14-08-2021 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली
14-08-2021 | प्रात: मुरली ओम् शान्ति | ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम ड्रामा के गुप्त राज़ को जानते हो कि यह संगमयुग ही चढ़ती कला का युग है, सतयुग से लेकर कलायें कम होती जाती हैं”
प्रश्नः- सबसे उत्तम सेवा कौन सी है और वह सेवा कौन करता है?
उत्तर:- भारत को स्वर्ग बनाना, रंक को राव बनाना, पतित को पावन बनाना – यह है सबसे उत्तम सेवा। ऐसी सेवा एक बाप के सिवाए और कोई भी नहीं कर सकता। बाप ने ऐसी महान सेवा की है तब तो बच्चे उनकी इज्जत करते हैं, सबसे पहले सोमनाथ का मन्दिर बनाकर उनकी पूजा करते हैं।
गीत:- आखिर वह दिन आया आज…….
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने यह गीत सुना। जैसे आत्मा गुप्त है और शरीर प्रत्यक्ष है, आत्मा इन आंखों से देखने में नहीं आती है, इनकागनीटो है। है जरूर परन्तु इस शरीर से ढकी हुई है, इसलिए कहा जाता है आत्मा गुप्त है। आत्मा खुद कहती है मैं निराकार हूँ, यहाँ साकार में आकर गुप्त बनी हूँ। आत्माओं की निराकारी दुनिया है। वहाँ तो गुप्त की बात नहीं। परमपिता परमात्मा भी वहाँ रहते हैं, उनको कहा जाता है – सुप्रीम। ऊंच ते ऊंच आत्मा। परे ते परे रहने वाला है परमपिता परमात्मा। बाप कहते हैं – जैसे तुम गुप्त हो, मुझे भी गुप्त आना पड़े। मैं गर्भजेल में नहीं आता हूँ। मेरा नाम एक ही शिव चला आता है। मैं इसमें आता हूँ तो मेरा नाम नहीं बदलता। इनकी आत्मा का जो शरीर है, उनका नाम बदलता है। मुझे तो शिव ही कहते हैं, सभी आत्माओं का बाप। तो तुम आत्मायें इस शरीर में गुप्त हो। इस शरीर द्वारा कर्म करती हो। मैं भी गुप्त हूँ। तुम बच्चों को यह ज्ञान अब मिल रहा है कि मैं आत्मा इस शरीर से ढकी हुई हूँ। आत्मा है – इनकागनीटो। शरीर है कागनीटो। मैं भी अशरीरी हूँ। बाप इनकागनीटो इस शरीर द्वारा सुनाते हैं। तुम भी इनकागनीटो हो, शरीर द्वारा सुनते हो। तुम जानते हो बाबा आया हुआ है।
बाप आते हैं भारत को फिर से गरीब से साहूकार बनाने। तुम कहेंगे हमारा भारत गरीब है। सब जानते हैं परन्तु उनको कोई पता ही नहीं कि हमारा भारत साहूकार कब था, कैसे था। तुम बच्चों को बहुत नशा है – हमारा भारत तो बहुत साहूकार था। दु:ख की बात नहीं थी। सतयुग में दूसरा कोई धर्म नहीं था। एक ही देवी–देवता धर्म था, यह किसको पता नहीं। यह जो वर्ल्ड की हिस्ट्री–जॉग्राफी है, यह कोई नहीं जानते हैं। अभी तुम अच्छी रीति समझते हो हमारा भारत बहुत साहूकार था। अभी बहुत गरीब है। अब फिर बाप आये हैं साहूकार बनाने। भारत सतयुग में बहुत साहूकार था, जबकि देवी–देवताओं का राज्य था फिर राज्य कहाँ चला गया। यह कोई नहीं जानते हैं।
ऋषि–मुनि आदि भी कहते हम रचता और रचना को नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं – सतयुग में इन देवी–देवताओं को रचता–रचना का ज्ञान नहीं था। आदि–मध्य–अन्त को नहीं जानते। अगर उन्हों को यह ज्ञान हो कि हम सीढ़ी उतरते रसातल में जायेंगे तो बादशाही का सुख भी न रहे। चिंता लग जाए।
