13-6-2022- ”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली.

“मीठे बच्चे – यह पाठशाला है नर से नारायण बनने की, पढ़ाने वाला स्वयं सत्य बाप, सत शिक्षक और सतगुरू है, तुम्हें इसी निश्चय में पक्का रहना है”

प्रश्नःतुम बच्चों को किस बात का जरा भी फिकर नहीं होना चाहिए, क्यों?

उत्तर:- अगर कोई चलते-चलते हार्टफेल हो जाता, शरीर छोड़ देता तो तुम्हें फिकर नहीं होना चाहिए क्योंकि तुम जानते हो हरेक को अपनी एक्ट करना है। तुम्हें खुश होना चाहिए कि आत्मा, ज्ञान और योग के संस्कार लेकर गई तो और ही भारत की अच्छी सेवा करेगी। फिकर की बात नहीं। यह तो ड्रामा की भावी है।

गीत:- तुम्हीं हो माता…. , अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.

“ओम् शान्ति”

बाप बच्चों को समझाते हैं, बच्चे जानते हैं बाबा भी बच्चे कह बुलाते हैं और यह बापदादा दोनों कम्बाइन्ड है। पहले बापदादा फिर बच्चे हैं, यह नई रचना हुई ना और बाप राजयोग भी सिखला रहे हैं। हूबहू 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से हमको राजयोग सिखला रहे हैं। भक्ति मार्ग में फिर उनके किताब बनाए उसको गीता कह दिया है। परन्तु इस समय तो गीता की कोई बात नहीं। यह पीछे शास्त्र बनाए उसको कह दिया है श्रीमद्भगवत गीता, सहज राजयोग की पुस्तक। भक्ति मार्ग में पुस्तक पढ़ने से फायदा नहीं होगा। ऐसे ही सिर्फ शिव को याद करने से कोई वर्सा नहीं मिल सकता। वर्सा सिर्फ अभी संगम पर ही मिल सकता है। बाप है ही बेहद का वर्सा देने वाला और वर्सा भी देंगे संगम पर। बाप राजयोग सिखलाते हैं।

Sacred book of Gods Verses Srimad Bhagwat GEETA , भगवानुवाच भागवत गीता
Sacred book of Gods Verses Srimad Bhagwat GEETA , भगवानुवाच भागवत गीता

दूसरे भी जो संन्यासी आदि सिखलाते हैं उनके सिखलाने और इसमें रात-दिन का फर्क है। उन्हों की बुद्धि में गीता रहती है और समझते हैं कृष्ण ने गीता सुनाई। व्यास ने लिखी। परन्तु गीता तो न कृष्ण ने सुनाई थी, न वह समय था। न कृष्ण का रूप हो सकता है। बाप सब बातें क्लीयर कर समझाते हैं और कहते हैं अभी जज करो। उनका नाम भी बाला है। सत्य बताने वाला ही नर से नारायण बना सकते हैं। तुम बच्चे जानते हो हम नर से नारायण बनने के लिए इस पाठशाला वा रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हैं।

शिवबाबा अक्षर अच्छा लगता है। बरोबर बाप और दादा जरूर हैं। इस निश्चय से तुम आये हो। बाप ब्रह्मा द्वारा सभी वेदों शास्त्रों का सार समझाते हैं और समझा रहे हैं हम तुमको त्रिकालदर्शी बना रहे हैं। ऐसे नहीं कि तुम त्रिलोकीनाथ बनते हो। नहीं, तुम नाथ तो बनते हो सिर्फ एक शिवपुरी के। उनको लोक नहीं कहेंगे। लोक मनुष्य सृष्टि को कहा जाता है। मनुष्य लोक चैतन्य लोक, वह है निराकारी लोक। तुमको सिर्फ त्रिलोकी की नॉलेज सुनाते हैं, त्रिलोकी का नाथ नहीं बनाते। तीनों लोकों का ज्ञान मिला है इसलिए त्रिलोकदर्शी कहा जाता है।

लक्ष्मी-नारायण को भी त्रिलोकीनाथ नहीं कहेंगे। विष्णु को भी त्रिलोकीनाथ नहीं कहेंगे। उनको तो तीनों लोकों का ज्ञान ही नहीं है। लक्ष्मी-नारायण जो बचपन में राधे-कृष्ण हैं, उनको त्रिलोकी का ज्ञान नहीं है। तुमको त्रिकालदर्शी बनना है। नॉलेज लेना है। बाकी कृष्ण के लिए कहते हैं – त्रिलोकीनाथ था, परन्तु नहीं। तीनों लोकों का नाथ तो उनको कहेंगे जो राज्य करे। वह तो सिर्फ वैकुण्ठनाथ बनते हैं, सतयुग को वैकुण्ठ कहा जाता है।

