14-12-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
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“मीठे बच्चे – तुम अभी सच्चे-सच्चे सतसंग में बैठे हो, तुम्हें सचखण्ड में जाने का मार्ग सत्य बाप बतला रहे हैं”
प्रश्नः– किस निश्चय के आधार पर पावन बनने की ताकत स्वत: आती है?
उत्तर:- यदि निश्चय हो कि इस मृत्युलोक में अब हमारा यह अन्तिम जन्म है। इस पतित दुनिया का विनाश होना है। बाप की श्रीमत है पावन बनो तो पावन दुनिया के मालिक बनेंगे। इस बात के निश्चय से पावन बनने की ताकत स्वत: आती है।
गीत:- आखिर वह दिन आया आज… , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARMATMA LOVE SONGS”
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“ओम् शान्ति”
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। यह गीत तुम्हारे लिए हीरे जैसा है और जिन्होंने बनाया है उन्हों के लिए कौड़ी जैसा है। वह तो जैसे तोते मुआफिक गाते हैं। अर्थ कुछ भी जानते नहीं हैं। तुम अर्थ समझते हो। अब वह दिन आया है जबकि कलियुग बदल सतयुग या पतित दुनिया बदल पावन दुनिया होनी है। मनुष्य पुकारते भी हैं कि हे पतित-पावन आओ। पावन दुनिया में कोई पुकारेंगे नहीं। तुम इस गीत के अर्थ को अच्छी तरह जानते हो, वो लोग नहीं जानते। तुम जानते हो भक्ति कल्ट आधाकल्प चलता है। जब से रावण का राज्य शुरू होता है तब से भक्ति शुरू हो जाती है। सीढ़ी उतरनी पड़ती है। यह राज़ बच्चों की बुद्धि में बैठा हुआ है। अब तुम जानते हो भारतवासी जो 16 कला सम्पूर्ण थे, वही 14 कला बने हैं। जरूर 16 कला जो बने होंगे वही 14 कला बनेंगे ना। नहीं तो कौन बनेंगे! तुम 16 कला थे अब फिर बन रहे हो, फिर कलायें घटती जायेंगी। दुनिया की भी कला घटती है। मकान जो पहले सतोप्रधान है वह तो तमोप्रधान जरूर होना है।
तुम जानते हो सतोप्रधान दुनिया सतयुग को, तमोप्रधान दुनिया कलियुग को कहा जाता है। सतोप्रधान वाले ही तमोप्रधान बने हैं क्योंकि 84 जन्म लेने पड़ते हैं। दुनिया नई सो पुरानी जरूर होती है इसलिए चाहते भी हैं नई दुनिया, नया राज्य हो। नई दुनिया में किसका राज्य था – यह भी कोई को पता नहीं है। तुमको इस सतसंग से सब कुछ पता पड़ता है। सच्चा-सच्चा सतसंग इस समय यह है जो फिर भक्ति मार्ग में इनका गायन चलता है। तो कहेंगे ना – यह तो परम्परा से चला आया है। परन्तु तुम जानते हो सच्चा-सच्चा सतसंग यह तुम्हारा है। बाकी जो भी हैं वह सब हैं झूठ संग। वह वास्तव में सतसंग हैं ही नहीं। उनसे तो गिरना ही होता है। यह सतसंग का सबसे बड़ा त्योहार है। एक सत बाप के साथ संग होता है। बाकी और कोई भी सत बोलते ही नहीं हैं। यह है ही झूठ खण्ड। झूठी माया, झूठी काया…
पहले-पहले झूठ ईश्वर के लिए कह देते हैं कि वह सर्वव्यापी है। अल्फ को ही झूठ बना दिया है। तो तुम्हें पहले-पहले परिचय देना है बाप का। वह तो उल्टा परिचय दे देते हैं। झूठ तो झूठ सच की रत्ती भी नहीं। यह ज्ञान की बातें हैं। ऐसे नहीं कि पानी को पानी कहना झूठ है। यह है ज्ञान और अज्ञान की बात। ज्ञान एक ही ज्ञान सागर बाप देते हैं, जिसको रूहानी ज्ञान कहा जाता है। सतयुग में झूठ होता नहीं। रावण आकर सचखण्ड को झूठ खण्ड बना देते हैं। बाप कहते हैं – मैं कोई सर्वव्यापी थोड़ेही हूँ। सच तो मैं ही बताता हूँ। मैं आकर सत मार्ग अर्थात् सचखण्ड में जाने का मार्ग बताता हूँ। मैं तो ऊंचे ते ऊंचा तुम्हारा बाप हूँ। आता ही हूँ तुमको वर्सा देने। तुम बच्चों के लिए मैं सौगात ले आता हूँ। मेरा नाम ही है हेविनली गॉड फादर। हेविन हथेली पर ले आते हैं।
