6-11-2022 -”अव्यक्त-बापदादा” मधुबन मुरली. रिवाइज: 30-11-1992: “सर्व खजानों से सम्पन्न बनो – दुआएं दो दुआएं लो”

शिव भगवानुवाच: “सर्व खजानों से सम्पन्न बनो – दुआएं दो दुआएं लो”

गीत:- “झरनो से संगीत है झरता..”

गीत:- “झरनो से संगीत है झरता..”

Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव
Shiv God Supreem, परमपिता परमात्मा शिव

“ओम् शान्ति”

शिव भगवानुवाच : – आज सर्व खजानों के मालिक अपने सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे को अनेक प्रकार के अविनाशी अखुट खजाने मिले हैं और ऐसे खजाने हैं, जो सर्व खजाने अब भी हैं और आगे भी अनेक जन्म खजानों के साथ रहेंगे। जानते हो कि खजाने कौन-से और कितने मिले हैं? खजानों से सदा प्राप्ति होती है। खजानों से सम्पन्न आत्मा सदा भरपूरता के नशे में रहती है। सम्पन्नता की झलक उनके चेहरे में चमकती है और हर कर्म में सम्पन्नता की झलक स्वत: ही नजर आती है। इस समय के मनुष्यात्माओं को विनाशी खजानों की प्राप्ति है, इसलिए थोड़ा समय नशा रहता है, सदा नहीं रहता, इसलिए दुनिया वाले कहते हैं खाली होकर जाना है और आप कहते हो कि भरपूर होकर जाना है।

BK Brahma Baba and Shiv Baba, ब.क. ब्रह्मा बाबा (बाप) और शिव बाबा (दादा)
BK Brahma Baba and Shiv Baba, ब.क. ब्रह्मा बाबा (बाप) और शिव बाबा (दादा)

आप सबको बापदादा ने अनेक खजाने दिये हैं। सबसे श्रेष्ठ पहला खजाना है – ज्ञान-रत्नों का खजाना। सबको यह खजाना मिला है ना। कोई वंचित तो नहीं रह गया है ना। इस ज्ञान-रत्नों के खजाने से विशेष क्या प्राप्ति कर रहे हो? ज्ञान-खजाने द्वारा इस समय भी मुक्ति-जीवनमुक्ति की अनुभूति कर रहे हो? मुक्तिधाम में जायेंगे वा जीवन-मुक्त देव पद प्राप्त करेंगे – यह तो भविष्य की बात हुई। लेकिन अभी भी मुक्त जीवन का अनुभव कर रहे हो।

कितनी बातों से मुक्त हो, मालूम है? जो भी दु:ख और अशान्ति के कारण हैं, उनसे मुक्त हुए हो कि अभी मुक्त होना है? अभी कोई विकार नही आता? मुक्त हो गये। अगर आता भी है तो विजयी बन जाते हो ना। तो कितनी बातों से मुक्त हो गये हो! लौकिक जीवन और अलौकिक जीवन – दोनों को साथ रखो तो कितना अन्तर दिखाई देता है! तो अभी मुक्ति भी प्राप्त की है और जीवनमुक्ति भी अनुभव कर रहे हो।

पाँच विकार , Five Vices
पाँच विकार , Five Vices

अनेक व्यर्थ और विकल्प, विकर्मों से मुक्त बनना यही जीवनमुक्त अवस्था है। कितने बन्धनों से मुक्त हुए हो? चित्र में दिखाते हो ना कितने बन्धनों की रस्सियां मनुष्यात्माओं को बंधी हुई हैं! यह किसका चित्र है? आप तो वह नहीं हो ना? आप तो मुक्त हो ना? तो जीवन में रहते जीवनमुक्त हो गये। तो ज्ञान के खजाने से विशेष मुक्ति-जीवनमुक्ति की प्राप्ति का अनुभव कर रहे हो।

दूसरा – याद अर्थात् योग द्वारा सर्व शक्तियों का खजाना अनुभव कर रहे हो। कितनी शक्तियां हैं? बहुत हैं ना? आठ शक्तियां तो एक सैम्पल रूप में दिखाते हो, लेकिन सर्व शक्तियों के खजानों के मालिक बन गये हो।

तीसरा – धारणा की सब्जेक्ट द्वारा कौन-सा खजाना मिला है? सर्व दिव्य गुणों का खजाना। गुण कितने हैं? बहुत हैं ना। तो सर्व गुणों का खजाना। हर गुण की, हर शक्ति की विशेषता कितनी बड़ी है! हर ज्ञान-रत्न की महिमा कितनी बड़ी है!

