14-1-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली

“मीठे बच्चे – यह तन रावण की प्रापर्टी है, इसे रावण को देकर अशरीरी बन घर जाना है इसलिए इससे ममत्व निकाल दो। ”

प्रश्नः– सारे सृष्टि को शान्ति और सुख का दान देने की विधि क्या है?

उत्तर:- सवेरे-सवेरे उठ अशरीरी होकर बाप की याद में बैठना, यह है विश्व को शान्ति का दान देने की विधि और स्वदर्शन चक्र फिराना – यह है सुख का दान देने की विधि। ज्ञान और योग से ही तुम एवरहेल्दी, वेल्दी बन जाते हो। सृष्टि नई हो जाती है।

गीत:- मुझे अपनी शरण में ले लो राम…      , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > Hindi Murli” 

Earth is RAWANS LANKA, पृत्वी रावण कि लंका है।
Earth is RAWANS LANKA, पृत्वी रावण कि लंका है।

“ओम् शान्ति”

यह भगत, भक्ति मार्ग में गीत गाते हैं कि हे राम अपनी शरण में ले लो। अंग्रेजी में कहते हैं कि एशलम में ले लो। हिन्दी अक्षर शरणागति है। भगत गाते हैं क्योंकि रावण राज्य है। रावण को जलाते भी हैं इससे भी सिद्ध है रावण राज्य है। इसका भी अर्थ कोई समझते नहीं। रावण का विनाश करने के लिए दशहरा करते हैं। यह भी एक निशानी है। अभी यह संगम है तो इस समय ही राम की शरण में गये होंगे और रावण का विनाश किया होगा। पास्ट में जो जो होकर जाते हैं उनका ही नाटक बनाते हैं। तुम बच्चे जानते हो हम अभी रावण की जेल से निकल राम की एशलम में आये हैं।

रामराज्य में रावण राज्य नहीं हो सकता और रावण राज्य में राम का राज्य नहीं हो सकता है। गाया भी जाता है – आधाकल्प रामराज्य, आधाकल्प रावण राज्य। रामराज्य सतयुग और त्रेता को कहेंगे। संगमयुग पर जिन्होंने राम की शरण ली है वही रामराज्य में गये होंगे। तुम जानते हो हम अभी राम की शरण में हैं। यह सारी दुनिया एक टापू है, चारों तरफ पानी है। बीच में है टापू। बड़े-बड़े टापू में फिर छोटे-छोटे टापू भी हैं।

अब तुम बच्चों की बुद्धि में है तो रावणराज्य सारी दुनिया पर है। कब से शुरू होता है? समझाया जाता है आधा-आधा है। रामराज्य में सुख, ब्रह्मा का दिन, रावण राज्य में दु:ख अर्थात् ब्रह्मा की रात। आधाकल्प सोझरा तो आधाकल्प अन्धियारा। सतयुग त्रेता में भक्ति का नाम निशान भी नहीं। फिर आधाकल्प भक्ति मार्ग चलता है द्वापर और कलियुग में। भक्ति दो प्रकार की है। द्वापर में पहले-पहले अव्यभिचारी भक्ति होती है। कलियुग में व्यभिचारी भक्ति बन जाती है। अभी तो देखो कच्छ-मच्छ आदि सबकी भक्ति करते हैं। मनुष्यों की बुद्धि को सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो होना ही है। इन स्टेज़ेस से पास होना है।

अमृतवेला , Amritvela
अमृतवेला , Amritvela

बाप समझाते हैं तुमने अभी राम अथवा शिवबाबा की गोद ली है। ईश्वर को बाबा कहते हैं। जब वह फादर है फिर फादर को सर्वव्यापी कहना – यह कहाँ सुना? कहेंगे फलाने शास्त्र में व्यास भगवान ने लिखा है। बाप समझाते हैं सर्वव्यापी के ज्ञान से तुमको कुछ भी फायदा नहीं हुआ है। सद्गति देने वाला जरूर कोई चाहिए। वह जरूर दूसरा होगा। सद्गति देते ही हैं गॉड फादर। यह तुम्हारा ईश्वरीय जन्म है। तुम अभी संगम पर हो। यह संगम का टाइम दिन में वा रात में नहीं गिना जाता है। यह छोटा सा संगम है जबकि दुनिया बदलनी है। आयरन एज से बदल गोल्डन एज होती है। रावण राज्य से बदल राम राज्य होता है, जिस रामराज्य के लिए तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। तो ऐसे-ऐसे गीत भी काम आते हैं। यह हुआ जैसे श्लोक, इनका अर्थ किया जाता है।