स्वर्ग में होती है स्वर्गवासी देवताओं की बादशाही। अभी तुमको स्वर्गवासी बना रहे हैं। सच्चा तो एक ही बाप है इसलिए बाप कहते हैं हियर नो ईविल, सी नो ईविल… यह सब मरे पड़े हैं। कब्रिस्तान है, इनको देखते भी नहीं देखना है। तुमको लायक बनना है – नई दुनिया के लिए। इस समय सब पतित हैं। गोया स्वर्ग के लायक नहीं हैं। बाप कहते हैं – तुमको रावण ने नालायक बनाया है।
आधाकल्प के लिए फिर बाप आकर लायक बनाते हैं। तो उनकी श्रीमत पर चलना पड़े, फिर जवाबदारी सारी उन पर है। बाप ने सारी दुनिया को पावन बनाने की जवाबदारी उठाई है। वह जो मत देंगे वह कल्प पहले वाली ही देंगे, इसमें मूँझना नहीं चाहिए। जो पास्ट हुआ, कहेंगे ड्रामानुसार हुआ। बात ही खलास। श्रीमत कहती है यह करो, तो करना चाहिए। वह जवाबदार खुद हैं क्योंकि वही कर्मों का दण्ड दिलाते हैं तो उनकी बात को मानना चाहिए। कहते हैं मीठे बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते यह अन्तिम जन्म पवित्र रहो। इस मृत्युलोक में यह हमारा अन्तिम जन्म है। यह बात जब समझें तब ही पावन बन सकें।
बाप आते ही तब हैं जब पतित दुनिया का विनाश होना है। पहले स्थापना फिर विनाश अक्षर भी अर्थ सहित लिखना पड़े। ऐसे नहीं स्थापना, पालना, विनाश। अभी तुम बच्चे जानते हो हम पढ़ करके ऊंच पद पायेंगे। यह बुद्धि में हड्डी रहना चाहिए। कई बच्चे हैं जो भल समझाते अच्छा हैं परन्तु हड्डी वह सुख किसको है नहीं। तोते मिसल याद करते हैं ना। तुम्हारी बुद्धि में भी हड्डी धारणा होनी चाहिए। तुम जानते हो यह जो भी शास्त्र हैं, भक्ति मार्ग के हैं इसलिए समझाया जाता है, अब जज करो सत्य क्या है। सत्य-नारायण की कथा तुमको एक बारी बाप ही सुनाते हैं। बाप कभी झूठ बोल न सके। बाप ही सचखण्ड की स्थापना करते हैं। सच्ची कथा सुनाते हैं, इसमें झूठ हो न सके।
बच्चों को यह निश्चय होना चाहिए कि हम किसके साथ बैठे हैं। बाप हमको अपने साथ योग लगाना सिखलाते हैं। सच्ची अमरकथा अथवा सत्य नारायण की कथा सुना रहे हैं, जिससे हम नर से नारायण बन रहे हैं। जिसका फिर भक्ति मार्ग में गायन चलता है। यह बुद्धि में रहना चाहिए। हमको कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते हैं। हम आत्माओं को रूहानी बाप पढ़ाते हैं। शिवबाबा जो हम आत्माओं का बाप है वह हमको पढ़ाते हैं। शिवबाबा के सम्मुख अब हम बैठे हैं। मधुबन में आते हैं तो नशा चढ़ता है। यहाँ तुमको रिफ्रेशमेंट मिलती है, तुम रियलाइज करते हो तो यहाँ थोड़ा समय भी आने से रिफ्रेश हो जाते हैं। बाहर में तो गोरखधन्धा आदि रहता है।
बाप कहते हैं – हे आत्मायें, बाप आत्माओं से बात करते हैं। बाप भी है निराकार, उनको कोई जानते नहीं। न ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को जानते। चित्र तो सबके पास हैं। कागज का चित्र देख कोई तो फाड़ देते हैं। कोई तो फिर देखो कितना दूर-दूर जाकर कितनी पूजा आदि करते हैं। चित्र तो घर में भी रखे हैं ना। फिर इतना दूर जाकर भटकने से क्या फायदा। अभी तुम बच्चों को यह ज्ञान मिला है, इसलिए वह फालतू लगता है। कृष्ण तो यहाँ भी गोरा या सांवरा पत्थर का बन सकता है। फिर जगन्नाथ-पुरी में क्यों जाते हैं!