त्रेता को वैकुण्ठ नहीं कहेंगे। इस लोक के भी हम नाथ नहीं बन सकते। बाबा भी सिर्फ ब्रह्म महतत्व का नाथ है। ब्रहमाण्ड, जिसमें हम आत्मायें अण्डे मिसल रहते हैं, उनका ही मालिक है। ब्रह्मा, विष्णु व शंकर सूक्ष्मवतन में रहने वाले हैं तो वह वहाँ के नाथ कहेंगे। तुम बनते हो वैकुण्ठ नाथ। वह सूक्ष्मवतन की बात, वह मूलवतन की बात। सिर्फ तुम ही त्रिकालदर्शी बन सकते हो। तुम्हारा तीसरा नेत्र खुला है। दिखाते भी हैं भृकुटी के बीच में तीसरा नेत्र है, इसलिए त्रिनेत्री कहते हैं। परन्तु यह निशानी देवताओं को देते हैं क्योंकि तुम्हारी जब कर्मातीत अवस्था हो जाती है तब तुम त्रिनेत्री बनते हो, वह तो इस समय की बात है।

त्रिमूर्ति चित्र , Three Deity Picture
त्रिमूर्ति चित्र , Three Deity Picture

बाकी वह तो ज्ञान का शंख नहीं बजाते। उन्होंने फिर वह स्थूल शंख लिख दिया है। यह मुख की बात है। इससे तुम ज्ञान शंख बजाते हो। नॉलेज पढ़ रहे हो। जैसे बड़ी युनिवर्सिटी में नॉलेज पढ़ते हैं। यह है पतित-पावन गॉड फादरली युनिवर्सिटी। कितनी बड़ी युनिवर्सिटी के तुम स्टूडेन्ट हो। साथ-साथ तुम यह भी जानते हो कि हमारा बाबा, बाबा है, टीचर है, सतगुरू है। सब कुछ है। यह मात-पिता हर हालत में सुख देने वाले हैं इसलिए कहते हैं तुम मात पिता…। यह है पीन, बहुत मीठा है। देवताओं जैसे मीठे कभी कोई हो न सकें।

बच्चे जानते हैं भारत बहुत सुखी, एवरहेल्दी, एवरवेल्दी था। बिल्कुल पवित्र था। कहा ही जाता है वाइसलेस भारत। अभी तो नहीं कहेंगे। अभी तो विशश पतित कहेंगे। बाप कितना सहज कर समझा रहे हैं। बाप और वर्से को जान जाते हैं। बाबा कितना मीठा बनाते हैं। तुम भी फील करते हो हमको श्रीमत पर पढ़ना और पढ़ाना है। यही धन्धा है। बाकी कर्मभोग तो जन्म-जन्मान्तर का बहुत है ना। समझो कोई बीमार पड़ते हैं, कल हार्टफेल हो जाता है तो समझा जाता है भावी ड्रामा की। उनको शायद और पार्ट बजाना होगा, इसलिए दु:ख की बात नहीं रहती। ड्रामा अटल है। उनको दूसरा पार्ट बजाना है, फिकर की क्या बात है।

और ही भारत की अच्छी सेवा करेंगे क्योंकि संस्कार ही ऐसे ले जाते हैं, कोई के कल्याण अर्थ। तो खुश होना चाहिए ना। समझाते रहते हैं अम्मा मरे तो हलुआ खाना… इसमें समझ चाहिए। तुम जानते हो हम एक्टर्स हैं। हरेक को अपना एक्ट करना है। ड्रामा में नूँध है। एक शरीर छोड़ दूसरा पार्ट बजाना है। यहाँ से जिन संस्कारों से जायेंगे वहाँ गुप्त भी सर्विस ही करेंगे। आत्मा में संस्कार तो रहते हैं ना।