राम की शरण में जाने से फिर तुम सुख अर्थात् रामराज्य में आयेंगे। एक कहानी भी है तुम पहले सुख चाहते हो या दु:ख? बोला सुख क्योंकि सुख में फिर यमदूत लेने नहीं आयेंगे। परन्तु अर्थ नहीं समझते। बाप बैठ अच्छी रीति समझाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में है हमारा देवी-देवता कुल बहुत ऊंचा था। पहले ब्राह्मण कुल होता है फिर देवता बनते हैं, फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। तुम जानते हो हमने ही इन वर्णों से पास किया है। अभी आकर ब्राह्मण बने हैं। यह विराट रूप बिल्कुल ही ठीक है। वर्ण सिद्ध हो जाते हैं।

84 जन्म एक ही सतयुग में नहीं लिये जा सकते। यह वर्ण फिरते रहते हैं। ड्रामा का चक्र पूरा हुआ गोया 84 जन्म पूरे हुए। चक्र तो लगाना ही है इसलिए दिखाया जाता है – दैवी वर्ण में इतना समय, क्षत्रिय में इतना समय। आगे यह पता थोड़ेही था। कभी शास्त्रों में भी नहीं सुना था कि ऐसे वर्णों में आना है। तुम जानते हो 84 जन्म कौन लेते हैं।

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहुकाल… यह बात सिद्ध कर बतानी है। पहले-पहले देवी-देवता ही भारत में थे। भारत गोल्डन एज था। उस समय और कोई धर्म नहीं था फिर चक्र को फिरना ही है। मनुष्य को पुनर्जन्म लेना ही है। चक्र पर समझाना बड़ा सहज है।

बाबा डायरेक्शन देते हैं, प्रदर्शनी में ऐसे-ऐसे समझाना। इस समय जबकि हमको नई दुनिया में जाना है तो बाप कहते हैं यह पुरानी दुनिया है। इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर के जो भी सम्बन्धी आदि हैं, उनका बुद्धि से त्याग करो। बुद्धि से नये घर का आह्वान किया जाता है। यह है बेहद का संन्यास। देह सहित जो भी पुरानी दुनिया के सम्बन्ध आदि हैं, उन सबको भूलना है। बाप कहते हैं अपने को देही समझो। तुम असुल में मुक्तिधाम के रहने वाले हो। सभी धर्म वालों को बाप कहते हैं अब वापिस चलना है। मुक्ति को तो सब याद करते हैं ना।

अभी चलो अपने घर। जहाँ से तुम नंगे (अशरीरी) आये थ़े अब फिर अशरीरी होकर ही जाना है। शरीर को तो ले नहीं जा सकेंगे। आये अशरीरी हो तो जाना भी अशरीरी है। सिर्फ कब आना, कब जाना है, यह चक्र समझना है। बरोबर सतयुग में पहले-पहले देवी-देवता धर्म के ही आते हैं फिर नम्बरवार आते जाते हैं। जब मूलवतन से सब आ जाते हैं तो फिर वापिस जाना शुरू होता है। वहाँ तो आत्मा ही जायेगी, यह तन तो रावण की प्रापर्टी है तो यह रावण को ही देकर जाना है। यह सब कुछ यहाँ ही विनाश होता है। तुम अशरीरी होकर चलो। बाप कहते हैं मैं लेने आया हूँ। बाबा कितना सहज कर समझाते हैं, फिर धारणा भी होनी चाहिए। फिर जाकर औरों को समझाना चाहिए।

तुम गैरन्टी करते हो – बाबा हम सुनकर फिर सुनायेंगे। जिनको यह प्रैक्टिस होगी वह सुना सकेंगे। तुम जानते हो हमको इस दुनिया को पवित्र बनाना है। योग में रहकर शान्ति और सुख का दान देना है इसलिए बाबा कहते हैं रात्रि को उठकर योग में बैठो तो सृष्टि को दान दो। सवेरे-सवेरे अशरीरी होकर बैठते हो तो तुम भारत को, बल्कि सारी सृष्टि को योग से शान्ति का दान देते हो। और फिर चक्र का ज्ञान सिमरण करने से तुम सुख का दान देते हो। सुख होता है धन से। तो सवेरे उठकर याद में बैठो।