इन बातों को भी तुम जानते हो तो कृष्ण को श्याम सुन्दर क्यों कहते हैं? आत्मा तमोप्रधान होने से काली बन जाती है। फिर आत्मा पवित्र होने से सुन्दर बन जाती है। यही भारत गोल्डन एज था, 5 तत्वों की भी नेचुरल ब्युटी रहती है। शरीर भी ऐसे सुन्दर बनते थे। अभी तत्व भी तमोप्रधान होने के कारण शरीर भी ऐसे सांवरे, कोई टेढ़ा, कोई लूला लंगड़ा आदि बनते रहते हैं, इनको कहा जाता है नर्क। यह तो माया का पाम्प है। विलायत में बत्तियां ऐसी हैं जो रोशनी होती है, बत्तियां नहीं दिखाई पड़ती हैं। वहाँ भी ऐसे रोशनी होती है। विमान आदि तो वहाँ भी होते हैं। साइंस घमण्डी भी यहाँ आयेंगे। फिर वहाँ भी यह एरोप्लेन आदि सब बनेंगे।
तुम जितना नजदीक आते जायेंगे तो तुमको सब साक्षात्कार होगा। बिजली के कारीगर आदि यह सब आकर नॉलेज लेंगे। थोड़ी भी नॉलेज ली तो प्रजा में आयेंगे। हुनर साथ ले जाते हैं तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। हाँ तुम्हारे मुआफिक कर्मातीत अवस्था को तो नहीं पायेंगे। बाकी आत्मा हुनर तो ले जायेगी ना। टेलीवीजन आदि पर दूर बैठे देखते रहेंगे। दिन-प्रतिदिन मुसाफिरी करना मुश्किल हो जायेगी। दुनिया में क्या-क्या इन्वेन्शन कर चीज़ें निकालते हैं। नेचुरल कैलेमिटीज में भी इतने मरते हैं, फ्लड आदि भी होंगी। समुद्र भी उछल खायेगा। समुद्र को भी सुखाया है ना।
अभी तुम बच्चे जानते हो इस दुनिया में क्या-क्या है, फिर नई दुनिया में क्या-क्या होगा। सिर्फ भारत खण्ड ही होगा। सो भी छोटा होगा। बाकी सब चले जायेंगे परमधाम में। बाकी टाइम कितना बचा है, यह कुछ भी नहीं होगा। तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो। तुम्हारे लिए पुरानी दुनिया के विनाश की पहले से ही नूँध है। इस छी-छी दुनिया में तुम बाकी थोड़े रोज़ हो। फिर अपनी नई दुनिया में चले जायेंगे। यह सिर्फ तुम याद करते रहो तो भी खुशी में रहेंगे। तुम्हारी बुद्धि में है यह सब खलास होने का है। यह सब इतने खण्ड रहेंगे नहीं। प्राचीन भारत खण्ड ही रहेगा।
भल गृहस्थ व्यवहार में रहो। काम आदि करते रहो, बुद्धि में बाबा की याद रहे। तुमको यह मनुष्य से देवता बनने का कोर्स उठाना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते, नौकरी करते बाप को और चक्र को याद करो। एकान्त में बैठकर विचार सागर मंथन करो। कुदरती आपदायें आयेंगी जिससे सारी दुनिया खत्म हो जायेगी। सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य रहते हैं। वहाँ कैनाल्स आदि की दरकार नहीं। यहाँ तो कितने कैनाल्स खोदते हैं। नदियां तो अनादि हैं। सतयुग में जमुना का कण्ठा होगा। वहाँ सब मीठे पानी के ऊपर महल होंगे। यह बाम्बे होगी नहीं। इनको कोई नई बाम्बे थोड़ेही कहेंगे।
तुम हर एक बच्चे को समझना है कि हम स्वर्ग के लिए राजाई स्थापन कर रहे हैं फिर यह नर्क रहेगा ही नहीं। रावण पुरी खत्म हो जायेगी। रामपुरी स्थापन हो जायेगी। तमोप्रधान पृथ्वी पर देवतायें पैर धर न सकें। जब चेन्ज होगी तब पाँव धरेंगे इसलिए लक्ष्मी को जब बुलाते हैं तो सफाई आदि करते हैं। लक्ष्मी का आह्वान करते हैं, चित्र रखते हैं। परन्तु उनके आक्यूपेशन का किसको पता नहीं है इसलिए आइडल-प्रस्थी कहा जाता है। पत्थर की मूर्ति को भगवान कह देते हैं। इन सब बातों को तुम बच्चे अभी समझते हो। परमात्मा ही बैठ समझाते हैं। आत्मा, आत्मा को समझा न सके। आत्मा कैसे और क्या-क्या पार्ट बजाती है, वह भी तुम अभी समझा सकते हो। बाबा आकर रियलाइज कराते हैं कि आत्मा क्या चीज़ है। मनुष्य तो न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं। तो उनको क्या कहेंगे। मनुष्य होते हुए चलन जैसे जानवर मिसल है।