चौथी बात – सेवा द्वारा सदा खुशी के खजाने की अनुभूति करते हो। जो सेवा करते हो उससे विशेष क्या अनुभव होता है? खुशी होती है ना। तो सबसे बड़ा खजाना है अविनाशी खुशी। तो खुशी का खजाना सहज, स्वत: प्राप्त होता है।

Gain 8 powers from Rajyoga Meditation, राजयोग से 8 शक्तियो की प्राप्ति
Gain 8 powers from Rajyoga Meditation, राजयोग से 8 शक्तियो की प्राप्ति

पांचवा – सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा ब्राह्मण परिवार के भी सम्पर्क में आते हो, सेवा के भी सम्बन्ध में आते हो। तो सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा कौन-सा खजाना मिलता है? सर्व की दुआओं का खजाना मिलता है। यह दुआओं का खजाना बहुत बड़ा खजाना है। जो सर्व की दुआओं के खजानों से भरपूर है, सम्पन्न है उसको कभी भी पुरुषार्थ में मेहनत नहीं करनी पड़ती। पहले है मात-पिता की दुआएं और साथ में सर्व के सम्बन्ध में आने से सर्व द्वारा दुआएं।

सबसे बड़े ते बड़े तीव्र गति से आगे उड़ने का तेज यंत्र है ‘दुआएं’। जैसे साइन्स का सबसे बड़े ते बड़ा तीव्र गति का रॉकेट है। लेकिन दुआओं का रॉकेट उससे भी श्रेष्ठ है। विघ्न जरा भी स्पर्श नहीं करेगा, विघ्न-प्रूफ बन जाते। युद्ध नहीं करनी पड़ती। सहज योगयुक्त, युक्तियुक्त हर कर्म, बोल, संकल्प स्वत: ही बन जाते हैं। ऐसा यह दुआओं का खजाना है। सबसे बड़ा खजाना इस संगमयुग के समय का खजाना है।

वैसे खजाने तो बहुत हैं। लेकिन जो खजाने सुनाये, सिर्फ इन खजानों को भी अपने अन्दर समाने की शक्ति धारण करो तो सदा ही सम्पन्न होने कारण जरा भी हलचल नहीं होगी। हलचल तब होती है जब खाली है। भरपूर आत्मा कभी हिलेगी नहीं।

तो इन खजानों को चेक करो कि सर्व खजाने स्वयं में समाये हैं? इन सभी खजानों से भर-पूर हो? वा कोई में भरपूर हो, कोई में थोड़ा अभी भरपूर होना है? खजाने मिले तो सभी को हैं ना। एक द्वारा, एक जैसे खजाने सभी को मिले हैं। अलग-अलग तो नहीं बांटा है ना। एक को लाख, दूसरे को करोड़ दिया हो – ऐसे तो नहीं है ना?

लेकिन एक हैं – सिर्फ लेने वाले जो मिलता है लेते भी हैं लेकिन मिला और खाया-पिया, मौज किया और खत्म किया।

दूसरे हैं – जो मिले हुए खजानों को जमा करते – खाया-पिया, मौज भी किया और जमा भी किया। तीसरे हैं – जमा भी किया, खाया-पिया भी लेकिन मिले हुए खजाने को और बढ़ाते जाते हैं। बाप के खजाने को अपना खजाना बनाए बढ़ाते जाते। तो देखना है कि मैं कौन हूँ – पहले नम्बर वाला, दूसरे वा तीसरे नम्बर वाला?

