10-7-2022-”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली. रिवाइज:04-12-1991.

“सफल तपस्वी अर्थात् प्योरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी वाले”

“ओम् शान्ति”

आज चारों ओर के तपस्वी बच्चों की याद बापदादा के पास पहुँच रही है। कोई साकार में सम्मुख याद का रिटर्न मिलन मना रहे हैं कोई बच्चे आकारी रूप में याद और मिलन का अनुभव कर रहे हैं। बापदादा दोनों ही रूप के बच्चों को देख रहे हैं। आज अमृतवेले बापदादा बच्चों की तपस्या का प्रत्यक्ष स्वरूप देख रहे थे। हर एक बच्चा अपने पुरुषार्थ प्रमाण तपस्या कर रहे हैं। लक्ष्य भी है और उमंग भी है। तपस्वी सभी हैं क्योंकि ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही तपस्या है।

GOD PRAISE , परमात्मा याद प्यार
GOD PRAISE , परमात्मा याद प्यार

तपस्या अर्थात् एक के लगन में मगन रहना। सफल तपस्वी बहुत थोड़े हैं। पुरुषार्थी तपस्वी बहुत हैं। सफल तपस्वी की निशानी उनके सूरत और सीरत में प्योरिटी की पर्सनैलिटी और प्योरिटी की रॉयल्टी सदा स्पष्ट अनुभव होगी। तपस्या का अर्थ ही है मन-वचन-कर्म और सम्बन्ध-सम्पर्क में अपवित्रता का अंश मात्र, नाम-निशान भी समाप्त होना। जब अपवित्रता समाप्त हो जाती है तो इस समाप्ति को ही सम्पन्न स्थिति कहा जाता है।

सफल तपस्वी अर्थात् सदा, स्वत: पवित्रता की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी, हर बोल और कर्म से, दृष्टि और वृत्ति से अनुभव हो। प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं, सम्पूर्ण पवित्रता अर्थात् संकल्प में भी कोई भी विकार टच न हो। जैसे ब्राह्मण जीवन में शारीरिक आकर्षण व शारीरिक टचिंग अपवित्रता मानते हो, ऐसे मन-बुद्धि में किसी विकार के संकल्प मात्र की आकर्षण वा टचिंग, इसको भी अपवित्रता कहा जायेगा। पवित्रता की पर्सनैलिटी वाले, रॉयल्टी वाले मन-बुद्धि से भी इस बुराई को टच नहीं करते क्योंकि सफल तपस्वी अर्थात् सम्पूर्ण वैष्णव। वैष्णव कभी बुरी चीज को टच नहीं करते हैं। तो उन्हों का है स्थूल, आप ब्राह्मण वैष्णव आत्माओं का है सूक्ष्म। बुराई को टच न करना यही तपस्या है। धारण करना अर्थात् ग्रहण करना। ये तो बहुत मोटी बात है। लेकिन संकल्प में भी टच नहीं करना, इसको ही कहा जाता है सच्चे वैष्णव।

सिर्फ याद के समय याद में रहना इसको तपस्या नहीं कहा जाता। तपस्या अर्थात् प्योरिटी के पर्सनैलिटी और रॉयल्टी का स्वयं भी अनुभव करना और औरों को भी अनुभव कराना। सफल तपस्वी का अर्थ ही है विशेष महान आत्मा बनना। विशेष आत्माओं वा महान आत्माओं को देश की वा विश्व की पर्सनैलिटीज़ कहते हैं। पवित्रता की पर्सनैलिटी अर्थात् हर कर्म में महानता और विशेषता। पर्सनैलिटी अर्थात् सदा स्वयं की और औरों की सेवा में सदा बिज़ी रहना अर्थात् अपनी इनर्जी, समय, संकल्प वेस्ट नहीं गँवाना, सफल करना। इसको कहेंगे पर्सनैलिटी वाले।

पर्सनैलिटी वाले कभी भी छोटी-छोटी बातों में अपने मन-बुद्धि को बिज़ी नहीं रखते हैं। तो अपवित्रता की बातें आप श्रेष्ठ आत्माओं के आगे छोटी हैं या बड़ी हैं? इसलिए तपस्वी अर्थात् ऐसी बातों को सुनते हुए नहीं सुनें, देखते हुए नहीं देखें। ऐसा अभ्यास किया है? ऐसी तपस्या की है? वा यही सोचते हो चाहते तो नहीं हैं, लेकिन दिखाई दे देता है, सुनाई दे देता है? जैसे कोई चीज़ से आपका कनेक्शन ही नहीं हैं, उन चीजों को देखते हुए नहीं देखते हो ना। जैसे रास्ते पर जाते हो, कहीं कुछ दिखाई देता है परन्तु आपके मतलब की कोई बात नहीं है, तो देखते हुए नहीं देखेंगे ना। साइड सीन समझ कर पार कर लेंगे ना?