अभी तुमको चिंता लगी हुई है कि हम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनें। हम आत्मायें जो निराकारी दुनिया में रहती थी वहाँ से फिर कैसे सुखधाम में आई – यह भी ज्ञान है। हम अभी चढ़ती कला में हैं। यह 84 जन्मों की सीढ़ी है, इसके बीच में क्या होता है, यह भी तुम जानते हो। सतयुग में सब तो नहीं आयेंगे। ड्रामा अनुसार हर एक एक्टर नम्बरवार अपने-अपने समय पर आकर पार्ट बजायेंगे।
अभी तुम बच्चे जानते हो गरीब निवाज़ किसको कहा जाता है, दुनिया नहीं जानती। गीत में भी सुना – आखिर वह दिन आया आज… यह सब है भक्ति। भगवान कब आकर हम भक्तों को इस भक्ति मार्ग से छुड़ाए सद्गति में ले जाते हैं, यह भी समझा है। रामराज्य, रावणराज्य किस चीज़ का नाम है, यह भी कोई मनुष्य नहीं जानते। अभी तुम बच्चे समझते हो – बाबा फिर से आ गया है इस शरीर में। शिव जयन्ती भी मनाते हैं तो शिव जरूर आते हैं। ऐसे भी नहीं कहते मैं कृष्ण के तन में आता हूँ, नहीं। बाप कहते हैं – कृष्ण की आत्मा ने 84 जन्म लिए हैं। जो पहले नम्बर में था वह अब अन्त में है, ततत्वम्। मैं तो आता ही हूँ साधारण तन में। तुमको आकर बतलाता हूँ, तुम कैसे 84 जन्म भोगते हो। इस समय देवता धर्म का तो एक भी अपने को समझते नहीं हैं क्योंकि सतयुग को बहुत दूर ले गये हैं।
कल्प की आयु लाखों वर्ष लिख दी है। वास्तव में ड्रामा की हिस्ट्री तो बहुत छोटी है। इसमें कोई धर्म की 500 वर्ष की, कोई की 2500 वर्ष की हिस्ट्री है। तुम्हारी हिस्ट्री है – 5 हजार वर्ष की। देवता धर्म वाले ही स्वर्ग में आयेंगे और धर्म तो आते ही बाद में हैं। देवता धर्म वाले ही और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं। ड्रामा अनुसार फिर भी ऐसे ही कनवर्ट हो जायेंगे। फिर अपने–अपने धर्म में लौटकर आयेंगे। बाप समझाते हैं बच्चे, तुम तो विश्व के मालिक थे। तुम अभी समझते हो बाबा स्वर्ग की स्थापना करने वाला है तो हम क्यों नहीं स्वर्ग में होंगे। बाप से हम वर्सा जरूर लेंगे। तो इससे सिद्ध होता है कि यह हमारे धर्म का है, जो नहीं होगा वह आयेंगे ही नहीं। कहेंगे पराये धर्म में क्यों जायें।
तुम बच्चे जानते हो सतयुग नई दुनिया में देवताओं को बहुत सुख थे। सोने के महल थे। सोमनाथ के मन्दिर में कितना सोना था। ऐसा कोई दूसरा मन्दिर होता ही नहीं। उसमें बहुत हीरे जवाहरात थे। बौद्ध आदि के कोई हीरे जवाहरों के महल नहीं होंगे। तुम बच्चों को जिस बाप ने इतना ऊंचा बनाया है उनकी तुमने कितनी इज्जत रखी है। जो अच्छा कर्म करके जाते हैं उनकी इज्जत रखी जाती है। अभी तुम जानते हो सबसे अच्छे कर्म पतित–पावन बाप ही करके जाते हैं। तुम्हारी आत्मा कहती है सबसे उत्तम से उत्तम सेवा बेहद का बाप आकर करते हैं। हमको रंक से राव, बेगर से प्रिन्स बना देते हैं। जो भारत को स्वर्ग बनाते हैं उनकी भी इज्जत कोई नहीं रखते।
तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच मन्दिर गाया हुआ है सोमनाथ का, जिसको लूट ले गये। लक्ष्मी–नारायण के मन्दिर को कभी कोई ने लूटा नहीं है। सोमनाथ के मन्दिर को लूटा है। भक्ति मार्ग में यह बहुत धनवान होते हैं। राजाओं में भी नम्बरवार होते हैं ना। जो ऊंच मर्तबे वाले होते हैं उनकी छोटे मर्तबे वाले इज्जत करते हैं। दरबार में भी नम्बरवार बैठते हैं। बाबा तो अनुभवी है ना। यहाँ की दरबार है, पतित राजाओं की। पावन राजाओं की दरबार कैसी होगी। जबकि उन्हों के पास इतना धन होगा तो उन्हों का घर भी इतना ही अच्छा होगा। अभी तुम जानते हो बाबा हमको पढ़ा रहे हैं, स्वर्ग की स्थापना करा रहे हैं। हम महाराजा–महारानी स्वर्ग के बनते हैं फिर हम गिरते हैं, फिर हम पहले–पहले शिवबाबा के पुजारी बनेंगे। जिसने स्वर्ग का मालिक बनाया, उनकी हम पूजा करेंगे। वह हमको बहुत साहूकार बनाते हैं।
अभी भारत कितना गरीब है। आगे इतना गरीब नहीं था। बहुत खुशी में रहते थे। जो जमीन 500 रूपये में ली थी, वह आज 5 हजार में भी नहीं मिलती है। वहाँ तो धरनी का मूल्य होता नहीं, जिसको जितना चाहिए ले लेवे। ढेर की ढेर जमीन पड़ी होगी। मीठी नदियों पर तुम्हारे महल होंगे ना। मनुष्य बहुत थोड़े होंगे, प्रकृति दासी होगी, फल फूल बहुत अच्छे मिलते रहते हैं। अभी तुम कितनी मेहनत करते हो। लेकिन सूखा पड़ जाता है तो अन्न नहीं मिलता है। तो गीत सुनने से तुम्हारे रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। बाप को गरीब–निवाज़ कहते हो। अब अर्थ समझा ना। किसको साहूकार बनाते हैं? जरूर यहाँ जो आयेंगे उनको साहूकार बनायेंगे ना। तुम बच्चे जानते हो हमको पावन से पतित बनने में 5 हजार वर्ष लगे हैं। अभी फिर फट से बाबा पतित से पावन बनाते हैं। ऊंच ते ऊंच बनाते हैं। एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल जाती है।
कहते हैं बाबा हम आपके हैं। बाप कहते हैं – बच्चे तुम विश्व के मालिक हो। बच्चा पैदा हुआ और वारिस बना। कितनी खुशी होती है। लेकिन बच्ची को देख चेहरा ही उतर जाता है। यहाँ तो सभी आत्मायें बच्चे हैं। हम स्वर्ग के मालिक बन गये, अभी पता पड़ा है कि हम 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग के मालिक थे। बाबा ने ऐसा बनाया था।
शिव जयन्ती भी मनाते हैं – परन्तु यह नहीं जानते कि वह कब आया था। लक्ष्मी–नारायण का राज्य कब था, कुछ नहीं जानते। वास्तव में भारत की आबादी सबसे बड़ी होनी चाहिए। भारत की जमीन भी सबसे बड़ी होनी चाहिए। लाखों वर्ष हो फिर तो बहुत जमीन चाहिए। सारी दुनिया की भी जमीन पूरी न हो। लाखों वर्ष में कितने मनुष्य पैदा हो जाते। अनगिनत मनुष्य हो जाएं। इतने तो हैं नहीं। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। मनुष्य सुनते हैं तो कहते हैं यह बातें तो कब नहीं सुनी, न कोई शास्त्रों से पढ़ी, यह तो वन्डरफुल बातें हैं।
अभी तुम बच्चों की बुद्धि में सारे चक्र की नॉलेज है। यह बहुत जन्मों के अन्त में अब पतित आत्मा है, जो सतोप्रधान था सो अब तमोप्रधान है, फिर सतोप्रधान बनना है। तुम आत्माओं को अब शिक्षा मिल रही है – आत्मा शरीर द्वारा सुनती है तो शरीर झूलता है क्योंकि आत्मा सुनती है ना। बरोबर हम आत्मा ने 84 जन्म लिए हैं, 84 माँ बाप जरूर मिले होंगे। यह भी हिसाब है ना। बुद्धि में आता है 84 जन्म लेते हैं फिर और कमती जन्म वाले भी होंगे। मिनीमम, मैक्सीमम का हिसाब होगा ना। बाप बैठ समझाते हैं शास्त्रों में क्या–क्या लिख दिया है। तुम्हारे लिए तो फिर भी 84 जन्म कहते हैं, मेरे लिए तो अनगिनत, बेशुमार जन्म कह दिया है। कण-कण में बस जिधर देखता हूँ, तू ही तू…. कृष्ण ही कृष्ण है। मथुरा वृन्दावन में कहते हैं – कृष्ण सर्वव्यापी है। राधे पंथ वाले फिर कहेंगे राधे ही राधे। कहेंगे हम राधा-स्वामी हैं। कृष्ण स्वामी और हैं। वह राधे को मानते हैं, जिधर देखता हूँ राधे ही राधे। तुम भी राधे हम भी राधे।
