रेष्ठ अलौकिक होता है। सारा दिन जैसे अज्ञानी जीवन में मेरा-मेरा करते रहे, अब यही मेरा बाप की तरफ लगा दिया ना! अभी और सब मेरा-मेरा खत्म हो गया। ब्राह्मण बनना अर्थात् सब कुछ तेरा कर दिया।
यह गलती तो नहीं करते हो – मेरे को तेरा, तेरे को मेरा तो नहीं बना देते हो? जब कोई मतलब होगा तो कहेंगे – मेरा, और कोई मतलब नहीं होगा तो कहेंगे तेरा। मेरा भले कहो लेकिन “मेरा बाबा” कहो। बाकी सब मेरा-मेरा छोड़कर एक मेरा। एक मेरा कहने से मेहनत से छूट जायेंगे, बोझ उतर जायेगा। नहीं तो गृहस्थी जीवन में कितना बोझ है! अभी हल्के डबल लाइट हो गये इसलिए सदा उड़ती कला वाले हो। उड़ती कला के सिवाए रूकती कला में रूकना नहीं है। सदा ही उड़ते चलो। बाप ने अपना बना लिया – सदा इसी खुशी में रहो। अच्छा!
वरदान:- ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज कर नम्बरवन बनने वाले सर्वगुण सम्पन्न भवI
वर्तमान समय आपस में विशेष कर्म द्वारा गुण दाता बनने की आवश्यकता है, इसलिए ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज करो। यही संकल्प करो कि मुझे सदा गुण मूर्त बन सबको गुण मूर्त बनाने का विशेष कर्तव्य करना ही है तो व्यर्थ देखने, सुनने वा करने की फुर्सत ही नहीं रहेगी। दूसरों को देखने के बजाए ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए हर सेकण्ड गुणों का दान करते चलो तो सर्वगुण सम्पन्न बनने और बनाने का एक्जैम्पल बन नम्बरवन हो जायेंगे।
स्लोगन:- साइलेन्स की पावर द्वारा निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना ही मन्सा सेवा है। – “ॐ शान्ति”।
*** “ॐ शान्ति”। ***
-: ”लवलीन स्थिति का अनुभव करो” :-
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आप से निवदेन है :-
1. किर्प्या अपना अनुभव जरूर साँझा करे ।
धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।
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