10-4-2023 “अव्यक्त-बापदादा” मधुबन प्रात: मुरली : “मीठे बच्चे – श्रेष्ठ बनने के लिए सदा श्रीमत पर चलते रहो”
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शिव भगवानुवाच : “मीठे बच्चे – श्रेष्ठ बनने के लिए सदा श्रीमत पर चलते रहो, लक्ष्मी-नारायण भी श्रीमत से इतने श्रेष्ठ बने हैं”
प्रश्नः भक्ति में गऊमुख का यादगार क्यों बनाया है?
उत्तर:- क्योंकि संगम पर बाप ने ज्ञान का कलष माताओं के ऊपर रखा है। तुम माताओं के मुख से ज्ञान अमृत निकलता है जिससे सब पावन बन जाते हैं इसलिए भक्ति में गऊमुख का यादगार बना दिया है। तुम गऊ मातायें हो, तुम ही सबकी मनोकामनायें पूर्ण करती हो इसलिए यादगार बने हुए हैं।
गीत:- “ नयन हीन को राह बताओ………….!”, अन्य गीत सुनने के लिए सेलेक्ट करे > “PARAMATMA LOVE SONGS”.
-: ज्ञान के सागर और पतित–पावन निराकार शिव भगवानुवाच :-
अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति – “मुरली”( यह अपने सब बच्चों के लिए “स्वयं भगवान द्वारा अपने हाथो से लिखे पत्र हैं।”)
“ओम् शान्ति”
शिव भगवानुवाच: बच्चों ने गीत सुना। भक्ति मार्ग वाले बच्चे बाप को पुकारते हैं कि हम जो नयनहीन बुद्धिहीन बन गये हैं, हमें राह बताओ। हे प्रभू जी, याद करते हैं अपने बाप को। उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। सभी जीव की आत्मायें बाप को याद करती हैं। हम इस पतित दुनिया में बहुत दु:खी हैं। दर–दर धक्के खाते रहते हैं। जहाँ भी जाते हैं उनके आक्यूपेशन का कुछ भी पता नहीं कि हम किसके पास जाते हैं? शिव के मन्दिर में जाते हैं परन्तु उनको पता नहीं है कि शिव कौन है? जहाँ भी जायेंगे जाकर माथा टेकेंगे। जानते नहीं कि वह कौन हैं, कब आये थे।
लक्ष्मी–नारायण के मन्दिर में भी जाते हैं लेकिन जानते नहीं कि यह कब आये, कैसे राज्य लिया, कुछ भी पता नहीं। देलवाड़ा मन्दिर में जाते हैं वहाँ आदि देव बैठा है परन्तु जानते नहीं यह कौन हैं। जगत अम्बा के पास जाते हैं परन्तु वह कब आई, क्या किया, कुछ नहीं जानते सिर्फ जाकर माथा टेकते हैं। प्रार्थना करते हैं – बच्चा दो, यह दो, वह दो। जानते कुछ भी नहीं।
गऊमुख पर जाते हैं, कितनी मेहनत करके सीढ़ी उतरते चढ़ते हैं, पता कुछ भी नहीं कि वहाँ क्या रखा है? एक पत्थर का गऊ का मुख बनाया है, कहते हैं गऊ के मुख से गंगा जल निकलता है। अब जानवर के मुख से अमृत थोड़ेही निकलता। तीर्थों पर जाते हैं, किसके भी आक्यूपेशन को नहीं जानते हैं कि यह कब आये, क्या आकर किया? हम क्यों पूजते हैं? बुद्धिहीन होने कारण पुकारते हैं – हे प्रभू, हे बाबा क्योंकि वह सबका बाप है। मनुष्य के तीन बाप कहे जाते – एक है आत्माओं का बाप शिव, दूसरा सारे मनुष्य सृष्टि अथवा मनुष्य सिजरे का रचता प्रजापिता ब्रह्मा, तीसरा फिर लौकिक बाप।
भक्त भी एक भगवान को याद करते हैं कि नयनहीन को आकर राह दिखाओ, जो हम सदा ऐसे बनें। यह कलियुग तो है ही दु:खधाम। सतयुग है सुखधाम और जहाँ से हम आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं उनको शान्तिधाम कहा जाता है। आत्मा को यह शरीर रूपी बाजा अथवा यह कर्मेन्द्रियां यहाँ मिलती हैं, जिससे आत्मा कर्म करती है। आत्मा तो है अविनाशी, शरीर है विनाशी। आत्मा है पारलौकिक परमपिता परमात्मा की सन्तान। शरीर है लौकिक बाप की सन्तान। आत्मा का बाप एक ही है, उनको याद करने से वर्सा मिलता है। बेहद के शान्ति और सुख का वर्सा कोई मनुष्य मात्र से मिल नहीं सकता है। चाहे कोई भी हो।
ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी देवता कहा जाता, परमात्मा एक शिव है। शिव परमात्माए नम:, ब्रह्मा परमात्माए नम: नहीं कहेंगे। तो यह भी जो मन्दिर आदि हैं उनके आक्यूपेशन को कोई नहीं जानते। ऊंच ते ऊंच परमपिता परमात्मा शिव है फिर रचना रचते हैं ब्रह्मा–विष्णु–शंकर की। शिव निराकार अलग है, शंकर आकारी देवता है। परमात्मा एक है, यह पहेली अच्छी रीति समझाना चाहिए। पहले–पहले तो बाप को जानना चाहिए जो बाप स्वर्ग का रचता है। मनुष्य तो भक्ति में धक्के खाते रहते हैं।
लक्ष्मी–नारायण तो हैं स्वर्ग के मालिक, वहाँ तो सदैव सुख ही सुख है। यहाँ सभी दु:खी हैं। यह दुनिया ही पतित है। सतयुग में भारत पवित्र गृहस्थ आश्रम था यथा राजा रानी तथा प्रजा सब पावन थे। पतित को पावन बनाने वाला एक ही परमपिता परमात्मा है। राधे कृष्ण सतयुग के प्रिन्स प्रिन्सेज हैं जो स्वयंवर बाद लक्ष्मी–नारायण बनते हैं। स्वर्ग को कहा जाता है शिवालय। अब बाप सबको पावन बना रहे हैं इन भारत माताओं द्वारा, जिन्हों पर ही ज्ञान का कलष रखा जाता है। भारत में पवित्र राज्य था, अभी है अपवित्र राज्य। गृहस्थ धर्म के बदले गृहस्थ अधर्म हो गया है फिर बाप आकर पावन बनाते हैं।
बाप आत्माओं से बात करते हैं मैं परमपिता परमात्मा आया हूँ। आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल…. तुम बहुत समय के बिछुड़े हुए हो। अब बिल्कुल रोगी, पतित, कौड़ी तुल्य बन गये हो फिर तुमको अगर मेरे जैसा बनना है तो पुरुषार्थ करो। यह भारत माता शक्ति अवतार हैं। यह शिवबाबा को अपना बाप मानती हैं। उनसे योग लगाने से शक्ति मिलती है जिससे 5 विकारों पर जीत पाकर माया जीते जगतजीत बनते हैं। यह हार–जीत का खेल है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री–जॉग्राफी समझने से तुम चक्रवर्ती राजा बन सकते हो। बाप ही स्वर्ग के लिए पवित्रता–सुख–शान्ति का वर्सा देते हैं। यह राजयोग है, हठयोगी राजयोग सिखा न सकें।
अभी तुम बच्चों को श्रीमत मिलती है जिससे तुम श्रेष्ठ बन रहे हो। रावण की मत से तुम भ्रष्ट बने हो। भारत अब रावण की मत पर चलने से इतना दु:खी कंगाल बना है। जगदम्बा सबकी मनोकामनायें पूर्ण करने वाली थी, वह भी माता थी। जगदम्बा ने श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बनाया था इसलिए उनकी इतनी महिमा गाई जाती है। पवित्रता के बिगर तुम पवित्र दुनिया का मालिक बन नहीं सकेंगे। आधाकल्प भक्ति मार्ग चलता है।
अब बाप कहते हैं फिर पावन दुनिया का मालिक बनना है तो आकर समझो। अब श्रीमत मिलती है तो उन पर चलना है। मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई…. मनुष्य तो 84 जन्म लेते हैं। तुम शक्तियां हो। शिवबाबा से योग लगाने से तुमको शक्ति मिलेगी। नहीं तो कभी स्वर्ग के मालिक बन ही नहीं सकेंगे। पारलौकिक बाप से 21 जन्मों का वर्सा मिलता ही है संगम पर, इसलिए पुरुषार्थ करना है। बच्चों का भी कल्याण करना है। फिर स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे।
यह राजयोग की पाठशाला है। भगवानुवाच – बच्चे, मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ जिससे तुम राजाओं का राजा स्वर्ग के मालिक बनेंगे। सिर्फ बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। बाप सुखधाम में भेज देंगे। बाप कहते हैं मैं ही आकर सबको शान्तिधाम, सुखधाम में ले जाता हूँ। सतयुग त्रेता में यह भक्ति आदि होती नहीं। वहाँ तो 21 जन्म अथाह सुख हैं। अब बाप कहते हैं इस रावण पर जीत पहनो, विकार के लिए शादी करना अपनी बरबादी करना है। परमपिता परमात्मा ने आर्डीनेन्स निकाला है कि पवित्र बनो तो जगत का मालिक बनेंगे। इस दु:खधाम से शान्तिधाम, सुखधाम में चलना चाहते हो तो यह बातें समझो।