अभी तुमको ज्ञान मिला है। सीढ़ी पर किसको समझाना तो बड़ा सहज है। सो भी हड्डी समझाना चाहिए। हम भारतवासी जो देवी-देवता धर्म वाले थे, वह कैसे सतोप्रधान बने फिर सतो रजो तमो में आये। यह सब बातें धारण करनी होती हैं तब ही विचार सागर मंथन होगा। धारणा ही नहीं होगी तो विचार सागर मंथन हो न सके। सुना और धन्धे में लग जाते हैं। विचार सागर मंथन करने का टाइम नहीं। नहीं तो तुम बच्चों को रोज़ पढ़ना है और उस पर विचार सागर मंथन करना है। मुरली तो कहाँ भी मिल सकती है। विशाल बुद्धि होने से प्वाइंट को समझ लेते हैं।
बाबा रोज़ समझाते हैं। किसको समझाने के लिए प्वाइंट्स तो बहुत हैं। गंगा पर भी तुम जाकर समझा सकते हो। सर्व का सद्गति दाता बाबा है या पानी की गंगा। तुम क्यों मुफ्त में पैसा बरबाद करते हो। अगर गंगा स्नान से पावन बन सकते हैं तो गंगा पर बैठ जाओ। बाहर निकलते ही क्यों हो। बाप तो कहते हैं श्वाँसों श्वाँस मुझे याद करो। यही योग अग्नि है। योग अर्थात् याद। समझानी तो बहुत है। परन्तु कोई सतोप्रधान बुद्धि हैं तो झट समझ जाते हैं। कोई रजो कोई तमो बुद्धि भी हैं। यहाँ क्लास में नम्बरवार नहीं बिठाया जाता है। नहीं तो हार्टफेल हो जायें। ड्रामा प्लैन अनुसार किंगडम पूरी स्थापन हो रही है। फिर सतयुग में थोड़ेही बाप पढ़ायेगा। बाप की पढ़ाई का एक ही समय है फिर भक्ति मार्ग में झूठी बातें बनाते हैं। वन्डर तो यह है जो पूरे 84 जन्म लेते हैं, उनका नाम गीता पर डाल दिया है और जो पुनर्जन्म रहित है उनका नाम गुम कर दिया है। तो 100 प्रतिशत झूठ हो गया ना।
बच्चों को बहुतों का कल्याण करना है। तुम्हारा सब कुछ है गुप्त। यहाँ तुम ब्रह्माकुमार कुमारियां अपने लिए स्वर्ग की सूर्यवंशी चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन कर रहे हो। यह भी किसकी बुद्धि में नहीं आयेगा। तुम्हारे में भी भूल जाते हैं तो दूसरे फिर क्या जानेंगे। तुम यह नहीं भूलो तो सदैव खुशी में रहो। भूलने से ही घुटका खाते हो।
अच्छा!, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हड्डी (जिगरी) सुख का अनुभव करने के लिए बाप जो पढ़ाते हैं, उसे बुद्धि में धारण करना है। विचार सागर मंथन करना है।
2) इस कब्रिस्तान को देखते भी नहीं देखना है। हियर नो ईविल, सी नो ईविल…। नई दुनिया के लायक बनना है।
वरदान:- कम्बाइन्ड रूप की सेवा द्वारा आत्माओं को समीप सम्बन्ध में लाने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव
सिर्फ आवाज द्वारा सेवा करने से प्रजा बनती जा रही है लेकिन आवाज से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज में आओ, अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज – ऐसे कम्बाइन्ड रूप की सेवा वारिस बनायेगी। आवाज द्वारा प्रभावित हुई आत्मायें अनेक आवाज सुनने से आवागमन में आ जाती हैं लेकिन कम्बाइन्ड रूपधारी बन कम्बाइन्ड रूप की सेवा करो तो उन पर किसी भी रूप का प्रभाव पड़ नहीं सकता।
स्लोगन:- साधनों में बेहद के वैराग्यवृत्ति की साधना मर्ज होने न दो।
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आप से निवदेन है :-
1. किर्प्या अपना अनुभव जरूर साँझा करे ताकि हम और बेहतर सेवा कर सकें।
धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।
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