पिताश्री ब्रहमा परमात्मा ज्ञान देरहे ,Father Brahma teaching Godly Verses
पिताश्री ब्रहमा परमात्मा ज्ञान देरहे ,Father Brahma teaching Godly Verses

जितना खजाने को स्व के कार्य में या अन्य की सेवा के कार्य में यूज़ करते हो उतना खजाना बढ़ता है। खजाना बढ़ाने की चाबी है, यूज करना। पहले अपने प्रति। जैसे ज्ञान के एक-एक रत्न को समय पर अगर स्व प्रति यूज़ करते हो, तो खजाना यूज़ करने से अनुभवी बनते जाते हो। जो खजाने की प्राप्ति है वह जीवन में अनुभव की ‘अथॉरिटी’ बन जाती है। तो अथॉरिटी का खजाना एड (जमा) हो जाता है। तो बढ़ गया ना।

सिर्फ सुनना और बात है। सुनना माना लेना नहीं है। समाना और समय पर कार्य में लगाना – यह है लेना। सुनने वाले क्या करते और समाने वाले क्या करते – दोनों में महान् अन्तर है।

सुनने वालों: का बापदादा दृश्य देखते हैं तो मुस्कराते हैं। सुनने वाले समय पर परिस्थिति प्रमाण वा विघ्न प्रमाण, समस्या प्रमाण प्वॉइन्ट को याद करते हैं कि बापदादा ने इस विघ्न को पार करने के लिए ये-ये प्वॉइन्ट्स दी हैं। ऐसा करना है, ऐसा नहीं करना है – रिपीट करते, याद करते रहते हैं। एक तरफ प्वाइन्ट रिपीट करते रहते, दूसरे तरफ वशीभूत भी हो जाते हैं। बोलते हैं – ऐसा नहीं करना है, यह ज्ञान नहीं है, यह दिव्य गुण नहीं है, समाने की शक्ति धारण करनी है, किसको दु:ख नहीं देना है। रिपीट भी करते रहते हैं लेकिन फेल भी होते रहते हैं।

अगर उस समय भी उनसे पूछो कि ये राइट है? तो जवाब देंगे – राइट है नहीं लेकिन हो जाता है। बोल भी रहे हैं, भूल भी रहे हैं। तो उनको क्या कहेंगे? सुनने वाले। सुनना बहुत अच्छा लगता है। प्वॉइन्ट बड़ी अच्छी शक्तिशाली है। लेकिन यूज़ करने के समय अगर शक्तिशाली प्वॉइन्ट ने विजयी नहीं बनाया वा आधा विजयी बनाया तो उसको क्या कहेंगे? सुनने वाले कहेंगे ना।

Brahman to deity, ब्राह्मण सो देवता
Brahman to deity, ब्राह्मण सो देवता

समाने वाले: जैसे कोई परिस्थिति या समस्या सामने आती है तो त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित हो स्व-स्थिति द्वारा पर-स्थिति को ऐसे पार कर लेते जैसे कि कुछ था ही नहीं। इसको कहा जाता है समाना अर्थात् समय पर कार्य में लगाना, समय प्रमाण हर शक्ति को, हर प्वाइन्ट को, हर गुण को ऑर्डर से चलाना। जैसे कोई स्थूल खजाना है, तो खजाने को स्वयं खजाना यूज़ नहीं करता लेकिन खजाने को यूज़ करने वाली मनुष्यात्माएं हैं। वो जब चाहें, जितना चाहें, जैसे चाहें, वैसे यूज़ कर सकती हैं।

ऐसे यह जो भी सर्व खजाने सुनाए, उनके मालिक कौन? आप हो वा दूसरे हैं? मालिक हैं ना। मालिक का काम क्या होता है? खजाना उसको चलाये या वो खजाने को चलाये? तो ऐसे हर खजाने के मालिक बन समय पर ज्ञानी अर्थात् समझदार, नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी होकर खजाने को कार्य में लगाओ। ऐसे नहीं कि समय आने पर ऑर्डर करो सहन शक्ति को और कार्य पूरा हो जाये फिर सहन शक्ति आये।

समाने की शक्ति जिस समय, जिस विधि से चाहिए उस समय अपना कार्य करे। ऐसे नहीं समाया तो सही लेकिन थोड़ा-थोड़ा फिर भी मुख से निकल गया, आधा घण्टा समाया और एक सेकेण्ड समाने के बजाए बोल दिया। तो इसको क्या कहेंगे? खजाने के मालिक वा गुलाम?