बाबा बस अब आपके पास आये कि आये। अब हमारे 84 जन्म पूरे हुए हैं। तो सवेरे उठकर बाप को याद कर, शान्ति और सुख का दान देना पड़े। योग और ज्ञान से हेल्थ और वेल्थ मिलेगी। जब हम एवरहेल्दी होते हैं तो सृष्टि ही नई होती है। सतयुग त्रेता में हेल्दी-वेल्दी हैं। कलियुग में अनहेल्दी-अनवेल्दी हैं। अब हम हेल्दी और वेल्दी बनते हैं। फिर आधाकल्प हमारा ही राज्य चलता है। बुद्धि में जब यह ज्ञान हो तब खुशी रह सके।

भल यह भी लिख दो कि 2500 वर्ष के लिए एवरहेल्दी, वेल्दी बनना हो तो आओ इस ईश्वरीय नेचर क्योर सेन्टर में। परन्तु यह लिखेंगे भी वह जिसमें ज्ञान होगा। ऐसे थोड़ेही सेन्टर हम खोलते हैं, सर्विस आप आकर करो। जो खोलते हैं उनको खुद सर्विस करनी चाहिए। झगड़ा सारा पवित्रता पर ही चलता है। विष न मिलने से अत्याचार होते हैं।

Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग
Sangam Yug Avinashi Gyan Yagna, संगम युग अविनाशी ज्ञान यग

अब है संगम। तो बुद्धि में सुखधाम और शान्तिधाम को ही याद करना चाहिए। दु:खधाम है तब तो सुखधाम को याद करते हैं। तब ही गाते हैं दु:ख में सिमरण सब करें… यह पतित दुनिया है। लॉ कहता है कलियुग के अन्त में सबको पतित होना ही है। जब तक संगम आये और रामराज्य की स्थापना हो जाए फिर राव-णराज्य का विनाश हो। अब विनाश की तैयारी हो रही है। रावण राज्य खलास होना ही है। बाकी यह गुड़ियों का खेल करते हैं। कितने गुड्डे-गुड़ियां बनाते हैं इसलिए इनको अन्धश्रद्धा कहा जाता है। जितने भारत में चित्र बनते हैं, उतने और कहाँ नहीं बनते हैं। भारत में ढेर चित्र हैं।

गाया भी जाता है ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। दिन को फिर लम्बा क्यों कर दिया है। यह भी समझने की बात है। पहले अव्यभिचारी भक्ति फिर व्यभिचारी। पहले 16 कला फिर 14, अन्त में कुछ तो कला रह जाती है परन्तु इस समय नो कला। इस समय है तमोप्रधान दुनिया। तमो कलियुग से शुरू होता है फिर अन्त में कहेंगे तमोप्रधान। अब दुनिया जड़जड़ीभूत हो गई है। पुरानी चीज़ को आपेही आग लग जाती है। जैसे बट का जंगल होता है तो उनको आपेही आग लग जाती है, इनको भी आग लगनी है। थोड़ा भी कुछ आपस में हुआ तो आग सुलग जायेगी। घर में कोई छोटी बात पर झगड़ा हो जाता है, आपस में दोस्त होते, थोड़ी सी बात पर ऐसी दुश्मनी हो जाती जो एक दो का गला काटने भी लग पड़ते हैं। क्रोध भी कम नहीं है। एक दो को मारने के लिए देखो कितनी तैयारी कर रहे हैं। यह है ड्रामा।

क्रिश्चियन लोग हैं दोनों बड़े, आपस में मिल जाएं तो सब कुछ कर सकते हैं। पोप भी क्रिश्चियन का हेड है, उनका मान बहुत रखते हैं। परन्तु मानते उनकी भी नहीं है। यहाँ भी जो बच्चे बाप की मानते नहीं तो वह विनाशी पद पाते हैं। श्रीमत पर चलना चाहिए। श्रीमत भगवत गीता है ना और कोई शास्त्र में श्रीमत है नहीं। श्री माना श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ, जो कब पुनर्जन्म में नहीं आते। मनुष्य तो पुनर्जन्म में आते हैं। विद्वानों ने तो जन्म-मरण से रहित की गाई हुई गीता में पूरे 84 जन्म लेने वाले का नाम डाल दिया है।

Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन - स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण
Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन – स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण

वास्तव में परमपिता परमात्मा ही ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर, पतित-पावन गाया हुआ है। वही वरदान देते हैं बच्चों को। उनके बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। पहले-पहले शिव जयन्ती फिर होती है कृष्ण जयन्ती। शिवबाबा आते हैं नई दुनिया स्थापन करने, तो पहले बाप का जन्म फिर बच्चे का जन्म। बाप के जन्म से ही कृष्ण बच्चा निकला। वह भी एक तो नहीं होगा। दैवी सम्प्रदाय कहा जाता है ना। तो कितना भूल कर दी है। कोई एक भी इस बात को समझ जाये तो उनके सब जिज्ञासु टूट पड़े। सबका मुंह पीला हो जाए। कितनी बड़ी भूल है तब ही बाप को आना पड़ता है। किसको समझानी देने में भी टाइम चाहिए।

पहले तो यह निश्चय कराओ कि परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है? तब समझें भगवान बाप है। भगवान को भगवान के पद पर तो रखो। सब एक जैसे कैसे होंगे। कहते हैं सब भगवान की लीला है। एक रूप छोड़ दूसरा लेते हैं। लेकिन परमात्मा कोई पुनर्जन्म थोड़ेही लेते हैं। यह बापदादा दोनों ही कम्बाइन्ड हैं और बच्चों को समझा रहे हैं। बापदादा का भी अर्थ किसकी बुद्धि में नहीं है। त्वमेव माताश्च पिता… कहते हैं। ओ गॉड फादर भी कहते हैं तो जरूर मदर चाहिए। परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं आता है।

बच्चों को समझाया तो शरण कब ली जाती है? जब रावण राज्य खत्म होता है तब राम आते हैं। राम की शरण लेने से ही सद्गति मिलती है। कहते हैं रामराज्य हो। उनको सूर्यवंशी राज्य का पता ही नहीं। कहते हैं रामराज्य नई दुनिया नया भारत हो, सो तो अब बन रहा है। बनना है जरूर। ड्रामा को चलना है जरूर। यह पढ़ाई है मनुष्य से देवता बनने की। मनुष्य किसको देवता बना न सकें। बाबा आकर मनुष्य को देवता बनाते हैं क्योकि बाबा ही स्वर्ग की स्थापना करते हैं।

ब्राह्मणों की माला नहीं गाई जाती है। वैजयन्ती माला विष्णु की है। यह है ईश्वरीय घराना, जो अब नया शुरू होता है। आगे था रावण का आसुरी घराना। रावण को असुर कहा जाता है। यह कंस जरासंधी नाम अभी सिद्ध होते हैं। जन्म-जन्मान्तर तुमको साकार से वर्सा मिलता है। सतयुग में भी साकार से मिलता है। सिर्फ इस समय तुमको निराकार बाप से वर्सा मिलता है। 

अच्छा!, “मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) देह सहित पुरानी दुनिया के सम्बन्धी आदि सब भूल स्वयं को देही समझना है। बुद्धि से नये घर का आह्वान करना है।

2) सवेरे-सवेरे उठ सारी दुनिया को शान्ति और सुख का दान देना है।

वरदान:-     आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा हलचल में भी अचल रहने वाले बाप समान भव !

जैसे साकार में रहना नेचुरल हो गया है, ऐसे ही “मैं आकारी फरिश्ता हूँ और निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ” – यह दोनों स्मृतियां नेचुरल हो क्योंकि शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी। अगर दोनों से प्यार है तो समान बनो। साकार में रहते अभ्यास करो – अभी-अभी आकारी और अभी-अभी निराकारी। तो यह अभ्यास ही हलचल में अचल बना देगा।

स्लोगन:-    दिव्य गुणों की प्राप्ति होना ही सबसे श्रेष्ठ प्रभू प्रसाद है। – “ॐ शान्ति”।

*** “ॐ शान्ति” ***

-: ”लवलीन स्थिति का अनुभव करो” :-

जो प्यारा होता है, उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है। सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो। जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा – तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते। और नि:स्वार्थ प्यार सिवाए बाप के किसी आत्मा से मिल नहीं सकता इसलिए कभी मतलब से याद नहीं करो, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रहो।

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किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे

धन्यवाद – “ॐ शान्ति”।

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