जो सर्विसएबुल बच्चे हैं मुख्य, मान भी उनका है। सर्विस करने वाले, भारत का कल्याण करने वाले सिर्फ तुम बच्चे हो। बाकी और सब अकल्याण ही करते हैं। पतित बनाते हैं। समझो कोई फर्स्टक्लास संन्यासी मरता है, वह ऐसे बैठ जाते हैं, हम शरीर छोड़ ब्रह्म में जाकर लीन हो जायेंगे। तो वह जाकर कोई का कल्याण कर नहीं सकते क्योंकि वह कोई कल्याणकारी बाप की सन्तान थोड़ेही हैं। तुम कल्याणकारी की सन्तान हो। तुम किसका अकल्याण कर नहीं सकते। तुम तो जायेंगे कल्याण अर्थ। यह है पतित दुनिया।

बाप का आर्डीनेन्स निकला है कि अभी यह भोगबल की रचना नहीं चाहिए। यह तमोप्रधान है। आधाकल्प से तुम एक दो को काम कटारी से दु:ख देते आये हो। यह रावण के 5 भूत हैं जो तुमको दु:ख देते हैं। यह तुम्हारे बड़े दुश्मन हैं। बाकी कोई सोनी लंका आदि थी नहीं। यह सब बातें बैठ बनाई हैं। बाप कहते यह तो बेहद की बात है। सारी मनुष्य सृष्टि इस समय रावण की जंजीरों में बंधी हुई है। मैगजीन में भी चित्र अच्छा निकला है – सब रावण के पिंजड़े में पड़े हैं, सब शोक वाटिका में हैं। अशोक वाटिका नहीं है। अशोका होटल नहीं। यह तो सब शोक की होटलें हैं, बहुत गन्द करते हैं। तुम बच्चे जानते हो स्वच्छ कौन हैं, गन्दे कौन है?

84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births
84 जन्मों कि सीढ़ी , Ladder of 84 Human Births

अभी तुम फूल बन रहे हो। तुम बच्चे समझते हो आत्मा के रिकार्ड में कितना बड़ा पार्ट नूँधा हुआ है। यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। इस छोटी आत्मा में अविनाशी पार्ट 84 जन्मों का भरा हुआ है। कहते भी हैं हम पतित तमोप्रधान हैं। अभी है इन्ड। खूने नाहेक खेल है ना। एक बाम से कितने मर पड़ते हैं। तुम जानते हो अभी पुरानी दुनिया रहनी नहीं है। यह पुराना शरीर, पुरानी दुनिया है। हमको नई दुनिया में नया शरीर मिलना है, इसलिए पुरुषार्थ कर रहे हैं श्रीमत पर। जरूर यह सब बच्चे उनके मददगार हैं।

श्री श्री की श्रीमत पर हम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण बनते हैं। वाइसप्रेजीडेन्ट को प्रेजीडेन्ट थोड़ेही कहेंगे। यह तो हो ही नहीं सकता। पत्थर-भित्तर में भगवान अवतार कैसे लेंगे। उनके लिए गाते हैं यदा यदाहि.. जब-जब बिल्कुल पतित बन जाते हैं, कलियुग का अन्त समीप आ जाता है तब मुझे आना पड़ता है। अब तुम बच्चे मुझ बाप को याद करो। बाबा पूछते हैं – बाबा की याद रहती है? कहते हैं बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। क्यों? लौकिक बाप को तो कभी भूलते नहीं। यह बात बिल्कुल नई है। बाप निराकार एक बिन्दी है। यह प्रैक्टिस नहीं है। कहते हैं ना – हमने न तो कभी ऐसा सुना, न उनको ऐसे याद किया।

देवताओं को भी यह ज्ञान नहीं रहता। यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। उनको स्वदर्शन चक्रधारी भी नहीं कहेंगे। भल कहते हैं विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। प्रवृत्ति मार्ग के लिए दो रूप दिखाते हैं। ब्रह्मा सरस्वती, शंकर पार्वती, लक्ष्मी नारायण। ऊंचे ते ऊंचा है एक, फिर है सेकेण्ड, थर्ड… अब बाप कहते हैं बच्चे देह सहित देह के सभी धर्म छोड़ो, अपने को आत्मा समझो। मैं आत्मा बाप का बच्चा हूँ। मैं संन्यासी नहीं हूँ। बाप को याद करो, इस देह के धर्म को भूल जाओ। बड़ा सहज है।