सर्व शक्तियां बाप के अधिकार का खजाना है, वर्सा है, जन्म सिद्ध अधिकार है। तो जन्म सिद्ध अधिकार का कितना नशा होता है! छोटा-सा राजकुमार होगा, क्या खजाना है, उसका पता भी नहीं होगा लेकिन थोड़ा ही स्मृति में आने से कितना नशा रहता – मैं राजा का बच्चा हूँ! तो यह मालिकपन का नशा है ना। तो खजानों को कार्य में लगाओ। कार्य में कम लगाते हो।

Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन - स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण
Paradice Ruler- Laxmi-Narayan, मधुबन – स्वर्ग महाराजा- लक्ष्मी-नारायण

खुश रहते हो – भरपूर है, सब मिला है। लेकिन कार्य में लगाना, उससे स्वयं को भी प्राप्ति कराना और दूसरों को भी प्राप्ति कराना उसमें नम्बरवार बन जाते हैं। नहीं तो नम्बर क्यों बने? जब देने वाला भी एक है, देता भी सबको एकरस है, फिर नम्बर क्यों? तो बापदादा ने देखा खजाने तो बहुत मिले हैं, भरपूर भी सभी हैं, लेकिन भरपूरता का लाभ नहीं लेते। जैसे लौकिक में भी कइयों को धन से आनन्द या लाभ प्राप्त करने का तरीका आता है और कोई के पास होगा भी बहुत धन लेकिन यूज़ करने का तरीका नहीं आता, इसलिए होते हुए भी जैसे कि नहीं है।

तो अण्डरलाइन क्या करना है? सिर्फ सुनने वाले नहीं बनो, यूज़ करने की विधि से अब भी सिद्धि को प्राप्त करो और अनेक जन्मों की सद्गति प्राप्त करो।

दिव्य गुण भी बाप का वर्सा है। तो प्राप्त हुए वर्से को कार्य में लगाना क्या मुश्किल है। ऑर्डर करो। ऑर्डर करना नहीं आता? मालिक को ही ऑर्डर करना आता। कमजोर को ऑर्डर करना नहीं आता, वह सोचेगा – कहूँ वा नहीं कहूँ, पता नहीं मदद मिलेगी वा नहीं मिलेगी…।

अपना खजाना है ना। बाप का खजाना अपना खजाना है। या बाप का है और हमारा नहीं है? बाप ने किसलिए दिया? अपना बनाने के लिए दिया या सिर्फ देखकर खुश होने के लिए दिया? कर्म में लगाने के लिए मिला है। रिजल्ट में देखा जाता है कि सभी खजानों को जमा करने की विधि कम आती है।

YUG SWASTIK - World Drama Wheel, विश्व सृष्टि चक्र
YUG SWASTIK – World Drama Wheel, विश्व सृष्टि चक्र

ज्ञान का अर्थ भी यह नहीं कि प्वाइन्ट रिपीट करना या बुद्धि में रखना। ज्ञान अर्थात् समझ, त्रिकालदर्शी बनने की समझ, सत्य-असत्य की समझ, समय प्रमाण कर्म करने की समझ। इसको ज्ञान कहा जाता है।

अगर कोई इतना समझदार भी हो और समय आने पर बेसमझी का कार्य करे तो उसको ज्ञानी कहेंगे? और समझदार अगर बेसमझ बन जाये तो उसको क्या कहा जायेगा? बेसमझ को कुछ कहा नहीं जाता। लेकिन समझदार को सभी इशारा देंगे कि यह समझदारी है? तो ज्ञान का खजाना धारण करना, जमा करना अर्थात् हर समय, हर कार्य, हर कर्म में समझ से चलना। समझा? तो आप महान् समझदार हो ना। ‘ज्ञानी तू आत्मा’ हो या ‘ज्ञान सुनने वाली तू आत्मा’ हो? चेक करो कि ऐसे ज्ञानी तू आत्मा कहाँ तक बने हैं प्रैक्टिकल कर्म में, बोलने में…।

ऐसे तो सबसे हाथ उठवाओ तो सब कहेंगे हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। कोई नहीं कहेगा कि हम राम-सीता बनेंगे। लेकिन कोई तो बनेंगे ना। सभी कहेंगे हम विश्व-महाराजा बनेंगे। अच्छा है, लक्ष्य ऐसा ही ऊंचा रहना चाहिए। लेकिन सिर्फ लक्ष्य तक नहीं, लक्ष्य और लक्षण समान हों। लक्ष्य हो विश्व-महाराजन् और कर्म में एक गुण या एक शक्ति भी ऑर्डर नहीं माने, तो वह विश्व का महाराजा कैसे बनेंगे?