अब बाप बैठ समझाते हैं बरोबर मैं गरीब निवाज़ हूँ ना। भारत ही सबसे साहूकार था। अभी सबसे गरीब बना है इसलिए मुझे भारत में ही आना पड़े। यह बना बनाया ड्रामा है, इसमें जरा भी फ़र्क नहीं हो सकता है। यह ह्यूज़ ड्रामा है। ड्रामा जो शूट हुआ वह हूबहू रिपीट होगा। ड्रामा का भी पता होना चाहिए। ड्रामा माना ड्रामा। वह होता है हद का ड्रामा, यह है बेहद का ड्रामा। इसके आदि-मध्य-अन्त को कोई नहीं जानते।
तो गरीब निवाज़ निराकार भगवान को ही मानेंगे, कृष्ण को नहीं मानेंगे। कृष्ण तो धनवान सतयुग का प्रिन्स बनता है। भगवान को तो अपना शरीर है नहीं, वह आकर तुम बच्चों को धनवान बनाते हैं। तुमको राजयोग की शिक्षा देते हैं। वह भी पढ़ाई से बैरिस्टर आदि बनते हैं फिर कमाई करते हैं। बाप भी तुमको अभी पढ़ाते हैं। तुम भविष्य में नर से नारायण बनते हो। तुम्हारा जन्म तो होगा ना। ऐसे तो नहीं स्वर्ग कोई समुद्र से निकल आयेगा। कृष्ण ने भी जन्म लिया ना। कंसपुरी आदि तो उस समय थी नहीं। कृष्ण का कितना नाम गाया जाता है। उनके बाप का नाम ही नहीं, उनका बाप कहाँ है। जरूर राजा का बच्चा होगा ना। वहाँ बड़े राजा के घर में जन्म होता है। परन्तु वह पतित राजा होने के कारण उनका नाम थोड़ेही होगा। कृष्ण जब है तब थोड़े पतित भी रहते हैं। जब वह बिल्कुल खलास हो जाते हैं तब वह गद्दी पर बैठते हैं, अपना राज्य ले लेते हैं तब ही उनका संवत शुरू होता है। लक्ष्मी–नारायण से संवत शुरू होता है। तुम पूरा हिसाब लिखते हो। इनका राज्य इतना समय फिर इनका इतना समय तो मनुष्य समझेंगे यह तो कल्प की आयु बड़ी हो ही नहीं सकती। 5 हजार वर्ष का पूरा हिसाब है।
अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रचयिता और रचना का ज्ञान बुद्धि में रख सतोप्रधान बनने का पुरुषार्थ करना है। बस एक ही चिंता रखनी है कि हमें सतोप्रधान जरूर बनना है।
2) इस बेहद के ड्रामा को बुद्धि में रख अपार खुशी में रहना है, बाप समान इज्जत पाने के लिए पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:- एवररेडी बन हर परिस्थिति रूपी पेपर में फुल पास होने वाले एवरहैपी भव
जो एवररेडी हैं उन्हों का प्रैक्टिकल स्वरूप एवर हैपी होगा। कोई भी परिस्थिति रूपी पेपर वा प्राकृतिक आपदा द्वारा आया हुआ पेपर वा कोई भी शारीरिक कर्मभोग रूपी पेपर आ जाये – इन सब प्रकार के पेपर्स में फुल पास होने वाले को ही एवररेडी कहेंगे। जैसे समय किसके लिए रूकता नहीं, ऐसे कभी कोई भी रूकावट रोक न सके, माया के सूक्ष्म वा स्थूल विघ्न एक सेकण्ड में समाप्त हो जाएं तब एवरहैपी रह सकेंगे।
स्लोगन:- समय पर सर्व शक्तियों को कार्य में लगाना अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिमान बनना।
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