अभी बाप के साथ बैठे हो। बाबा ब्रह्मा द्वारा बैठ बतलाते हैं। बापदादा दोनों कम्बाइन्ड हैं। जैसे दो बच्चे इकट्ठे पैदा होते हैं ना, यह भी दो का पार्ट इकट्ठा चल रहा है। बच्चों को समझाया है अन्त मती सो गती। जब शरीर छोड़ते हैं, उस समय बुद्धि कहाँ चली गई तो वहाँ जाकर जन्म लेना पड़ेगा। अन्तकाल पति का मुंह देखती है तो बुद्धि वहाँ चली जाती है। अन्तकाल जो जैसी स्मृति में रहता है, उसी समय का बड़ा असर रहता है। अगर उस समय की स्मृति रहे कि कृष्ण जैसा बच्चा बनूँ, तो बात मत पूछो। बहुत सुन्दर बच्चा बन जन्म लेते हैं। अब तो अन्त मती एक ही लगन रखनी है ना।

इस समय तुम क्या कर रहे हो! जानते हो हम शिवबाबा को याद करते हैं। सबको साक्षात्कार तो होता ही है। मुकुटधारी तो कृष्ण भी है, राधे भी हैं। प्रिन्स-प्रिन्सेज तो होंगे परन्तु कब? सतयुग में वा त्रेता में? वह फिर पुरुषार्थ पर है। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। तुम कहते हो हम तो 21 जन्मों के लिए राजाई लेंगे। मम्मा बाबा लेते हैं तो क्यों नहीं हम फालो करें। नॉलेज को धारण कर फिर कराना है, इतनी सर्विस करनी है तब 21जन्मों के लिए प्रालब्ध मिलेगी।

स्कूल में जो अच्छी रीति पुरुषार्थ नहीं करते हैं तो कम मार्क्स लेते हैं। तुम अभी 5 विकारों रूपी माया रावण पर विजय पाते हो। तुम्हारी है अहिंसक युद्ध। अगर राम को निशानी न देवें तो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी कैसे कहा जाए। तो बाप कहते हैं तुम जितना पुरुषार्थ करेंगे तो अन्त मती सो गति होगी। देह का भी ख्याल न हो, सबको भूलना है। बाप कहते हैं तुम नंगे (अशरीरी) आये थे फिर नंगे जाना है। तुम इतनी छोटी बिन्दी इन कानों से सुनती हो, मुख द्वारा बोलती हो। हम आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरे में जाते हैं। अभी हम आत्मायें घर जा रही हैं।

Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन - स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण
Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन – स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण

बाबा बड़ा श्रृंगार कराते हैं, जिससे मनुष्य से देवता बन जाते हैं। तुम जानते हो शिवबाबा को याद करने से हम ऐसे बनते हैं। गीता में भी है मुझे याद करो और वर्से को याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। बिल्कुल सहज है। समझते भी हैं – बरोबर हम कल्प-कल्प आपसे ब्रह्मा द्वारा वर्सा पाते हैं। गाते भी हैं ना – ब्रह्मा द्वारा स्थापना देवता धर्म की। नापास होने से फिर त्रेता के क्षत्रिय धर्म में चले जाते हैं। ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय.. तीन धर्मों की स्थापना होती है। सतयुग में और कोई धर्म होते नहीं, और सब बाद में आते हैं। उनसे हमारा कोई कनेक्शन नहीं। भारतवासी भूल गये हैं कि हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं। यह भी ड्रामा का पार्ट ऐसा बना हुआ है।  

“अच्छा! मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।“

धारणा के लिए मुख्य सार :-

1) श्रीमत पर पढ़ने और पढ़ाने का धन्धा करना है। ड्रामा की भावी पर अटल रहना है। किसी भी बात का फिकर नहीं करना है

2) अन्तकाल में एक बाप के सिवाय और कोई भी याद न आये, इसलिए इस देह को भी भूलने का अभ्यास करना है। अशरीरी बनना है।

वरदान:-     मन-बुद्धि से किसी भी बुराई को टच न करने वाले सम्पूर्ण वैष्णव व सफल तपस्वी भव!

पवित्रता की पर्सनैलिटी व रायॅल्टी वाले मन-बुद्धि से किसी भी बुराई को टच नहीं कर सकते। जैसे ब्राह्मण जीवन में शारीरिक आकर्षण व शारीरिक टचिंग अपवित्रता है, ऐसे मन-बुद्धि में किसी विकार के संकल्प मात्र की आकर्षण व टचिंग अपवित्रता है। तो किसी भी बुराई को संकल्प में भी टच न करना – यही सम्पूर्ण वैष्णव व सफल तपस्वी की निशानी है।

स्लोगन:-    मन की उलझनों को समाप्त कर वर्तमान और भविष्य को उज्जवल बनाओ। – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > Hindi Murli

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किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे [ निचे ]

अच्छा – ओम् शान्ति।

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