अपना ही खजाना अपने ही काम में नहीं आये तो विश्व का खजाना क्या सम्भालेंगे? इसलिए सर्व खजानों से सम्पन्न बनो और विशेष वर्तमान समय यही सहज पुरुषार्थ करो कि सर्व से, बापदादा से हर समय दुआएं लेते रहें।

दुआएं किसको मिलती हैं? जो सन्तुष्ट रह सबको सन्तुष्ट करे। जहाँ सन्तुष्टता होगी वहाँ दुआएं होंगी। और कुछ भी नहीं आता हो कोई बात नहीं। भाषण नहीं करना आता है कोई बात नहीं। सर्व गुण धारण करने में मेहनत लगती हो, सर्व शक्तियों को कन्ट्रोल करने में मेहनत लगती हो उसको भी छोड़ दो। लेकिन एक बात यह धारण करो कि दुआएं सबको देनी हैं और दुआएं लेनी हैं। इसमें कोई मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

Always Happy reciving gods gifts, सदा खुश प्रभु पलना में।
Always Happy reciving gods gifts, सदा खुश प्रभु पलना में।

करके देखो। एक दिन अमृतवेले से लेकर रात तक यही कार्य करो दुआएं देनी हैं, दुआएं लेनी हैं। और फिर रात को चार्ट चेक करो सहज पुरुषार्थ रहा या मेहनत रही? और कुछ भी नहीं करो लेकिन दुआएं दो और दुआएं लो। इसमें सब आ जायेगा। दिव्य गुण, शक्तियां आपे ही आ जायेंगी। कोई आपको दु:ख दे तो भी आपको दुआएं देनी हैं। तो सहन शक्ति, समाने की शक्ति होगी ना, सहनशीलता का गुण होगा ना। अण्डरस्टूड है।

दुआएं लेना और दुआएं देना – यह बीज है, इसमें झाड़ स्वत: ही समाया हुआ है। इसकी विधि है दो शब्द याद रखो। एक है ‘शिक्षा’ और दूसरी है ‘क्षमा’, रहम। तो शिक्षा देने की कोशिश बहुत करते हो, क्षमा करना नहीं आता। तो क्षमा करनी है, क्षमा करना ही शिक्षा देना हो जायेगा। शिक्षा देते हो तो क्षमा भूल जाते हो। लेकिन क्षमा करेंगे तो शिक्षा स्वत: आ जायेगी।

शिक्षक बनना बहुत सहज है। सप्ताह-कोर्स के बाद ही शिक्षक बन जाते हैं। तो क्षमा करनी है, रहमदिल बनना है। सिर्फ शिक्षक नहीं बनना है। क्षमा करेंगे अभी से यह संस्कार धारण करेंगे तब ही दुआएं दे सकेंगे। और अभी से दुआएं देने का संस्कार पक्का करेंगे तभी आपके जड़ चित्रों से भी दुआएं लेते रहेंगे। चित्रों के सामने जाकर क्या कहते हैं? दुआ करो, मर्सी (रहम) दो…। आपके जड़ चित्रों से जब दुआएं मिलती हैं तो चैतन्य में आत्माओं से कितनी दुआएं मिलेंगी!

दुआओं का अखुट खजाना बापदादा से हर क़दम में मिल रहा है, लेने वाला लेवे। आप देखो, अगर श्रीमत प्रमाण कोई भी कदम उठाते हो तो क्या अनुभव होता है? बाप की दुआएं मिलती हैं ना। और अगर हर कदम श्रीमत पर चलो तो हर कदम में कितनी दुआएं मिलेंगी, दुआओं का खजाना कितना भरपूर हो जायेगा!

कोई भल क्या भी देवे लेकिन आप उसको दुआएं दो। चाहे कोई क्रोध भी करता है, उसमें भी दुआएं हैं। क्रोध में दुआएं हैं कि लड़ाई है? चाहे कोई कितना भी क्रोध करता है लेकिन आपको याद दिलाता है कि मैं तो परवश हूँ, लेकिन आप मास्टर सर्वशक्तिवान हो। तो दुआएं मिली ना। याद दिलाया कि आप मास्टर सर्वशक्तिवान हो, आप शीतल जल डालने वाले हो। तो क्रोधी ने दुआएं दी ना। वह क्या भी करे लेकिन आप उस से दुआएं लो।

रूहानी गुलाब - सनेह के चुम्बक बनो, Spiritual flowers - Be a magnet of Love
रूहानी गुलाब – सनेह के चुम्बक बनो, Spiritual flowers – Be a magnet of Love