ऐसे जो बातें सुनते हो, देखते हो, आपके काम की नहीं हैं, तो सुनते हुए नहीं सुनो, देखते हुए न देखो। अगर मन-बुद्धि में धारण किया, कि ये ऐसे हैं, ये वैसे हैं… इसको कहा जायेगा व्यर्थ बुराई को टच किया अर्थात् सच्चा वैष्णवपन सम्पूर्ण रूप से नहीं है। प्योरिटी के पर्सनैलिटी में परसेन्टेज कम अर्थात् तपस्या की परसेन्टेज कम। तो समझा तपस्या क्या है?

Soul Consious Like Lotus, दही अभिमानी कमल फूल समान
Soul Consious Like Lotus, दही अभिमानी कमल फूल समान

इसी विधि से अपने आपको चेक करो – तपस्या वर्ष में तपस्या का प्रत्यक्ष स्वरूप प्योरिटी की पर्सनैलिटी अनुभव करते हो? पर्सनैलिटी कभी छिप नहीं सकती। प्रत्यक्ष दिखाई जरूर देती है। जैसे साकार ब्रह्मा बाप को देखा – प्योरिटी की पर्सनैलिटी कितनी स्पष्ट अनुभव करते थे। ये तपस्या के अनुभव की निशानी अब आप द्वारा औरों को अनुभव हो। सूरत और सीरत दोनों द्वारा अनुभव करा सकते हो। अभी भी कई लोग अनुभव करते भी हैं। लेकिन इस अनुभव को और स्वयं द्वारा औरों में फैलाओ। आज पर्सनैलिटी का सुनाया। फिर रॉयल्टी का सुनायेंगे।

सभी मिलन मनाने आये हैं। तो बापदादा भी मिलन मनाने के लिए आप जैसे व्यक्त शरीर में आते हैं। समान बनना पड़ता है ना। आप साकार में हो तो बाप को भी साकार तन का आधार लेना पड़ता है। वैसे आपको व्यक्त से अव्यक्त बनना है या अव्यक्त को व्यक्त बनना है? कायदा क्या कहता है? अव्यक्त बनना है ना? तो फिर अव्यक्त को व्यक्त में क्यों लाते हो? जब आपको भी अव्यक्त ही बनना है तो अव्यक्त को तो अव्यक्त ही रहने दो ना। अव्यक्त मिलन के अनुभव को बढ़ाते चलो।

अव्यक्त भी ड्रामा अनुसार व्यक्त में आने के लिए बांधे हुए हैं लेकिन समय प्रमाण सरकमस्टांस प्रमाण अव्यक्त मिलन का अनुभव बहुत काम में आने वाला है इसलिए इस अनुभव को इतना स्पष्ट और सहज करते जाओ, जो समय पर यह अव्यक्त मिलन साकार समान ही अनुभव हो। समझा – उस समय ऐसे नहीं कहना कि हमको तो अव्यक्त से व्यक्त में मिलने की आदत है। जैसा समय वैसे मिलन मना सकते हो। समझा!

जो भी जहाँ से भी आये हो इस समय सभी मधुबन निवासी हो। या अपने को महाराष्ट्र निवासी, उड़ीसा निवासी… समझते हो? ओरिजनल तो मधुबन निवासी हो। यह सेवा अर्थ भिन्न-भिन्न स्थान पर गये हो, ब्राह्मण अर्थात् मधुबन निवासी। सेवा स्थान पर गये हो इसीलिए सेवा स्थान को मेरा यही स्थान है – यह कभी भी नहीं समझना। कई बच्चे ऐसे कहते हैं, इसको चेंज करो तो कहते हैं नहीं, हमको पंजाब में वा उड़ीसा में ही भेजो। तो ओरिजनल पंजाब, उड़ीसा के हो या मधुबन के हो? फिर क्यों कहते हो हम पंजाब के हैं तो पंजाब में ही भेजो, गुजरात के हैं तो गुजरात में ही भेजो? चेंज होने में तैयार हो? टीचर्स सभी तैयार हो? किसी को कहाँ भी चेंज करें, तैयार हैं? देखो, दादी सभी को सर्टीफिकेट ना का दे रही है। अच्छा यह भी अप्रैल में करेंगे। जो चेंज होने के लिए तैयार हों वही मिलने आवें। सेन्टर पर जाकर सोचेंगे यदि नहीं रहेंगे कि इसका क्या होगा, मेरा क्या होगा…? थोड़ा बहुत कुछ किनारा भी करेंगी।