तुम जानते हो सिवाए बाप के कोई भी मनुष्य को भगवान कहना रांग है। भगवान है ही एक। अभी तुम बच्चे शिव परमात्मा की, ब्रह्मा विष्णु शंकर की, लक्ष्मी–नारायण आदि सबकी बायोग्राफी जानते हो। अब तुम श्रीमत से ऐसे लक्ष्मी–नारायण समान श्रेष्ठ बन सकते हो। पवित्र तो जरूर बनना है। परमपिता परमात्मा की श्रीमत पर एक बाप को याद करते रहेंगे और पवित्र बनेंगे तो 21 जन्म का राज्य भाग्य मिलेगा। कितनी सहज बात है! यह समझने से तुम भक्ति के धक्कों से, रोने पीटने से 21 जन्म छूट सकते हो।
समझाना है सतयुग की स्थापना कैसे होती है फिर यह चक्र कैसे फिरता है? सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री–जॉग्राफी को समझो। यह तो मनुष्य ही समझेंगे। एक बाप की श्रीमत पर चलना है। सर्व पर दया तो एक बाप ही करते हैं। वह ज्ञान का सागर, सुख का सागर है। वही इन माताओं को ज्ञान का कलष देते हैं जिससे यह सबको पावन बना सकती हैं। बाकी पानी की गंगा पावन नहीं बना सकती है। यह गऊ मातायें हैं। जिन्हों को ज्ञान का कलष मिलता है। यहाँ तो पढ़ाई है, पढ़कर देवता बनना है। ब्राह्मण देवता, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र – यह वर्ण हैं। ऐसे यह 84 जन्मों का चक्र फिरता रहता है। इस चक्र को जानने से तुम चक्रवर्ती राजा रानी बन सकते हो। अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे ब्राह्मण कुल भूषण सभी बच्चों प्रति मात–पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पवित्रता के बल से, श्रीमत पर चल भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है। सबको एक बाप का आर्डीनेंस सुनाना है कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
2) हर एक को तीन बाप का परिचय दे, दु:खधाम से शान्तिधाम और सुखधाम में चलने की राह दिखानी है। भटकने से छुड़ाना है।
वरदान:- “मर्यादा पुरूषोत्तम बन सदा उड़ती कला में उड़ने वाले नम्बरवन विजयी भव”
नम्बरवन की निशानी है हर बात में विन करने वाले। किसी भी बात में हार न हो, सदा विजयी। यदि चलते–चलते कभी हार होती है तो उसका कारण है मर्यादाओं में नीचे ऊपर होना। लेकिन यह संगमयुग है मर्यादा पुरुषोत्तम बनने का युग। पुरुष नहीं, नारी नहीं लेकिन पुरुषोत्तम हैं, इसी स्मृति में सदा रहो तो उड़ती कला में जाते रहेंगे, नीचे नहीं रुकेंगे। उड़ती कला वाला सेकण्ड में सर्व समस्यायें पार कर लेगा।
स्लोगन:- “एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहो तो दूसरा कोई संग प्रभाव नहीं डाल सकता।“ – ओम् शान्ति।
मधुबन मुरली:- सुनने के लिए Video को सेलेक्ट करे।
अच्छा – ओम् शान्ति।
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नोट: यदि आप “मुरली = भगवान के बोल“ को समझने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया अपने शहर या देश में अपने निकटतम ब्रह्मकुमारी राजयोग केंद्र पर जाएँ और परिचयात्मक “07 दिनों की कक्षा का फाउंडेशन कोर्स” (प्रतिदिन 01 घंटे के लिए आयोजित) पूरा करें।
खोज करो: “ब्रह्मा कुमारिस ईश्वरीय विश्वविद्यालय राजयोग सेंटर” मेरे आस पास.
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