सुनाया ना गुलाब के पुष्प में भी देखो कितनी विशेषता है, कितनी गन्दी खाद से, बदबू से खुद क्या लेता है? खुशबू लेता है ना। गुलाब का पुष्प बदबू से खुशबू ले सकता और आप क्रोधी से दुआएं नहीं ले सकते? विश्व-महाराजन गुलाब का पुष्प बनना चाहिये या आपको बनना चाहिए? यह कभी भी नहीं सोचो कि यह ठीक हो तो मैं ठीक होऊं, यह सिस्टम ठीक हो तो मैं ठीक होऊं।

कभी सागर के आगे जाकर कहेंगे – “हे लहर! आप बड़ी नहीं, छोटी आओ, टेढ़ी नहीं आओ, सीधी आओ”? यह संसार भी सागर है। सभी लहरें न छोटी होंगी, न टेढ़ी होंगी, न सीधी होंगी, न बड़ी होंगी, न छोटी होंगी। तो यह आधार नहीं रखो – यह ठीक हो जाये तो मैं हो जाऊं। तो परिस्थिति बड़ी या आप बड़े? बाप-दादा के पास तो सब बातें पहुँचती हैं ना। यह ठीक कर दो तो मैं भी ठीक हो जाऊं। इस क्रोध करने वाले को शीतल कर दो तो मैं शीतल हो जाऊं। इस खिट-खिट करने वाले को किनारे कर दो तो सेन्टर ठीक हो जायेगा। ऐसे रूहरिहान नहीं करना।

आपका स्लोगन ही है “बदला न लो, बदल कर दिखाओ।” यह ऐसा क्यों करता है, ऐसा नहीं करना चाहिए, इसको तो बदलना ही पड़ेगा…। परन्तु पहले स्व को बदलो। स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन वा अन्य का परिवर्तन। या अन्य के परिवर्तन से स्व परिवर्तन है? स्लोगन रांग तो नहीं बना दिया है? क्या करेंगे? स्व को बदलेंगे या दूसरे को बदलने में समय गंवायेंगे? “चाहे एक वर्ष भी लगाकर देखो – स्व को नहीं बदलो और दूसरों को बदलने की कोशिश करो। समय बदल जायेगा लेकिन न आप बदलेंगे, न वो बदलेगा।” समझा! सर्व खजानों के मालिक बनना अर्थात् समय पर खजानों को कार्य में लगाना। अच्छा!

“सर्व खजानों से सम्पन्न आत्माओं को, सर्व खजानों को कार्य में लगाने वाले, बढ़ाने वाले ‘ज्ञानी तू आत्माएं’ बच्चों को, सर्व खजानों के मालिक बन समय पर विधिपूर्वक कार्य में लगाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, हर शक्ति, हर गुण की अथॉरिटी बन स्वयं में और सर्व में भरने वाली विशेष आत्माओं को, सदा दुआओं के खजाने से सहज पुरुषार्थ का अनुभव करने वाली सहजयोगी आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।“

वरदान:-     “साधनों के वशीभूत होने के बजाए उन्हें यूज़ करने वाले मास्टर क्रियेटर भव!”

साइन्स के साधन जो आप लोगों के काम आ रहे हैं, ड्रामा अनुसार उन्हें भी टच तभी हुआ है जब बाप को आवश्यकता है। लेकिन यह साधन यूज़ करते हुए उनके वश नहीं हो जाओ। कभी कोई साधन अपनी ओर खींच न ले। मास्टर क्रियेटर बनकर क्रियेशन से लाभ उठाओ। अगर उनके वशीभूत हो गये तो वे दु:ख देंगे इसलिए साधन यूज़ करते भी साधना निरन्तर चलती रहे।

स्लोगन:-    “निरन्तर योगी बनना है तो हद के मैं और मेरेपन को बेहद में परिवर्तन कर दो।“ – ओम् शान्ति।

मधुबन मुरली:- सुनने के लिए लिंक को सेलेक्ट करे > “Hindi Murli

गीत:- “हम खुशनसीब इतने, प्रभु का मिला सहारा…………” ,अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARMATMA LOVE SONGS”.

किर्प्या अपना अनुभव साँझा करे

अच्छा – ओम् शान्ति।

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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल” को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।

खोज करो:ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.

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