बापदादा से तपस्या की प्राइज़ लेने चाहते हो और बापदादा को तपस्या की प्राइज़ देने भी चाहते हो, या सिर्फ लेने चाहते हो? सभी सेन्टर से सरेन्डर होकर आना। नये मकान में आसक्ति है क्या? मेहनत करके बनाया है ना, जहाँ मेरापन है वहाँ तपस्या किसको कहा जायेगा? तपस्या अर्थात् तेरा और तपस्या भंग होना माना मेरा। समझा – ये तो सब छोटी-छोटी टीचर्स हैं कहेंगी हर्जा नहीं यहाँ से वहाँ हो जायेंगी। बड़ों को थोड़ा सोचना पड़ता।

पिताश्री ब्रहमा परमात्मा ज्ञान देरहे ,Father Brahma teaching Godly Verses
पिताश्री ब्रहमा परमात्मा ज्ञान देरहे ,Father Brahma teaching Godly Verses

अच्छा – जो सेन्टर पर आने वाले हैं वो भी सोचते होंगे हमारी टीचर चली जायेगी, आप सभी भी एवररेडी हो? कोई भी कहाँ भी चली जाये। वा कहेंगे हमको तो यही टीचर चाहिए? जो समझते हैं कि कोई भी टीचर मिले उसमें राज़ी हैं वह हाथ उठावें। कोई भी टीचर मिले बापदादा जिम्मेवार है, दादी दीदी जिम्मेवार है, वह हाथ उठायें। अभी ये टी.वी. में तो निकाला है ना। सभी के फोटो टी.वी. में निकाल लो फिर देखेंगे।

अन्तिम पेपर का क्वेश्चन ही यह आना है – नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप। तो अन्तिम पेपर के लिए तो सभी को तैयार होना ही है। रिहर्सल करेंगे ना, ज़ोन हेड को भी चेंज करेंगे। पाण्डवों को भी चेंज करेंगे। आपका है ही क्या? बापदादा ने दिया और बापदादा ने लिया। अच्छा, सभी एवररेडी हैं इसलिए अभी सिर्फ हाथ उठाने की मुबारक हो।

चारों ओर के सफल तपस्वी आत्माओं को, सदा प्योरिटी के पर्सनैलिटी में रहने वाली, सदा प्योरिटी के रॉयल्टी में रहने वाली, सदा सच्चे सम्पूर्ण वैष्णव आत्मायें, सदा समय प्रमाण स्वयं को परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक, ऐसे सदा योगी, सहज योगी, स्वत: योगी, महान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात : –

सभी तपस्वी आत्माएं हैं – ऐसे अनुभव करते हो? तपस्या अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई। ऐसे है या दूसरा कोई है, अभी भी कोई है? कोई व्यक्ति या कोई वैभव? एक के सिवाए और कोई नहीं या थोड़ा-थोड़ा लगाव है? निमित्त बनकर सेवा करना वह और बात है लेकिन लगाव जहाँ भी होगा, चाहे व्यक्ति में, चाहे वैभव में, तो लगाव की निशानी है, वहाँ बुद्धि जरूर जायेगी। मन भागेगा जरूर। तो चेक करो कि सारे दिन में मन और बुद्धि कहाँ-कहाँ भागती है? सिवाए बाप और सेवा के और कहाँ तो मन-बुद्धि नहीं जाती? अगर जाती है तो लगाव है। अगर व्यवहार भी करते हो, जो भी करते हो, वो भी ट्रस्टी बनकर। मेरा नहीं, तेरा।

मेरा काम है, मुझे ही देखना पड़ता है… मेरी जिम्मेवारी है… ऐसे कहते हो कभी? क्या करें, मेरी जिम्मेवारी है ना, निभाना पड़ता है ना, करना पड़ता है ना, कहते हो कभी? या तेरा तेरे अर्पण, मेरा कहाँ से आया? तो यह बोल भी नहीं बोल सकते हो? मुझे ही देखना पड़ता है, मुझे ही करना पड़ता है, मेरा ही है, निभाना ही पड़ेगा…। मेरा कहा और बोझ हुआ। बाप का है, बाप करेगा, मैं निमित्त हूँ तो हल्के। बोझ उठाने की आदत तो नहीं है? 63 जन्म बोझ उठाया ना। कइयों की आदत होती है बोझ उठाने की। बोझ उठाने बिना रह नहीं सकते। आदत से मजबूर हो जाते हैं। मेरा मानना माना बोझ उठाना। समझा।

थोड़ा सा किनारा करके रखा है, समय पर काम में आयेगा? पाण्डवों ने थोड़ा बैंक बैलेन्स, थोड़ा जेब खर्च रखा है? जरा भी मेरापन नहीं। मेरा माना मैला। जहाँ मेरापन होगा ना वहाँ विकारों का मैलापन जरूर होगा। तेरा है तो क्या होगा? तैरते रहेंगे, डूबेंगे नहीं। तैरने में तो मजा आता है ना! तो तपस्या अर्थात् तेरा, मेरा नहीं।

अमृतवेला , Amritvela
अमृतवेला , Amritvela

अच्छा, ये इस्टर्न ज़ोन है। सूर्य उदय होता है ना। तो इस्टर्न ज़ोन वालों के पास बाप के साथ का यादगार सूर्य सदा ही चमकता है ना। सभी तपस्या में सफलता को प्राप्त कर रहे हो ना। तपस्या में सन्तुष्ट हो? अपने चार्ट से सन्तुष्ट हो? या अभी होना है? यह भी एक लिफ्ट की गिफ्ट है। गिफ्ट जो होती है उसमें खर्चा नहीं करना पड़ता, खरीदने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। एक तो है अपना पुरुषार्थ और दूसरा है विशेष बाप द्वारा गिफ्ट मिलना।

तो तपस्या वर्ष एक गिफ्ट है, सहज अनुभूति की गिफ्ट। जितना जो करना चाहे कर सकता है। मेहनत कम, निमित्त मात्र और प्राप्ति ज्यादा कर सकते हैं। अभी भी समय है, वर्ष पूरा नहीं हुआ है। अभी भी जो लेने चाहो ले सकते हो इसलिए सफलता का सूर्य इस्ट में जगाओ। सदा सभी खुश हैं या कभी-कभी कुछ बातें होती तो नाखुश भी होते हो? खुशी बढ़ती जाती है, कम तो नहीं होती है? मायाजीत हो या माया रंग दिखा देती है? वह कितना भी रंग दिखाये, मैं मायापति हूँ। माया रचना है, मैं मास्टर रचयिता हूँ। तो खेल देखो लेकिन खेल में हार नहीं खाओ। कितना भी माया अनेक प्रकार का खेल दिखाये, आप देखने वाले मनोरंजन समझकर देखो। देखते-देखते हार नहीं जाओ। साक्षी होकर के, न्यारे होकर के देखते चलो।

सभी तपस्या में आगे बढ़ने वाले, गिफ्ट लेने वाले हो? सेवा अच्छी हो रही है? स्वयं के पुरुषार्थ में उड़ रहे हैं और सेवा में भी उड़ रहे हैं। सभी फर्स्ट हैं। सदा फर्स्ट रहना, सेकेण्ड में नहीं आना। फर्स्ट रहेंगे तो सूर्यवंशी बनेंगे, सेकेण्ड बनें तो चन्द्रवंशी। फर्स्ट नम्बर मायाजीत होंगे। कोई समस्या नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, कोई क्वेश्चन नहीं, कोई कमजोरी नहीं। फर्स्ट नम्बर अर्थात् फास्ट पुरुषार्थ। जिसका फास्ट पुरुषार्थ है वो पीछे नहीं हो सकता। सदा साक्षी और सदा बाप के साथी – यही याद रखना।

वरदान:-     वरदान: सदा उत्साह में रह निराशावादी को आशावादी बनाने वाले सच्चे सेवाधारी भव!

ब्राह्मण अर्थात् हर समय उत्साह भरे जीवन में उड़ने और उड़ाने वाले, उनके पास कभी निराशा आ नहीं सकती क्योंकि उनका आक्यूपेशन है “निराशावादी को आशावादी बनाना,” यही सच्ची सेवा है। सच्चे सेवाधारियों का उत्साह कभी कम नहीं हो सकता। उत्साह है तो जीवन जीने का मजा है। जैसे शरीर में श्वांस की गति यथार्थ चलती है तो अच्छी तन्दरूस्ती मानी जाती है। ऐसे ब्राह्मण जीवन अर्थात् उत्साह, निराशा नहीं।

स्लोगन:-    बीती को बीती कर दो और बीती बातों से शिक्षा लेकर आगे के लिए सावधान रहो। – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > “Hindi Murli”https://www.youtube.com/watch?v=XJj94IoZlcM

अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARMATMA LOVE SONGS”. https://totalspirituality.com/category/paramatma-love-songs/

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किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे [ निचे ]

अच्छा – ओम् शान्ति।

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